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बोलिविया: तख़्ता-पलट के बीच एक अहम चुनाव

मोराल्स ने अक्टूबर में ही चुनाव जीता था। उनका नया कार्यकाल जनवरी 2020 से शुरू होना था।
bolivia

3 मई, 2020 को बोलिविया के लोग फिर मतदान करेंगे। नवंबर, 2019 में राष्ट्रपति एवो मोराल्स को तख्ता-पलट के ज़रिए हटाने के बाद दोबारा चुनावों की स्थिति बनी है। मोराल्स ने अक्टूबर में ही चुनाव जीता था और उनका नया कार्यकाल जनवरी, 2020 से शुरू होना था। ''ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट्स (OAS)'' की शुरूआती जांच चुनाव में घपलेबाजी का दावा किया गया था। इसी को आधार बनाकर मोराल्स को नया कार्यकाल शुरू करने के पहले ही हटा दिया गया। जबकि 2014 में जीत के बाद उनका पुराना कार्यकाल 2020 में जनवरी तक था। 
 
इसके बावजूद सेना ने उनसे पद छोड़ने के लिए कह दिया। इसके बाद डेनिन एनेज़ ने खुद को अंतरिम राष्ट्रपति नियुक्त कर दिया था। उस वक्त एनेज़ ने सिर्फ तात्कालिक आधार पर ही पद धारण करने का दावा किया था, उन्होंने कहा था कि जब भी बोलिविया में नए चुनाव होंगे, तब वे उसमें हिस्सा नहीं लेंगी। लेकिन अब 3 मई को होने वाले चुनाव में एनेज़ उम्मीदवार हैं। 

(बोलिविया में जो हो रहा है, उसकी अतिरिक्त जानकारी के लिए ट्राइकांटिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के इस आर्टिकल को पढ़िए)।

इस बीच पूर्व राष्ट्रपति मोराल्स अर्जेंटीना में निर्वासित होने पर मजबूर हो गए। उनकी पार्टी द मूवमेंट फॉर सोशलिज़्म (MAS) ने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार उतारे हैं। लेकिन MAS और उसके कार्यकर्ताओं को लोगों तक पहुंचने में मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। उनके रेडियो स्टेशनों को ब्लॉक कर दिया गया है। पार्टी नेताओं को या तो गिरफ्तार कर लिया गया, या वे निर्वासित होने को मजबूर हो गए (कुछ विदेशी दूतावासों में बैठकर संबंधित देशों से शरण दिए जाने का इंतजार कर रहे हैं), दूसरी तरफ पार्टी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट कर, उन्हें डराया जा रहा है।

यूनाइटेड नेशंस सेक्रेटरी जनरल के निजी दूत जीन अर्नाल्ट ने 3 जनवरी को एक बयान जारी कर चुनावों पर चिंता जताई है। अर्नाल्ट ने कहा, ''बोलिविया की स्थिति ध्रुवीकरण और आशाओं के मिश्रण की दिखाई देती है, लेकिन ठीक इसी वक्त, पिछले साल के राजनीतिक और सामाजिक संकट के बाद अनिश्चित्ता, अशांति और नाराज़गी का माहौल भी है।''

यूएन की इस सावधानी भरी भाषा को करीब से देखने की जरूरत है। जब अर्नाल्ट ध्रुवीकरण की बात करते हैं, तो उसका मतलब है कि स्थिति बेहद तनावपूर्ण है। जब वो अंतरिम सरकार से नफरत भरे भाषणों, हिंसा के लिए प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष उकसावे, या फिर भेदभाव को खत्म करने की बात कहते हैं, तो साफ है कि अर्नाल्ट सरकार और उसके धुर दक्षिणपंथी समर्थकों से चुनावों में हिंसा और अपने शब्दों पर सावधान रहने की चेतावनी देते हुए नज़र आते हैं।

