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जम्मू-कश्मीर के डीडीसी चुनावों का महत्व

कश्मीर और जम्मू दोनों में मतदान शनिवार को शुरू होगा। मतदान आठ चरणों में होगा और 19 दिसंबर को समाप्त होगा, जिसके परिणाम 22 दिसंबर तक घोषित किए जाएंगे।
चुनावों का महत्व
Image Courtesy: AFP

श्रीनगर: अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद और राज्य का दो राज्यों में बंटवारा करने बाद आगामी 28 नवंबर, 2019 से जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश में जिला विकास परिषद (डीडीसी) का होने वाला चुनाव पहला बड़ा चुनाव होगा। 

कब और क्यों?

कश्मीर और जम्मू दोनों में मतदान शनिवार को शुरू होगा। मतदान आठ चरणों में होगा और 19 दिसंबर को समाप्त होगा, जिसके परिणाम 22 दिसंबर तक घोषित किए जाएंगे।

मतदान के लिए निर्धारित तारीखों में मतदान सुबह 7 से दोपहर 2 बजे के बीच होगा। ऐसा भी पहली बार है कि अनुच्छेद 370 और 35 ए के निरस्त होने के बाद गैर-राज्य सबजेक्ट यानि  पश्चिम पाकिस्तान शरणार्थियों (डब्ल्यूपीआर) को राज्य-विषयक कानून के खात्मे के बाद इस क्षेत्र में चुनाव में हिस्सा लेने की अनुमति दे दी हैं।

पंचायती राज व्यवस्था को दोबारा जीवित करने के उद्देश्य से चुनाव दलीय आधार पर होंगे। केंद्र ने जम्मू और कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 में अक्टूबर में संशोधन को मंजूरी दी थी। इसने जम्मू-कश्मीर के 20 जिलों से 280 निर्वाचित सदस्यों के चुनाव का रास्ता साफ कर दिया है, इस प्रकार पंचायती राज संस्थानों- पंचायत, ब्लॉक विकास परिषद (BDC) और जिला विकास परिषद के सभी तीन स्तरों के गठन का रास्ता भी तय हो गया है। डीडीसी पांच साल के कार्यकाल के लिए चुनी जाएगी।

पिछली बार पंचायतों के आम चुनाव नवंबर और दिसंबर 2018 में हुए थे और 33,592 पंच की सीटों में से 22,214 पंच और 4,290 सरपंच निर्वाचन क्षेत्रों से 3,459 सरपंच चुने गए थे। 

अब जो रिक्तियां हैं वे निर्वाचित पंचों और सरपंचों की मृत्यु और इस्तीफे के कारण इकट्ठी हुई हैं। इसके अलावा, अक्टूबर 2019 में बीडीसी के अध्यक्ष के चुनाव के परिणामस्वरूप, पंचों या सरपंचों की अन्य 307 सीटें खाली हो गईं थी। शहरी स्थानीय निकायों (ULBs) की खाली सीटों और 228 सीटों के लिए उपचुनाव भी एक साथ होंगे।

मतदान का तंत्र

मतदान मतपेटियों के माध्यम से होगा जबकि कोविड-19 रोगियों या आइसोलेशन वाले मरीजों,  वरिष्ठ नागरिकों और शारीरिक रूप से अस्वस्थ लोगों के लिए डाक मतपत्र होंगे।

एक आधिकारिक अधिसूचना के अनुसार, जम्मू-कश्मीर पंचायती राज अधिनियम, 1989 की धारा 45 में "एक जिला विकास परिषद की परिकल्पना की गई है, जिसमें इसके अधिकार क्षेत्र में प्रत्येक जिले में से ऐसे क्षेत्र होंगे जो नगर पालिका या नगर निगम में शामिल नहीं हैं।"

प्रशासनिक बदलाव 

यानि संघीय शासित क्षेत्र में शासन की एक ओर नई परत बनने के लिए तैयार है, जिसमें डीडीसी हलका पंचायतों और ब्लॉक विकास परिषदों के कामकाज की देखरेख करेंगे। डीडीसी, जिसका काम जिला योजनाओं और पूंजीगत व्यय को तैयार करना और अनुमोदन करना हैं, वह पूरे क्षेत्र के सभी जिलों में जिला योजना और विकास बोर्डों की जगह ले लेंगे।

इससे पहले, जिला विकास बोर्ड (डीडीसी) केंद्र सरकार द्वारा लागू योजनाओं के कार्यान्वयन,  अनुमोदन का काम देखते थे। बोर्ड में एक निर्वाचित सांसद, विधायक और एक एमएलसी तथा  डिप्टी कमिश्नर होते थे और कैबिनेट मंत्री इसका नेतृत्व करता था। नई प्रणाली के तहत, डीडीसी का निर्वाचित प्रतिनिधि में से एक चेयरमेन होगा। 

प्रत्येक डीडीसी में सीधे तौर पर चुने जाने वाले 14 निर्वाचित सदस्य होंगे और इसमें से वित्त, विकास, सार्वजनिक कार्यों, स्वास्थ्य और शिक्षा और कल्याण के लिए पांच स्थायी समितियों का गठन किया जाएगा।

