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चुनाव 2019: ओडिशा में भाजपा और बीजद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं

ओडिशा में विकल्प के लिए जगह भी है और ज़रूरत भी, क्योंकि कई मुद्दों पर केंद्र में मोदी सरकार और राज्य में बीजद सरकार का रिकॉर्ड कुछ एक जैसा ही है।
चुनाव 2019: ओडिशा में भाजपा और बीजद एक ही सिक्के के दो पहलू हैं
फ़ोटो केवल प्रतिनिधित्वात्मक उपयोग के लिए है। सौजन्य: द स्टेट्समैन

नकली वादों, कार्यक्रमों का ग़लत ढंग से क्रियान्वयन और अपर्याप्त विकास के साथ, ओडिशा ख़ुद को लोकसभा चुनावों के साथ-साथ विधानसभा चुनाव के लिए भी तैयार कर रहा है। जो राजनैतिक दल केंद्र में भाजपा और राज्य की बीजद ने एक-दूसरे पर उंगली उठानी शुरू कर दी है, लेकिन इन दोनों ही प्रमुख दलों द्वारा ओडिशा की जनता की मुख्य समस्याओं को सामने नहीं लाया जा रहा है।

बीजू जनता दल (BJD) सरकार 2000 से राज्य पर शासन कर रही है, और 2009 तक भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ गठबंधन में रही है।
ओडिशा अभी भी रोज़गार, शिक्षा, विकास, कृषि और महिला सुरक्षा जैसे कई क्षेत्रों में अन्य राज्यों से पीछे है। कुल मिलाकर, इन वर्षों में राज्य में विकास जैसे थम सा गया है, विकास केवल रोडवेज़ के रूप में दिखाई दे रहा है।
विडंबना यह है कि बीजद के साथ गठबंधन में वर्षों तक रही जिस भाजपा के पास कोई बेहतर चेहरा नहीं था, आज वह ओडिशा में पूरी तरह से नई पार्टी की तरह बोल रही है। लेकिन, क्या कंधमाल में सांप्रदायिक हिंसा में शामिल होने के उनके इतिहास को कोई भूल सकता है, जो कि बीजद के साथ 2009 के चुनावों में गठबंधन ख़त्म करने का प्रमुख कारण था? आज, हालांकि बीजेपी ख़ुद को एक ऐसी पार्टी के रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है जिसकी ओडिशा की राजनीति में अभी तक कोई भूमिका नहीं है।

2018 में, ओडिशा उच्च बेरोज़गारी वाले शीर्ष 10 राज्यों में शामिल था। भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र सरकार ने एक करोड़ रोज़गार के अवसर पैदा करने का वादा किया था, जिसे पुरा नहीं किया गया। बीजद सरकार भी, इन सभी वर्षों में रोज़गार के अवसर पैदा करने में विफ़ल रही है। कई रोज़गार मेलों का आयोजन करने के बावजूद, राज्य में बेरोज़गार युवाओं की संख्या 9.8 लाख से अधिक है।
शिक्षा व्यवस्था पुरी तरह से चरमरा गई है। ओडिशा में साक्षरता की दर 73.5 प्रतिशत है यानी राष्ट्रीय औसत 74.04 प्रतिशत से भी नीचे। इस क्षेत्र में प्रमुख चुनौतियाँ स्कूलों की संख्या में कमी, शिक्षक-विद्यार्थी अनुपात का कम होना, कम योग्यता वाले शिक्षकों की नियुक्ति और बढ़ती ड्रॉप दर हैं। इन 19 वर्षों में, बीजद के नेतृत्व वाली राज्य सरकार ने इस क्षेत्र में ज़्यादा कुछ नहीं किया है। दूसरी तरफ़, बीजेपी से भी बहुत ज़्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती है, क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर एक समान परिदृश्य मौजूद है, जहाँ पार्टी शासन कर रही है। समागम शिक्षा अभियान की स्थापना के साथ, सर्व शिक्षा अभियान में एक बड़ी कटौती देखी गई। 2018-2019 में, केंद्र ने शिक्षा पर वार्षिक बजट का केवल 3.5 प्रतिशत ख़र्च करने का अनुमान किया था, जो इस दशक का सबसे कम बजट था। परिणामस्वरूप, ओडिशा के लोगों के पास शिक्षा के मामले में भाजपा पर भरोसा करने का कोई कारण नहीं है।

