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भाजपा विधायक संगीत सोम के ख़िलाफ़ मुज़फ्फ़रनगर दंगे समेत 7 मुकदमे वापस लेने की तैयारी में यूपी सरकार

क़ानून के जानकार मानते हैं कि किसी अभियुक्त पर से मुक़दमा वापस लेना समाज में एक ग़लत नज़ीर स्थापित करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण कहते हैं कि संगीत सोम पर से मुक़दमा वापस लेने का फैसला सत्ता का दुरूपयोग है। 
संगीत सोम

उत्तर प्रदेश की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार ने विधायक संगीत सोम के ख़िलाफ़ दर्ज  मुजफ्फरनगर दंगे समेत 7 मुकदमे वापस लेने कवायद शुरू कर दी है। प्रदेश सरकार के न्याय विभाग ने संगीत सोम के खिलाफ दर्ज मामलों के बारे मे जिला प्रशासन से आख्या मांगी है।  रिपोर्ट आने के बाद अदालत के जरिये मुकदमे वापस लेने की कार्यवाही होगी।

संगीत सोम मेरठ के सरधना से सत्तारूढ़ दल बीजेपी विधायक हैं। मिली जानकारी के अनुसार उनके ऊपर चल रहे 7 मुकदमों में से 02 मुजफ्फरनगर के हैं। ये 02 मुकदमे 2013 के मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक दंगों से जुड़े हैं। बीजेपी विधयक संगीत सोम पर मुजफ्फरनगर दंगे भड़काने के आरोप सहित कई आरोप लग चुके हैं। 

संगीत सोम के खिलाफ सहारनपुर के देवबंद, मुजफ्फरनगर के खतौली, कोतवाली, सिखेड़ा, मेरठ के सरधना तथा गौतमबुद्धनगर के थाना बिसाहड़ा में मामले दर्ज हैं। प्रदेश शासन इन चारों जनपदों के प्रशासन से 13 बिंदुओं पर आख्या मांगी है। अब सम्बंधित जनपदों का जिला प्रशासन और पुलिस इसे तैयार करने में लगे हैं।  

उत्तर प्रदेश के विधि मंत्री ब्रजेश पाठक ने बुधवार को बताया कि सोम ने पिछले विधानसभा सत्र के दौरान सरकार को उनके खिलाफ सात मामलों को लेकर एक पत्र दिया था। संबद्ध जिला प्रशासन से रिपोर्ट मांगी गयी है। पाठक ने बताया कि एक बार रिपोर्ट आ जाने पर फाइल प्रमुख सचिव (गृह) को भेजी जाएगी और उसके बाद फाइल वापस सरकार के पास आएगी। उन्होंने कहा कि मामलों का ब्यौरा उन्हें नहीं पता है और कोई और सूचना साझा करने से पहले उन्हें फाइल देखनी पडेगी। पाठक ने कहा कि फिलहाल सभी चीजें प्रारंभिक चरण में हैं।

इससे पहले, मुजफ्फरनगर जिला के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इनमें से एक मामला सोशल मीडिया पर डाले गए एक फर्जी लेकिन भड़काऊ वीडियो से संबंधित है जिसमें सोम को ‘क्लीन चिट’ मिल चुकी है।

मुजफ्फरनगर दंगा मामलों की जांच कर रहे विशेष जांच दल (एसआईटी) ने अप्रैल 2017 में, जांच अधिकारी द्वारा अदालत में अंतिम रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बाद फर्जी वीडियो मामले में सोम को ‘क्लीन चिट’ दे दी थी।

एसआईटी का कहना था कि सरधना निर्वाचन क्षेत्र के विधायक के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिले हैं। विशेष जांच दल ने, 2013 में मुजफ्फरनगर जिले में सांप्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाले वीडियो पर सीबीआई के जरिए अमेरिका स्थित फेसबुक, इंक से रिपोर्ट मांगी थी।

एसआईटी की अंतिम रिपोर्ट के अनुसार फेसबुक ने केवल एक वर्ष का रिकॉर्ड रखने की बात कहते हुए इस संबंध में कोई भी जानकारी मुहैया कराने में खुद को असमर्थ बताया था। इस वीडियो को ‘लाइक’ करने वाले सोम और अन्य 200 लोगों के खिलाफ भादंवि की विभिन्न धाराओं और सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 के तहत दो सितम्बर 2013 को मामला दर्ज किया था।

वीडियो मे एक युवक को मारते हुए दिखाया गया था जिसके बाद मुजफ्फरनगर में दंगे भड़क गए थे। बाद में यह वीडियो करीब दो साल पुराना पाया गया, जो अफगानिस्तान या पाकिस्तान का था।

क्या कहते हैं क़ानून के जानकार 

क़ानून के जानकार मानते हैं कि किसी अभियुक्त पर से मुक़दमा वापस लेना समाज में एक ग़लत नज़ीर स्थापित करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण कहते हैं कि संगीत सोम पर से मुक़दमा वापस लेने का फैसला सत्ता का दुरूपयोग है। 

