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आनंद तेलतुंबड़े का समर्थन और उनकी रिहाई की अपील

280 से अधिक छात्रों, फ़ैकल्टी सदस्यों और भारतीय प्रबंधन संस्थान अहमदाबाद (IIMA) के पूर्व छात्रों ने, आईआईएम के शानदार पूर्व छात्र, आनंद तेलतुंबड़े के समर्थन में एक बयान पर हस्ताक्षर किये हैं। एक कॉर्पोरेट नेता और शिक्षक होने के अलावा प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े ने इस समाज के लिए बहुत कुछ किया है।
आनंद तेलतुंबड़े
Image Courtesy: The Hindu

280 से अधिक छात्रों, फ़ैकल्टी सदस्यों और भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद (IIMA) के पूर्व छात्रों ने अपने शानदार पूर्व छात्र, आनंद तेलतुंबड़े के समर्थन में एकजुटता दिखाते हुए एक बयान पर हस्ताक्षर किये हैं। एक कॉर्पोरेट नेता और शिक्षक होने के अलावा प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े ने समाज के लिए बहुत कुछ किया है। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के मुताबिक़, तेलतुंबड़े से 6 अप्रैल तक ख़ुद आत्मसमर्पण करने की उम्मीद की गयी है।

हम अपनी ख़ास क्षमताओं वाले आईआईएम अहमदाबाद समुदाय के हिस्से के रूप में अपने पूर्व छात्र और भारत के अग्रणी सार्वजनिक बुद्धिजीवियों में से एक, प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुंबड़े के अभियोग को लेकर बहुत चिंतित हैं। प्रो.तेलतुंबड़े ने हमेशा ही भारत के दलित समुदायों के उन अधिकारों के सशक्तिकरण के लिए संघर्ष को बढ़ावा दिया है,जो अधिकार भारत के संविधान में दिये गये हैं।

16 मार्च, 2020 को, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने डॉ.तेलतुंबड़े की अग्रिम ज़मानत याचिका को खारिज कर दिया था और 6 अप्रैल, 2020 तक उन्हें "आत्मसमर्पण" करने का आदेश दिया। हमारा भारत के मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट से पुरज़ोर आग्रह है कि अगर प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े को क़ैद में रखा जाता है,तो महामारी COVID-19 के कारण पहले से ही मौजूद स्वास्थ्य स्थितियों और संक्रमण के उच्च जोखिम को देखते हुए वरिष्ठ नागरिक डॉ. तेलतुंबड़े के स्वास्थ्य और जीवन के लिए पैदा होने वाले ख़तरों का संज्ञान लिया जाये।

ऐसे समय में उन्हें क़ैद में रखना निश्चित रूप से उनके जीवन को ख़तरे में डालने जैसा होगा। प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े जांच अधिकारियों के साथ पूरी तरह सहयोग कर रहे हैं और उनके देश छोड़कर जाने की कोई संभावना भी नहीं है। हम न्यायिक अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि वे गिरफ़्तारी आदेश में संशोधन करते हुए कम से कम वैश्विक स्वास्थ्य संकट के समाधान के समय तक का समय दे दें, ताकि उनकी जान को किसी तरह का कोई ख़तरा न हो।

उनकी बेटियों की तरफ़ से उन्हें लिखी गयी चिट्ठी को पढ़ा जा सकता है, जिसमें प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े की परेशानियों का ज़िक्र है।

प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े को उस कठोर ग़ैरक़ानूनी गतिविधि (निरोध) क़ानून, 1967 के तहत आरोपित किया गया है, जिसमें सुनवाई या सज़ा की ज़रूरत नहीं होती है। इस अधिनियम पर एक टिप्पणी यहां मिल सकती है।

उनके ख़िलाफ़ यह आरोप "भीमा कोरेगांव" मामले में लगाया गया है, जिसे अनियमितताओं से भरी हुई एक रिपोर्ट के रूप में बताया जाता है और इस मामले के तहत उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया है। (इस मामले में अनियमितताओं और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के उल्लंघनों के साथ-साथ इस केस से जुड़े सबूतों की मनगढ़ंत प्रकृति और हालिया जांच की ओर इशारा करते हुए अमेरिकी बार एसोसिएशन की रिपोर्ट के हवाले से देखा जा सकता है)। मानवाधिकार आयुक्त के कार्यालय की एक और रिपोर्ट भी यहां देखी जा सकती है।

प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े एक प्रतिष्ठित विद्वान और नागरिक अधिकार कार्यकर्ता हैं, जिनका दलितों, श्रमिक वर्गों, और समाज के जाति जैसे प्रतिगामी सांस्कृतिक संस्थानों जैसी आबादी के कमज़ोर वर्गों को प्रभावित करने वाले दमनकारी चलन के ख़िलाफ़ बोलने का एक लंबा इतिहास रहा है। एक चेतनशील बौद्धिक के रूप में सराहे जाते रहे डॉ.तेलतुंबड़े के लेखन ने लोकतंत्र, वैश्वीकरण और सामाजिक न्याय को लेकर चलने वाली अहम बहस में व्यापक रूप से अपना योगदान दिया है।

