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'ऐप्सो' कन्वेंशन: “भारत के मीडिया पर  पूंजीपतियों का  पूरा कब्ज़ा हो गया है”

कन्वेंशन में एक मार्च को मीडिया पर कॉरपोरेट कब्ज़े के ख़िलाफ़ पटना में प्रतिवाद मार्च निकालने का आह्वान किया गया। 
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पटना: अखिल भारतीय शांति व एकजुटता संगठन (ऐप्सो) की ओर से मीडिया पर पूंजीपतियों के कब्जे के खिलाफ  नागरिक कन्वेंशन का आयोजन माध्यमिक शिक्षक संघ, जमाल रोड में किया गया। इस नागरिक कन्वेंशन में पत्रकारों के अलावा, समाज के विभिन्न क्षेत्रों-वकील, बैंककर्मी, रंगकर्मी, लेखक, साहित्यकार  व छात्र, युवा, मजदूर सहित  जनसंगठनों के प्रतिनिधि इकट्ठा हुए। 

कन्वेंशन में एक मार्च को मीडिया पर कॉरपोरेट कब्जे के खिलाफ पटना के जी.पी.ओ गोलंबर से बुद्धा स्मृति पार्क तक प्रतिवाद मार्च निकालने का आह्वान किया गया । 

कन्वेंशन का संचालन 'ऐप्सो' के कार्यालय सचिव जयप्रकाश ने किया। स्वागत वक्तव्य ऐप्सो के जिला महासचिव भोला शर्मा ने दिया।  

पटना जिला के दूसरे महासचिव कुलभूषण ने इस कन्वेंशन के लिए तैयार पेपर को प्रस्तुत करते हुए कहा " यदि हम भारत को देखें तो हम महसूस कर सकते हैं कि लगभग अधिकांश समाचार- पत्र, पत्रिकाएं, टेलीविजन भारत के बड़े पूंजीपतियों के कब्जे में जा चुके हैं। यहां तक कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर भी नियंत्रण कसता जा रहा है। सोशल मीडिया पर हर वैसे पोस्ट पर  पाबंदी लगाई जा रही है जिससे सरकार असहज महसूस करती है। फेसबुक, ट्विटर या इंस्टाग्राम जैसे माध्यमों का अल्गोरीदम बदल कर वैसे पोस्ट को बढ़ावा दिया जाता है जो हिंसा और नफरत को बढ़ावा देती है, आपसी भाईचारे को नष्ट करती है। हाल में ट्विटर (अब एक्स) के मालिक एलन मस्क तक को कहना पड़ा कि मोदी सरकार किसान आंदोलन से जुड़ी खबरों को दबाने का आदेश दे रही है। भारत में विपक्षी दल आए दिन यह आरोप लगाते हैं कि असहमति की आवाजों को दबाया जा रहा है। "

राजकुमार शाही ने  'ऐप्सो' के महासचिव  ब्रजकुमार पांडे का आलेख प्रस्तुत किया।  

श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महासचिव कमलाकांत सहाय ने अपने संबोधन में  पत्रकारिता के इतिहास से  अवगत कराते हुए  कहा " 2014 से 24 के बीच मीडिया की विश्वसनीयता समाप्त हो चुकी है।  जब मैं पत्रकारिता में आया था तो लगता था कि अच्छे प्रोफेशन में आ गए हैं। अब पत्रकारों के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया अच्छी नहीं होती। लोग मुंह पर कह देता है कि 'जर्नलिस्ट तो बिका हुआ है'।  जब यह कहा  जाता है कि यह  स्वीपिंग कमेंट है। सब लोग ऐसे नहीं हैं। लेकिन अब तो  यही छवि बन गई है। बाहर से आने वाले लोग ज्यादातर पत्रकार होटल के कमरे में बैठकर रिपोर्ट लिखा करते हैं।  हम लोग सच बोलने आए हैं लेकिन सच बोलने से किसको नफा- नुकसान हो रहा है यह सोचना हमारा काम नहीं है। सर पर कफ़न बांधने की बात कहना आसान है पर बांधना मुश्किल है। फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन  से जब सरकार को दिक्कत होने लगती है तो वह राजद्रोह का कानून लेकर चली आती है जैसा 1870 में लाया गया। 1878 में वर्णाकुलर प्रेस एक्ट लाया गया। इसमें अंग्रेजी  छोड़ दूसरी भाषाओं पर प्रतिबंध था। देश की आजादी में अखबारों की बहुत बड़ी भूमिका थी। आजादी के बाद वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट बना, लेबर लॉ बना। लेकिन अब वर्तमान की सरकार के खिलाफ जो कोई बोलता है तो इमरजेंसी की याद दिलाई जाती है। जेपी पटना के कदमकुआं से बोलते थे वह देश भर के अखबार कवर करते थे लेकिन आज तो प्रधानमंत्री कुछ कर देते हैं तो उसे मास्टर स्ट्रोक मान लिया जाता है। जब जनता के मन से चमक खत्म हो जाती है तब टीवी और स्क्रीन के चमक से कुछ नहीं होगा। " 

