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भीमा कोरेगाँव मामले में हाई कोर्ट ने पुणे कोर्ट का आदेश किया ख़ारिज, सुप्रीम कोर्ट गयी महाराष्ट्र सरकार

भीमा कोरेगाँव मामले में आरोपी सुरेंद्र गाडलिंग के मामले में बुधवार को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पुणे न्यायालय के आदेश को ख़ारिज कर दिया। पुणे न्यायालय ने पुलिस को इस मामले में चार्जशीट दयार करने के लिए और समय देने का आदेश दिया था।
surendra gadling

भीमा कोरेगाँव मामले में आरोपी सुरेंद्र गाडलिंग के मामले में बुधवार को बॉम्बे उच्च न्यायालय ने पुणे न्यायालय के आदेश को ख़ारिज कर दिया। पुणे न्यायालय ने पुलिस को इस मामले में चार्जशीट दयार करने के लिए और समय देने का आदेश दिया था। सुरेन्द्र गाडलिंग ने इसके खिलाफ उच्च न्यायालय में अपील की थी जिसपर बुधवार को उच्च न्यायालय ने उनके पक्ष में आदेश दिया। उच्च न्यायालय के जज का कहना था कि पुलिस द्वारा चार्जशीट दायर करने और उसी के ज़रिये सभी आरोपियों की हिरासत की समय सीमा को बढ़ाकर और 90 दिनों की माँग गैरकानूनी है। आज महाराष्ट्र सरकार ने अब इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम न्यायालय में अपील की है, इसे अब 26 अक्टूबर को सुना जाएगा।  

इस बॉम्बे उच्च न्यायालय के आदेश का मतलब था कि अब सुरेन्द्र गाडलिंग और दूसरे सामाजिक कार्यकर्ता ज़मानत के लिए अपील कर सकते हैं। लेकिन उच्च न्यायालय ने अपने ही आदेश पर 1 नवंबर तक रोक लगा दी थी। यही वजह है आज ही महाराष्ट्र सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम न्यायालय में अपील कर दी है ।

दरअसल गैरकानूनी गतिविधियां प्रतिबन्ध कानून (यूएपीए) के अंतर्गत 90 दिन के अंदर चार्जशीट दायर करनी होती है। लेकिन अगर ज़्यादा समय लग रहा हो तो सरकारी वकील देरी के कारण की रिपोर्ट न्यायालय के सामने पेश कर सकता है। अगर न्यायालय को कारण वाजिब लगे तो न्यायालय समय सीमा को180 तक बढ़ा सकता है।

लेकिन आरोप है कि इस मामले में पुणे न्यायालय के सामने सरकारी वकील की रिपोर्ट पेश नहीं कि गयी थी। बल्कि असिस्टेंट कमिशनर ऑफ पुलिस और इंवेस्टिगेटिव ऑफिसर की रिपोर्ट पेश गयी थी। गडलिंग ने इसके खिलाफ अपील करते हुए कहा था कि इस रिपोर्ट को माना नहीं जा सकता क्योंकि यह प्रक्रिया के खिलाफ है। इस प्रक्रिया पर उच्च न्यायालय ने भी सवाल उठाए थे। यही वजह थी कि बॉम्बे उच्च न्यायालय के जज ने पुणे न्यायालय के आदेश को गैरकानूनी कहा था।

1 जनवरी को भीमा कोरेगाँव में हुई हिंसा कराने के आरोप में पुणे पुलिस ने कई सामाजिक कार्यकर्ताओं को आरोपी बनाया था। इस मामले में जून में गडलिंग, शोमा सेन, सुधीर धावले, महेश राऊत  और रोना विल्सन जैसे सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। इन सभी को यूएपीए के कड़े कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किया गया था। इन सभी पर आरोप था कि यह लोग माओवादियों से जुड़े हुए हैं।

इसके बाद अगस्त में  इस मामले में ही कई और सामाजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। इसमें सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरुण फ़रेरा,वर्नन गोनसालवेज, वारवारा राओ शामिल थे। इन सभी को नज़रबंद करने का आदेश दिया गया था। 1 अक्टूबर को इस मामले में गौतम नवलाख को ज़मानत मिल गयी थी। 

यह मामला शुरू से भी राजनीति से प्रेरित लग रहा था। इसकी वजह यह थी कि इस मामले में शुरू में बने आरोपी संभाजी भिड़े और मिलिंद एकबोटे को बचाने के आरोप सरकार पर लगते रहे हैं। बताया जाता है कि यह दोनों ही संघ से जुड़े हुए हैं। बताया जाता है कि महराष्ट्र सरकार ने 2017 में संभाजी भिड़े के खिलाफ दंगा भड़काने के तीन केस ख़त्म किये थे। बहुत से जानकारों का कहना है कि भीमा कोरेगाँव मामले में गुनहगारों को बचाने के लिए ही सभी सामजिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया गया था। अब महाराष्ट्र सरकार की अपील को सुप्रीम न्यायालय में 26  अक्टूबर को  जायेगा।

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