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कैसे कैथल का यह सरकारी स्कूल हरियाणा की शिक्षा व्यवस्था की पोल खोल रहा है?

ग्राउंड रिपोर्ट: कैथल के बालू गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के छात्रों ने स्कूल की जर्जर इमारत और शिक्षकों की कमी को लेकर हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी सरकारी उदासीनता के चलते छात्रों की समस्याएं बरकरार हैं।
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कैथल: 2017 के अक्टूबर महीने में हरियाणा के शिक्षा विभाग में उस समय हड़कंप मच गया जब बालू गांव के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में पढ़ने वाले सात छात्रों ने स्कूल की जर्जर इमारत और शिक्षकों की कमी को लेकर चंडीगढ़ हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। कक्षा छठी से दसवीं तक के सात छात्र अमरजीत, अभिषेक, सौरभ, अजय, मंदीप, सावन, विकास ने अपने वकील प्रदीप रापड़िया के माध्यम से हाई कोर्ट के सामने स्कूल की दयनीय स्थिति की जानकारी दी।

कोर्ट में दायर की गई याचिका में कहा गया कि संविधान के अनुच्छेद 21 (ए) के तहत बच्चों को मुफ्त शिक्षा व अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार दिया गया है लेकिन स्कूल की टूटी हुई इमारत और शिक्षकों के न होने की स्थिति में यह मौलिक अधिकार किसी काम का नहीं है।

याचिका में यह भी कहा गया कि कई साल से स्कूल की इमारत की हालत खस्ता बनी हुई है और इसे जर्जर घोषित किया जा चुका है। इसके अलावा आधे से ज्यादा सेशन बीत जाने के बाद भी स्कूल में विज्ञान व गणित जैसे अनिवार्य विषयों के लिए भी टीचर नहीं है।
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इस आवेदन में ये भी बताया गया था कि स्कूल में छात्रों के लिए पीने के पानी और शौचालय का भी समुचित इंतजाम नहीं है। छात्रों ने इससे पहले स्थानीय अधिकारियों को पत्र लिखा था लेकिन जब उन्होंने कुछ नहीं किया तो छात्रों को कोर्ट का सहारा लेना पड़ा।

अब क्या हैं हालात?

इस मामले पर हाई कोर्ट ने संज्ञान लेते हुए हरियाणा सरकार को नोटिस जारी किया। कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि वो हलफनामा दायर कर कोर्ट को यह बताए कि हरियाणा के सरकारी स्कूलों में टीचरों के कितने पद खाली हैं और कितने स्कूलों में लड़के व लड़कियों के लिए पीने के पानी व शौचालय की समुचित व्यवस्था है? इसके साथ ही कोर्ट ने कैथल के जिला शिक्षा अधिकारी व बालू स्कूल के प्रिंसिपल को भी नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा।

हाई कोर्ट द्वारा जवाब मांगे जाने के बाद 1974 में बने जर्जर 14 कमरों को गिरा दिया गया और 5 नए कमरों का निर्माण किया गया। इसके लिए राज्य सरकार ने 20 लाख रुपये का फंड दिया। दिसंबर 2017 में भवन निर्माण का कार्य शुरू हुआ जो 2018 में बनकर तैयार हुआ। आनन फानन में स्कूल में शिक्षकों की व्यवस्था की गई।

इस मामले में छात्रों के वकील प्रदीप रापड़िया कहते हैं,'बालू के स्कूल में बच्चों द्वारा याचिका दायर करने के बाद कुछ सुधार हुआ लेकिन हरियाणा सरकार ने आज तक हाई कोर्ट में हलफनामा दायर करके यह नहीं बताया है कि पूरे राज्य में टीचरों के कितने पद खाली हैं और कितने स्कूलों में लड़के व लड़कियों के लिए पीने के पानी व शौचालय की समुचित व्यवस्था है।'

हालांकि पुराने कमरों को गिरा देने के बाद स्कूल प्रशासन के सामने एक नई तरह की समस्या खड़ी हो गई है। स्कूल में काम करने वाले एक शिक्षक ने बताया कि इस सत्र में स्कूल में छह से लेकर 12 वीं तक कुल 450 बच्चों का एडमिशन हुआ है। इन छात्रों को कुल 11 सेक्शन में बांटा गया है लेकिन अब हमारे पास बच्चों को बैठाने के लिए कुल पांच कमरे बचे हैं। हाई कोर्ट के आदेश के बाद भी बच्चों के बैठने की समस्या बरकरार है। साथ ही इस सेशन में स्कूल में प्रिंसिपल, इंग्लिश और हिंदी के पीजीटी टीचर व इलेमेंटरी हेडमास्टर की पोस्ट खाली है।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार ने हाई कोर्ट में तो जवाब दे दिया लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते हालात बदले नहीं है। इस स्कूल में अड़ोस पड़ोस के कई गांवों के बच्चे पढ़ने आते हैं और बालू गांव की आबादी भी 18 हजार से ज्यादा है। ऐसे में बच्चों के सामने आप्शन बहुत ज्यादा नहीं है। यहां सिर्फ दसवीं तक साइंस पढ़ाई जाती है। 11वीं और 12वीं में सिर्फ मानविकी की पढ़ाई की जाती है। इसके चलते बड़ी संख्या में छात्रों को शहर जाना पड़ता है। बहुत सारे गरीब बच्चों और लड़कियों को जबरदस्ती मानविकी की पढ़ाई करनी पड़ती है।

आपको बता दें कि हाईकोर्ट में याचिका दायर करने वाले एक छात्र अभिषेक अब आईआईटी की तैयारी कर रहे हैं। याचिका दायर करने के बाद जब हालात में कुछ सुधार हुआ तो अभिषेक ने बोर्ड के परीक्षा परिणाम में 96 प्रतिशत व सुपर-100 में 35वां रैंक हासिल करके दिखा दिया कि शिक्षा के अधिकार के लिए उनकी लड़ाई जायज थी। अभिषेक के पिता ड्राइवर व मां गृहिणी हैं।

