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बुलेट ट्रेन परियोजना के खिलाफ गोदरेज ने की हाई कोर्ट में अपील

क्या सरकार गोदरेज को ज़मीन के बदले 800 करोड़ रुपये देगी ? या फिर इस रेल लाइन को थोड़ा सरका दिया जाएगा ? दोनों ही सूरतों में क्या ये किसानों के साथ नाइंसाफी नहीं होगी? क्योंकि किसानों को न तो ढंगसे मुआवज़ा मिला है न उनकी बात सुनी गयी है।
bullet train
courtesy: Indian Express

किसानों के बाद अब गोदरेज समूह भी बुलेट ट्रेन के विरोध में आ खड़ी हुई है । गोदरेज समूह ने बुलेट ट्रेन परियोजना के खिलाफ कोर्ट के दरवाज़े खटखटाये हैं और इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में 31 जुलाई को सुनवाई होगी। दरअसल परियोजना के अंतर्गत मुंबई में विक्रोली नामक जगह पर बुलेट ट्रेन के लिए एक भूमिगत सुरंग को बनाये जाने की योजना है। इस सुरंग का एक द्वार गोदरेज समूह की ज़मीन पर है। इसी सिलसिले में गोदरेज कम्पनी की 3.5 हेक्टेयर ज़मीन लेने के लिए सरकार ने कम्पनी को नोटिस भेजा था।  

बुलेट ट्रेन परियोजना के अंतर्गत मुंबई से अहमदाबद के बीच 508 किलोमीटर की रेल पटरी बनेगी। जिस जगह पर विवाद खड़ा हुआ है वहाँ  21 किलोमीटर की भूमिगत रेल पटरी बनाने की योजना है। गोदरेज समूह का कहना है कि वह परियोजना के लिए इससे 250 मीटर दूर एक ज़मीन प्रदान कर सकते हैं। उनकी दलील है कि इस ज़मीन पर उनका गोदाम है और उसके विस्तार की योजना है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ भूमिगत पटरी का द्वारा बनाने की योजना है उस संपत्ति की कीमत 800 करोड़ रुपये है। ज़ाहिर है इसीलिए गोदरेज समूह में इतनी बेचैनी नज़र आ रहा है। 

इस मुद्दे पर गोदरेज समूह केंद्र सरकार ,राज्य सरकार और राष्ट्रीय हाईस्पीड रेलवे कॉर्पोरेशन के खिलाफ 21 मई को हाई कोर्ट में गया था। समूह  Right to Fair Compensation & Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation & Resettlement Act, 2013 का हवाला देते हुए इस केस को लड़ रहा है। 

गोदरेज कम्पनी से पहले महाराष्ट्र और गुजरात के किसान इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। 17 मई  को महाराष्ट्र  के ठाणे और पालघर ज़िलों  के विभिन्न  गाँवों 1000 आदिवासी किसान मुंबई के आज़ाद  मैदान  में उनकी ज़मीन ज़बरदस्ती लिए जाने के खिलाफ इक्कठा हुए। उनका आरोप था कि नवंबर में महाराष्ट्र  के राज्यपाल ने एक नोटिफिकेशन जारी किया जिसमें ये कहा गया था कि अब आदिवासी इलाकों में लोगों की ज़मीन लेने के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं चाहिए होगी। आदिवासियों का आरोप था कि  ये Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act (PESA), 1996 को कमज़ोर करके उनकी ज़मीन ली जाने की साज़िश है। इसी के बाद से ज़मीन पर कब्ज़े  की प्रक्रिया शुरू की गयी थी।

इसके बाद जून में गुजरात के सूरत ज़िले से करीब 200 किसान इस परियोजना का विरोध करने राज्य की राजधानी में आये और कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।  सरकार ने भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित एक निर्देश जारी किया था, सूरत ज़िले के 15 गाँवों से आये किसान इसी का विरोध कर रहे थेI किसान इलाके के 21 गाँवों की 110 हैक्टेयर ज़मीन ली जाने की सरकारी योजना के विरोध में थे । किसानों ने सरकारी फ़रमान के 14 मुद्दों पर एतराज़ जताया। गौरतलब है कि इससे पहले  9 अप्रैल को गाँधीनगर में The National High Speed Rail Corporation (NHSRC), ने किसानों  के साथ इस मुद्दे पर बात करने के लिए एक मीटिंग रखी थी।  लेकिन किसानों का कहना  है कि इस मीटिंग की सूचना उन्हें नहीं दी गयी थी और जब उनमें से कुछ लोग वहाँ पहुँचे तो उनसे सीधा ही  मुआवज़े की बात की गयी थी और वह भी बाज़ार मूल्य से बहुत काम था।  