राज्य में स्वास्थ्य सेवा को बेहतर बनाने के लिए, बीजद सरकार सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) पर निर्भर रही है, जो स्वास्थ्य सेवाओं को आम लोगों की पहुँच से बाहर कर रही है। अपने विज़न 2025 में, ओडिशा सरकार 30 ज़िलों में प्राथमिक और माध्यमिक स्वास्थ्य सेवा अस्पतालों की स्थापना के लिए निजी खिलाड़ियों को लाने की कोशिश कर रही है। सेवा-उन्मुख पीपीपी मॉडल बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र की कंपनियों को लाभ पहुँचाने के लिए है - स्थानीय उद्यमियों से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक और मल्टी-नेशनल कॉर्पोरेशन, जैसे कि सीमेंस, अपोलो, एनसोकेयर और जीई हेल्थकेयर आदि इसमें शामिल हैं। इस प्रकार, सेवाओं की एक श्रृंखला को अब सीधे सरकारी अस्पतालों (माध्यमिक या तृतीयक श्रेणी) द्वारा और प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं को भी सरकार द्वारा मुहैया नहीं कराया जाता है। सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में क्रेता और विक्रेता के बीच यह निरंतर विभाजन बीमा सेवाओं की तरक़्क़ी के लिए बड़ी ज़मीन तैयार कर रहा है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के भीतर निजी स्वास्थ्य कंपनियों की शुरुआत क़ानूनी आधार को बदल देती है और इक्विटी से जुड़े, देखभाल की लागत, गुणवत्ता और स्वास्थ्य अधिकारों की बाज़ार से संबंधित चिंताओं को उजागर करती है। स्वास्थ्य सेवा में पीपीपी परियोजनाओं की विविधता, प्रदान की जाने वाली सेवाओं के प्रकार के आधार पर है, अनुबंध समझौतों में लगे निजी कंपनियों की भूमिका, मौजूदा सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली के ऊपर एक जटिल संरचना भी खड़ी कर रही है। पीपीपी ढाँचे की पूरी की पूरी जटिलता और प्रदाताओं की बहुलता के साथ, उनके नियमन और निगरानी एक बड़ा काम बन गया है, साथ ही प्रशासनिक लागत में संभावित वृद्धि के साथ, ग़रीबों को उनकी बुनियादी स्वास्थ्य देखभाल आवश्यकताओं के लिए संघर्ष के मुहाने पर छोड़ दिया है।
इसके अलावा, आउटसोर्सिंग के कारण, सार्वजनिक निजी भागेदारी में ठेकेदार के तहत कार्यबल को कम वेतन और काम के स्थल पर ख़राब परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। सार्वजनिक क्षेत्र के अधिकारी प्रायः निजी ठेकेदारों द्वारा नियोजित ठेके के कर्मचारियों की काम की स्थितियों की देख-रेख नहीं करते हैं। गुणवत्ता पर नियंत्रण नहीं होता है - जैसे कि आहार सेवाओं और सेनेटरी श्रमिकों के व्यावसायिक सुरक्षा मानकों में - ठेकेदारों द्वारा चलाई जा रही यह व्यवस्था काफ़ी कमज़ोर है। ये सभी पहलू मरीज़ों की देखभाल के साथ-साथ श्रमिकों के अधिकारों की गुणवत्ता को भी प्रभावित करते हैं।

पश्चिम बंगाल, दिल्ली, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और बिहार जैसे राज्यों में पीपीपी और आउटसोर्स सेवाओं के हालिया अध्ययन बताते हैं कि अक्सर निजी कंपनियाँ व्यापार की गोपनीयता के नाम पर डेटा साझा नहीं करती हैं। हालांकि नई नीति में रोगी के रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण पर ज़ोर दिया गया है, आउटसोर्सिंग और पीपीपी में निजी प्रदाताओं से रोगी डेटा मूल्यवान इनपुट के बजाय एक कमोडिटी बन रहा है जिसे कि सार्वजनिक डोमेन में होना चाहिए। इस प्रकार, स्वास्थ्य सेवा के लिए पीपीपी की ओर बढ़ना ओडिशा सरकार का कोई साहसिक क़दम नहीं है, जो केंद्र में भाजपा सरकार की तरह ही चल रही है।
ओडिशा में महिलाओं की सुरक्षा बहुत बड़ी चिंता का कारण है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, नई दिल्ली के बाद ओडिशा में महिलाओं के ख़िलाफ़ अत्याचार संख्या के मामले में दूसरे स्थान पर हैं। इसमें भारतीय दंड संहिता की धारा 354ए के तहत यौन उत्पीड़न के मामले शामिल हैं और साथ ही आईपीसी की धारा 354 के केस, जिसके तहत महिलाओं पर उनके शील को अपमानित करने के लिए हमला किया जाना भी शामिल है। आईपीसी धारा 354 के तहत दर्ज अपराधों की श्रेणी में, ओडिशा देश में 23.1 की अपराध दर के साथ सूची में सबसे ऊपर है। ताज़ा घटना 2 जनवरी को हुई जब, राउरकेला से लगभग 80 किलोमीटर दूर, पश्चिम सिंहभूम के चक्रधरपुर में लोटपहाड़ में दो युवकों द्वारा 20 साल इंजीनियरिंग की छात्रा के साथ कथित तौर पर छह दिनों तक सामूहिक बलात्कार किया गया और उसे जंगल में फेंक दिया गया था।

राज्य में अन्य ख़तरनाक अपराध जो राष्ट्र का ध्यान अपनी ओर खींचते हैं, उनमें अनुसूचित जनजाति (एसटी) के ख़िलाफ़ अत्याचार हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान के बाद ओडिशा इस श्रेणी में तीसरे स्थान पर है। अन्य अपराधों में राज्य में एक चौंकाने वाला रिकॉर्ड है, इज़्ज़त पर हाथ डालने के इरादे से हमला (देश में सबसे उपर), मानव तस्करी (तीसरा सबसे उंचा) और डकैती (सबसे उच्चतम) हैं।
कई मुद्दों पर केंद्र में भाजपा और राज्य में बीजद का रिकॉर्ड ध्यान में रखें तो ओडिशा में एक विकल्प की आवश्यकता है। तब जब सरकारों के प्रदर्शन और शासन की बात आती है, तो यह स्पष्ट है कि भाजपा और बीजद दोनों के अलग-अलग चेहरे हैं, लेकिन मूल विचार एक ही हैं।

(लेखक ओडिशा से हैं और सोशल वर्क के छात्र हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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