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मध्य प्रदेश: खंडवा में सफ़ाई कर्मियों की भूख हड़ताल जारी, चक्का जाम पर मुक़दमा दर्ज

स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 की स्पर्धा में खंडवा देश में 12वें और प्रदेश में तीसरे स्थान पर था। हालांकि इसे साफ़ रखने का काम करने वाले नगर निगम सफ़ाई कर्मी बीते लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
Sanitation Workers' Protest

मध्य प्रदेश के खंडवा का नाम आमतौर पर सफाई में स्टार रेटिंग के लिए मशहूर है लेकिन बीते कुछ समय से ये शहर सफाई कर्मचारियों के प्रदर्शन और भूख हड़ताल के लिए सुर्खियों में बना हुआ है। स्थाईकरण समेत अपनी अन्य मांगों को लेकर निगम तिराहे पर पिछले 17 दिन से धरने पर बैठे सैकड़ों सफाई कामगारों को अभी तक शासन-प्रशासन की ओर से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला है। इन कर्मचारियों का कहना है कि इन्हें प्रदेश भर के सफाई कर्मचारी संगठनों का भी समर्थन मिल रहा है और जब तक इनकी सभी मांगें नहीं मान ली जाती तब तक ये अपना आंदोलन जारी रखेंगे।

बता दें कि इससे पहले भी कई बार ये सफाई कर्मचारी अपनी मांगों को लेकर ज्ञापन, आवेदन, धरना प्रदर्शन कर चुके हैं। बीते रोज़ मंगलवार, 25 जुलाई को आमरण अनशन पर बैठीं रंजीता चौहान की तबीयत बिगड़ गई, जिसके बाद उन्हें जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया। खबरों के अनुसार इसी दिन निगम तिराहे पर चक्काजाम के आरोप में कई सफाई कामगारों पर थाना कोतवाली में भीड़ को उकसाकर न्यूसेंस फैलाने का मामला भी दर्ज हुआ है। सफाई कर्मचारी इसे प्रशासन द्वारा आवाज़ दबाने का ज़रिया बता रहे हैं।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक खंडवा नगर निगम के करीब 400 से 500 सफाई कामगार अनियमित हैं। ये सभी विनियिमित सफाई मित्र, संविदा, अंशकालीन, रोस्टर या आउटसोर्स पर नियुक्त हैं। इन सफाईकर्मियों को 7 हज़ार से 11 हज़ार तक भुगतान नगर निगम करता है। इन्हें रहने के लिए भी सालों पहले निगम ने पट्टा दिया था, आरोप है कि अब उसे सरकारी ज़मीन बताकर वापस लेने की कवायद शुरू कर दी गई है। इन कर्मचारियों गंभीर आरोप लगाते हुए बताया कि इन्हें वेतन के अलावा कोई अन्य सुविधा नहीं मिलती, यहां तक की वेतन भी कभी समय से नहीं मिलता।

सफाई कर्मचारियों का पूरा संघर्ष तीन सूत्रीय मांगों को लेकर है, जिसमें कामगारों को स्थायी करने के साथ ही आवास का मालिकाना हक दिलाने और विनियमितीकरण योजना समाप्त करने की मांग शामिल है। इन कर्मचारियों की मानेंं तो इन्हें पीएफ यानी कर्मचारी प्रोवीडेंट फंड की सुविधा भी नहीं मिलती क्योंकि इनकी तनख्वाह ही समय से नहीं आती, कभी महीने की 14-15 तारीख तो कभी उससे भी देर। ऐसे में आउटसोर्सिंग कंपनियां नियमित समय से सैलरी न आने का बहाना देकर इनका पीएफ भी नहीं जमा करतीं।

"विनियमितीकरण, ठेका प्रथा समाप्त हो"

बीते 16 दिन से भूख हड़ताल पर बैठीं रंजीता चौहान न्यूज़क्लिक को बताती हैं कि "वो और उनके साथी बीते लंबे समय से कई दिक्कतों का सामना कर रहे हैं। अलग-अलग जगह से सभी की नियुक्ति होने के चलते सभी को एक साथ, एक बराबर सैलरी नहीं मिलती। वहीं कमीशनर कहते हैं कि तुम्हारे वेतन के लिए हम 'गुल्लक में पैसे जोड़ते हैं', ऐसा क्यों है? क्या सफाई कर्मियों के लिए निगम का अपना कोई फंड नहीं है या सरकार ही पैसा नहीं दे रही, इसका सारा झोल तब समाप्त हो जाएगा जब विनियमितीकरण समाप्त होगा।"