उन्होंने बताया कि अगर योगी आदित्यनाथ सरकार संगीत सोम पर से मुक़दमा वापस लेती है तो इसको उच्च न्यायालय में जनहित याचिका के ज़रिये चुनौती दी जा सकती है। 

प्रसिद्ध अधिवक्ता अमित सूर्यवंशी का कहना है कि सीआरपीसी की धारा 321 के अंतर्गत मुक़दमा वापस लिया जाता है। 

अमित सूर्यवंशी आगे बताते हैं कि सरकार सिर्फ सिफारिश करती है, मुक़दमे वापस लेने पर अंतिम फैसला न्यायालय का ही होता है। 

उन्होंने बताया न्यायालय, सरकार की सिफ़ारिश को खारिज भी कर सकता है। क़ानून के एक और पहलू पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया कि अगर मुक़दमा वापस होता है तो शिकायतकर्ता भी इसको न्यायालय में चुनौती दे सकता है। 

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि अगर सांप्रादियक दंगे कराने वालों पर से मुक़दमें वापस होते हैं तो समाज में ग़लत सन्देश जायेगा। 

वरिष्ठ पत्रकार और टाइम्स ऑफ़ इंडिया पूर्व संपादक अतुल चंद्र कहते हैं कि अगर संगीत सोम बेकसूर हैं तो न्यायालय उनको खुद बरी कर देगा। योगी आदित्यनाथ सरकार द्वारा मुक़दमा वापस लेने के फैसला समाज में ग़लत सन्देश देगा कि सरकार दंगे के अभियुक्तों को बचाना चाहती है।

अतुल चंद्र मानते हैं कि उन्नाव रेप केस के अभियुक्त कुलदीप सिंह सेंगर को बचाने की कोशिश के बाद संगीत सोम पर से मुक़दमा वापस लेने के फैसले से उत्तर प्रदेश की बीजेपी की सरकार की छवि धूमिल होगी। 

वरिष्ठ पत्रकार मुदित माथुर कहते है कि राजनीतिज्ञों पर मुक़दमा फास्ट ट्रैक कोर्ट में होना चाहिए है। उन्होंने कहा कि संगीत सोम के मुक़दमे 2013 के हैं और इसमें अब तक फैसला हो जाता अगर अखिलेश यादव और योगी आदित्यनाथ की सरकारों की तरफ से ढिलाई-बेपरवाही नहीं होती। 

वहीं यूपी के समाजसेवी मानते है कि अगर सरकार दंगो के अभियुक्तों पर से मुक़दमे हटाती हैं तो प्रदेश में दंगाइयों के हौसले और बुलंद होंगे।  

समाजसेवी और आई पी एस (रिटायर्ड) एस आर दारापुरी कहते है कि अगर बीजेपी सरकार संगीत सोम पर से मुक़दमा हटाती है तो इसको उच्च न्यायालय के चुनौती दिया जाना चाहिए। 

उन्होंने न्यूज़ क्लिक से बात करते हुए कहा कि संगीत सोम सत्तारूढ़ दल के विधायक हैं। इस लिए बीजेपी सरकार सत्ता का दुरूपयोग कर के उनको बचाना चाहती है। 

प्रसिद्ध समाज सेविका ताहिरा हसन ने भी सरकार के इस फैसले की निंदा की है और कहाकि क़ानून सब के लिए बराबर होना चाहिए है। देश के सविंधान का हवाला देते हुए ताहिरा हसन ने कहा कि अगर सबके के साथ एक जैसा न्याय नहीं होता है तो लोकतंत्र कमज़ोर होगा।

उन्होंने कहा कि न्यायालय पर भरोसा रखना चाहिए है, किसी दंगे के अभियुक्त पर से मुक़दमा हटाना, दंगा पीड़ितों के साथ अन्याय है। 

उल्लेखनीय है कि मुज़फ्फरनगर दंगों को लेकर दर्ज किए गए मुकदमों के मामले में एक सूची बनाई गई है। जिसमें कुल 92 मुकदमों को फर्जी बताया गया है। जांच करने के बाद प्रदेश की बीजेपी सरकार ने कुल 74 मुकदमे वापस लेने की मंशा जाहिर की है। 

मुजफ्फरनगर दंगें में पुलिस ने 500 से अधिक लोगों पर मुकदमे दायर किए थे जो लूट-डकैती आगजनी आदि के थे। इनके बारे में बीजेपी और योगी सरकार लगातार कहती है कि यह मामले राजनीतिक दबाव के चलते गलत लोगों के खिलाफ दर्ज कराए गए थे।

मुजफ्फरनगर में समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए दंगों में 48 लोगों की मौत हुई और कई हज़ार अन्य विस्थापित हुए थे। 

(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ )

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