हरियाणा: ‘किसान, जवान, पहलवान’ चुनावी नतीजों को कैसे आकार दे रहे हैं

हरियाणा कांग्रेस प्रचार मोड में। (तस्वीर साभार: हरियाणा कांग्रेस एक्स हैंडल)
हरियाणा में 10 साल तक राज करने के बाद भारतीय जनता पार्टी राज्य बैकफुट पर है। चुनाव प्रचार के दौरान (मतदान 5 अक्टूबर को है) पार्टी को किसान, जवान और पहलवानों के भारी गुस्से का सामना करना पड़ रहा है।
किसान इसलिए नाराज़ हैं कि, 2021 में नरेंद्र मोदी शासन द्वारा लाए गए कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन कर रहे किसानों के खिलाफ उठाए गए कठोर और अभूतपूर्व दंडात्मक कदमों और हरियाणा की भाजपा सरकार द्वारा आंदोलन करने के लिए उन्हें दिल्ली आने से रोका गया और उनकी अन्य मांगों को पूरा नहीं किया गया।
और जवान, भाजपा शासित केंद्र सरकार से इसलिए नाराज हैं क्योंकि उसकी अग्निवीर नीति के तहत भारतीय सेना में भर्ती होने वाले 75 फीसदी लोगों को चार साल तक नौकरी करने पर कोई पेंशन लाभ का प्रावधान नहीं दिया है। हरियाणा के युवा, फिर चाहे वे किसी भी जाति से हों, आमतौर पर आजीविका के लिए कृषि और सशस्त्र बलों में भर्ती को चुनते हैं या उसी पर निर्भर रहते हैं। इसलिए, एक जटिल अग्निवीर नीति ने मोदी शासन और भाजपा के खिलाफ उनके बीच भारी असंतोष पैदा कर दिया है।
और, ज़ाहिर है, हरियाणा के पहलवान, ख़ास तौर पर महिला पहलवान, जिन्होंने ओलंपिक जैसे अंतरराष्ट्रीय खेलों में पदक जीतकर देश का नाम रोशन किया, उनके साथ पुलिस ने तब बुरा बर्ताव किया जब उन्होंने भाजपा सांसद बृज भूषण शरण सिंह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया, जिन्होंने भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के तौर पर अपने कार्यकाल के दौरान कथित तौर पर उनका यौन उत्पीड़न किया था। ये पहलवान जाट समुदाय से हैं या फिर ग़रीब सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं। उन्होंने सिंह के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई जिसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया, जिसने उन्हें ऐसा करने का निर्देश दिया।
किसान, जवान और पहलवान का भाजपा के प्रति उबलता गुस्सा और पीड़ा पूरे देश के आक्रोश का प्रतिनिधित्व करती है, क्योंकि बढ़ती बेरोजगारी, महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार और बेतहाशा महंगाई के कारण मोदी शासन के 10 वर्षों के खिलाफ इन वर्गों में कड़वाहट बढ़ रही है।
किसान, जवान और पहलवान के संयुक्त आक्रोश ने भाजपा को एक ऐसी चुनावी स्थिति में पहुंचा दिया है, जहां 2019 में जीती गई सीटों के मुकाबले विधानसभा में उसके और भी ज्यादा सीटें हारने की मजबूत संभावना बन गई है। इस साल मई में हुए 18वें लोकसभा चुनाव में 10 में से पांच लोकसभा सीटें जीतने वाली पार्टी के लिए ऐसी निराशाजनक स्थिति की संभावना है। 2019 के आम चुनाव में उसने सभी 10 सीटें जीती थीं। इस बार कांग्रेस ने बाकी पांच सीटें जीत लीं। भाजपा का वोट शेयर भी गिरा है, जबकि कांग्रेस की स्थिति बेहतर हुई है।
जब अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पहलवान विनेश फोगट ने, हाल ही में संपन्न पेरिस ओलंपिक में अपनी योग्यता साबित की और पूर्व ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता को हराकर फाइनल में पहुंची, तो मोदी सरकार की ओर से किसी ने भी उन्हें शुभकामनाएं नहीं दीं थी। जब उन्हें फाइनल में प्रतिस्पर्धा करने के लिए अयोग्य घोषित कर दिया गया, क्योंकि उनका वजन 50 किलो की निर्धारित सीमा से सिर्फ 100 ग्राम अधिक पाया गया, तब प्रधानमंत्री ने आश्चर्य जताया कि उन्हें स्वर्ण या रजत पदक के लिए कुश्ती लड़ने की अनुमति नहीं दी जाएगी।
