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शर्मनाक : दिव्यांग मरीज़ को एंबुलेंस न मिलने पर ठेले पर पहुंचाया गया अस्पताल, फिर उसी ठेले पर शव घर लाए परिजन

बिहार में चिकित्सा व्यवस्था में घोर लापरवाही के मामले सामने आते रहे हैं। यहां मरीज़ को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस न मिलना या इलाज का अभाव आम घटना है।
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आपको याद होगा कि पिछले साल बीजेपी नेता और सारण से सांसद राजीव प्रताप रूडी के क्षेत्र में बड़ी संख्या में खड़ी एंबुलेंस धूल फांक रही थी। आरोप लगाया गया था कि एंबुलेंस 13 महीने से खड़ी थी। ये एंबुलेंस रूडी के सांसद निधि से खरीदी गई थी जिसको कवर के छपरा के अमनौर में विश्व प्रभा सामुदायिक केंद्र परिसर में रखा हुआ था। उस समय कोरोना की दूसरी लहर से लोग परेशान थें और लोगों एंबुलेंस के साथ साथ इलाज के लिए भी जूझना पड़ रहा था। इसमें कोई शक नहीं कि बिहार की चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह चरमराई हुई है जिसका समय-समय पर खुलासा होता रहता है।

पिछले दिनों राजीव प्रताप रूडी के सांसद निधि से खरीदे गए एंबुलेंस में शराब ढ़ोने और बालू ढ़ोने का भी मामला सामने आया था। खैर बात करते हैं हाल कि घटना पर जहां तबीयत खराब होने के बाद एक दिव्यांग को गंभीर स्थिति में अस्पताल जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिला पाया और उसे सब्जी के ठेले पर अस्पताल पहुंचाया गया। इतना ही नहीं जब अस्पताल में डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया तो उसके शव को ले जाने के लिए शव वाहन भी नहीं। ऐसे में परिजनों ने फिर ठेले पर ही शव लेकर घर पहुंचे।

ठेले पर मरीज को पहुंचाया गया अस्पताल

आज तक की रिपोर्ट के मुताबिक ये घटना बिहार के नालंदा जिले की है जो बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का गृह जिला भी है। जब मुख्यमंत्री के जिले में ही ऐसी घटना सामने आएगी तो राज्य के अन्य जिलों का क्या कहना। ये घटना दो दिन पहले की है। नालंदा के हिलसा अनुमंडल अस्पताल में हिलसा शहर के पासवान टोला निवासी 30 वर्षीय अमरजीत कुमार की तबीयत खराब थी तो परिजनों ने अस्पताल की ओर से एंबुलेंस की मांग की लेकिन एंबुलेंस नहीं मिली। इसके बाद अमरजीत को सब्जी के ठेले पर लिटाकर अस्पताल ले जाया गया था।

अस्पताल पहुंचने के बाद डॉक्टरों ने अमरजीत को मृत घोषित कर दिया। अमरजीत की मौत के बाद भी अस्पताल में कोई वाहन उपलब्ध नहीं हो सका। परिजनों के अनुसार, इसके बाद डॉक्टरों ने शव जल्दी ले जाने को कहा। परिजन फिर अमरजीत के शव को ठेले पर लादकर घर ले गए। आरोप है कि अनुमंडल अस्पताल में स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव है। अस्पताल में एकमात्र एंबुलेंस है जो कभी खाली नहीं रहती। शव को या मरीजों को लाने और ले जाने के लिए किसी तरह की व्यवस्था भी अस्पताल में नहीं है।

बेटी के शव को कंधे पर ले गया पिता

तीन दीन पहले ही बिहार के बेगूसराय में एक बच्ची के शव को अस्पताल से ले जाने के लिए एंबुलेंस न मिलने का मामला सामने आया है। बता दें कि बिहार के बेगूसराय सदर अस्पताल को नंबर वन अस्पताल होने का दर्जा प्राप्त है लेकिन व्यवस्था के नाम पर आलम यह है कि शव ले जाने के लिए मृतक के परिजनों को एंबुलेंस ही नहीं मिल पाई। हिंदुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक शुक्रवार की रात ऐसा ही मामला सामने आया जब एंबुलेंस नहीं मिलने पर एक पिता को अपनी बेटी की लाश को कंधे पर ले गया।

मरीज को टेम्पू से पहुंचाया गया

बीते महीने सिमरी बख्तियारपुर अनुमंडल अस्पताल में अलग अलग सड़क दुर्घटना में इलाज कराने आये मरीज को समय पर एम्बुलेंस नही मिल पाया था। इस घटना में गंभीर रुप से 15 वर्षीय एक लड़के को डॉक्टर ने रेफर किया लेकिन उसे एंबुलेंस नहीं मिला जिसके चलते उसे टेम्पू से ही बेहतर इलाज के लिए सहरसा के बड़े अस्पताल ले जाना पड़ा था।

