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इलाहाबाद कुंभ : कानपुर के 10 लाख लोगों की रोज़ी-रोटी संकट में

इलाहाबाद कुंभ के लिए कानपुर के चमड़ा उद्योग को 3 महीने बंद करने का आदेश दिया गया है। इससे इन टेनरियों में काम करने वाले 10 लाख से अधिक लोगों के सामने रोज़ी-रोटी का संकट खड़ा हो जाएगा।
leather industry
सांकेतिक तस्वीर

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार अगले साल इलाहाबाद में होने वाले कुंभ मेले की तैयारियों में जुटी हुई है। इस पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। इस सिलसिले में सरकार ने आदेश दिया है कि 15 दिसंबर से 15 मार्च तक कानपुर में सभी टेनरियों या चमड़ा फैक्ट्रियों को बंद रखा जाए। कुंभ मेले के दौरान गंगा के पानी को साफ बनाए रखने के लिए ये फैसला किया गया है। सरकार का यह फैसला वहाँ काम कर रहे लाखों मजदूरों को प्रभावित करेगा।

सरकार ने गंगा को साफ रखने के लिए ये निर्णय किया परन्तु यहाँ ये सवाल उठता है कि नमामि गंगे योजना के तहत गंगा को 2018 तक साफ होना था इसको लेकर कई सौ करोड़ो रूपये आवंटित भी किये गए परन्तु उसका क्या हुआ सरकार इस पर कोई जबाब नही दे रही है।

कुंभ मेले को देखते हुए गंगा की सफाई के नाम पर लाखों लोगों की रोज़ी रोटी छीनी जा रही है। एक अनुमान है कि तीन माह तक टेनरियां बंद रहने के कारण चमड़ा उद्योग को करोड़ो का नुकसान होगा। टेनरियां बंद रहने से इनमें काम करने वाले 10 लाख से अधिक लोगों के रोज़गार पर असर पड़ेगा। टेनरी संचालकों का यह भी कहना है कि इतने समय तक व्यापार के बंद रहने से इसका सीधा फायदा पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे पड़ोसी देशों को होगा। कानपुर से बड़ी मात्रा चमड़ा और चमड़े से बना सामान चीन, जापान, कोरिया और यूरोपीय देशों को एक्सपोर्ट होता है।

विश्वविख्यात है यहाँ का चमड़ा

अपने इस चमड़े के कारोबार से कानपुर का नाम पूरी दुनिया में मशहूर है। यहां तकरीबन 400 टेनरी हैं, वो बंद हो जाएगी और टेनरी बंद होने से कानपुर से तो चमड़ा निर्यात बंद हो जाएगा लेकिन विदेशों में इसकी माँग बनी रहेगी।  चीन, जापान, कोरिया और यूरोपीय देशों में भारत से ही चमड़ा जाता है सो इन देशों में सप्लाई करने का मौका पड़ोसी देशों को मिलेगा। टेनरी संचालकों का कहना है कि तीन महीने की बंदी से टेनरी संचालकों की बकाया रकम भी फंस जाएगी और इस बात भी गारंटी नहीं है कि उन्हें आगे से विदेशों से ऑर्डर मिलेंगे भी या नहीं। टेनरी एसोसिएशन कानपुर के पदाधिकारीयों के मुताबिक बीते पांच साल में चमड़ा उद्योग लगभग 70 फीसदी तक कम हुआ है।सरकार को समझना चाहिए कि तीन माह में तो कर्मचारी भुखमरी की कगार पर आ जाएंगे।

यूरोप के देशो जैसे फ्रांस, ब्रिटेन, इटली जैसे देशों में फुटवियर, चर्म उद्द्योगो  और परिधानों में यहाँ के चमड़े की बहुत मांग  है। अब तो लेदर ज्वैलरी में इसकी माँग लगतार बढ़ रही है। उद्यमियों का कहना है कि टेनरियों को हटाना समस्या का समाधान नहीं हो सकता  है। दशकों से लगी टेनरियों को कहीं भी शिफ्ट किया गया तो ये दम तोड़ देंगी। मरीज को भगाने से मर्ज नहीं जाएगा बल्कि इलाज करना होता है।