राजनीतिक पृष्ठभूमि

जम्मू और कश्मीर पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), नेशनल कॉन्फ्रेंस, जम्मू और कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) और कांग्रेस पार्टी सहित मुख्यधारा के राजनीतिक दल इन चुनावों को  में भाजपा और उसके सहयोगियों के खिलाफ एकजुट मोर्चा के रूप में लड़ रहे हैं। नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसी क्षेत्रीय पार्टियों ने पहले धारा 370 के उन्मूलन के मद्देनजर बीडीसी  चुनावों का बहिष्कार किया था। पार्टियों ने जामु-कश्मीर में 5 अगस्त की पूर्व स्थिति की बहाली की मांग करते हुए क्षेत्र में भाजपा और उसके गठबंधन का मुकाबला करने के लिए गुपकर घोषणा (PAGD) के नाम पीपुल्स अलायंस का गठन किया है। 

पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिकलेरेशन (PAGD) में फारूक अब्दुल्ला के नेतृत्व वाली नेकां, महबूबा मुफ्ती के नेतृत्व वाली पीडीपी, सज्जाद लोन (पीसी), अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस (ANC), जम्मू कश्मीर पीपुल्स मूवमेंट (JKPM), कांग्रेस पार्टी और सीपीआई(एम) शामिल हैं। जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी (JKPCC), जो पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिकलेरेशन की पहली हस्ताक्षरकर्ताओं में से थी, ने गठबंधन से दूरी बना ली है।

केंद्र के अनुछेद 370 को निरस्त करने और नए कानूनों को लागू करने के फैंसले को खारिज करते हुए पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर डिकलेरेशन ने डीडीसी चुनाव लड़ने का फैसला किया, जिसे वे क्षेत्र के लोगों को बेदखल करने के कदम के रूप में देखते हैं। दोनों मोर्चे जिसमें पीपुल्स अलायंस (PAGD) और भाजपा सभी 280 सीटों पर चुनाव लड़ रहे और सभी उम्मीदवार कड़ी टक्कर में हैं।

जैसे ही डीडीसी चुनावों की घोषणा हुई, दोनों राजनीतिक विरोधियों ने एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगाने शुरू कर दिए। 

इससे पिछले हफ्ते, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकर को एक "गिरोह" कहा था, और दावा किया कि वे घाटी में "उथल-पुथल" के युग को वापस लाना चाहते हैं, एक ऐसा आरोप जिस पर जम्मू-कश्मीर की मुख्यधारा की पार्टियों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। 

डीडीसी चुनावों से पहले, गुपकर अलायंस की पार्टियों और उसके नेताओं को 25,000 करोड़ रुपये के ‘रोशनी अधिनियम धोखाधड़ी’ के रूप में एक चुनौती दे दी गई है। इस अधिनियम को 2001 में नेशनल कॉन्फ्रेंस सरकार लाई थी जिससे इस क्षेत्र में कब्जे वाली या अतिक्रमित भूमि संपत्ति को मुआवजे और बिजली परियोजनाओं को फंड करने के लिए नियमित किया था जिसे अब सरकार ने गैर-कानूनी घोषित कर दिया है।

संघ प्रशासित क्षेत्र में अधिकारियों ने अब रोशनी अधिनियम के प्रभावशाली लाभार्थियों की सूची को सार्वजनिक किया है जिसमें व्यवसायी, नौकरशाह और राजनेता शामिल हैं। राज्य भूमि के अतिक्रमण के आरोपों की एक अन्य सूची में पीपल्स अलायंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला सहित कई अन्य राजनेताओं का भी नाम लिया गया है।

उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती सहित अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं ने आरोप लगाए है कि कुछ पीएजीडी उम्मीदवारों को उनकी मर्जी के खिलाफ सुरक्षित स्थानों पर नज़रबंद किया गया है और चुनाव प्रचार से वंचित रखा जा रहा है। 

डीडीसी चुनावों से ठीक एक दिन पहले उनके पुलवामा गृह निर्वाचन क्षेत्र से डीडीसी चुनावों के लिए नामांकन दाखिल करने के एक दिन बाद, पीडीपी के वहीद उर रहमान पारा को राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अपने मुख्यालय में बुलाया और एक उग्रवाद से संबंधित मामले में गिरफ्तार कर लिया जिसमें जम्मू-कश्मीर के पुलिस अधिकारी दविंदर सिंह पर उग्रवादियों का समर्थन करने का आरोप लगाया गया था।

आतंकवादी समूहों के हमलों और व्यवधान की आशंकाओं के बीच डीडीसी चुनाव हो रहे हैं। यहां तक कि राज्य चुनाव आयोग को खतरों से निपटने और चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए सुरक्षा कवर बढ़ा दिया है, लेकिन दक्षिण कश्मीर के अशांत जिलों में चुनाव कराना एक चुनौती बना हुआ है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Explained: The Importance of DDC Elections in J&K

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