इसी साल फरवरी महीने में बिहार के सुपौल में सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से जख्मी एक मरीज को एंबुलेंस न मिलने का वाक्या सामने आया था जिसके चलते उसकी मौत हो गई थी।

गोद में शव ले गया पिता

फरवरी महीने में बिहार शरीफ सदर अस्पताल में एक बच्चे की मौत हो गई थी। उसके शव को लेकर पिता इधर उधर भटकता रहा लेकिन उसे एंबुलेंस या शव वाहन नहीं मिला। आखिर में बच्चे के शव को गोद में लेकर पिता सदर अस्पताल से अपने घर चला गया।

पहले भी इस तरह का मामला आ चुका है सामने

बीते साल मई महीने में बिहार में ऐसा ही एक मामला सामने आया था। पश्चिमी चंपारण के बगहा स्थित अनुमंडल अस्पताल से परिजनों को कन्हैया कुशवाहा शव ले जाने के लिए एंबुलेंस या शव वाहन नहीं मिल पाया था। इसके बाद परिजन मजबूरी में शव को ठेले पर ले गए थे।। कन्हैया की मौत अनुमंडल अस्पताल में टायफाइड से हो गई थी। मृतक के परिजनों को कहना था कि वे अस्पताल प्रबंधन से बार-बार एंबुलेंस की मांग करते रहे लेकिन उन्होंने कोई पहल नहीं की गई थी।

उसी साल मई महीने में बिहार के मैरवा में मरीज को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस न मिलने का एक मामला सामने आया था। कौशल किशोर पाल नाम के एक व्यक्ति ने एंबुलेंस के लिए कई बार फोन किया लेकिन उन्हें अपने पिता को अस्पताल ले जाने के लिए एंबुलेंस नहीं मिला तो बाद वे अपने पिता को इलाज के लिए ठेले पर ले गए थे।

दवाईयां फेंकी हुई पाई गई थी

बिहार के चिकित्सा व्यवस्था में लापरवाही की बात करें तो इसी साल फरवरी महीने में मुंगेर के सदर अस्पताल में एक्सपायर दवाईयों की एक घोर लापरवाही सामने आई थी जहां अस्पताल परिसर के बगल में स्थित स्टोर रूम में करीब 50 लाख रूपये से अधिक की कीमत की दवा फेंकी हुई पाई गई थी जो सड़ी गली हालत में थी।

बता दें कि बिहार में आए दिन चिकित्सा व्यवस्था के हर एक स्तर पर लापरवाही सामने आती रही है इसमें चाहे समय पर एंबुलेंस न मिलने का मामला हो या इलाज के अभाव में मरीजों की मौत का मामला हो। डॉक्टरों और नर्सों के साथ साथ अस्पतालों में जरूरी उपकरण की कमी के मामले सामने आते रहे हैं या उपकरण होने के बावजूद टेक्निकल स्टाफ न होने के मामले आते रहे हैं

मेडिकल स्टाफ व डॉक्टरों की कमी

बीते वर्ष डीडब्ल्यू ने सरकारी आंकड़ों के हवाले से लिखा कि प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में चिकित्सकों के 5674, शहरी क्षेत्रों में 2,874 तथा दुर्गम इलाकों में 220 पद खाली पड़े हैं। जबकि शहरीग्रामीण व दुर्गम इलाकों में क्रमश: 4,418, 6,944 व 283 कुल सृजित पद हैं वहीं पटना हाईकोर्ट को सरकार द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार राज्य के सरकारी अस्पतालों में विभिन्न स्तर के 91,921 पदों में से लगभग आधे से अधिक 46,256 पद रिक्त हैं। इनमें विशेषज्ञ चिकित्सकों के चार हजार तथा सामान्य चिकित्सकों के तीन हजार से ज्यादा पद खाली पड़े हैं।

बिहार में एम्स और आइजीआइएमएस जैसे कई बड़े अस्पताल होने के बावजूद इलाज के लिए लोगों को आज भी बिहार से बाहर का रुख करना पड़ रहा हैं। यहां से अधिकांश लोग इलाज के लिए दिल्ली जाते हैं और उत्तरी बिहार के लोग नेपाल चले जाते हैं।

पिछले साल आई नीति आयोग की रिपोर्ट ने नीतीश कुमार के तमाम दावों की पोल खोल दी थी। इसमें बिहार को सबसे नीचले पायदान पर दिखाया गया था।

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