टाइम्स ऑफ स्वराज के संतोष सिंह ने अपनी बात रखते हुए कहा " हर चैनल किसी न किसी के पक्ष में खड़ा है। कोई निष्पक्ष नहीं है। जो सत्ता में आएगा वह वैसा ही करेगा। यदि हैडिंग आपके अनुकूल नहीं है तो आप कहते कि  मेरे अनुकूल होना चाहिए। आज सबसे ताकतवर राष्ट्रध्यक्ष है तो हमें हमारी हैसियत बता रहा है। पहले भी ऐसा होता था लेकिन पर्दे के पीछे चलने वाली चीजों को इसने उजागर कर दिया। जब तक आजादी के आंदोलन की मर्यादा बची रही  तब तक ठीक रहा।  अब समाज के सामने कोई रास्ता नहीं है। जिसके सामने से नौकरी छीनी जा रही है उसको नहीं समझ आ रहा है तो क्या कहा जाए? ऐसी स्थिति आ गई है  कि जो कोई भी थोड़ा सा मैटर करता है उसे अपने पक्ष में कर लेने की कोशिश कर ली जा रही है। कुछ ही दिनों में कैसे मानसिकता बदल दी गई है। जो मुसलमान को देखा नहीं वह भी उसको गाली दे रहा है। स्कूल का टीचर यही पढ़ा रहा है। हमलोग आजकल अब  प्रेस विज्ञप्ति पर पत्रकारिता कर रहे हैं। "

'आज' अखबार के अमलेंदु  ने कहा " बहुत अच्छी शुरुआत हुई है। हमें देखना है अडानी और अंबानी के पास कितनी संपत्ति थी अब कितनी है। अखबार से सरकार को ब्लैकमेल करके अपनी संपत्ति बढ़ाना चाहते हैं। हमलोग चाहते हैं कि खुद नेता बनने के चक्कर में संगठन को पॉकेट में रखते हैं। बिना सड़क पर उतरे , आंदोलन किए हुए कोई उपाय नहीं है। किसान आंदोलन का कवरेज न हो सके इसके लिए सत्तर यूट्यूब चैनल को प्रतिबंधित कर दिया गया है। यदि मीडिया नहीं बचेगा तो क्या होगा। अब सब लोग कहने लगा है कि देश में अघोषित आपातकाल है। " 

स्वतंत्र पत्रकार अमरनाथ झा ने बताया " अब जैसे अयोध्या में राममंदिर का इतना डंका बजाया गया लेकिन देखिए कोई रामानंदी संप्रदाय का आदमी नहीं गया। मीडिया में पूंजीपतियों पर कब्जा पहले भी था। आजादी के पहले भी ऐसा था। पहले घराना था। फिर ट्रस्ट से अखबार निकलने की प्रथा चली। लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाया। ट्रस्ट से निकलने वाला अखबार 'ट्रिब्यून' है। वहां अच्छी सैलरी मिलती थी।  सवाल यह है कि ट्रस्ट वाला मॉडल क्यों नहीं सफल हो पाया ? इंडियन एक्सप्रेस का जूट मिल था, सभी अखबारों का  असली व्यवसाय कुछ और है समाचार पत्र के अलावा।  यह हिंदी क्षेत्र का संकट है। 'आनंद बाजार पत्रिका' जैसे अखबार सिर्फ  अखबार निकालते हैं कोई दूसरा धंधा नहीं करते । 'इंडियन एक्सप्रेस' की ऐसी मंशा थी लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाया। इंडिया एक्सप्रेस में थोड़ी आजादी ज्यादा है। समाज के हर क्षेत्र को हिस्सा मिले। यदि उसमें पेशेवर रुख रहेगा तो ठीक रहेगा। एन.डी.टी.वी  इस कारण खरीदा गया क्योंकि वह बाजार में चला गया। बाजार में हस्तक्षेप कर उसे अडानी  ने खरीद लिया। ठेके पर पत्रकारों पर रखने का काम 1991 के बाद शुरू हुआ है। सरकार  भी ठेके पर चल रही है। सरकार ढेर सारे कामों से खुद को पीछे खींच रही है। यह सरकार और समाज के पूंजीवादीकरण का नतीजा है।" 

 'ऐप्सो' के संरक्षक मंडल सदस्य आनंद माधव ने अखबारों में प्रबंधन से जुड़े अनुभवों के बारे में बताया " मीडिया अपनी विश्वसनीयता खो चुकी है। मोदी जी जब  एक टीवी चैनल  का उद्घाटन करने गए तो कहा की विरोधियों से भर दिया। आजकल विरोध करने वालों की औकात बताने की कोशिश की जाती  है। आजकल मैं व्हाट्सअप कॉल करता हूं डर रहता है कि फोन टेप न किया जा रहा हो। छोटे से छोटे अधिकारियों, जिन पर थोड़ा भी मोदी विरोधी होने का संदेह हो उनका फोन टेप किया जाता है। कैसे व्यवस्था के विरोध की चीजों को जगह मिले यह ध्यान देना होगा। "