100 साल से भी पुराना है इतिहास 

चर्म उद्योग का इतिहास काफी पुराना है। जाजमऊ में 1902 में पहली बार एक अंग्रेज ने टेनरी लगाई। उनका नाम था सेवन और उन्ही के नाम पर टेनरी का नाम था- सेवन टेनरी। इसके बाद एक और अंग्रेज स्नैडर ने जाजमऊ में टेनरी खोली। 1904 मे यूनाइटेड प्रोविन्शियल टेनरी का जन्म हुआ और हाफिज हलीम ने - इंडियन नेशनल टेनरी लगाई। हलीम कॉलेज उन्हीं के नाम पर है  इसके बाद तो टेनरियां खुलने का सिलसिला शुरू हो गया। कानपुर में 90 प्रतिशत टेनरियों में बफैलो लेदर का काम होता है। 60 बड़ी टेनरियां और इस पूरी बेल्ट में 350 छोटी टेनरियां हैं | इन्होने अपने जन्म के बाद से फर्श से अर्श तक का सफर किया है। लेकिन पिछले दो-चार वर्षो से गंभीर संकट से गुज़र रहा है क्योंकि सरकार की विफलता के करण लगतार इन पर NGT के साथ ही दक्षिणपंथी हिंदूवादी लोगों ने लगतार हमला किया है।

सरकार को मजदूरों की फिक्र नहीं

यहाँ काम करने वाले मजदूरों का कहना है कि इससे पहले की सरकारों में  भी कुम्भ मेले का आयोजन होता था, तब भी सरकारें तीन से चार दिन तक टेनरी बंद करती थी, परन्तु इसबार पता नहीं ऐसा क्या हुआ की सरकार इसे तीन महीने के लिए बंद कर रही है? परन्तु हम मजदूरों का क्या होगा ये किसी ने नहीं सोचा है, यह कैसे हुक्मरां हैं जिन्हें इस बात की जरा भी फिक्र नहीं है कि अगर तीन महीने तक टेनरी बंद रही तो उसमे काम करने वाले मजदूर और कर्मचारी अपना निर्वाह कैसे करेंगे, कैसे बच्चों की स्कूल की फीस जमा होगी। आखिर हम लोग तीन महीने तक क्या करेंगे, क्या खाएंगे।

चमड़ा उद्योग में ज़्यादातर मुस्लिम और दलित ही काम करते हैं

इस उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि कानपुर के चमड़ा उद्योग में लाखो मज़दूर काम करते है जिसमें से करीब 80 फीसदी मजदूर दलित हैं बाकी मुस्लिम। चमड़े की धुलाई, सफाई, और रखरखाव का काम केवल दलित और मुस्लिम मजदूर ही करते हैं। अन्य धर्मों के लोग इन कार्यों से दूर रहते हैं। उनकी शिकायत है कि शिकंजा केवल टेनरियों पर कसा जा रहा है क्योंकि टेनरियां बदनाम हैं, जबकि हरिद्वार से कोलकाता तक सैकड़ों की संख्या में ऐसे अनेक उद्योगों की फैक्ट्रिया हैं जो अपना गंदा पानी गंगा में बहाती हैं।

क्या टेनरी पर रोक से गंगा निर्मल होगी?

हमारी सरकार को समझाना चाहिए कि गंगा पूरी तरह से तभी साफ हो पायेगी जब हरिद्वार से कोलकाता तक गंगा किनारे लगे सभी उद्योगो को बंद किया जाए, न कि केवल टेनरियों को। वहाँ के उद्यमियों का कहना है कि टेनरी मालिकों की टेनरी तो सभी को दिखती है लेकिन गंगा में जो सैकड़ों शव बह कर आते हैं उस पर किसी का ध्यान नहीं जाता। उन्होंने कहा, 'पहले उस पर रोक लगायी जाये, उसके बाद टेनरियों की शिफ्टिंग कानपुर से कहीं और की जाए। वह कहते हैं कि कन्नौज, फर्रुखाबाद और उन्नाव के अन्य उद्योगों पर शिकंजा क्यों नहीं कसा जाता है जो गंगा नदी में प्रदूषित जल बहाते हैं।

 

ऐसे में 2019 कुंभ तक गंगा को निर्मल करने का दावा करने वाली भाजपा ने अबतक इसको लेकर कुछ नही किया है। जानकार बताते हैं कि गंगा का प्रदूषण सिर्फ टेनरी पर रोक लगाने से ही नहीं दूर होगा। बल्कि नालों के पानी को ट्रीट करना जरूरी है। यहां यह जानना महत्वपूर्ण है कि गंगा में गिर रहे 21 नालों में से सिर्फ छह नाले ही कुंभ मेले से पहले बंद किए जाएंगे।

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