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इलाहाबाद विवि: 880 दिनों का आंदोलन और 98 दिनों का आमरण अनशन... जारी है

फीस वृद्धि, छात्र संघ बहाली और कुलपति की नियुक्ति के ख़िलाफ़ छात्र संगठनों ने यूजीसी के घेराव के बाद प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस की।
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इलाहाबाद विश्वविद्यालय में फीस वृद्धि और कुलपति की नियुक्ति के खिलाफ छात्रों का रोष लगातार बढ़ता जा रहा है। छात्रों का आरोप है, कि उन्हें लगातार नज़रअंदाज़ किया जा रहा, न ही उनकी पीड़ा देखी जा रही है, न ही उनकी मजबूरी। यही कारण है छात्रों के एक प्रतिनिधिमंडल ने दिल्ली आकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और अपनी बातों को रखा।

प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमंडल ने तीन बातों को प्रमुखता से मीडिया के सामने रखा।

पहला- 400 प्रतिशत फीस वृद्धि

दूसरा- कुलपति की अवैध नियुक्ति

तीसरा- छात्र संघ चुनावों की बहाली

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सक्रिय सभी छात्र संघठन एकजुट होकर प्रशासन के खिलाफ पिछले 880 यानी करीब ढाई साल से आंदोलन कर रहे हैं। इसके बावजूद उनकी बातों का संज्ञान लेने के लिए कोई तैयार नहीं है, जिससे परेशान होकर छात्रों ने आमरण अनशन की योजना बनाई जो पिछले करीब 98 दिनों से जारी है। ख़बर है कि आमरण अनशन में करीब 50-60 छात्रों की हालात गंभीर हो चुकी है और वो अस्पताल में भर्ती हैं।

आपको बता दें कि इन सभी मांगों में छात्रों के भीतर कुलपति संगीता श्रीवास्तव की कथित अवैध नियुक्ति को लेकर सबसे ज़्यादा रोष है, छात्र संगठनों का कहना है कि किसी भी कुलपति को नियुक्ति के लिए 10 वर्ष के अनुभव की ज़रूरत होती है, लेकिन उन्हें पहले ही अवैध तरीके से नियुक्त कर दिया गया है, क्योंकि वो सुप्रीम कोर्ट के जज माननीय न्यूयमूर्ति विक्रम नाथ की पत्नी हैं।

 

 ऐसे में छात्रों का कहना है कि संगीता श्रीवास्तव की नियुक्ति के बाद विश्वविद्यालय परिसर में कुछ भी ठीक ढंग से नहीं हो रहा है, फीस में वृद्धि कर दी गई है, लाइब्रेरी में किताबों का अकाल पड़ा हुआ है, लड़कियों को शाम 5-6 बजे के बाद विश्वविद्यालय परिसर में प्रवेश की अनुमित नहीं मिलती है, और न जाने कितने ग़ैर जिम्मेदाराना काम हो रहे हैं, जो विश्वविद्यालय और छात्रों के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है।

इस दौरान छात्रों के आंदोलन का प्रतिनिधित्व कर रहे छात्र नेता अजय यादव सम्राट से बात की, जो नंगे पैर इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दिल्ली आए थे, उन्होंने बताया कि ‘’संगीता श्रीवास्तव की सभी संवैधानिक नियमों के ख़िलाफ जाकर कुलपति पद पर नियुक्त की गई है, जो पूरी तरह से अवैध है। संगीता श्रीवास्तव के आते ही फीस में 400 फीसदी वृद्धि कर दी गई, जिसके खिलाफ हम लोग पिछले 98 दिनों से आमरण अनशन कर रहे हैं। जब हम आपनी मांगों को उठाना चाहते हैं, तो हमें जान से मारने की धमकी दी जाती है, हमारे घर पर सुरक्षाबलों की टीम भेजी जाती है, परिवार को प्रताड़ित किया जाता है। जब हमलोग कुलपति को नोटिस या ज्ञापन देने पहुंचते हैं, तो हमारी बात नहीं सुनी जाती।”         