जब फोगाट भारत वापस आईं, तो दिल्ली एयरपोर्ट से लेकर हरियाणा में उनके गांव तक उनका जोरदार स्वागत किया गया, जहां उन्होंने 130 किलोमीटर की दूरी तय की। पेरिस ओलंपिक में अयोग्य घोषित किए जाने के बाद भारतीय अधिकारियों ने उनके साथ जिस तरह का व्यवहार किया, उससे पूरे देश और खासकर हरियाणा के लोग स्तब्ध रह गए। उनका अपमान महिलाओं के जीवन के हर क्षेत्र में कड़ी मेहनत करने के बावजूद उनके द्वारा झेले जाने वाले अपमान को दर्शाता है। अब वे कांग्रेस के टिकट पर जुलाना विधानसभा सीट से चुनाव लड़ रही हैं।
राहुल गांधी की रैली
इसी पृष्ठभूमि में हरियाणा के लोगों का भाजपा से मोहभंग होना और हरियाणा के चुनावी मैदान में कांग्रेस की लोकप्रियता में उछाल देखा जाना चाहिए। धारणा की लड़ाई में कांग्रेस भाजपा पर बढ़त लेती दिख रही है। राहुल गांधी की दो रैलियों ने मोदी की रैलियों के विपरीत अधिक लोगों को आकर्षित किया, जिन्हें ‘फ्लॉप शो’ के रूप में बताया गया था, जिससे कांग्रेस के लिए बेहतर चुनावी माहौल बना है।
राहुल गांधी की दूसरी रैली में कांग्रेस की प्रमुख दलित नेता कुमारी शैलजा की उपस्थिति और पार्टी के शीर्ष नेता, दो बार मुख्यमंत्री और चार बार सांसद रहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा की एक साथ उपस्थिति ने उनके बीच बहुचर्चित मतभेद को दूर कर दिया तथा उनकी एकता और एकजुटता की पुष्टि की है।
भाजपा की ध्रुवीकरण की रणनीति
हरियाणा की जनसांख्यिकी की स्थिति को देखते हुए, यहां मुस्लिमों की संख्या कम है और यह कभी भी भाजपा के विकास और विस्तार के लिए अनुकूल नहीं रहा है। हालांकि, 2014 में भाजपा ने अपने दम पर बहुमत हासिल कर सरकार बना ली थी। इसका श्रेय काफी हद तक उस साल मोदी के राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरने को दिया जा सकता है, खासकर उत्तर भारत में यह सच है।
हरियाणा में 2014 में भाजपा सरकार का आगमन और मुख्यमंत्री के रूप में एम एल खट्टर का चयन, जो पंजाबी हैं और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण जाट समुदाय से नहीं आते हैं, अनिवार्य रूप से चुनावी लाभ के लिए जाटों को गैर-जाटों के खिलाफ खड़ा करने की पार्टी की राजनीतिक रणनीति का परिणाम था। इसने सोचा कि गैर-जाटों में शामिल अन्य पिछड़े वर्गों, अन्य जातियों और दलितों को जाटों के खिलाफ इस्तेमाल करके समाज को राजनीतिक रूप से ध्रुवीकृत करने के लिए लामबंद किया जा सकता है ताकि भाजपा की सत्ता पर पकड़ बनी रहे।
इस साल मार्च में खट्टर को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया गया और एक कम चर्चित ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) नेता नायब सिंह सैनी को ओबीसी से भाजपा को वोट देने की अपील करने के उद्देश्य से नियुक्त किया गया। ऐसी योजना सफल नहीं हुई और अब राज्य के कई भाजपा नेताओं को लोग गांवों में घुसने और पार्टी के लिए प्रचार करने की इज़ाजत नहीं दे रहे हैं।
राज्य भाजपा नेतृत्व ने हिंदू वोट हासिल करने के लिए लोगों को धर्म के आधार पर ध्रुवीकृत करने के लिए हिंदुत्व का भी इस्तेमाल किया है। इसलिए, हरियाणा की छोटी मुस्लिम आबादी को निशाना बनाया गया और उनमें से कई को गौरक्षकों ने मार भी डाला, जिसका अक्सर सत्तारूढ़ पार्टी के नेताओं द्वारा बचाव किया जाता है।
शांतिपूर्ण मेवात इलाके में कुछ महीने पहले सांप्रदायिक तनाव फैलना, जहां मुसलमान सदियों से बिना किसी दंगे के रह रहे हैं, को भी भाजपा की हिंदुत्व के नाम पर गैर-जाटों को एकजुट करने और अपने चुनावी समर्थन आधार को मजबूत करने की रणनीति के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। इस तरह की दुखद हिंसा के साथ-साथ लोगों के घर भी तोड़ दिए गए, जिनमें से ज़्यादातर मुसलमान और कई हिंदू थे। हालांकि, हिंदुत्व के नाम पर ध्रुवीकरण की ऐसी रणनीति सफल नहीं हुई।
