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भीमा कोरेगांव केस में सुप्रीम कोर्ट सख्त : पर्याप्त सुबूत न देने पर रद्द होगा मामला

भीमा कोरेगांव मामले में गिरफ्तार पांच सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के केस में सरकार और पुलिस अभी तक सुप्रीम कोर्ट में कोई ठोस सुबूत पेश नहीं कर पाई है। और अगर बुधवार को भी कोई पुख्ता सुबूत नहीं पेश किए गए तो ये पूरा मामला रद्द हो सकता है।
bhima koregaon

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि “हम सभी सुबूतों को देखेंगे और फैसला लेंगे। अगर संतुष्ट नहीं हुए तो मामला रद्द भी हो सकता है।

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में अर्बन नक्सल के नाम पर गिरफ्तार किए गए पांच सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के मामले में आज, सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने यही सबसे महत्वपूर्ण टिप्पणी की।

इस मामले में अगली सुनवाई बुधवार, 19 सितंबर को होगी। इसी के साथ सरकार और पुणे पुलिस पर ये दबाव बन गया है कि वो इस मामले में पुख्ता सुबूत पेश करे, वरना मामला खारिज हो सकता है और सरकार की इससे बहुत किरकिरी हो सकती है।

आपको मालूम है महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव मामले में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर पुणे पुलिस ने बीते 28 अगस्त को कवि और वामपंथी विचारक वरवर राव, अधिवक्ता और सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और वर्णन गोंसाल्विस को गिरफ्तार किया था। जिसके विरोध में इतिहासकार रोमिला थापर समेत प्रभात पटनायक, माजा दारुवाला, सतीश देशपांडे और देवकी जैन जैसे सामाजिक कार्यकर्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। उनका कहना था कि सरकार से असहमति के चलते ये गिरफ्तारियां हुई हैं। इसे लेकर कोर्ट ने तब ये अहम टिप्पणी की थी कि “असहमति लोकतंत्र का सेफ्टी वाल्व है और यदि आप इन सेफ्टी वाल्व की इजाजत नहीं देंगे तो ये फट जायेगा।”

अदालत ने इस बारे में महाराष्ट्र सरकार और राज्य पुलिस को नोटिस जारी किये थे और सभी गिरफ्तार कार्यकर्ताओं के घर में ही नज़रबंद रखने का आदेश दिया था। तब से ये सभी कार्यकर्ता अपने-अपने घर में नज़रबंद हैं।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ की पीठ ने आज सुनवाई के दौरान कहा कि इन कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 19 सितंबर को अंतिम सुनवाई की जायेगी ।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक आज केंद्र सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट में इस पूरे मामले की सुनवाई का ही विरोध किया गया। केंद्र की ओर से पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा कि नक्सलवाद की समस्या एक गंभीर मामला है, जो देशभर में फैल रही है, इस तरह की याचिकाओं को सुना जाएगा तो ये एक खतरनाक उदाहरण बन जाएगा।

महाराष्ट्र सरकार की ओर पेश हुए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सभी गिरफ्तार लोगों के खिलाफ हमारे पास पर्याप्त सबूत हैं।

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें पुलिस के दस्तावेज देखने हैं। अगर इसमें कुछ नहीं मिलता तो हम यह मामला रद्द कर सकते हैं और अगर इसमें हमारे हस्तक्षेप की ज़रूरत पड़ी तो हम इसे देखेंगे।

याचिकाकर्ताओं की ओर से आज इस पूरे मामले में एसआईटी जांच की भी मांग की गई। इसपर कोर्ट ने संशोधित याचिका दाखिल करने को कहा। पीठ ने यह भी कहा कि यदि दस्तावेजों में गंभीर खामी मिली तो वह इस मामले की विशेष जांच दल से जांच कराने के अनुरोध पर विचार कर सकती।

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि कुछ ऐसी रिपोर्ट आ रही हैं कि यह केस प्रधानमंत्री की हत्या की साज़िश का है, जबकि FIR में इसका कोई जिक्र नहीं है। अगर मामला इतने गंभीर आरोप से संबंधित है तो इस मामले में सीबीआई या एनआईए द्वारा जांच क्यों नहीं कराई जा रही। उन्होंने कहा कि दोनों एफआईआर में इन पांचों कार्यकर्ताओं का नाम नहीं है, न ही उन्होंने किसी सम्मेलन में भाग लिया था। 

 

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