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यूपी में मीडिया पर भी ‘बुलडोज़र’ चलाने की तैयारी!

प्रेस पर निगरानी के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद के आदेश पर तीखी प्रतिक्रिया। “नकारात्मक ख़बरों के नाम पर आलोचनात्मक पत्रकारिता पर नियंत्रण करने का प्रयास”।
yogi adityanath and press

उत्तर प्रदेश में अब सरकार के विरुद्ध नकारात्मक ख़बर लिखने पर, अख़बार को स्पष्टीकरण देना होगा। ज़िला प्रशासन के अधिकारियों को "शासन और प्रशासन" की छवि ख़राब करने वाली ख़बरों पर नज़र रखने का आदेश हुआ है।

राज्य के प्रमुख सचिव संजय प्रसाद ने प्रदेश के सभी मंडलायुक्त और ज़िलाधिकारियों को एक पत्र भेज कर कहा है कि "दैनिक समाचार पत्रों तथा मीडिया माध्यमों में प्रकाशित नकारात्मक समाचारों का संग्रहण सूचना विभाग द्वारा किया जाता है। इन नकारात्मक समाचारों के तथ्यों की त्वरित जांच करना आवश्यक है, क्योंकि इन समाचारों से शासन की छवि भी धूमिल होती है।"

सरकार द्वारा आदेश हुआ है कि "यदि यह संज्ञान में आता है कि किसी दैनिक समाचार पत्र/मीडिया में घटना को तोड़-मरोड़ कर अथवा ग़लत तथ्यों का उल्लेख कर नकारात्मक समाचार प्रकाशित कर राज्य सरकार एवं ज़िला प्रशासन की छवि धूमिल करने का प्रयास किया गया है तो सम्बन्धित जिलाधिकारी द्वारा इस सम्बन्ध में सम्बन्धित मीडिया ग्रुप/समाचार पत्र के प्रबन्धक को स्थिति स्पष्ट किए जाने हेतु पत्र प्रेषित किया जाएगा तथा सूचना विभाग को भी पृष्ठांकित किया जाएगा।"

ऐसा कहा जा रहा है कि इस सरकारी आदेश से स्पष्ट है कि आगामी लोकसभा चुनावों 2024 से पहले सरकार, छोटे-बड़े मीडिया हाउस पर अंकुश रखना चाहती है। प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार मानते हैं कि इस आदेश का "नकारात्मक" असर  "आलोचनात्मक" पत्रकारिता पर पड़ेगा। इस सरकारी फ़रमान से दूर-दराज़ और ग्रामीण इलाकों में काम करने वाले पत्रकारों की परेशानी भी बढ़ सकती है।

हालाँकि कई दशकों से पत्रकारिता कर रहे सम्पादक स्तर के पत्रकार भी मानते हैं कि सोशल मीडिया आदि के माध्यम से अक्सर ऐसी ख़बरें आती है जिनके तथ्य ठोस नहीं होते हैं। लेकिन उनका कहना है कि ख़बर की जाँच या उस पर कार्रवाई करना ज़िला स्तर के किसी अधिकारी के कार्यक्षेत्र में नहीं आता है। 

वरिष्ठ पत्रकार यह भी कहते हैं कि  एक तरफ़ा ख़बरें प्रकशित होने का एक कारण यह भी है कि अब संबंधित अधिकारी, फ़ील्ड में काम कर रहे पत्रकारों से न मिलते हैं और न उनका फोन उठाते हैं। 

वरिष्ठ पत्रकार डॉ. उत्कर्ष सिन्हा कहते हैं कि यह सत्य है कि कई बार ऐसी ख़बरें प्रकाशित या प्रसारित होती हैं, जिनका आधर या तथ्य ठोस नहीं होते हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि कोई ज़िला स्तर का अधिकारी ख़बरों का आकलन करे और प्रकाशन प्रबंधन का नोटिस भेजे। इस काम के लिए प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया और एडिटर गिल्ड ऑफ इंडिया जैसे मंच पहले से मौजूद हैं।

डॉ. सिन्हा आगे कहते हैं कि ऐसा देखा गया है कि छोटे ज़िलों में अक्सर सरकारी अधिकारी, पत्रकारों पर मुक़दमा कर उनको प्रताड़ित करते हैं। वह कहते हैं "सरकार के इस फ़रमान के माध्यम से पीछे के दरवाज़े से आलोचनात्मक पत्रकारिता पर नियंत्रण करने का प्रयास है।"

द टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व सम्पादक अतुल चंद्रा कहते हैं कि सरकार मीडिया पर सख़्त नज़र रखने की तरफ़ आगे बढ़ रही है। जिसका सबसे अधिक नकारात्मक असर छोटे ज़िलों से आने वाली ख़बरों पर पड़ेगा। क्योंकि वहाँ पर अधिकारी पत्रकारों को ख़बर पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं।

अब अगर बिना आधिकारिक प्रतिक्रिया के पत्रकार ख़बर लिखेंगे तो उसको "एकतरफ़ा ख़बर" कहकर परिभाषित किया जायेगा। जिससे बाद पत्रकारों और मीडिया संस्थाओं के उत्पीड़न की संभावना  होगी। 

वरिष्ठ पत्रकार चंद्रा कहते हैं कि वास्तव में जरूरत इस बात की है कि एक ऐसा फ़ार्मूला होना चाहिए है कि पत्रकारों को किसी भी माध्यम से (फोन-ईमेल) से ख़बर की पुष्टि या उस पर प्रतिक्रिया, समय से मिल सके। इस से तथ्यों में होने वाली गलतियां रोकी जा सकती है।