न्यूज़क्लिक ने इस परियोजना के शुरू होने पर एक विश्लेषण किया था, जिसमें बताया गया था कि ये देश के लिए एक आर्थिक विपदा हो सकती है I मुंबई से अहमदाबाद HRS परियोजना की कुल कीमत 1.1 लाख़ करोड़ है I इसमें से जापान 50 सालों के लिए 0.5% की ब्याज दर पर 88,000 करोड़ का ऋण देगा और इसका भुगतान ज़रुरत पड़ने पर 15 साल बाद शुरू होगा I प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये गए दावे कि ये परियोजना मुफ्त है पर विशेषज्ञों ने कहा है कि 20 सालों के दौरान भुगतान की कीमत बढ़कर 1.5 करोड़ हो जाएगी I रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि ये परियोजना बहुत ही ज़्यादा महंगी होगी, इसकी तुलना यूरोप से करने करें तो प्रति किलोमीटर की कीमत 27 मिलियन डॉलर होगी , जो यूरोपीय कीमत के तो बराबर है लेकिन चीन की प्रति किलोमीटर कीमत से ज़्यादा है I 

किसानों के बाद अब गोदरेज समूह भी बुलेट ट्रेन के विरोध में आ खड़ी हुई है । गोदरेज समूह ने बुलेट ट्रेन परियोजना के खिलाफ कोर्ट के दरवाज़े खटखटाये हैं और इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में 31 जुलाई को सुनवाई होगी। दरअसल परियोजना के अंतर्गत मुंबई में विक्रोली नामक जगह पर बुलेट ट्रेन के लिए एक भूमिगत सुरंग को बनाये जाने की योजना है। इस सुरंग का एक द्वार गोदरेज समूह की ज़मीन पर है। इसी सिलसिले में गोदरेज कम्पनी की 3.5 हेक्टेयर ज़मीन लेने के लिए सरकार ने कम्पनी को नोटिस भेजा था।  

बुलेट ट्रेन परियोजना के अंतर्गत मुंबई से अहमदाबद के बीच 508 किलोमीटर की रेल पटरी बनेगी। जिस जगह पर विवाद खड़ा हुआ है वहाँ  21 किलोमीटर की भूमिगत रेल पटरी बनाने की योजना है। गोदरेज समूह का कहना है कि वह परियोजना के लिए इससे 250 मीटर दूर एक ज़मीन प्रदान कर सकते हैं। उनकी दलील है कि इस ज़मीन पर उनका गोदाम है और उसके विस्तार की योजना है। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जहाँ भूमिगत पटरी का द्वारा बनाने की योजना है उस संपत्ति की कीमत 800 करोड़ रुपये है। ज़ाहिर है इसीलिए गोदरेज समूह में इतनी बेचैनी नज़र आ रहा है। 

इस मुद्दे पर गोदरेज समूह केंद्र सरकार ,राज्य सरकार और राष्ट्रीय हाईस्पीड रेलवे कॉर्पोरेशन के खिलाफ 21 मई को हाई कोर्ट में गया था। समूह  Right to Fair Compensation & Transparency in Land Acquisition, Rehabilitation & Resettlement Act, 2013 का हवाला देते हुए इस केस को लड़ रहा है।

यह भी पढ़ें  : महाराष्ट्र के पालघर के किसान बुलेट ट्रेन के लिए भूमि अधिग्रहण के खिलाफ कर रहे हैं विरोध 

गोदरेज कम्पनी से पहले महाराष्ट्र और गुजरात के किसान इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। 17 मई  को महाराष्ट्र  के ठाणे और पालघर ज़िलों  के विभिन्न  गाँवों 1000 आदिवासी किसान मुंबई के आज़ाद  मैदान  में उनकी ज़मीन ज़बरदस्ती लिए जाने के खिलाफ इक्कठा हुए। उनका आरोप था कि नवंबर में महाराष्ट्र  के राज्यपाल ने एक नोटिफिकेशन जारी किया जिसमें ये कहा गया था कि अब आदिवासी इलाकों में लोगों की ज़मीन लेने के लिए ग्राम सभा की अनुमति नहीं चाहिए होगी। आदिवासियों का आरोप था कि  ये Panchayats (Extension to Scheduled Areas) Act (PESA), 1996 को कमज़ोर करके उनकी ज़मीन ली जाने की साज़िश है। इसी के बाद से ज़मीन पर कब्ज़े  की प्रक्रिया शुरू की गयी थी।

