आज़ाद मैदान की चेतावनी : मांगें पूरी न हुईं तो और तीखा किया जाएगा आंदोलन
हजारों की तादाद में किसान मुंबई के आज़ाद मैदान पर डेरा डाले हुए हैं जिन्होंने मोदी सरकार के कृषि कानूनों के प्रति अपने विरोध को दर्ज किया है। उन्होंने केंद्र सरकार को चेतावनी दी है कि यदि इन कानूनों को रद्द नहीं किया गया तो वे अपने विरोध प्रदर्शनों में और भी तीखा करने जा रहे हैं।
किसानों के इस आंदोलन में राज्य भर से मजदूरों और छात्रों के साथ-साथ सौ से अधिक नागरिक समाज के संगठन भी शामिल हुए। इस विरोध प्रदर्शन में सत्तारूढ़ महा विकास अघाड़ी के सहयोगी दलों सहित राज्य के सभी गैर-भारतीय जनता पार्टी दलों ने भी शिरकत की। मुंबई में किये गए इस विरोध प्रदर्शन से जो तथ्य स्पष्ट तौर पर निकलकर सामने आया वह यह था कि किसान मोदी सरकार द्वारा दिए जा रहे किसी भी आश्वासनों, जिनमें इन तीनों कानूनों को 18 महीनों तक के लिए स्थगित किया जाना भी शामिल है, को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। वे इन कानूनों को पूरी तरह से रद्द किये जाने की अपनी मांग पर मजबूती से दृढ हैं।
नासिक से पहुंचे किसान गौरांग चौधरी ने न्यूज़क्लिक से अपनी बातचीत में कहा कि उन्हें मोदी सरकार के आश्वासनों को लेकर कोई भरोसा नहीं है, क्योंकि अतीत में भी उनके द्वारा किये गए कई वादों को उन्होंने झुठला दिया था। चौधरी ने कहा “हम यहाँ पर किसान विरोधी कानूनों को खत्म करने के लिए जमा हुए हैं। हम उन पर भरोसा नहीं करते क्योंकि उन्होंने हमें राशन देने के आश्वासन सहित अपने पूर्व के आश्वासनों को पूरा नहीं किया है।”
मोदी सरकार के प्रति भरोसे को लेकर पूर्ण मोहभंग की स्थिति और विश्वसनीयता का अभाव पूरी तरह से स्पष्ट नजर आ रहा था, जिसे आज़ाद मैदान में मौजूद प्रत्येक किसान इसकी गवाही दे रहा था। चंद्रपुर की 43 वर्षीया राधा सोनकरवर ने कहा कि उन्हें और उनके समुदाय की आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को खुद प्रधानमंत्री द्वारा वेतन में वृद्धि का आश्वासन दिया गया था।
वे कहती हैं “लेकिन हमें उनके द्वारा दिए गए जुबान को अमल में लाने के लिए पिछले डेढ़ वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा है। इस प्रकार का हमारा अनुभव रहा है। ऐसे में जब मोदी खुद अपने द्वारा ही दिए गये भरोसे पर अडिग रहने को लेकर इतनी हिचकिचाहट रखते हैं, तो भला कैसे ये किसान इस बात पर विश्वास करें कि वे इन कानूनों को भविष्य में एक बार फिर से नहीं लायेंगे।” राधा और उनके साथियों ने इस विरोध प्रदर्शन में भाग लेने के लिए चंद्रपुर से मुंबई तक की यात्रा की।
बुलढाना के मलकापुर से आये किसान और कार्यकर्ता सोपान अदोकर ने अतीत में केंद्र की भाजपा सरकार द्वारा दिए गए आश्वासनों की संख्या को सूचीबद्ध कर रखा है। सोपान का कहना था “बैंक खातों में 15 लाख से लेकर किसानों की कर्ज माफ़ी करने से लेकर सभी के लिए मुफ्त राशन तक में, मुझे कोई एक चीज बताइये जिसे मोदी ने घोषणा करने के बाद उसे पूरा किया हो। इतना सब कुछ देखने के बाद आखिर हम कैसे उनकी बातों पर भरोसा कर सकते हैं। हम चाहते हैं कि इन कानूनों को हमेशा के लिए खत्म किया जाए, अस्थाई तौर पर निलंबन स्वीकार्य नहीं है।”