दलित समुदाय (भारत की लंबे समय से उत्पीड़ित "अछूत" जातियों) के एक सदस्य के रूप में बहुत छोटी शुरुआत करने वाले उत्कृष्ट व्यापक जानकारियों से लैस डॉ.तेलतुंबड़े ने उच्चतर आर्थिक उपलब्धियों के साथ-साथ उच्च शिक्षा वाले भारत के प्रमुख संस्थानों से स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। वह भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM अहमदाबाद) के पूर्व छात्र हैं। प्रोफ़ेसर तेलतुंबड़े का कॉर्पोरेट क्षेत्र में सरकारी स्वामित्व वाली भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड, और पेट्रोनेट इंडिया लिमिटेड (भारत सरकार प्रमोटेड एक निजी कंपनी) में शीर्ष प्रबंधन पदों पर कार्य करने का एक लंबा और शानदार रिकॉर्ड रहा है। वह भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT-खड़गपुर) में व्यवसाय प्रबंधन के प्रोफ़ेसर भी रहे हैं और इस समय गोवा प्रबंधन संस्थान में एक वरिष्ठ प्रोफ़ेसर और बिग डेटा एनालिटिक्स के प्रमुख हैं।

जाति और वर्ग की गतिशीलता और समकालीन समाज के लिए डॉ. बी.आर.अंबेडकर की प्रासंगिकता पर उनका सूक्ष्म विश्लेषण विद्वानों के लिए एक आवश्यक संदर्भ हैं और दुनिया भर के कई विश्वविद्यालयों के लिए ज़रूरी पाठ है। वह अक्सर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों में आमंत्रित वक्ता होते हैं, जो पूरे विश्व में उनके काम को मिलने वाले सम्मान की ओर इशारा करता है।

डॉ.तेलतुंबड़े ने लोकतांत्रिक अधिकार संरक्षण समिति (CPDR) और ऑल इंडिया फ़ोरम फ़ॉर एजुकेशन (AIFRTE) जैसे नागरिक समाज संगठन का गठन किया है, जिसके वे क्रमश: महासचिव  और अध्यक्ष हैं। जिन संगठनों से वे जुड़े हैं,उनमें से कोई भी संगठन भारत में प्रतिबंधित संगठनों में से नहीं है।

इन्हीं आरोपों के तहत गौतम नवलखा को भी आरोपित किया गया है, जो एक बेहद सम्मानित एक लोकतांत्रिक और मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार हैं। वह पीपुल्स यूनियन फ़ॉर डेमोक्रेटिक राइट्स, दिल्ली का लंबे समय से सदस्य रहे हैं। उन्होंने भारत की प्रमुख सामाजिक विज्ञान पत्रिका-इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली के संपादकीय सलाहकार के रूप में कार्य किया है और इंटरनेशनल पीपल्स ट्रिब्युनल ऑन ह्यूमन राइट एंड जस्टिस इन कश्मीर के संयोजक रहे हैं।

उनकी पुस्तक, डेज़ एंड नाइट्स: इन द हार्टलैंड ऑफ़ रिबेलियन (पेंगुइन, 2012) छत्तीसगढ़ में माओवादी आंदोलन को समझने में सबसे गंभीर हस्तक्षेपों में से एक है। केंद्र सरकार ने हाल ही में महाराष्ट्र में सत्ता परिवर्तन के बाद तेलतुंबडे और नवलखा के मामलों को गृह मंत्रालय के तहत महाराष्ट्र सरकार से राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) में स्थानांतरित कर दिया था। प्रो.तेलतुंबड़े और नवलखा के न्याय के लिए संघर्ष के तरीक़े हमेशा संविधान के प्रावधानों और स्वतंत्रता के दायरे में रहे हैं। भीम कोरेगांव प्रकरण के आसपास होने वाले आयोजनों या उसके बाद होने वाले कार्यक्रमों से इन दोनों का दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं है।

एक कॉर्पोरेट नेता, उच्च योग्यता वाले विद्वान, एक मशहूर लोक बुद्धिजीवी के रूप में असाधारण व्यक्तित्व रहे और भारतीय लोकतंत्र के संस्थापक डॉ बीआर अंबेडकर के परिवार से आने वाले डॉ तेलतुंबड़े को निशाने पर लेकर सरकार पूरे देश को एक संदेश भेज रही है कि असहमति जताने वालों की आवाज़ को दबाने के लिए सरकार किसी भी हद तक जा सकती है।

2019 में UAPA संशोधनों को पारित करने से एक सदी पहले, औपनिवेशिक ब्रिटिश सरकार ने भारत के लिए रौलट एक्ट पारित किया था, UAPA संशोधनों की तरह ही उस क़ानून ने भी क़ानून, जूरी और मुकदमे की तय प्रक्रिया के अधिकार छीन लिये थे। महात्मा गांधी ने उस अधिनियम के ख़िलाफ़ अपना पहला बड़ा राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह शुरू किया था। इसके बाद जलियांवाला बाग़ की दुर्भाग्यपूर्ण घटना घटी थी और सार्वजनिक हस्तियों और आम नागरिकों द्वारा देशव्यापी विरोध प्रदर्शन किया गया था, जिसके बाद शाही सरकार को उस अधिनियम को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा था। निश्चित रूप से एक सदी के बाद, भारत का एक स्वतंत्र और लोकतांत्रिक गणराज्य इस तरह के प्रावधान को पूरी तरह से अलग संदर्भ के लिए इस्तेमाल नहीं कर सकता कि भारत के विख्यात सार्वजनिक हस्तियों को ही जेल में डाल दिया जाए।

हम डॉ.तेलतुंबड़े और श्री नवलखा और भीम-कोरेगांव मामले के झूठे आरोपों में फंसाये गये अन्य सभी लोगों के स्पष्ट समर्थन में एकजुटता के साथ खड़े हैं और उन याचिकाओं का समर्थन करते हैं,जो उनके बरी होने का अनुरोध करती हैं, और विशेष रूप से भारत के माननीय राष्ट्रपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने की अपील करते हैं कि सभी आरोपियों के ख़िलाफ़ लगे आरोपों को वापस लिया जाए।

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

In Solidarity With and Appeal to Acquit Prof. Anand Teltumbde

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