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भारत में मीडिया कितना आज़ाद है?

नयी रिपोर्ट से पता चलता है कि 11 पत्रकारों की हत्या कर दी गयी, 46 पर हमला हुआ और 27 पर पुलिस ने केस दर्ज दर्ज किए गए, इस लिए भारत विश्व प्रेस-आजादी के सूचकांक में 180 देशों में से 136 में स्थान पर है।

freedom of expression

भारत में मीडिया स्वतंत्रता की स्थिति क्या है? दोनों राज्य और गैर-राज्य तत्वों की निरंतर सेंसरशिप की वजह से, अब यह स्पष्ट हो गया है कि इस देश के पत्रकारों ने पेशे को अपनाने के लिए केवल भयानक जोख़िम का सामना किया है। साथ ही, बड़े कॉर्पोरेट और उनके द्वारा प्रभावित मीडिया हाउस, समाचार पत्रों के बड़े वर्गों के मालिक और राजनीतिक नेताओं के करीबियों ने मुख्यधारा के मीडिया में पकड़ बना ली हैं, और यह मीडिया बहुमत लोगों तक पहुंच रखता है।

हालांकि, ऐसे पत्रकार हैं जो गंभीर पत्रकारिता के लिए प्रयास करते हैं लेकिन उन्हें मृत्यु के खतरों और कानूनी मामलों की कीमत पर यह करना पड़ता है। "मीडिया फ़्रीडम एंड फ़्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन ऑफ़ 2017" नामक हूट द्वारा ताजा रिपोर्ट, भारत में पत्रकारिता के प्रतिकूल जलवायु को दर्शाती है। भारत 2017 में विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में 136 स्थान पर आया। रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल 11 पत्रकारों की हत्या हुयी, 46 पर हमलाहुआ, 27 पर मामले दर्ज किया गया और 12 को रिपोर्टिंग के लिए धमकी दी गयी।

रिपोर्ट के मुताबिक प्रमुख हमलावर अपराधी प्रवर्ती वाले लोग, पुलिस अधिकारी, राजनेता और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, इसके बाद दक्षिण पंथी कार्यकर्ता और अन्य गैर-राज्य तत्व हैं।

रिपोर्ट में उद्धरण के लिए निम्नलिखित महत्वपूर्ण मुद्दे हैं - हत्याएं, धमकियां, हमले, सेंसरशिप, आत्म-सेंसरशिप, इंटरनेट बंद और घृणात्मक भाषण इस की दें है।

  • सिक्किम और कश्मीर सबसे मुसीबत वाले राज्य है, जिन्हें मुक्त भाषण और मीडिया आजादी के मापदंड में सबसे अयोग्य राज्य के रूप में मापा गया है।
  • दो पत्रकारों पर सीधे गोली मार दी गई और वे मारे गए, और एक की भीड़ द्वारा हत्या कर दी गई, क्योंकि पुलिस तमाशा देखती रही। गौरी लंकेस जोकि  कन्नड़ प्रकाशन पैट्रीक कर्नाटक की संपादक थी, और त्रिपुरा में दो अन्य की हत्या हुई।
  • मीडिया को खतरनाक और खूनी धमकियों के आधार पर में तेजी से निशाना बनाया गया है।
  •  पत्रकारों के 13 ऐसे मामले हैं जिनसे पूछताछ की गयी फिर छोड़ दिया गया, और उनके खिलाफ मामला दर्ज किया गया या फिर गिरफ्तार किया गया। छत्तीसगढ़ में अकेले ही पत्रकारों के खिलाफ 13 पुलिस कार्रवाई दर्ज की गई।
  • जून में, कर्नाटक में, विधानसभा के अध्यक्ष और विशेषाधिकार समिति के प्रमुख के.बी. कोलीवाड़ ने दो स्थानीय साप्ताहिक के संपादकों को जेल के लिए एक साल के लिए सजा सुनाई और उन पर 10,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया था। उनको यह सज़ा विधायकों के बारे में कथित बदनामी लेख प्रकाशित करने के लिए दी गयी.
  • जुलाई में, आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक के संपादक परंजय गुहा ठाकुरटा ने तब अपनी नौकरी छोड़ दी जब उन्हें जर्नल बोर्ड द्वारा अदानी पावर से संबंधित पहले से ही प्रकाशित जांच के बारे में पूछा गया था।
  • वर्ष के अंत में, सोहराबुद्दीन मामले से निपटने वाले न्यायाधीश बीएच लोया की 2014 में मौत के सम्बन्ध में  में कारवां की कहानी ने, जो उथल-पुथल मचाई, तो अन्य मीडिया घरानों में बहरापन और चुप्पी चाई रही थी, खासकर टाइम्स नाउ और रिपुब्लिक जैसे चैनलों पर।
  • अकेले कश्मीर में पूरे देश में किये गए इन्टरनेट बंद के 77 मामलों में 40 इंटरनेट बार इन्टरनेट बंद किया गया था।
  • महाराष्ट्र में मानहानि की सबसे अधिक घटना घटी और आंध्र प्रदेश में सबसे बड़ी संख्या में हमले हुए और पत्रकारों को धमकियां दी गयी थीं।
  • इंटरनेट और सोशल मीडिया से संबंधित घटनाओं में कर्नाटक में सबसे ज्यादा राज्य क्रियाएं हुयी हैं।
  • महाराष्ट्र देश में मानहानि की घटनाओं के मामले में राजधानी के रूप में उभरा, जबकि तमिलनाडु में 19 मामले दर्ज किये गए, दिसंबर 2016 में जयललिता के निधन के बाद, मानहानि के मामलों की संख्या में तेजी से कमी आई है।
  • पंजीकृत 16 से अधिक घृणा वाले भाषण के मामलों में से 10 भाजपा के नेताओं और पार्टी के सदस्यों के खिलाफ बोलने के लिए या अखिल भारतीय हिंदू संगठन मंच और हिंदू जागरण वेदिक जैसे दक्षिण पंथी  समूहों के खिलाफ बोलने के लिए दर्ज किये गए थे।

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