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ई-फ़ार्मेसी पर रोक : बिना नियम-कायदे के दवा की बिक्री ख़तरनाक़

"बिना डॉक्टरी परामर्श के कोई भी दवाई लेना गलत है। कई ऐसी दवाइयां हैं जिनकी बिक्री बंद है परंतु वो ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हैं।”
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: ET Tech

नव उदारवादी नीतियों के बाद बाज़ार शब्द की परिभाषा में विस्तार हुआ। अब बाज़ार केवल दुकानों के समूह तक सीमित नहीं हैं बल्कि एक नए क़िस्म के आभासी बाज़ार के रूप में सामने आया है, जिसे ई-बाज़ार कहा जाता है। ई-बाज़ारों के उदय के बाद, जहाँ बाज़ारों के स्वरूप में बदलाव आया वहीं ग्राहकों के बाज़ार के प्रति सोच भी बदली। अब ग्राहकों को बाज़ार तक जाने की नहीं बल्कि बाज़ार खुद ग्राहकों के दरवाज़े तक आ गया। कई ई-कॉमर्स वेबसाइटस् अब ग्राहकों के लिए उपलब्ध हैं, जहां वे कपड़ों से लेकर इलेक्ट्रनिक्स और घर की सब्जियों से लेकर दवाइयों तक सभी कुछ घर बैठे मंगा सकते हैं। जिनके लिए प्रायः ग्राहकों को बाज़ार तक जाना पड़ता था। 

दिसंबर 2016 की मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार ई-कॉमर्स वेबसाइटस् का भारत में बाज़ार करीब 2 लाख करोड़ से ज्यादा का है, जिसके 2020 तक दुगुना होने के कयास लगाए जा रहे हैं। भारत में इतने बड़े ई-बाज़ार का एक बड़ा हिस्सा "ई-फ़ार्मेसी" का है; परंतु ई-फ़ार्मेसी पर बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए बैन लगा दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट ने देशभर में ऑनलाइन दवाइयों की बिक्री पर पूर्णरूप से रोक लगा दी है। 

क्या है "ई-फ़ार्मेसी"?

"ई-फ़ार्मेसी", ऑनलाइन बाज़ार का एक प्रकार है, जिसके अंदर ग्राहक घर बैठे डॉक्टरी सलाह के अनुसार दवाई मंगा सकते हैं। देश में कई बड़ी ई-फ़ार्मेसी कंपनियां हैं- नेटमेड्स, प्रैक्टो और मेडलाइफ इनमें प्रमुख हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में तक़रीबन 780 अरब रुपये का दवा बाज़ार है, जिसमें ऑनलाइन दवा बाज़ार या कहें ई-फ़ार्मेसी की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। ऐसे में तमाम ऑनलाइन दवा कंपनियां आधिपत्य स्थापित करना चाहती हैं। वही दूसरी ओर ऑफलाइन स्टोर दवा विक्रेताओं की इससे परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।  जिस कारण पिछले कई सालों में दवा स्टोर विक्रेताओं के समूह कई बार ऑनलाइन दवा बिक्री के विरोध में हड़ताल और प्रदर्शन कर चुके हैं।  

ऑफलाइन स्टोर दवा विक्रेताओं का कहना है कि ई-फ़ार्मेसी कंपनियां ऑनलाइन दवा बिक्री में कानूनों का पालन नहीं कर रही हैं। ड्रग एंड कॉस्मेटिक एक्ट,1940 और फ़ार्मेसी एक्ट 1948, देश में ऑनलाइन दवा बिक्री का विरोध करती हैं। खुदरा दवा विक्रेताओं के शीर्ष संगठन एआईओसीडी (All India Origin Chemists and Distributors Ltd.) ने दवाओं की ऑनलाइन बिक्री को 'अवैध' बताते हुए राष्ट्रव्यापी हड़ताल भी की थी, जिसमे देश भर में करीब आठ लाख दवा विक्रेता शामिल हुए थे।   

वहीं दूसरी ओर ई-फार्मेसी कंपनियों का दावा है कि वह सभी प्रकार के नियमों का पालन करते हैं।  

बुधवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए देशभर में ऑनलाइन दवाईयों की बिक्री पर पूर्णरूप से रोक लगा दी है। कोर्ट ने यह फैसला दिल्ली के डर्मिटोलॉजिस्ट ज़हीर अहमद की याचिका पर दिया। ज़हीर अहमद की याचिका में कहा गया था कि लाखों की संख्या में  दवाएं इंटरनेट पर बिना किसी नियम कानून के बेचीं जा रहीं हैं। जिस कारण मरीज़ों की जान को खतरा तो है ही साथ में डॉक्टर्स के लिए भी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। 

याचिका में सरकार की मंशा पर भी सवाल खड़े किए गए हैं। याचिका के मुताबिक दवाइयों की ऑनलाइन बिक्री को लेकर सरकार कुछ भी ठोस कदम नहीं उठा रही है। ऑनलाइन दवा-विक्रेता बिना लाइसेंस के दवाइयां बेच रहे हैं। कई दवाइयां ऐसी होती हैं, जिनका सेवन बिना डॉक्टरी परामर्श के नहीं किया जा सकता। लेकिन, उनकी बिक्री आसानी से उपलब्ध है। याचिका में बताया गया है कि सरकार भी इस बात से अवगत है। हालांकि, सितंबर में केंद्र सकार ने ऑनलाइन दवाइयों की बिक्री से संबंधित नियम का ड्राफ्ट तैयार किया था। जिसके मुताबिक दवाइयों की बिक्री रजिस्टर्ड ई-फॉर्मेसी पोर्टल के जरिए ही की जा सकती है। दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति वीके राव की पीठ ने याचिका पर अंतरिम आदेश दिया, जिसमें दवाओं की ऑनलाइन 'गैरकानूनी' बिक्री पर रोक लगाने की मांग की गई। अदालत ने इससे पहले इस याचिका पर केंद्र, दिल्ली सरकार, केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन, भारतीय फार्मेसी परिषद से जवाब मांगा। डॉक्टर जहीर अहमद द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि दवाओं की ऑनलाइन गैरकानूनी बिक्री से दवाओं के दुरुपयोग जैसी समस्याएं पैदा हो सकती हैं। जिसे कोर्ट ने स्वीकार किया और ऑनलाइन दवाइयों की बिक्री पर रोक लगा दी।  

इसी विषय पर न्यूज़क्लिक ने ग्रेटर नोएडा में डॉक्टर कमल भूषण से बात की। डॉ. कमल भूषण ने बताया कि "बिना डॉक्टरी परामर्श के कोई भी दवाई लेना गलत है। कई ऐसी दवाइयां हैं जिनकी बिक्री बंद है परंतु वो ऑनलाइन आसानी से उपलब्ध हैं। इस लिहाज़ से देखें तो दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला सराहनीय है परंतु इससे उन मरीजों को परेशानी उठानी पड़ेगी जो बाज़ार जाकर दवाई खरीदने में असमर्थ हैं 

वहीं डॉ ज़हीर अहमद की तरफ़ से याचिका दायर करने वाले नकुल मोहता ने मीडिया से बातचीत करते हुए बताया कि "हमने याचिका सरकार के खिलाफ की है। सरकार की नाक के नीचे दवाइयों की ऑनलाइन अवैध बिक्री हो रही है, जिससे मरीजों की सेहत के साथ खिलवाड़ हो रहा है। ज्यादा फायदा कमाने के लिए बिना डॉक्टर के प्रिस्क्रिप्शन के दवाइयां बेचीं जा रही हैं जिन पर जल्दी से जल्दी रोक लगनी चाहिए।" 

समय के साथ-साथ बाज़ारों के स्वरूप में बदलाव आया है। ई-फ़ार्मेसी के कारण उन मरीजों को फायदा तो  हुआ जो बाज़ारो से जाकर दवाई खरीदने मे असमर्थ हैं मगर ई-फ़ार्मेसी कंपनियों की अनियमितताओं जैसे प्रतिबंधित दवाइयों की बिक्री, बिना डॉक्टरी पर्चे के दवाइयों की खरीद और एक्सपाइरी डेट की दवाइयों का मरीजों तक पहुंचना शामिल हैं। इन अनियमितताओं को दूर किए बिना "ई-फार्मेसी" की अनुमति ख़तरनाक ही साबित हो सकती है।

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