भाजपा नेतृत्व ने सोचा था कि अनुच्छेद 370 के तहत कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के बाद उसने पूरे देश में जो ध्रुवीकरण का माहौल बनाया था, उससे वह 2019 में हरियाणा में अपने 2014 के चुनावी प्रदर्शन को दोहरा पाएगा और पार्टी के लिए बहुमत हासिल कर पाएगा। मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने 2019 के विधानसभा चुनावों के दौरान प्रचार करते हुए भाजपा के लिए वोट मांगे थे, इस आधार पर कि मोदी शासन ने जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने में “असाधारण साहस दिखाते हुए” “इतिहास रचा” है। लेकिन पार्टी ने बहुमत खो दिया और उस साल जननायक जनता पार्टी (JJP) के समर्थन से सरकार बनाई, जिसके नेताओं ने पहले पीएम मोदी की कड़ी आलोचना की थी।
भाजपा को सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है
10 साल के शासन के बाद, भाजपा को भारी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है, हरियाणा में मोदी की लगातार दो चुनावी रैलियां, जिनका उद्देश्य कांग्रेस से आगे भाजपा को बड़ी बढ़त दिलाना था, विफल साबित हुई हैं। हरियाणा चुनावों के बारे में सोशल मीडिया में रुझानों पर नज़र रखने से यह स्पष्ट धारणा बन रही है कि मोदी की अपील में अब दम नहीं रहा है और लोग अब उनसे और उनके भाषणों से मोहित नहीं हैं।
इसके उलट, राहुल गांधी ने अपनी विशाल रैलियों में उपस्थित हजारों लोगों के दिलों को छू लिया है क्योंकि उन्होंने हरियाणा के कई युवाओं के कष्टदायक अनुभवों के बारे में बात की, जिन्होंने बिना पासपोर्ट (डुनकी मार्ग) के अवैध रूप से अमेरिका में प्रवेश करने के लिए लाखों रुपये खर्च किए, सिर्फ इसलिए कि उनके गृह राज्य में आजीविका कमाने की कोई उम्मीद नहीं थी। उन्होंने कहा कि उन्होंने अमेरिका में हरियाणा के एक व्यक्ति से मुलाकात की, जो अनिश्चित परिस्थितियों में रह रहा था और भारत वापस लौटने पर, गांधी हरियाणा के उसके गांव में उसके माता-पिता से मिले। उन्होंने उसके बेटे को एक वीडियो कॉन्फ्रेंस में पापा को देखने के बाद “पापा, पापा” चिल्लाते हुए देखा। रैली में राहुल का यह मार्मिक बयान कि जहां मोदी हरियाणा में अपने ब्रांड का प्रचार कर रहे हैं, वहीं उनके बच्चे अपने पिता को शारीरिक रूप से देखने और उन्हें अपने परिवारों में वापस लाने के लिए रो रहे हैं, उन्हें सुनने वालों की आंखों में आंसू आ गए। उन्होंने वादा किया कि कांग्रेस इन आंसुओं को पोंछ देगी।
कांग्रेस नेता का सामाजिक न्याय और जाति जनगणना पर जोर लोगों को संविधान बचाने के मुद्दे से जोड़ता है जो 18वें आम चुनावों के दौरान चुनावी मुद्दा बन गया था।
भाग्य के साथ एक नया साक्षात्कार
अगर हरियाणा के लोग भाजपा को नकार देते हैं और “किसान, जवान और पहलवान” के मुद्दों पर कांग्रेस को चुनते हैं, तो इससे राहुल गांधी का कद और बढ़ जाएगा और मोदी से कहीं आगे निकल जाएगा, जो लोकसभा में भाजपा के बहुमत खोने के साथ ही काफी कमजोर हो जाएगा। इसका एक व्यापक प्रभाव भी होगा और भाजपा और मोदी को महाराष्ट्र (विधानसभा चुनाव होने वाले हैं) में सत्ता हासिल करने के लिए मतदाताओं का सामना करना मुश्किल हो सकता है।
हरियाणा चुनाव के नतीजे, भारत के संविधान और संवैधानिक दृष्टिकोण को कायम रखने के लोगों के प्रयास में एक प्रकार से देश का भविष्य को तय करने के रूप में सामने आए हैं।
एस एन साहू, भारत के राष्ट्रपति के आर नारायणन के ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटि थे। ये उनके निजी विचार हैं।
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें–
Haryana: How ‘Kisan, Jawan, Pehelwan’ Are Shaping Electoral Outcome
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