बिहार के सबसे पुराने अखबार  'बिहार हेराल्ड ' के संपादक बिद्युतपाल ने कहा " मैं संपादक अचानक 2015 में बना। पहले हम जिसे साम्राज्यवाद कहते थे उस जगह पर भारतीय पूंजीपति वर्ग आ  गया है। एक ऐसा प्लेटफॉर्म बने जहां सब तरह के लोग रहें तो अच्छा हो।  जहां किसी भी पत्रकार पर हमला हो उसका ध्यान रखा जाए, उसका विरोध किया जाए।  किसी भी सरकार हो पत्रकारों की रक्षा करने की  कोशिश करनी चाहिए। "

बी.बी.सी की पत्रकार सीटू तिवारी ने कहा " ग्राउंड पर जो पत्रकार काम करते हैं वे अपना कुछ और कारोबार करते हैं क्योंकि बतौर पत्रकार घर बार नहीं चलता। हमारा 1956 में दिल्ली घोषणापत्र है जिसमें पत्रकारिता को व्यवसाय से अलग कर करना होगा। जब तक पत्रकारों को आर्थिक रूप से स्वतंत्र नहीं किया जाएगा तक तक यह विलाप ही चलता रहेगा। आज हम किसी को  'शुक्रिया' कहते हैं  तो हमें मुसलमान समझा जाता है।  ऐसे पत्रकारों का नेटवर्क तैयार हो रहा है जिनको ग्राउंड का अनुभव नहीं है। न्यूजरूम का चरित्र वर्गीय हो गया है उस कारण पूंजीपतियों का कब्जा बढ़ता जा रहा है। विज्ञप्ति  वैसे का वैसे ही छाप दिया जाता है। अपनी ओर से कोई मेहनत नहीं करते। मीडिया पर कब्जा 2014 से पहले का है। पैसा कहां से आ रहा है यह देखना होगा। यही मुख्य चीज है। मीडिया पर कब्जा है इसकी समझ भी नहीं है।"

मसौढ़ी से आए क्षत्रपाल प्रसाद  के अनुसार " ऐसा प्रतीत हो रहा है कि देश तानाशाही की ओर जा रहा है। चौथे स्तंभ के लिए भी संघर्ष होना चहिए। सड़कों पर आवाज आनी चहिए। जिस दिन जनता को जगाने को सफल हो जाएंगे हमारी लड़ाई आगे बढ़ जायेगी। " 

लेखक व सामाजिक कार्यकर्ता  अभय पांडे ने  कई उदाहरण देते हुए कहा कहा " इंदिरा गांधी को प्रेस पर प्रतिबंध लगना पड़ा था आज तो उसकी जरूरत भी नहीं है।  आज प्रधानमंत्री कार्यालय से एजेंडा सेट किया जा रहा है। मीडिया बता रहा है कि किसान आंदोलन जरूरी नहीं है। ऐसा फासिज्म है जो सबको तबाह करने पर तुला है। "

असिस्टेंट प्रोफेसर नीरज के अनुसार " पत्रकार राज्य और बाजार से कैसे स्वतंत्र हो सके इसका उपाय सोचना होगा। प्राइम टाइम के नाम पर रिपोर्टिंग को समाप्त कर दिया गया। इसी चीज को यूट्यूब वाला भी ऐसे ही फॉलो करता  है। " 

अध्यक्ष मंडल की ओर  राजीव रंजन और प्रीति सिंह  ने वक्तव्य  दिया। अध्यक्ष मंडल के अन्य सदस्य थे अर्चना सिन्हा और गजनफर नवाब। 

कन्वेंशन को बिजली मजदूरों के नेता  डी.पी यादव,   माकपा नेता अरुण मिश्रा, पटना जिला किसान सभा के संयोजक  गोपाल शर्मा और 'ऐप्सो' के राज्य महासचिव  सर्वोदय शर्मा,  विनोद पासवान, बाढ़ के शैलेंद्र शर्मा, विनोद पासवान,  अशोक गुप्ता आदि ने भी संबोधित किया। जनवादी लेखक संघ के राज्य सचिव विनिताभ ने एक कविता का  पाठ किया।

कन्वेंशन में मसौढ़ी, बाढ़, खुसरूपुर आदि जगहों से आए लोग शामिल हुए।

कन्वेंशन में  प्रमुख लोगों में थे अनिल कुमार राय, कुमार सर्वेश, चंद्रबिन्द सिंह, मणिभूषण कुमार, बिट्टू भारद्वाज, पुष्पेंद्र शुक्ला, रमेश सिंह, सिकंदर-ए-आज़म, रौशन कुमार, गोपाल शर्मा, मनोज कुमार, मदन प्रसाद सिंह , अरुण शाद्वल, विश्वजीत कुमार,  जितेंद्र कुमार, सुनील सिंह,  पीयूष रंजन झा, भोला पासवान, अभिषेक कुमार, रामजीवन सिंह,  मनोज, एडवोकेट उदय कुमार, 'प्राच्य प्रभा'  के संपादक विजय कुमार सिंह, रंगकर्मी राकेश रंजन, अमोल आदि।

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