विरोध प्रदर्शन का स्वर इस सुस्पष्ट मांग के साथ तय हो गया था; जिसे इसका नेतृत्व कर रहे नेताओं ने भी अपने भाषणों में इसे दोहराया। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट, एआईकेएस महासचिव एवं पूर्व सांसद हन्नान मोल्लाह, मंत्री जितेन्द्र अवहाद, असलम शेख, सुनील केदार सहित अन्य नेता भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए।
पवार ने अपने भाषण में आरोप लगाया कि केंद्र ने इन कानूनों को पारित करने से पहले किसी भी विपक्षी दल के साथ सलाह-मशविरा नहीं किया था। पवार ने कहा “संसद की दोनों सदनों में विपक्षी दलों द्वारा इसका स्पष्ट विरोध किया गया था। लेकिन मोदी सरकार ने हमसे इस बारे में बात करने की जहमत नहीं उठाई और इन कानूनों को पारित करा दिया। हम उनकी सख्त मुखालफत कर रहे हैं और हमारी मांग है कि उन्हें रद्द किया जाए।”
रैली के बाद प्रदर्शनकारियों ने राज भवन तक अपना पैदल मार्च निकाला। इस बीच महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी गणतंत्र दिवस समारोह के सिलसिले में गोवा के पंजिम में हैं, क्योंकि वे उस राज्य के भी प्रभारी हैं। पवार ने राज्यपाल के अपनी सुविधानुसार अनुपस्थित रहने पर हमला किया। उन्होंने कहा “राज्यपाल के पास कंगना जैसी फिल्म अभिनेत्रियों से मिलने का समय तो है, लेकिन उनके पास इन किसानों से मिलने का समय नहीं है।” राज भवन की ओर रवाना हो रहे किसानों के मार्च को मुंबई पुलिस द्वारा मेट्रो थिएटर पर रोक दिया गया था।
किसानों और उनके नेताओं में अशोक धवले, जयंत पाटिल, अजित नवाले और अन्य ने राज भवन जाने से इंकार कर दिया। इस बारे में आल इंडिया किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धवले का कहना था “राज भवन जाने का क्या औचित्य रह जाता है, अगर राज्यपाल ही वहां पर मौजूद नहीं हैं। हम अब राज्यपाल के लिए तैयार किये गए ज्ञापन को फाड़कर फेंक रहे हैं। यदि वे वहां पर उपस्थित नहीं हैं और यदि हमें राज भवन पर जाने की अनुमति नहीं है तो इस ज्ञापन का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।”
धवले ने यह घोषणा भी की है कि 26 जनवरी के दिन किसान, आज़ाद मैदान में ध्वजारोहण समारोह का नेतृत्व करेंगे। इस दौरान सभी की निगाहें राष्ट्रीय राजधानी पर लगी होंगी, जहाँ उम्मीद है कि लाखों किसान एक अभूतपूर्व ट्रैक्टर रैली निकालकर दिल्ली में छा जायेंगे। मुंबई में किसान, अपने दिल्ली में मौजूद आंदोलनरत भाइयों और बहनों का समर्थन करेंगे।
मुंबई में आयोजित इस महा-पड़ाव विरोध प्रदर्शन ने दो महत्वपूर्ण बातों को स्पष्ट तौर पर सामने ला दिया है। पहला यह कि किसानों का यह विरोध एक अखिल भारतीय परिघटना है और यह देश के कुछ हिस्सों तक ही सीमित नहीं है। और दूसरा यह कि जब तक उनकी माँगें नहीं मानी जातीं, किसान भी इस निर्णायक लड़ाई के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
Farm Laws: In Azad Maidan, Palpable Mistrust of Modi Government, Farmers Unmoved
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