छात्रों ने मोदी सरकार के खिलाफ पेश की चार्जशीट
सोमवार, 18 फरवरी को दिल्ली के रामलीला मैदान से से शुरू हुआ , देश भर के हजारों छात्रों ने देश की राजधानी की सड़कों पर " शिक्षा बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, राष्ट्र बचाओ " के नारे के साथ मार्च किया। मार्च संसद मार्ग पर संपन्न हुआ, जहां छात्रों ने अपनी 8-सूत्रीय मांगों को प्रस्तुत किया, जिसमें प्रमुख मांग केजी से पीजी तक सभी के लिए मुफ्त कॉमन एजुकेशन सिस्टम, शिक्षा के लिए बजट आवंटन का 10%, आरक्षण लागू करना, महिलाओं की सुरक्षा शामिल है।
इस मार्च में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन (एआईडीएसओ), प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स यूनियन (पीएसयू), ऑल इंडिया स्टूडेंट्स ब्लाक (एआईएसबी), और ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) सहित कई छात्र संगठन शामिल हुए।
विश्वविद्यालयों के निजीकरण और रोजगार की गारंटी कि मांग को लेकर देशभर के छात्र केरल,हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और बंगाल के राज्यों से एकजुट हुए ।
न्यूज़क्लिक से बात करते हुए पंजाब के विक्की माहेश्वरी जो AISF के महासचिव हैं ,उन्होंने कहा कि " बार-बार युवा सड़कों पर आने के लिए मजबूर हैं , क्योंकि ये सरकार हर मोर्चे पर नाकाम रही है। इस सरकार के विपक्ष की भूमिका में प्रभावी ढंग से युवा और छात्र ही हैं और बदलाव का नेतृत्व कर रहे हैं । आज बेरोजगारी की दर 45 वर्षों में सबसे अधिक है। हमारी सरकार से मुख्य मांग है कि विश्वविद्यालयों के निजीकरण पर रोक लगाए और रोजगार की गारंटी के लिए एक अधिनियम लाए । "
AIDSO के नेता प्रशांत ने कहा कि सभी नियत प्रक्रियाओं को विकृत करते हुए और विभिन्न संस्थानों और विश्वविद्यालयों के प्रमुख के रूप में संघ परिवार के एजेंट नियुक्त किए जाते हैं। रोहित वेमुला की संस्थागत हत्या के पीछे संघ से जुड़े लोग थे और वो आज भी बेखौफ घूम रहे हैं। जेएनयू छात्र नजीब अहमद, जिस पर एबीवीपी ने हमला किया था, अभी भी लापता है। कैंपस के लोकतंत्र पर भारी हमला किया गया है, और स्वतंत्र भाषण, बहस और चर्चा के माहौल के बजाय शैक्षिक संस्थानों में भय और निगरानी की भावना पैदा हुई है। चुनाव दरवाजे पर हैं, छोटे-छोटे विवाद के बाद 'राष्ट्र-विरोधी' के लेबल का लगाना फिर शुरू हो गया है।
आज छात्रों ने एक घोषणापत्र जारी करते हुए मोदी सरकार के खिलाफ आरोपपत्र भी दाखिल किया। आठ बिंदु मांग पत्र में एक प्रमुख मांग सबको शिक्षा और मुफ्त शिक्षा सुनिश्चित करना है, शिक्षा के लिए बजट का 10%, खर्च करने कि मांग है।
“शिक्षा पर नीतिगत स्तर पर हमला”
मार्च में आये छात्रों ने कहा कि मोदी सरकार शिक्षा विरोधी है वो लगातार नीतिगत स्तर पर हमला कर रही है। शिक्षा के केंद्रीकरण, व्यावसायीकरण और सांप्रदायिकरण की नीतियां मोदी शासन के तहत एक समानांतर स्तर पर पहुंच गई हैं। भारतीय शिक्षा का संघीय चरित्र गंभीर हमलें का सामना कर रहा है, जिसमें प्रत्येक राज्य की विशिष्टताओं को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय नीतियों को शुरू करने और निर्णय में उनके प्रतिनिधित्व को संज्ञान में लिया गया है। NEET जैसी परीक्षाओं के इन चरित्रों का तमिलनाडु जैसे कुछ राज्यों के छात्रों ने भारी बहिष्कार किया है ।
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SFI कि अखिल भारतीय केन्द्रीय कमेटी सदस्य नितेश नारायण ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि ये सरकार छात्र,युवा और शिक्षण संस्थान पर तीन तरफ से हमला कर रही है। एक तरफ वो व्यावसायीकरण कर रही है , दूसरी ओर सांप्रदायिकता का जहर शिक्षा संस्थानों में घोल रही है, तीसरी तरफ मोदी सरकार उच्च शिक्षा का लगातर केंद्रीयकरणकर रही है जो हमारे देश कि मूल भावना के खिलाफ है ।
आरक्षण को पूर्ण रूप से खत्म करने की साजिश