6 फरवरी को मोराल्स ने ब्यूनस ऑयर्स में हिंसा पर लगाम लगाने की अपील की, ताकि बंटे हुए देश को फिर जोड़ा जा सके। उन्होंने सभी पक्षों से एक राष्ट्रीय समझौता करने की अपील की, ताकि ख़तरनाक स्थिति से बचा जा सके। मोराल्स ने सरकार से विविधता का सम्मान करने को कहा। उन्होंने यह भी माना कि अलग कपड़े पहनने वाले और कुछ विशेष राजनीतिक पार्टियों के चिन्हों का इस्तेमाल करने वाले लोगों को डर और हिंसा का शिकार होना पड़ रहा है। इससे उनका मतलब बोलिविया की मूल आबादी और उनकी पार्टी MAS के समर्थकों से है। यह माना गया तथ्य है कि हिंसा में धुर दक्षिणपंथी खेमे के अर्द्धसैनिक बल शामिल हैं, साथ में सरकार भी MAS और दूसरे लोगों को डराने की कोशिश कर रही है।

उदाहरण के लिए, बोलिवियाई प्रशासन नियमित तौर पर MAS के नेताओं पर देशद्रोह, आतंकवाद और हिंसा फैलाने के मुकदमे दर्ज कर रहा है। मोराल्स और MAS के दर्जन भर से ज़्यादा अहम नेताओं के ऊपर भी यही धाराएं लगाई गईं हैं। हाल ही में गुस्तावो टोरिको को गिरफ्तार किया गया। हालात इतने खराब हैं कि यूएन के विशेष प्रतिवेदक (संदेशवाहक) डिएगो गार्सिया-सायन ने ट्विटर पर ''न्यायिक और वित्तीय संस्थानों का राजनीतिक प्रताड़ना'' के लिए इस्तेमाल होने पर चिंता जताई। उन्होंने बताया कि अवैध हिरासत के मामले बढ़ गए हैं। लेकिन इससे भी एनेज़ रुकी नहीं। एनेज़ का कहना है कि मोराल्स की 14 साल की सरकार में उच्च पदों पर काम करने वाले 592 लोगों की जांच की जाएगी।  मतलब तीन मई के चुनाव तक MAS के पूरे नेतृत्व को प्रताड़ना झेलनी पड़ेगी।

अमेरिकी हस्तक्षेप

2013 में मोराल्स ने अमेरिकी एजेंसी USAID को देश से निकाल दिया था। उन्होंने USAID पर अपनी सरकार की सत्ता को नीचा दिखाने के आरोप लगाए थे। इसके पहले मोराल्स ने चुनावी संस्था TSE के प्रमुख साल्वाडोर रोमेरो को 2008 में कार्यकाल पूरा होने के बाद, दोबारा नियुक्ति देने से इंकार किया था। यह राष्ट्रपति मोराल्स का सामान्य संवैधानिक अधिकार था।
 
लेकिन रोमेरो ने अमेरिकी दूतावास में जाकर शिकायत कर दी।  उन्होंने अमेरिकी राजदूत फिलिप गोल्डबर्ग से मुलाकात की और अमेरिका से इस बारे में कुछ करने की मांग की। यह साफ है कि रोमेरो और गोल्डबर्ग एक दूसरे से अच्छी तरह परिचित हैं। जब रोमेरो ने अपना पद छोड़ा, तो अमेरिकी सत्ता ने उनकी मदद की। वे होंडुरास के नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट में काम करने चले गए।  नेशनल डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूट मूलत: वाशिंगटन में स्थित है। यह अमेरिकी डेमोक्रेटिक पार्टी से भी थोड़ा-बहुत संबंध रखता है। संस्थान उस ढांचे का हिस्सा है, जिसमें ''नेशनल एंडोवमेंट फॉर डेमोक्रेसी'' शामिल है। यह सभी अमेरिकी संस्थान हैं, जो विदेशों में ''लोकतंत्र के प्रोत्साहन'' पर ''नज़र'' रखते हैं। इनमें चुनाव भी शामिल हैं।

