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मुद्दा: जम्मू-कश्मीर परिसीमन आयोग का प्रस्ताव आख़िर क्यों है विवादास्पद

जहां जम्मू को छह नयी विधानसभा सीटें मिलेंगी,वहीं कश्मीर को महज़ एक और अतिरिक्त सीट से संतोष करना होगा।
Jammu and Kashmir
Image courtesy : The Leaflet

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर की नयी विधानसभा में सीटों के प्रस्तावित आवंटन के इस पहले मसौदे को पिछले साल मार्च में केंद्र सरकार की ओर से गठित परिसीमन आयोग की तरफ़ से इस सप्ताह के शुरू में पेश किया गया। इसे लेकर पिछले कुछ दिनों से गरमागरम बहस शुरू हो गयी है,क्योंकि जम्मू को छह और कश्मीर को महज़ एक और सीट आवंटित की  गयी है।

सुप्रीम कोर्ट में अपनी सेवा दे चुके न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) रंजना प्रकाश देसाई की अगुआई वाले इस आयोग में बतौर पदेन सदस्य मुख्य चुनाव आयुक्त और जम्मू और कश्मीर के चुनाव आयुक्त के साथ-साथ सहयोगी सदस्यों के रूप में संसद के पांच सदस्य (सांसद) शामिल हैं। इन पांच सांसदों में जम्मू और कश्मीर नेशनल कॉन्फ़्रेंस (NC) से तीन और भारतीय जनता पार्टी (BJP) से दो सांसद हैं।

आयोग को इन सहयोगी सदस्यों की ओर से इस मसौदा प्रस्ताव पर अपने सुझाव प्रस्तुत करने के लिए इस महीने के आख़िर तक का समय दिया गया है। उनके सुझावों को शामिल करने के बाद जनता से प्रतिक्रिया आमंत्रित करने के लिए इस नवीनतम प्रस्ताव को पब्लिक डोमेन में रखा जायेगा। लोगों की ओर से मिलने वाली प्रतिक्रिया पर विचार करने के बाद अंतिम परिसीमन योजना अगले साल मार्च में प्रकाशित की जायेगी।

परिसीमन की इस क़वायद की मूल समय सीमा इस साल का मार्च थी, जिसे कोविड के चलते एक साल के लिए बढ़ा दिया गया था।

अगर इस मसौदा प्रस्ताव को इसके मौजूदा स्वरूप में देखा जाये,तो जम्मू और कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश के लिए नयी विधान सभा में सीटों की प्रभावी संख्या 90 होगी। इनमें कश्मीर क्षेत्र में 46 से एक ज़्यादा 47 सीटें होंगी, और जम्मू क्षेत्र में 37 से बढ़कर 43 सीटें होंगी। ग़ौरतलब है कि तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य की विधानसभा में 107 सीटें थीं, जिनमें से 24 पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर में थीं और इसलिए उनकी नुमाइंदगी नहीं होती थी।

इस प्रस्ताव के मुताबिक़, जम्मू क्षेत्र के डोडा, कठुआ, किश्तवाड़, राजौरी, सांबा और उधमपुर ज़िलों और कश्मीर घाटी के कुपवाड़ा ज़िले में एक-एक नयी सीट जोड़ दी जायेगी। इस प्रस्ताव में अनुसूचित जनजातियों के लिए विधानसभा में नौ सीटें आरक्षित करने की भी सिफ़ारिश की गयी है। पूर्ववर्ती राज्य विधानसभा में सात सीटें अनुसूचित जाति के लिए पहले से ही आरक्षित थीं।

कठुआ, सांबा और उधमपुर ज़िलों में से हर एक ज़िले में 85 फ़ीसदी से ज़्यादा हिंदू आबादी है, जबकि मुस्लिम बहुल ज़िलों-डोडा, किश्तवाड़ और राजौरी में हिंदू आबादी 34 से 45 प्रतिशत के बीच है।

तत्कालीन राज्य में इससे पहले परिसीमन 1995 में किया गया था, जब इसमें लद्दाख का मौजूदा केंद्र शासित प्रदेश भी शामिल था। उस समय इसमें 12 ज़िले थे, जो अब बढ़कर 20 हो गये हैं।

परिसीमन आयोग ने अपने इस इस मसौदा प्रस्ताव में साफ़ कर दिया है कि इसने ज़िलों को सीटों का आवंटन करते समय प्रति निर्वाचन क्षेत्र (तक़रीबन 1,36,304) की औसत जनसंख्या का 10 प्रतिशत का अंतर करते  हुए इन 20 ज़िलों को तीन व्यापक श्रेणियों-मुख्य रूप से पहाड़ी और दुर्गम, पहाड़ी और समतल भू-भाग, और मुख्य रूप से समतल भूभाग वाले इलाक़े में वर्गीकृत कर दिया है।

चूंकि 2011 की जनगणना के मुताबिक़, कश्मीर की आबादी जम्मू के मुक़ाबले 15 लाख ज़्यादा है, लिहाज़ा इस प्रस्ताव पर सवाल उठाया जा रहा है। इस प्रस्ताव के मुताबिक़, इस केंद्र शासित प्रदेश की कुल आबादी का 56.2 प्रतिशत हिस्सा कश्मीर में है, जबकि नयी विधानसभा में इसके पास 52.2 प्रतिशत सीटें होंगी, वहीं 43.8 प्रतिशत आबादी वाले जम्मू के पास 47.8 प्रतिशत सीटें होंगी।

जम्मू और कश्मीर के पूर्व क़ानून सचिव मुहम्मद अशरफ़ मीर के मुताबिक़, यह मसौदा प्रस्ताव बताता है कि जम्मू को 1,25,082 लोगों पर एक विधानसभा सीट मिलनी है, जबकि कश्मीर में प्रति विधानसभा सीट पर औसतन 1,45,563 लोग होंगे।

जम्मू और कश्मीर के सभी प्रमुख क्षेत्रीय राजनीतिक दलों के साथ-साथ प्रमुख कश्मीरी सिविल सोसाइटी के लोगों ने कश्मीर को सीट आवंटन में यहां की जनगणना की अनदेखी करने, कश्मीर की आबादी को साफ़ तौर पर वंचित करने और इस मुस्लिम-बहुल केंद्र शासित प्रदेश में हिंदू-बहुल जम्मू क्षेत्र को चुनावी फ़ायदा पहुंचाने को लेकर आलोचना की है। उन्होंने यह आरोप लगाया है कि यह प्रस्ताव हिंदू दक्षिणपंथी भाजपा को लाभ पहुंचाने वाला है।

इस आयोग के सहयोगी सदस्यों में से एक नेशनल कॉन्फ़्रेंस सांसद हसनैन मसूदी की ओर से उठाये गये इस विवाद का एक दूसरा बिंदु यह है कि यह परिसीमन क़वायद जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के मुताबिक़ की जा रही है, जिसकी संवैधानिकता को 2019 में सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनौती दी गयी थी। और यह मामला इस समय विचाराधीन है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Explained: Why Draft Proposal of J&K Delimitation Commission is Controversial

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