रंजीता कहती हैं कि "साल 2018 में सरकार नेे खुद मंच से कहा था कि हर साल 10 प्रतिशत अनियमित कामगारों को नियमित किया जाएगा, फिर आज तक किसी को पक्का क्यों नहीं किया गया। क्या शासन-प्रशासन को सफाई कर्मचारियों की दिक्कतें नहीं दिखाई देती, जो दिन रात एक करके शहर, जिले को साफ रखते हैं। सबसे मेहनत का काम करते हैं और वेतन भी आधा-अधूरा मिलता है।"

धरने पर बैठे कई कामगारों का कहना है कि "उन्हें पूरे प्रदेश के सफाई कर्मचारियों का समर्थन मिल रहा है और कुछ राज्यों के सफाई कर्मचारी संगठन भी उन्हें अपना सहयोग दे रहे हैं। ऐसे में आने वाले दिनों में अगर उनकी मांगें नहीं मानी जाती, तो प्रदेश भर में बड़ा आंदोलन होगा। सभी सफाई कर्मी पूर्ण काम बंदी करके धरने पर बैठ जाएंगे, जिसकी ज़िम्मेदारी भी सरकार और निगम की ही होगी।"

काम ज़्यादा, भुगतान कम

सफाई कर्मचारियों ने अपनी अन्य समस्याओं के बारे में बताया कि "उनसे अवकाश के दिन भी कार्य करवाया जाता है और इसका कोई अतिरिक्त भुगतान नहीं किया जाता। कई बार कुछ गलत वजहों का आरोप लगाते हुए कई कर्मचारियों की सेवा भी समाप्त कर दी गईं हैं, क्योंकि ठेका प्रथा को अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाने वाले लोग खटकते हैं। इसके अलावा ठेकेदारों और आउटसोर्सिंग कर्मचारियों द्वारा कर्मचारियों का शोषण किया जाता है और यदि किसी कार्यरत सफाई कर्मचारी की सेवा में रहते हुए आकस्मिक मृत्यु हो जाती है, तो उसके परिवार को अब अनुकंपा नियुक्ति भी नहीं दी जाती। सेवानिवृत्ति के समय भी मात्र 1 लाख रुपए देकर पूरा मामला निपटा दिया जाता है, जो बेहद कम राशि है।"

धरना स्थल पर मौजूद अभिनव बताते हैं कि "इन सफाई कामगारों को श्रमिकों के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया है, क्योंकि अब इन्हें श्रमिक की कैटेगरी से ही सरकार ने हटा दिया है। ऐसे में इन कर्मचारियों के सामने नौकरी, वेतन, रिटायरमेंट संबंधी कई दिक्कतें हैं, मौजूदा समय में आर्थिक, रहने-खाने की समस्याएं हैं, लेकिन इसका निपटारा या सुनवाई श्रमिक के तौर पर ये कहीं नहीं करवा सकते हैं। ये एक तरीके से अन्याय है।"

ध्यान रहे कि खंडवा, स्वच्छ सर्वेक्षण 2022 की स्पर्धा में देश में 12वें और प्रदेश में तीसरे स्थान पर था। हालांकि इसे साफ रखने का काम करने वाले नगर निगम सफाई कर्मी बीते लंबे समय से अपनी मांगों को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। ऐसे में इस साल मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं। क्या शिवराज सिंह चौहान की सरकार इन्हें संतुष्ट कर पाएगी या ये सफाई कर्मी आगे चलकर बीजेपी सरकार के लिए नई चुनौती बनेंगे, इसकी तस्वीर आने वाले कुछ दिनों में साफ हो जाएगी। फिलहाल इन सफाई कर्मचारियों का ये विरोध लगातार और अनिश्चितकाल तक जारी रहने की बात कही जा रही है।

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