अमेरिका द्वारा प्रायोजित 2009 के तख़्ता पलट के बाद हुए पहले चुनाव के दौरान रोमेरो ने अमेरिकी सरकार के साथ मिलकर काम किया था। 2013 में हुए इस चुनाव में वामपंथी दल लिब्रे पार्टी और इसके प्रत्याशी शिओमारा कास्त्रो के समर्थकों के साथ हिंसा बहुत आम थी। जैसे चुनाव के एक दिन पहले ''नेशनल सेंटर ऑफ फॉर्मवर्कर्स'' के दो नेता, मारिया एमापारो पिनेडा दुआर्ते और जूलियो रेमन मेराडिएगा की हत्या कर दी गई थी। यह दोनों लिब्रे पार्टी के चुनावी कार्यकर्ताओं की बैठक से घर वापस लौट रहे थे। उस चुनाव में इस तरह के माहौल के बीच नेशनल पार्टी के अमेरिका समर्थक कंजर्वेटिव प्रत्याशी जुआन ओरलेंडो हर्नांडेज़ को जीत मिली थी। उस वक्त रोमेरो काफी खुश हुए थे। उन्होंने न्यूयॉर्क टाइम्स से कहा था,''चुनाव में घपलेबाजी की आमधारणा से बिल्कुल उलट, चुनाव सही तरीके से हुए हैं।''

नवंबर में हुए तख़्तापलट के बाद एनेज़, रोमेरो को वापस ले कर आ गईं। उन्हें ला-पाज में इलेक्शन कोर्ट-TSE का प्रमुख बनाया गया। मतलब उन्हें अपनी पुरानी नौकरी वापस मिल गई। इससे बोलिविया में अमेरिकी प्रतिनिधि ब्रूस विलियमसन बहुत खुश हुए होंगे। बोलिविया में तीन मई को होने वाले चुनावों के केंद्र में अब अमेरिका के पास अपना आदमी है।

फिर इसके बाद ट्रंप ने USAID को बोलिविया वापस भेजकर चुनावों में मदद देने की घोषणा की। 9 जनवरी को USAID की टीम ''बोलिविया की चुनावी प्रक्रिया में तकनीकी योगदान'' के लिए पहुंच गई। लेकिन इस ''योगदान'' की बात पर ठहरकर सोचने की जरूरत है।दस दिन बाद, ट्रंप के कानूनी सलाहकार माउरिसिओ क्लावेर केरोन ला-पाज पहुंचे। यहां उन्होंने कई इंटरव्यू दिए, जिसमें मोराल्स पर आतंकवाद और अस्थिरता फैलाने के आरोप लगाए गए। यह MAS पर सीधा हमला और बोलिविया की चुनावी प्रक्रिया में सीधा हस्तक्षेप था।

अगर बोलिविया में अमेरिका हस्तक्षेप करता है, तो उसे मात्र ''लोकतांत्रिक प्रोत्साहन'' माना जाए।सरकार और इसके फासिस्ट अर्द्धसैनिक बलों द्वारा जारी हिंसा, TSE के केंद्र में रोमेरो के आने, USAID की ज़मीन पर मौजूदगी, यहां तक कि क्लावेर-केरोन के तमाम छल-कपटों के बाद भी MAS जीतने के लिए लड़ रही है। MAS की तरफ से राष्ट्रपति पद के लिए लुईस आर्स केटाकोरा और उपराष्ट्रपति पद के लिए डेविड चोकेहुआंका सेसपेडेस उम्मीदवार हैं। केटाकोरा, मोराल्स की सरकार में वित्त मंत्री थे। उन्हें मोराल्स प्रशासन की आर्थिक सफलता का निर्माता माना जाता है। वहीं सेसपेडेस विदेश मंत्री थे। वह बोलिविया की अंतरराष्ट्रीय अखंडता की नीति का प्रबंध करते थे। सेसपेडेस बोलिविया के किसान और मूलनिवासी आंदोलनों में एक अहम किरदार रहे हैं। शुरूआती चुनाव रूझान बता रहे हैं कि MAS नंबर एक पायदान पर चल रही है।

(विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। विजय, इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के ग्लोबट्रॉटर प्रोजेक्ट में राइटिंग फेलो हैं। विजय प्रसाद लेफ्टवर्ड बुक्स के चीफ एडिटर और ट्राइकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के डॉयरेक्टर हैं। उन्होंने The Darker Nations: A People’s History of the Third World (The New Press, 2007), The Poorer Nations: A Possible History of the Global South (Verso, 2013), The Death of the Nation and the Future of the Arab Revolution (University of California Press, 2016) and Red Star Over the Third World 
(LeftWord, 2017) समेत बीस से ज्यादा किताबें लिखी हैं। वे नियमित तौर पर फ्रंटलाइन, द हिंदू, न्यूज़क्लिक, ऑल्टरनेट और BirGün के लिए लिखते हैं।)

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