दरअसल हरियाणा सरकार की एक योजना के तहत दसवीं में 80 फीसदी से ज्यादा अंक पाने वाले सरकारी स्कूलों के छात्रों को सुपर-100 की चयन परीक्षा में बैठने का अधिकार था।

चयनित बच्चों को सरकार की ओर से आईआईटी, जेईई और एनआईईटी दाखिलों के लिए फ्री कोचिंग मिलती है। रहने व खाने का प्रबंध भी सरकार ही करती है। इन विद्यार्थियों को रेवाड़ी के सरकारी स्कूल में दाखिला देकर वहीं 11वीं-12वीं की पढ़ाई कराई जा रही है और दो साल की कोचिंग दी जा रही है।

इस पूरे मामले पर शुरुआत से ही नजर रखने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सुनील रवीश कहते हैं, 'बालू का मामला यह दिखाता है कि हरियाणा की मनोहर लाल खट्टर सरकार शिक्षा को लेकर कितना उदासीन है। अभिषेक जैसे छात्र अगर अपनी लड़ाई खुद न लड़ते तो शायद उनका सुपर 100 में चयन भी नहीं हो पाता। अफसोस की बात यह है कि इतनी लंबी लड़ाई लड़ने के बाद भी हालात में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है। अब भी स्कूल में टीचर और इमारत नहीं है। खास बात यह है कि विपक्षी पार्टियां भी इसे चुनावी मुद्दा नहीं बना रही हैं।'

क्या है हरियाणा में शिक्षा की स्थिति?

अगर हम आंकड़ों को देखें तो हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर की सरकार आने के बाद से शिक्षा में किए जाने वाले खर्च में गिरावट आई है। 2010-11 में जहां हरियाणा अपने कुल बजट का 17.3 प्रतिशत खर्च शिक्षा पर कर रहा था तो 2013-14 में यह घटकर 15.4 प्रतिशत हो गया। 2014-15 में 16.9 प्रतिशत था। उसके बाद 2015-16, 2016-17, 2017-18, 2018-19 और 2019-20 में यह क्रमश: 12.3, 13.7, 13.4, 13.2, 13.0 प्रतिशत है।
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सक्षम हरियाणा एजुकेशन पोर्टल के अनुसार पूरे राज्यभर में स्कूलों में 1 लाख 49 हजार पदों की स्वीकृति है जिसमे से 41 हजार पद रिक्त हैं। ऐसे इतनी बड़ी संख्या में पद रिक्त होने से प्रदेश के बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर सीधा असर होता है।

प्रथम एजुकेशन फाउंडेशन की रिपोर्ट "असर" के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार हरियाणा में बड़ी संख्या में मिश्रित कक्षाएं चल रही, रिपोर्ट में बताया गया है कि प्रदेश के 41 प्रतिशत प्राथमिक विद्यालयों में कक्षा 2 के बच्चे एक या अधिक अन्य कक्षाओं के साथ बैठ रहे है और 36 प्रतिशत विद्यालयों में कक्षा 4 के बच्चे अन्य कक्षाओं के साथ बैठ रहे है और इसके साथ ही मिश्रित कक्षाओं के मामले में उच्च प्राथमिक विद्यालयों में भी यही समान स्थिति है। मिश्रित कक्षाओं के यह आंकड़े बताते हैं कि स्कूलों में भारी संख्या में टीचरों की कमी के साथ साथ स्कूलों में कमरों की भी कमी है।

क्या वादे हैं प्रमुख राजनीतिक दलों के?

हालांकि हरियाणा विधानसभा चुनाव में शिक्षा कोई बड़ा चुनावी मुद्दा नहीं है लेकिन कांग्रेस और बीजेपी दोनों ने अपने घोषणा पत्रों में इससे संबंधित वादे किए हैं।

कांग्रेस ने अपने संकल्प पत्र में कहा है कि हर जिले में एक यूनिवर्सिटी और मेडिकल कॉलेज बनेगा। 10वीं कक्षा के विद्यार्थियों को सालाना 12 हजार और 12वीं कक्षा के विद्यार्थियों को सालाना 15 हजार वजीफा दिया जाएगा। साथ ही हर सरकारी संस्था में मुफ्त वाईवाई जोन बनाया जाएगा और शिक्षक भर्ती के लिए विशेष अभियान चलाया जाएगा। हर गांव में एक मुफ्त कोचिंग सेंटर सरकार द्वारा चलाया जाएगा। साथ ही शैक्षणिक रूप से पिछड़े इलाकों में लड़कियों के लिए मुफ्त आवासीय विद्यालय खोले जाएंगें।

वहीं बीजेपी ने अपने घोषणा पत्र में कहा है कि राज्य में 10वीं तक जीरो ड्रॉप आउट रेट होने के लिए कदम उठाए जाएंगे। बीजेपी डिजिटल लिटरेसी मिशन की शुरुआत करेगी, जिसके तहत हरियाणा के प्रत्येक ब्लॉक में डिजिटल लैब नेटवर्क का निर्माण किया जाएगा। सभी सरकारी यूनिवर्सिटी और कॉलेज परिसरों में मुफ्त वाई फाई की सुविधा सुनिश्चित की जाएगी।

हालांकि राजनीतिक दल अपने वादों पर कितने खरे उतरते हैं। यह देखने वाली बात होगी लेकिन बालू के सरकारी स्कूल की हकीकत वाकई में परेशान करने वाली है।

(सभी आंकड़े पीयूष शर्मा के सहयोग से) 

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