Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

मुंबई : 22 साल के सघंर्ष के बाद 580 सफ़ाई कर्मचारियों की बड़ी जीत

औद्योगिक न्यायालय ने आख़िरकार, ग्रेटर मुंबई की नगरपालिक परिषद को सफ़ाई कर्मचारियों का सारा बक़ाया चुकाने और नगरपालिक परिषद में उन्हें 'स्थायी कर्मचारी' बनाने का निर्देश दिया है।
मुंबई : 22 साल के सघंर्ष के बाद 580 सफ़ाई कर्मचारियों की बड़ी जीत

दादाराव पाटेकर ने 1996 में बृहन्मुंबई नगरपालिक परिषद (जिसे पहले बृहन्मुंबई नगर निगम या BMC के नाम से जाना जाता था) में सफ़ाई कर्मचारी के तौर पर अपनी सेवाएं शुरू की थीं। 1999 में उन्हें ठेके पर काम करने के लिए 'स्वयंसेवी' के तौर पर शामिल कर लिया गया। इसके बाद उन्होंने स्थायी कर्मचारी के तौर पर अपनी पहचान पाने के लिए लंबी न्यायिक लड़ाई लड़ी। 22 साल बाद औद्योगिक न्यायालय ने आखिरकार MCGM को निर्देश दिया कि वे पाटेकर और 580 सफ़ाई कर्मचारियों की सारी बकाया राशि लौटा दें और नगर परिषद में उनका दर्जा स्थायी कर्मचारियों का करें।

पाटेकर दादाराव कहते हैं, "मैं खुश हूं। हम सभी को स्थायी कर्मचारी नियुक्त कर दिया गया है। बीते सालों में चाहे गर्मी हो या बारिश, हम हर एक दिन काम पर जाते रहे हैं। लेकिन BMC हमारे काम को मान्यता नहीं दे रही थी। आखिरकार कोर्ट ने हमें न्याय दिया है, जिसका हमें लंबे वक़्त से इंतज़ार था।"

लेकिन जिन 580 सफ़ाई कर्मचारियों को स्थायी कर्मचारी के तौर पर पहचान मिली है, उनमें से 54 बीते 22 सालों में जान गंवा चुके हैं। इन 580 कर्मचारियों में शामिल अरुण दाहिवालकर की 2014 में मौत हो गई थी। तबसे उनकी पत्नी घरेलू नौकर के तौर पर काम कर अपने बच्चों की परवरिश कर रही थीं। उन्होंने कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे उन्हें उनके बच्चों को बड़ा करने में मदद मिलेगी। वह कहती हैं, "हर तारीख़ पर अरुण कोर्ट जाते थे। उन्हें स्थायी होने की बहुत आशा थी। वह यह बर्दाश्त नहीं कर सकते थे कि उनकी लड़ाई का कोई मतलब ही ना निकले। आज वह जहां भी हैं, वहां बहुत खुश होंगे।"

MCGM के खिलाफ़ सफ़ाई कर्मचारियों का यह लंबा संघर्ष आसान नहीं था। 1999 में दायर किए गए केस के पहले दिन से ही परिषद लगातार कहती रही कि यह लोग उनके कर्मचारी नहीं हैं। परिषद का कहना था कि "यह लोग सफ़ाई विभाग में काम करने वाले स्वयंसेवी हैं। चूंकि यह लोग स्वयंसेवी हैं, इसलिए इन्हें वेतन नहीं दिया जा सकता, लेकिन परिषद इन्हें भत्ता देती हैं।" पिछले 22 सालों से परिषद यही कहती आई। 

कचरा वाहतुक श्रमिक संघ के नेता दीपक भालेराव ने कोर्ट में इस तर्क को बदल दिया। भालेराव ने कहा, "BMC ने सफ़ाई कर्मचारियों की भर्ती के लिए विज्ञापन दिया था। यह स्वयंसेवकों के लिए नहीं था। यह लोग सड़कों और कचरा वाहनों में जो काम करते हैं, वह सफ़ाई कर्मचारियों से किसी भी तरह अलग नहीं है। ऐसे मामलों में इन लोगों को स्वयंसेवी कहना, सिर्फ़ उन्हें स्थायी कर्मचारी का दर्जा ना देने की कोशिश है।"

एक दूसरी चुनौती काम वाले दिनों की थी। किसी कर्मचारी को स्थायी घोषित करने के लिए, संबंधित शख़्स को 240 दिन तक लगातार काम करना होता है। लेकिन MCGM अलग-अलग सामाजिक संगठनों को सफ़ाई का काम ठेके पर दे देती, यह संगठन सिर्फ़ सात महीने या 220 दिन का ही काम देते। यह कागज़ पर था।

यही सफ़ाई कर्मचारी लगातार काम करते रहे, लेकिन उनका कांट्रेक्ट हर सात महीने में एक संगठन से दूसरे के साथ बदल दिया जाता। इस तरह इन लोगों को स्थायी कर्मचारी बनने से रोका जा रहा था। इसका खुलासा कामग़ार संगठन के महासचिव मिलिंद रानाडे ने किया, उन्होंने साबित किया कि कामग़ारों के साथ इन संगठनों और परिषद द्वारा धोखा किया जा रहा है। 

MCGM में सफ़ाई कर्मचारियों की संख्या 28,082 है। लेकिन यह संख्या आखिरी बार 1995 में दर्ज की गई थी। तबसे मुंबई कई गुना ज़्यादा बढ़ चुका है। भालेराव कहते हैं, "लेकिन BMC सफ़ाई कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने के लिए तैयार नहीं थी। कांट्रेक्ट के तहत काम पर रखने वाली यह व्यवस्था पूरी तरह फर्जी थी। कोर्ट के आदेश से यह साबित भी हो गया है।"

MCGM ने तर्क दिया कि महाराष्ट्र की राज्य सरकार भी उन्हें इस संबंध में आदेश नहीं दे सकती, क्योंकि राज्य सरकार ने सफ़ाई कर्मचारियों के बारे में लाड-पेज आयोग की अनुशंसाओं को माना है। आयोग ने सफ़ाई कर्मचारीयों को स्थायी करने की सलाह दी थी। 

लेकिन यह अकेला मामला नहीं है। कचरा वाहतुक श्रमिक संघ ने 2006 में 1,240 मज़दूरों और 2017 में 2,700 मज़दूरों के लिए भी केस जीता था। फिलहाल 5,876 सफ़ाई कर्मचारियों वाले तीन ऐसी ही केस कोर्ट में लंबित पड़े हुए हैं।

रानाडे कहते हैं, "हमें भरोसा है कि हम उनके सभी केस जीतेंगे। BMC के सफ़ाई कार्य के लिए ऐसे 8000 कांट्रेक्ट के तहत काम करने वाले कामग़ार हैं। BMC को इन सभी को स्थायी बनाना चाहिए। हम अपनी बात साबित करेंगे और जीतकर रहेंगे।"

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

Huge Victory for 580 Sanitation Workers in Mumbai After 22 Years of Struggle

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest