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बंगाल : क्या है उस महिला की कहानी, जिसे दुर्गापूजा की थीम बनाया गया है?

“पिछले साल जब पूजा खत्म हुई, तभी से हमलोग अगले साल की पूजा की प्लानिंग करने लगे थे। हम ऐसी थीम पर पूजा पंडाल बनाने के बारे में सोच रहे थे, जिसमें सोशल मैसेज हो और वो आम आदमी से जुड़ा हुआ भी हो। तभी हमें प्रतिमा पोद्दार के बारे में पता चला।"
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बस में ड्राइवर की सीट पर प्रतिमा पोद्दार।

पश्चिम बंगाल की दुर्गापूजा दुनियाभर में मशहूर है। यहां  थीम आधारित दुर्गापूजा होती है, जो इसे दूसरे सूबों से खास बनाती है। थीम में समसामयिक मुद्दों से लेकर अनूठे विषय शामिल होते हैं। इन्हीं विषयों के इर्द-गिर्द पंडाल की सजावट होती है और मूर्तियां लगाई जाती हैं।
लेकिन, इस बार कोलकाता में एक पूजा आयोजक एक आम महिला के संघर्ष और उसकी जिजीविषा को थीम बनाने जा रहा है। ये महिला हैं प्रतिमा पोद्दार। कोलकाता में पैसेंजर बस की स्टीरिंग संभालने वाली इकलौती महिला।

प्रतिमा पोद्दार कोई स्टीरियोटाइप तोड़ने के लिए ड्राइविंग के पेशे में नहीं आईं हैं, बल्कि पारिवारिक जिम्मेदारी और बच्चों के आसमानी सपनों को परवाज़ देने के लिए उन्होंने इसे चुना है।
25 साल पहले जब प्रतिमा को ब्याह कर उनके पति शिवेश्वर उत्तर 24 परगना जिले के बेलघड़िया स्थित अपने घर लेकर आए थे, तो प्रतिमा का भी सपना पति के इर्द-गिर्द ही महदूद था, लेकिन जब दो बच्चियों का जन्म हुआ और उन्होंने बड़े सपने देखना शुरू किया, तो प्रतिमा ने भी घर की दहलीज़ के बाहर कदम बढ़ाने का फैसला ले लिया। प्रतिमा की बड़ी बेटी स्वीमर है औऱ छोटी बेटी जिमनास्ट। दोनों को पढ़ने का भी शौक है।

प्रतिमा पोद्दार ने बताया, “मेरे पति बस चलाते हैं। जब मैं शादी कर पति के घर गई, तो जिंदगी ठीकठाक ही चल रही थी। बच्चियों का जन्म हुआ, तो भी किसी तरह परिवार चल रहा था, लेकिन जब दोनों बड़ी होने लगीं, तो उन्होंने खेलकूद में दिलचस्पी लेना शुरू किया, तो ख़र्च बढ़ गया। पढ़ाई के साथ खेलकूद और घर का ख़र्च चलाना मुश्किल होने लगा। पति दिन-रात हाड़तोड़ मेहनत कर रहे थे, फिर भी आर्थिक किल्लत ज्यों की त्यों बनी हुई थी। चूंकि दोनों खेलकूद में अच्छा कर रही थीं, इसलिए उन्हें मना भी नहीं किया जा सकता था।”
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अपने पति के साथ प्रतिमा।

प्रतिमा के पति बस ड्राइवर हैं, तो प्रतिमा ने पति की तरह ही ड्राइविंग करने का फैसला कर लिया। इसके लिए उन्होंने13 साल पहले ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया।

प्रतिमा कहती हैं, “वर्ष 2006 में ही मैंने ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लिया था। शुरुआती दौर मे मैंने एम्बुलेंस, टैक्सी व अन्य छोटी गाड़ियां चलाईं, जहां कम जोखिम था। लेकिन, पिछले 6-7 वर्षों से मैं बस चला रही हूं।”

ड्राइविंग और ख़ास कर बस ड्राइविंग पुरुषों का पेशा माना जाता रहा है, इसलिए महिलाएं इस पेशे में आने से कतराती हैं। बहुत सारी महिलाएं इस डर से भी इस पेशे में आना नहीं चाहतीं कि आसपास के लोग व समाज उनके बारे में क्या सोचेगा। प्रतिमा ने जब इस पेशे में आने का सोचा, तो उनके जेहन में भी कुछ ऐसा ही ख़याल आया था।  

वह बताती हैं, “मैं तो घर का कामकाज देखती थी। दो वक्त खाना पकाती और उसी में खुश रहती। अपने विवाह के 15 वर्ष तक मैं बिना घूंघट के घर से बाहर नहीं निकली थी, इसलिए मन में एक डर तो था ही कि लोग क्या कहेंगे। एक दशक पहले जब मैं ड्राइविंग करने के लिए चूड़ीदार पहन कर घर से बाहर निकली, तो आसपास के लोगों ने मेरे बारे में बहुत कुछ कहा, लेकिन मैं अब उन बातों को याद नहीं करना चाहती हूं। जब लोग उलाहना देते और दबी जुबान टिप्पणियां करते, तो मुझे मेरा परिवार दिखता था। पढ़ाई और खेलकूद में बेहतर प्रदर्शन कर रही मेरी दोनों बेटियां दिखती थीं, इसलिए तमाम बातें सुन कर भी मैं ड्राइविंग करती रही।”  