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के पूर्व सदस्य नावेद शिकोह मानते हैं इस आदेश के बाद न सिर्फ़ विभागीय ख़बरें लिखने वाले पत्रकारों बल्कि राजनीतिक ख़बरों पर काम करने वालों के लिए कठिनाइयां बढ़ेंगी। उनका मानना है अक्सर पत्रकार अपने सूत्रों के हवाले से ख़बर लिखते हैं। लेकिन अगर अब कोई ख़बर सत्ता में बैठे लोगों को अपने लिए सुविधाजनक नहीं लगेगी तो वह उसको निराधार बताकर ख़ारिज करेगें और तुरंत पत्रकार और मीडिया ग्रुप दोनों को नोटिस भेज दिया जायेगा।

नावेद शिकोह कहते हैं कि अगर ऐसा हुआ तो कुछ समय बाद ख़बरों के नाम पर पाठकों के पास पढ़ने और दर्शकों के पास देखने के लिए सिर्फ़ "प्रेस नोट" होंगे। उन्होनें कहा कि कभी भी कोई उच्च स्तरीय अधिकारी यह नहीं पसंद करेगा कि ज़िले में हो रहे भ्रष्टाचार आदि की ख़बरें छापी जाये। ऐसे में वह ऐसे आदेश का ग़लत इस्तेमाल कर सकता है। वह कहते कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि प्रेस की आज़ादी ख़त्म हो रही है।

कई संगठनों में पत्रकारों का प्रतिनिधित्व करने वाले मुदित माथुर कहते हैं राज्य का कर्तव्य है कि वह पत्रकारिता के लिए एक खुला वातावरण बनाये ताकि पत्रकार एक स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता कर सकें। उन्होंने कहा कि एक तरफ़ा संचार से पत्रकारिता सम्भव नहीं है।

उन्होंने कहा कि जिस तरह अधिकारी विशेषकर पुलिस अधिकारी अपने सराहनीय कार्यों की जानकारी मीडिया को देते हैं, ऐसे ही उनको पत्रकारों के सवालों के जवाब भी देना चाहिए है, ताकि ख़बरों में तथ्यों में ग़लती न हो।

उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त पत्रकार समिति के अध्यक्ष हेमंत तिवारी ने कहा कि इस तरह की कार्यप्रणाली की अपेक्षा लोकतांत्रिक व्यवस्था में नहीं की जा सकती है। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता होनी चाहिए। हेमंत तिवारी ने कहा कि वह एक प्रतिनिधिमंडल के साथ शासन में इस मामले में बात करेगें ताकि पत्रकारों के काम में कोई रुकावट न आये।

उधर कांग्रेस ने भी सरकार के इस फ़ैसले की निंदा की है। कांग्रेस नेता संजय सिंह ने कहा है कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार द्वारा प्रदेश के ज़िलाधिकारियों को पत्र लिखकर मीडिया की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर लगाम लगाने सम्बन्धी आदेश है। 

उन्होंने कहा कि 2014 में केंद्र की सत्ता पर काबिज़ होने के बाद भाजपा सरकार ने मीडिया के  एक बड़े हिस्से को अपने कब्ज़े में कर रखा है। अब उत्तर प्रदेश की योगी सरकार मीडिया पर पूरी तरह से लगाम लगाने के लिए एक आदेश जारी किया है। जिसके तहत प्रदेश सरकार व प्रशासन के ख़िलाफ ख़बर करने वाले मीडिया हाउस पर सीधे तौर पर कार्रवाई करने की धमकी दी जा रही है। 

कांग्रेस नेता आगे कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व उनके शासन और प्रशासन के ख़िलाफ़ मीडिया हाउस को लिखना भारी पड़ने वाला है। ख़ासतौर से उन पत्रकारों को अब योगी सरकार चुप करा देना चाहती है, जो आलोचनात्मक ख़बरें लिखते हैं।

संजय सिंह के अनुसार योगी सरकार का यह आदेश मीडिया पर पूरी तरह से अंकुश लगाने का काम करेगा और साथ ही जो भी इनके सिस्टम के ख़िलाफ आवाज़ उठाएगा, सरकार उसके ख़िलाफ कानूनी कार्रवाई करने के साथ ही बुलडोज़र की कार्रवाई भी हो सकती है।

आदेश यह बताने के लिए काफी है कि योगी सरकार अब अपनी आलोचना नहीं सुनना चाहती है। कांग्रेस प्रवक्ता संजय सिंह ने आरोप लगाया कि बीते 6 सालों में उत्तर प्रदेश में जंगल राज का माहौल है। सरकार के दावों के विपरीत प्रदेश में भ्रष्टाचार, कमीशन खोरी सहित कई अनियमितताएं चल रही हैं। सरकार नहीं चाहती कि उनके खिलाफ कोई भी ख़बर समाज में जाए इसलिए वह मीडिया ग्रुप को डरा कर चुप कराने जा रही है। 

बता दें कि उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर  पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में कार्रवाई हुई हैं। जिन पर कार्रवाई हुई उनमें द वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन, पंकज जायसवाल (अब दिवंगत), इस्मत आरा, राना अयूब, सबा नक़वी, मोहम्मद ज़ुबैर, सुप्रिया शर्मा, सिद्दीक कप्‍पन, और सिराज अली आदि शामिल हैं।

उल्लेखनीय है  कि भारत इस समय 180 देशों के विश्व प्रेस स्वतंत्रता के सूचकांक 161वें स्थान पर है। (रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की द्वारा प्रकाशित सूचकांक के अनुसार)

जब इस पत्र के बारे में प्रमुख सचिव संजय प्रसाद से संपर्क किया तो उनका फोन व्यस्त था। बाद में उनके कार्यालय ने फोन प्राप्त हुआ, लेकिन वह बात करने के लिए मौजूद नहीं थे।

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