दिल्ली विश्वविद्यालय के शोधार्थी और SFI नेता सुमित कटारिया ने बताया कि प्राथमिक स्तर से लेकर उच्च शिक्षा और अनुसंधान तक की शिक्षा को एक ऐसे क्षेत्र का रूप दिया गया है,जहाँ केवल विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को ही प्रवेश दिया जाता है। सार्वजनिक संस्थानों के फंड में पिछले कुछ वर्षों में भारी कटौती की गई है। JNU जैसे प्रमुख सार्वजनिक वित्त पोषित संस्थानों ने में भी फंड की भरी कमी आई है । केंद्र सरकार ने सार्वजनिक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में स्वायत्तता के नाम पर सेल्फ-फाइनेंसिंग कोर्स शुरू करने को हरी झंडी दे दी है। एक तरफ उच्च शिक्षा संस्थानों में सीटें कम कर दी गई हैं जबकि दूसरी तरफ आरक्षण का पूर्ण से खत्म करने कि साजिश है। मोदी द्वारा की गई सभी बड़ी घोषणाएं हवाहवाई है ।
तमिलनाडु से आये गोपाल ने कहा कि आज कई सारे दलित और शोषित छात्र शिक्षा से बाहर जा रहे हैं क्योंकि उनकी छात्रवृत्ति कई कई महीनों से नहीं मिल रही है और लगातर फीस वृद्धि कि जा रही है ।
सरकार कैंपसों के लोकतांत्रिक वातावरण को नष्ट कर रही है
SFI कि अखिल भारतीय सयुंक्त सचिव दिप्सिता धर ने कहा ये सरकार कैंपसों के लोकतांत्रिक वातावरण को नष्ट करने में लगी हुई है इसके साथ वो नीति के स्तर पर भी हमले कर रही है । जैसा कि हम जेएनयू में देख रहे लगातर फंड कट और शिट कट के साथ ही GSCASH जैसी संस्था को कह्तं किया जा रहा है । जो महिला सुरक्षा के लिए सबसे प्रभावी उपकरणों में से एक था । इसके आलावा AMU,जामिया और HCU जैसी विश्वविद्यालयों में लगातार हमले हो रहे है । एनडीए सरकार ने उनके बड़े दावों में से एक, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, के लिए अब तक जितनी राशि खर्च की है, वह विज्ञापन के लिए खर्च की गई राशि से बहुत कम है। और यहां तक कि परिसरों में लैंगिक हिंसा भी पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है।
“मौत हमें मंज़ूर है लेकिन बेबसी गंवारा नही”
SFI के राष्ट्रीय महासचिव मयूख विश्वास ने न्यूज़क्लिक से बात करे हुआ कहा कि भारत में दुनिया में सबसे अधिक अशिक्षित बच्चों का एक बड़ा हिस्सा है। यहां दुनिया में भूख से मरने वाले बच्चों की भी बड़ी संख्या है और भारत वैश्विक भूख सूचकांक में 100 वें स्थान पर है। हमने देखा है कि भाजपा शासित राज्य के सरकारी अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध कराए बिना शिशुओं को मार दिया जाता है। इनमें से किसी भी समस्या पर ध्यान नहीं दिया गया है, इसके बजाय एक प्रतिमा का निर्माण 2989 करोड़ के साथ किया गया जिसमें दो नए आईआईटी या 5 आईआईएम या एक एम्स बनाया जा सकता था। कई प्रतिमाएँ कतार में हैं। हाशिये के वर्गों और ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित समुदायों के छात्र इन नीतियों से सबसे अधिक प्रभावित होते रहे। और इसके बाद बड़ी संख्या में बाहर रहने को मजबूर हुए। भारत में लगभग 9 करोड़ बच्चे अभी भी स्कूल नहीं जाते हैं, जो दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। अकेले गुजरात में 32772 स्कूल हैं, जिनमें 12000 सरकारी स्कूल हैं जो सिर्फ एक या दो शिक्षकों द्वारा संचालित हैं।
मयूख कहते है कि मोदी सरकार जब से आई तब से देश में शिक्षा और शिक्षण संस्थान को खत्म कर रही है। पहलेFTII ,फिर HCU और JNU देश के तमाम शिक्षण संस्थान जो देश कि सत्ता को प्रश्न करते हैं उन्हें वो अलग अलग कारणों से हमला कर रहे हैं। लेकिन हम डरने वाले नहीं हैं मौत हमें मंज़ूर है लेकिन बेबसी में जीना गंवारा नहीं, हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।
इस मार्च में जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार भी शामिल हुए। उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए पुलवामा में हुए आतंकी हमले का जिक्र करते हुए कहा कि ये सरकार और इसके लगुए भगुए इसे भी चुनावी मुद्दा बनाने में लगी है। इस हमले की आड़ में देश में नफरत फैलाने कोशिश कर रही है। लगातार देशभर में कश्मीरी लोगों पर भाजपा के लोग हमला कर रहे हैं। यह सब और इस सरकार का पूरा कार्यकाल दिखाता है कि इस सरकार की मानसिकता आतंकी है।
उन्होंने कहा कि हमने मोदी सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ सभी वर्गों के लोगों को सड़कों पर आते देखा है। श्रमिकों, दलित, महिला, किसानों और वकीलों के ऐतिहासिक विरोध मार्च के बाद राजधानी 18 फरवरी को छात्रों के गुस्से का गवाह बनी। मंगलवार यानी 19 फरवरी को शिक्षा से जुड़े अन्य पक्षकार शिक्षक, गैर शिक्षक स्टाफ और छात्र भी सरकार कि शिक्षा विरोधी नीति के खिलाफ हल्ला बोलने आ रहे हैं।
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