जब हमने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के एक और छात्र नेता मुबस्सीर हारून से बात की तब उन्होंने भी सबसे ज्यादा रोष कुलपति की नियुक्ति को लकेर दर्शाया। उन्होंने कहा कि ‘’प्रदेश अभी कोरोना काल से उबरा भी नहीं था, कितनों की जाने गई थीं, इसी बीच विश्वविद्यालय की  कुलपति ने 400 फीसदी फीस वृद्धि कर दी। इस रकम को वो दलित या पिछड़ा समाज का छात्र कैसे भरेगा, जिसके घर में कमाने वाला 300 रुपये दिन की दिहाड़ी करता होगा, और उसी से अपना घर चलाता होगा। कुलपति संगीता श्रीवास्तव विश्वविद्यालय को प्राइवेट बनाने की कोशिश में लगी हैं।

मुबस्सीर ने कुलपति की नियुक्ति पर अपनी बात रखते हुए कहा कि इस पद के लिए कम से कम 10 साल की योग्यता होनी चाहिए, लेकिन इनके 9 साल 4 महीने 25 दिन अभी बचे हुए हैं, ऐसे में उन्हें कुलपति कैसे बना दिया गया। मुबस्सीर ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया और कहा कि हमारी बातों को दबाया जा रहा है।

छात्र नेताओं से बातचीत करने के बाद न्यूज़क्लिक ने पीजी के प्रथम वर्ष में पढ़ने वाले हिंदी के एक छात्र अतीक अहमद से बातचीत की, तो उन्होंने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पिछले 880 दिनों से अनशन में मांग थी, कि छात्रसंघ बहाली की जाए। छात्र संगठनों ने एक होकर छात्र बहाली की मांग की है। अचानक बगैर किसी विचार के 400 फीसदी फीस वृद्धि कर दी जाती है। जिसके बाद सबसे अहम लड़ाई इसी के विरुद्ध खड़ी हो गई।”

अतीक ने कुलपति पर व्यंग्य करते हुए कहा कि हमारी कुलपित राज्यपाल से कम नहीं हैं, उनके साथ लंबा स्कॉट साथ चलता है, लग्ज़री गाड़ियां आगे-पीछे चलती हैं, लेकिन जब ऑफिस पहुंचते हैं तो ताला लटका होता है। हमारा हाल कभी जानने के लिए नहीं आती हैं।”

दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में प्रेस कॉन्फ्रेंस करने से पहले इन छात्रों ने दिल्ली पहुंचकर छात्रों ने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग यानी यूजीसी का घेराव किया। इस दौरान इन छात्रों ने आरोप लगाया कि आंदोलन के चलते कई छात्रों का दाखिल निरस्त कर दिया गया।

आंदोलनरत छात्रों क कहना है कि कुलपति पद पर अवैध नियुक्ति के विरुद्ध न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल गई थी। जिसमें सीधे तौर पर कुलपति संगीता श्रीवास्तव की नियुक्ति को अवैध बताया गया है, छात्रों ने प्रेस विज्ञप्ति में कुलपति नियुक्त किए जाने की पूरी प्रक्रिया साझा की है।

इसके अलावा छात्रों का बड़ी लड़ाई फीस वृद्धि के खिलाफ तो है ही। छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय में 400 प्रतिशत फीस अचानक बढ़ा दी गई। जिसका डाटा छात्रों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस के ज़रिए हमारे बीच रखा।

छात्रों के मुताबिक

फीस में वृद्धि के अलावा छात्रों का कहना है कि इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय ने साल 2019 में छात्रसंघ की जगह छात्रपरिषद चुनाव कराने की कोशिश की थी, यह अलग तथ्य है कि न तो छात्रसंघ वैधानिक रूप से भंग हुआ और न ही छात्र परिषद को वैधानिक मान्यता मिली। क्योंकि पूरी प्रक्रिया ड्यू प्रोसेस से नहीं गुज़री। इसके अलावा 36000 छात्र छात्राओं ने सर्वसम्मति से छात्र परिषद के चुनाव को खारिज कर दिया।

ऐसे में छात्रों की मांग है कि छात्र संघ चुनावों को फिर से बहाल किया जाना चाहिए।

फिलहाल छात्र नेताओं और छात्रों का आंदोलन लगातार जारी है, दूसरी ओर इसे लेकर कोर्ट में सुनवाई भी जारी है, ऐसे में देखना होगा कि ये आंदोलन आगे चलकर क्या मोड़ लेता है।

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