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‘हर घर से हमारा नाता है, हमें सरकार बदलना आता है’

एमपी सरकार के खिलाफ स्थायी रोजगार और वेतन वृद्धि की मांग को लेकर अपने विद्रोही तेवर के साथ सशक्त आशा और उषा (युसएए) कार्यकर्ता इस साल के अप्रैल से विरोध कर रहे हैं।
asha workers

 

वे हर गांव में मौजूद हैं, हर घर में जाते हैं, हर मां और हर बच्चे को जानते हैं। वे परिवार की  किसी भी बीमारी या परेशानी में परिवारों की मदद के लिए पहली पंक्ति में खड़े नज़र आते हैं। फिर भी, पूरे हफ्ते 24 घंटे काम करने के बावजूद उन्हें बहुत ही कम वेतन मिलता है।
ये आशा (मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) हैं और उषा (शहरी सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता) कार्यकर्ता है जो मध्यप्रदेश में इस साल के अप्रैल के बाद से विरोध कर रहे हैं। 2 और 3 अक्टूबर को भोपाल के पॉलिटेक्निक चौक पर ये मज़दूर इकट्ठा हुए सरकार से स्थायी रोज़गार और वेतन में बढ़ोतरी की मांग की। राज्य भर में 16 जिलों से आए स्वास्थ्य कार्यकर्ताओ को मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के घर से 200 मीटर की दूरी पर 11 अक्टूबर प्रदर्शन के एवज में लाठियों और गिरफ्तारियो का सामना करना पड़ा। आशा श्रमिकों में से एक ममता राजवत  पुलिस की मार से गंभीर रूप से घायल हो गयी थी।

उसे अस्पताल ले जाया गया और वह तब तक वहां रही जब तक कि उन्हें होश नहीं आ गया। "हम मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं और समाज में हमारा काफी सम्मान हैं, लेकिन सरकार हमें बदस्तूर अपमानित कर रही है। गर्भावस्था से निपटने की बड़ी ज़िम्मेदारी होने के बावजूद, हमें कोई वेतन नहीं मिलता है। हम प्रोत्साहनों (काफी कम पैसे) पर काम करते हैं – जिसके लिए 25 दिनों के काम के लिए मात्र 6,200 रुपये मिलते है। "पूजा कन्नौजीया ने न्यूज़क्लिक को विरोध प्रदर्शन के दौरान बताया। उन्होंने कहा कि, "हमने शिशु मृत्यु दर और मातृ मृत्यु दर के लिए साल दर साल घटती  दर में उल्लेखनीय भूमिका निभाई है, और यहां तक ​​कि घटती प्रजनन दर में भी। फिर भी, हमें कुछ नहीं मिलता है। हमें पूरे हफ्ते और 24 घंटे काम करने और हर समय तैयार रहने के लिए  कहा जाता है।

इसके अलावा, नौकरशाही हमें कई अन्य कार्यो के अलावा खाना पकाने और त्योहारों के आयोजन से जुड़े सर्वेक्षण करने का काम भी देती है। "मीरा काशिय, डिण्डोरी जिले की एक आशा कार्यकर्ता, ने कहा कि वे (आशा कार्यकर्ताओं) एक मिनट के लिए भी खाली नहीं है हर दिन हर समय वे महिलाओं का घर- घर जाकर दौरा करती हैं, उनके बच्चों की जांच करते हैं  हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि हर कोई ठीक रहे। "इसके बाद, हम चार्ट भरते हैं और सारी कागजी कार्यवाही पूरी करते हैं। हम अक्सर आधी रात को अस्पतालों में महिलाओं को प्रसूति के दौरान ले जाते हैं। लेकिन बदले में हमें सरकार से क्या मिलता हैं? कुछ भी नहीं। चेहरे पर क्रोध और विद्रोही तेवर में उन्होंने कहा कि प्रोत्साहन/वेतन से घर का खर्चा नही चलता है त्यौहार मनाना तो दुर की बात " 