यह भी पढ़ें  : गुजरात : किसानों ने किया बुलेट ट्रेन योजना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन

इसके बाद जून में गुजरात के सूरत ज़िले से करीब 200 किसान इस परियोजना का विरोध करने राज्य की राजधानी में आये और कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा।  सरकार ने भूमि अधिग्रहण से सम्बंधित एक निर्देश जारी किया था, सूरत ज़िले के 15 गाँवों से आये किसान इसी का विरोध कर रहे थेI किसान इलाके के 21 गाँवों की 110 हैक्टेयर ज़मीन ली जाने की सरकारी योजना के विरोध में थे । किसानों ने सरकारी फ़रमान के 14 मुद्दों पर एतराज़ जताया। गौरतलब है कि इससे पहले  9 अप्रैल को गाँधीनगर में The National High Speed Rail Corporation (NHSRC), ने किसानों  के साथ इस मुद्दे पर बात करने के लिए एक मीटिंग रखी थी।  लेकिन किसानों का कहना  है कि इस मीटिंग की सूचना उन्हें नहीं दी गयी थी और जब उनमें से कुछ लोग वहाँ पहुँचे तो उनसे सीधा ही  मुआवज़े की बात की गयी थी और वह भी बाज़ार मूल्य से बहुत काम था।  

यह भी पढ़ें  :गुजरात किसानों ने किया बुलेट ट्रेन परियोजना का विरोध,कहा किसानों के साथ मीटिंग एक धोखा थी

बुलेट ट्रेन के क्या मायने जब मुंबई-अहमदाबाद मार्ग पर चलती हैं खाली ट्रेनें

न्यूज़क्लिक ने इस परियोजना के शुरू होने पर एक विश्लेषण किया था, जिसमें बताया गया था कि ये देश के लिए एक आर्थिक विपदा हो सकती है I मुंबई से अहमदाबाद HRS परियोजना की कुल कीमत 1.1 लाख़ करोड़ है I इसमें से जापान 50 सालों के लिए 0.5% की ब्याज दर पर 88,000 करोड़ का ऋण देगा और इसका भुगतान ज़रुरत पड़ने पर 15 साल बाद शुरू होगा I प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये गए दावे कि ये परियोजना मुफ्त है पर विशेषज्ञों ने कहा है कि 20 सालों के दौरान भुगतान की कीमत बढ़कर 1.5 करोड़ हो जाएगी I रिपोर्ट में ये भी लिखा था कि ये परियोजना बहुत ही ज़्यादा महंगी होगी, इसकी तुलना यूरोप से करने करें तो प्रति किलोमीटर की कीमत 27 मिलियन डॉलर होगी , जो यूरोपीय कीमत के तो बराबर है लेकिन चीन की प्रति किलोमीटर कीमत से ज़्यादा है I 

 यह भी पढ़ें  :बूलेट ट्रेन योजना से प्रभावित किसान : "ज़बरदस्ती ज़मीन लिए जाने की कार्यवाही पर रोक लगे "

यहाँ यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और गोदरेज कम्पनी के बीच क्या समझौता होता है। क्या सरकार गोदरेज को ज़मीन के बदले 800 करोड़ रुपये देगी ? या फिर इस रेल लाइन को थोड़ा सरका दिया जाएगा ? दोनों ही सूरतों में क्या ये किसानों के साथ नाइंसाफी नहीं होगी? क्योंकि किसानों को न तो ढंगसे मुआवज़ा मिला है और न उनकी बात सुनी गयी है। या फिर ये होगा कि गोदरेज समूह को घुटने टेकने पड़ेंगे? लेकिन जैसा कि सरकारों और पूँजीपतियों के रिश्तों का इतिहास बताता है, इस बात की बहुत संभावना है कि गोदरेज कम्पनी और सरकार कोई रास्ता निकाल लें और किसानों के विरोध पर फिर से आँखें मूँद ली जाए। 

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