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गंगा के लिए प्रो. जीडी अग्रवाल ‘शहीद’

प्रो. अग्रवाल को शायद ये विश्वास रहा हो कि जिन नरेंद्र मोदी ने सरकार में आने से पहले खुद को गंगा का पुत्र बताते हुए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कहा था कि “गंगा मां ने मुझे बुलाया है”, वे सरकार में आने के बाद गंगा के लिए वास्तव में कुछ करेंगे। लेकिन ऐसा हो न सका।
प्रो. जीडी अग्रवाल का निधन।

जिन लोगों ने सरकार में आने से पहले गंगा को बचाने का वादा किया था, वे सरकार में आकर उसे भूल गए लेकिन पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल अपना संकल्प नहीं भूले और आज गंगा के लिए शहीद हो गए। प्रो. अग्रवाल गंगा के मुद्दे पर बीते 22 जून से अनशन कर रहे थे।

86 साल की उम्र में अनशन का मतलब आप समझ सकते हैं। और वो एक-दो दिन नहीं, उनके अनशन को 111 दिन हो गए थे। मंगलवार से उन्होंने जल भी त्याग दिया था। वे हरिद्वार में अपने मातृसदन आश्रम में अनशन पर थे। बताया जाता है कि आश्रम में उनकी हालत बिगड़ने पर पुलिस ने उन्हें जबरन ऋषिकेश के एम्स में भर्ती करा दिया गया था।

आईआईटी में प्रोफेसर रह चुके जीडी अग्रवाल इंडियन सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड में सदस्य भी रह चुके थे। हालांकि अब वह एक संन्यासी का जीवन जी रहे थे और उन्होंने अपना नाम स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद रख लिया था।

प्रो. अग्रवाल गंगा में अवैध खनन और  बांधों जैसे बड़े निर्माण के खिलाफ थे और गंगा की अविरलता बनाए रखने के पक्षधर थे। इन मुद्दों पर वे पहले भी सरकार को चेता चुके और अनशन भी कर चुके थे। इस बार भी उन्होंने प्रधानमंत्री को इस संबंध में पत्र लिखा था। फरवरी महीने में उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिख गंगा के लिए अलग से क़ानून बनाने की मांग की थी। लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला और वे 22 जून को अनशन पर बैठ गए। इस बीच दो केंद्रीय मंत्री उमा भारती और नितिन गडकरी ने उनसे अपना अनशन तोड़ने की अपील की थी। लेकिन बिना किसी ठोस प्रस्ताव या कार्रवाई के वो अनशन तोड़ने को तैयार नहीं हुए। शायद उनको ये आशा रही हो कि उमा भारती जो गंगा के लिए जान देने की कसमें खातीं रही हैं, वे इस बारे में गंभीरता से कुछ करेंगी। उन्हें शायद ये भी विश्वास रहा हो कि जिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद को गंगा का पुत्र बताते हुए अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में कहा था “गंगा मां ने मुझे बुलाया है”, वे गंगा के लिए वास्तव में कुछ करेंगे। लेकिन उनकी उम्मीद पूरी नहीं हुई, भरोसा टूट गया, प्रधानमंत्री ने उन्हें जवाब तक न दिया और इसी के साथ उनकी सांस की डोर भी टूट गई।

प्रो. अग्रवाल के निधन से पर्यावरण प्रेमियों  को भारी धक्का पहुंचा है। उनके आंदोलन के समर्थकों ने उनके निधन पर गहरा दुख जताते हुए इसे हत्या तक करार दिया और इसके लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

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