देशभर में बच्चा चोरी की अफवाह और 'भीड़' का पागलपन
बच्चा चोरी की अफवाह के चलते अनजान लोगों के साथ भीड़ की मारपीट की घटनाएं जारी हैं। ताजा मामला राजस्थान के अलवर का है। यहां बीटेक के एक छात्र को भीड़ ने एक खंभे के साथ बांध दिया और फिर उसकी बुरी तरह पिटाई की। यह छात्र कश्मीर के सोपोर का रहने वाला है। सूचना मिलने पर पुलिस मौके पर पहुंची और छात्र को बचाया। घटना की जांच की जा रही है।
पिछले दिनों दिल्ली के हर्ष विहार में भीड़ ने एक मूक-बधिर गर्भवती महिला को इतना पीटा कि उसकी जान जाते-जाते बची। हरियाणा के रेवाड़ी में बच्ची के मामा पर ही भीड़ ने धावा बोल दिया।
गाजियाबाद के लोनी में अपने पोते को लेकर जा रही एक बुजुर्ग स्त्री को लोगों ने इस शक में मार-मारकर अधमरा कर दिया कि वह बच्चे को चुराकर ले जा रही है।
संभल में भतीजे को अस्पताल ले जा रहे एक शख्स को भी इसी संदेह में पीटा गया।
सुल्तानपुर में बच्चा चोरी के आरोप में एक महिला की पीट पीटकर हत्या कर दी गई। अमेठी जिला में भीड़ ने बच्चा चुराने वाला समझकर एक मजदूर को पीटकर मार डाला, जबकि आठ अन्य घायल हो गए।
बलिया में भीख मांगने वाली महिला को लोगों ने बच्चा चोर समझकर घेर लिया और उसकी पिटाई कर दी।
नोएडा की खोड़ा कॉलोनी में भी शुक्रवार देर रात कुछ लोगों ने एक व्यक्ति पर बच्चा चोरी का आरोप लगाकर उसे पीट दिया। पुलिस ने जांच की तो पता चला कि आरोप गलत है।
गोरखपुर के शेखुपुरवा मोहरीपुर में मानसिक रूप से कमज़ोर महिला को ग्रामीणों ने पीटकर पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस पड़ताल में जुटी है।
कानपुर में भी ऐसे ही आरोप में दो बुजुर्गों की पिटाई की गई। भीड़ ने बच्चा चोरी के आरोप में घेर लिया और उनके आधार कार्ड भी देखे। कानपुर का होने का सबूत देने के बाद भी उनेक साथ जमकर मारपीट की गई।
एटा में भी एक ऐसी घटना घटी है। अधेड़ उम्र की एक महिला को बच्चा चोरी के शक में भीड़ ने पीट दिया और वीडियो भी वायरल किया। वीडियो में महिला खुद को बेगुनाह बताती रही लेकिन उसके बावजूद भीड़ उसे पीटती रही और सिर मुंड़वाने की कोशिश की।
देश के सबसे बड़े राज्य में हालात इतने खराब हो गए हैं कि डीजीपी ओपी सिंह द्वारा अफवाह फैलाने व हिंसा करने वालों पर रासुका लगाने का आदेश भी दिया गया है। दिप्रिंट के अनुसार, उत्तर प्रदेश के आईजी लाॅ एंड ऑर्डर प्रवीण कुमार के मुताबिक पिछले एक महीने में अब तक ऐसे 37 मामलों में एफआईआर दर्ज हो चुकी है जिसमें 140 आरोपियों की पुलिस ने गिरफ्तारी भी की है।
ऐसा नहीं है कि बच्चा चोरी की अफवाह में भीड़ द्वारा पिटाई की घटनाएं सिर्फ यूपी, दिल्ली, हरियाणा और राजस्थान में हो रही हैं। ऐसी घटनाओं की सूचना देश के लगभग हर हिस्से से आ रही है।
झारखंड के गिरिडीह में एक बैंक के बाहर बच्चे को रोते देख उसके साथ खेल रही महिला को भी भीड़ ने बच्चा चोर की अफवाह में पिटाई कर दी। मामले की जांच के बाद गलतफहमी की बात सामने आई है।
बिहार के गया जिले में तीन लोगों को बच्चा अपहरण के आरोप में पीटा गया। तनकुप्पा थाना के एसएचओ विकास चंद्र ने पीटीआई से कहा कि तीनों लोग गया शहर के रहने वाले हैं।
इससे पहले 9 अगस्त को पटना में ऐसी ही एक घटना में भीड़ के पीटे जाने से एक व्यक्ति की मौके पर मौत हो गई थी। उस समय वहां पुलिस ने 22 लोगों गिरफ्तार किया था। उस मामले में अभी भी बिहार पुलिस की जांच जारी है। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, असम, पश्चिम बंगाल हर जगह से ऐसी खबरें सामने आई हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के अलग-अलग इलाकों में इस तरह की घटनाओं में एक अगस्त से अब तक 25 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। तो वहीं, एक आंकड़े के मुताबिक पिछले तीन सालों में भीड़ ने बच्चा चोरी के शक में 50 से ज्यादा लोगों की हत्या की है।