वे ये भी याद करती हैं कि शुरुआती वक्त में किस तरह उन्हें बस में ड्राइवर की सीट पर देख कर पैसेंजर बस पर ये सोच कर सवार नहीं होते थे कि ये तो महिला है, इससे ड्राइविंग कहां होगी। लेकिन, इससे उनका हौसला थोड़ा भी कम नहीं हुआ। बाद में पैसेंजरों को भी धीरे-धीरे आदत हो गई।

प्रतिमा और उनके पति फिलहाल एक ही रूट में एक ही बस चलाते हैं। ये बस उत्तर 24 परगना जिले के बेलघड़िया से हावड़ा तक जाती है। जब प्रतिमा बस चलाती हैं, तो उनके पति उसी बस में कंडक्टरी करते हैं और जब पति बस चलाते हैं, तो प्रतिमा कंडक्टर की भूमिका में आ जाती हैं। उन्होंने कहा, “जिस दिन मेरे पति किसी काम से बाहर चले जाते हैं या किसी कारण बस नहीं चलाते, तो उस दिन मैं किसी दूसरे कंडक्टर को साथ ले जाती हूं।”

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प्रतिमा पोद्दार जो बस चलाती हैं, पंडाल को उसी बस की शक्ल दी जा रही है।

प्रतिमा पोद्दार के जीवन पर केंद्रित पूजा पंडाल नॉर्थ कोलकाता में नॉर्थ त्रिधारा सार्वजनिन दुर्गोत्सव की तरफ से बनाया जा रहा है। संगठन से जुड़े शिखर टंडन इस थीम को चुनने के सवाल पर कहते हैं, “पिछले साल जब पूजा खत्म हुई, तभी से हमलोग अगले साल की पूजा की प्लानिंग करने लगे थे। हम ऐसी थीम पर पूजा पंडाल बनाने के बारे में सोच रहे थे, जिसमें सोशल मैसेज हो और वो आम आदमी से जुड़ा हुआ भी हो। तभी हमें प्रतिमा पोद्दार के बारे में पता चला। फिर क्या था, हमने थोड़ा रिसर्च किया और उनके घर जाकर उनसे बातचीत की। उनके जीवन व उनके संघर्षों को सुना और फिर पंडाल बनाने लगे। हमलोगों ने कई दफा उनकी बस में सवारी भी की ताकि समझ सकें कि रास्ते में ड्राइविंग करते हुए उन्हें क्या दिक्कतें आती हैं।”

शिखर टंडन और उनकी टीम पिछले करीब दो दशक से पूजा पंडाल बना रही है। उन्होंने कहा, “पंडाल के सामने का हिस्सा बस की तरह होगा और उसमें दो पंख लगाए जाएंगे। ये पंख प्रतिमा पोद्दार के सपनों के प्रतीक होंगे। पंडाल के भीतर विभिन्न बस रूट्स के नंबर और कम से कम 80 आम ड्राइवरों व कंडक्टरों की तस्वीरें लगाई जाएंगी।”
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 पंडाल के भीतर का दृश्य।

पंडाल में प्रतिमा पोद्दार की आदमकद मूर्ति भी रहेगी। ये मूर्ति सिलीकॉन से तैयार की जा रही है। प्रख्यात मूर्तिकार सुबिमल दास ये मूर्ति बना रहे हैं। पूजा खत्म होने के बाद मूर्ति को कोलकाता के न्यूटाउन में स्थित मदर्स वैक्स म्यूजियम में रखा जाएगा। यहां ये भी बता दें कि वैक्स म्यूजियम का निर्माण पांच वर्ष पहले लंदन स्थित मैडम तुसाद म्यूजियम के तर्ज पर किया गया था।

शिखर टंडन ने बताया कि जब उन्हें पहली बार प्रतिमा पोद्दार से कहा कि उनको केंद्र में रख कर वे पूजा पंडाल बनाने जा रहे हैं, तो वह बहुत भावुक हो गईं और उनकी आंखों में आंसू आ गए थे। प्रतिमा पोद्दार को चुनने के सवाल पर शिखर कहते हैं, “हम महिला सशक्तीकरण का संदेश देना चाहते हैं इसलिए इसे थीम बनाया है।”

अपने जीवन और संघर्षों को पूजा की थीम बनाने को लेकर प्रतिमा पोद्दार कहती हैं, “मैंने सोचा नहीं था कि लोग मुझे इतना स्नेह देंगे और मेरी जिंदगी पर पूजा की थीम बनाई जाएगी। मेरे लिए ये बहुत सौभाग्य की बात है। अब तो बहुत सारे पैसेंजर भी मुझे पहचानने लगे हैं। वे भी बहुत इज्जत करते हैं। ये सब देख-सुन कर बहुत अच्छा लगता है और हौसला भी मिलता है।”

(सभी फोटो : उमेश कुमार राय )

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