आशा ने सरकार बदालने की धमकी दी 

विरोध प्रदर्शन के दौरान महिलाएँ इतना उत्तेजित थी कि वे 'अभी करो जल्दी करो, हमको स्थायी करो, हमारे काम को नियमित करो के बड़े पैमाने पर नारे लगा रही थी और इन्ही गगनभेदी नारों ने साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ। भविष्य में होने वाले विधानसभा चुनावों के संबंध में वे बीजेपी की सरकार को भी धमकी दे रहे थे कि यदि उनकी मांग पूरी नहीं हुई तो "हर घर से हमारा नाता है, हमें सरकार बदलना आता है' और' मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के बारे में कहा, ‘मामा नही क़साई है, कंस का छोटा भाई है’। मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री चौहान को लोकप्रिय रूप से मामा कहा जाता है। लक्ष्मी कौरव और अमृता आनंद ने न्यूज़क्लिक को बताया कि पुलिस ने आशा श्रमिक लक्षमी और पांच अन्य के खिलाफ थाने में मामला दर्ज किया है। उन्हें केवल शिकायत संख्या दी गयी है लेकिन उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों की प्रकृति के बारे में नही बताया गया है। कई आशा और यूएसएचए कार्यकर्ताओं ने कहा कि वे मुख्यमंत्री से मिली थी, जिन्होंने वादा किया था कि सरकार उनकी मांगों को पूरा करने के लिए कुछ करेगी। "सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली हमारे बिना औंधे मुँह गिर जाएगी क्योंकि हम ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में काम करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हमारे काम के दम पर ही दावा करते हैं। फिर भी, हमारे साथ खराब व्यवहार हो रहा हैं। हम सम्मान का जीवन और जीने लायक वेतन चाहते हैं, जिसे संविधान में सुनिश्चित किया गया है। " मध्य प्रदेश में, एक आशा कार्यकर्ता ने कहा कि उन्हे  800 और 1000 रुपये प्रति माह मिलते है चूंकि यह भुगतान उनकी गतिविधियों से पूरी तरह से जुड़ा हुआ है। उदाहरण के लिए, उन्हे नौ महीने कई 'प्रसव पूर्व की देखभाल, और संस्थागत प्रसव के लिए 250 रुपये का भुगतान किया जाता है। अधिकांश अन्य राज्य एक निश्चित मानदंड प्रदान करते हैं जिससे इन प्रोत्साहन के जरीए कर्मचारियों का न्यूनतम वेतन सुनिश्चित किया जा सके।

बुरी दशा 
आशा और यूएसएचए को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिल पा रही है। वे आशा और उषा मज़दूर  (जो की निगरानी और स्वास्थ्य क्षेत्र में आशा कार्यकर्ताओं द्वारा उपलब्ध कराई गई सेवाओं के समन्वय का काम करती हैं) उनके लिए प्रति माह 10,000 रुपए और 25,000 आशा सह्योगिनी के लिए मांग की है। केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (एमएचएफडब्ल्यू) यह भी स्वीकार करता है कि आशा श्रमिक कई गांवों में लोगों के लिए चिकित्सा देखभाल के लिए संपर्क का पहला टापू है। और, इसलिए, उन्हें इस तथ्य से अवगत होना चाहिए कि वे बहुत बड़ा काम कर रहे हैं। खराब संचार व्यवस्था, बढ़ती पेट्रोल की कीमतें और महंगा परिवहन आशा श्रमिकों के लिए एक चुनौती है क्योंकि उन्हे गाँव- गाँव घूमना पड़ता है। एमएचएफडब्ल्यू की यह रिपोर्ट जुलाई 2017 में प्रकाशित हुई है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता को के बारे में रिपोर्ट कहती है कि उन्हे बैंक खातों को खोलने में और पैसा निकालने में बैंकिंग सेवाओं की खराब पहुंच के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। "आधार कार्ड केवल जिला मुख्यालय में उपलब्ध कराए गए हैं, और इन्हे पाने के लिए वे शहर में यात्रा करने में वे सक्षम नहीं हैं। आधार के साथ बैंक खातों द्वारा भुगतान जोड़ने के हालिया नियम से, "आशा मज़दूरों को समय पर भुगतान प्राप्त करना मुश्किल हो गया है,"। मध्य प्रदेश 28 नवंबर को विधानसभा चुनाव होने जा रहा है, और उत्तेजित आशा / उषा कार्यकर्ताओं ने राज्य भर में अपनी व्यापक पहुंच के साथ, चौहान सरकार के लिए एक गंभीर सिर दर्द बन सकता है।
 
 

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