गौरतलब है कि इस तरह की घटनाएं पिछले कई सालों से हो रही हैं लेकिन बीच-बीच में इनमें भयानक तेजी देखने को मिलती है।
सबसे खराब बात यह है कि लगभग हर जगह इसका पैटर्न समान है। पहले किसी इलाके में एक व्हाट्सऐप मैसेज वायरल होता है, जिसमें वहां बच्चा चोर गिरोह सक्रिय होने की बात कही जाती है। यह भी कि यह गिरोह बच्चों की चोरी करके उनके अंग बेचता है या मासूमों के साथ गलत काम करता है।
मैसेज को प्रामाणिक बनाने के लिए वीडियो भी दिखाए जाते हैं। इसमें पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे देशों में बच्चा चोरी रोकने के लिए बनाई गई डॉक्यूमेंट्री तक शामिल हैं। इन डॉक्यूमेंट्री फिल्मों को अपने तरीके से एडिट किया गया है। नतीजा यह कि जहां-तहां शरारती तत्व किसी डरे हुए या मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति को भी बच्चा चोर बताकर उस पर हमला कर दे रहे हैं।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि कोई नहीं जानता कि बच्चा कहां और किसका चोरी हुआ। लोग इसका पता लगाने की कोशिश भी नहीं कर रहे। बस चोरी का हल्ला उठता है और सभी आक्रामक हो उठते हैं। यह पूरे तरीके से डर का एक खेल है। इसका असर यह होता कि कई जगह लोगों ने अपने छोटे बच्चों को स्कूल भेजना बंद कर दिया है। कहीं-कहीं ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों की छोटी कक्षाएं खाली दिखने लगी हैं।
दरअसल बच्चा चोरी की बात फैल जाने से एक भय का वातावरण बनता है, जिसकी अभिव्यक्ति भीड़ की हिंसा के रूप में होती है।
इन सबके बीच भीड़ की हिंसा पर लगाम लगा पाने में बेअसर कानून व्यवस्था ने आग में घी का काम किया है। हमारे देश में हर व्यक्ति निजी स्तर पर कानून से डरता है लेकिन भीड़ का हिस्सा बनते ही वह कानून को अपनी जेब में समझने लगता है। उसे लगता है कि सामूहिक रूप से किए गए कृत्य के लिए किसी को कोई सजा नहीं मिलती।
यह बात कई मामलों में सच भी साबित होती दिख रही है। भीड़ द्वारा पिटाई की घटनाओं में आरोपी छूटते नजर आ रहे हैं इससे सबका हौसला बढ़ा हुआ है। राजनीतिक दल और सामाजिक संगठन भी इसके खिलाफ बड़ा अभियान छेड़ते नजर नहीं आ रहे हैं। इसका फायदा असामाजिक तत्व उठा रहे हैं। भीड़ खुद कानून हाथ में लेने पर उतारू हो गई है।
हिंदी के वरिष्ठ व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई ने 1991 में अपने लेख 'आवारा भीड़ के ख़तरे' में ऐसी भीड़ का जिक्र किया था।
उन्होंने लिखा था, 'दिशाहीन, बेकार, हताश, नकारवादी, विध्वंसवादी बेकार युवकों की यह भीड़ खतरनाक होती है। इसका प्रयोग महत्वाकांक्षी खतरनाक विचारधारावाले व्यक्ति और समूह कर सकते हैं। इस भीड़ का उपयोग नेपोलियन, हिटलर और मुसोलिनी ने किया था। यह भीड़ धार्मिक उन्मादियों के पीछे चलने लगती है। यह भीड़ किसी भी ऐसे संगठन के साथ हो सकती है जो उनमें उन्माद और तनाव पैदा कर दे। फिर इस भीड़ से विध्वंसक काम कराए जा सकते हैं। यह भीड़ फासिस्टों का हथियार बन सकती है। हमारे देश में यह भीड़ बढ़ रही है। इसका उपयोग भी हो रहा है। आगे इस भीड़ का उपयोग सारे राष्ट्रीय और मानव मूल्यों के विनाश के लिए, लोकतंत्र के नाश के लिए करवाया जा सकता है।'
यही बात आज हम सबके सामने आ रही है। दरअसल भीड़ की हिंसा पर लगाम लगाने के लिए बच्चों की चोरी और इससे जुड़ी अफवाहबाजी, दोनों पर एक साथ पूरी सख्ती से सक्रिय हुआ जाए।
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