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पश्चिम बंगाल : 2021 चुनाव से पहले ममता बनर्जी ने चावल ख़रीद के लक्ष्य को बढ़ाया

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री इस अनिश्चित घड़ी में कोई भी मौक़ा चूकना नहीं चाहती हैं।
Mamata Banerjee

कोलकाता: उनके अनुसार, चावल, पश्चिम बंगाल में "एक राजनीतिक फसल" है। मंगलवार यानी 12 मई को ही ममता बनर्जी ने विपक्ष के सामने सवाल खड़ा किया था कि वे सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से खाद्यान्न की आपूर्ति, कोरोना वायरस और लॉकडाउन पर राजनीति क्यों कर रहे हैं; देखने की बात यह है कि राज्य में अगली विधानसभा के लिए चुनाव लगभग एक साल की दूरी पर ही हैं।

लेकिन ख़ुद ममता के दिमाग़ में राजनीति और अगले विधानसभा चुनाव दोनों ही हैं। इसलिए उसने चुपचाप चावल ख़रीद लक्ष्य को सराहनीय ढंग से बढ़ा दिया है, जाहिर तौर पर, ऐसा इसलिए किया गया है ताकि पीडीएस चावल के स्टॉक में नवंबर-अंत/दिसंबर की शुरुआत तक एक दिन भी चावल का भंडार कम न हो, खासकर जब सर्दियों की धान की फसल, 'अमन' तैयार होती है। क्योंकि वे चाहती हैं कि अगले साल चुनाव की पूर्व संध्या पर चावल कोई मुद्दा नहीं बनना चाहिए।

बेशक, सुचारू रूप से पीडीएस को चलाने के लिए, केंद्र की तरफ से चावल की आपूर्ति की कुल उपलब्धता की हिस्सेदारी काफी उचित है। लेकिन, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ऐसे अनिश्चित समय में किसी भी तरह की चूक नहीं करना चाहती हैं। और फिर, भले ही नई दिल्ली चावल की आपूर्ति के मामले में अपनी प्रतिबद्धता निभाने में सक्षम हो, लेकिन यह जरूरी नहीं है कि चुनावी समय में वह इस तथ्य पर निर्भर रहे। इसलिए अब वह लगातार दूसरी बार तृणमूल कांग्रेस का नियंत्रण ‘नबन्ना’ -  यानी राज्य सचिवालय पर नियंत्रण रखना चाहेंगी।

पश्चिम बंगाल में धान की वार्षिक ख़रीद पिछले कुछ वर्षों में 30-35 लाख टन की रेंज में हुआ करती थी। इस बार का लक्ष्य 52 लाख टन निर्धारित किया गया है और पहले से ही लगभग 32 लाख टन की ख़रीद की जा चुकी है। जानकार सूत्रों के अनुसार, नबन्ना गंभीरता से धान ख़रीद लक्ष्य में और बढ़ोतरी करने पर विचार कर रहा हैं। बेशक, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा इस ऊंची ख़रीद कार्यक्रम को साकार करने के लिए धन का इंतजाम कैसे करते हैं। इस चरण में कोविड-19 के ख़िलाफ़ लड़ाई जारी रखने के साथ-साथ  पीडीएस भी एक सर्वोच्च प्राथमिकता है। नई दिल्ली के साथ टकराव एक बढ़ी मुसीबत के रूप में काम करेगा।

बंगाल राइस मिल्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सुशील चौधरी से जब इतना अधिक धान ख़रीद के लक्ष्य को रखने की सलाह के बारे में पूछा गया तो उन्हौने कहा कि अब राज्य सरकार की प्राथमिकता बदल गई है क्योंकि कोरोनोवायरस संबंधित संकट बढ़ गया है और पीडीएस के माध्यम से आपूर्ति को बढ़ाया जाना जरूरी है। यह एसोसिएशन बंगाल नेशनल चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री से संबंधित है। चौधरी पटियाला स्थित अखिल भारतीय चावल मिल संघों के महासचिव भी हैं।

लेकिन, तात्कालिक संदर्भ में देखा जाए तो 'बोरो' धान की फसल, जो रबी की गर्मियों की फसल कहलाती है वह कई जिलों में कई तरह के प्रकोपों को झेल रही है, जिसमें पूर्वी बर्दवान, जो राज्य को चावल का बड़ा हिस्सा देता है, फसल की कटाई के अपने लक्ष्य से बहुत पीछे है। और इसलिए इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं कि पूर्वी बर्दवान ज़िले में चावल मिलों का काफी प्रसार है। बर्दवान राइस मिल्स एसोसिएशन के सचिव सुब्रत मोंडोल के अनुसार, राज्य की कुल 1,400 चावल मिलों में से इस ज़िले में 533 मिल हैं जो 140-150 लाख टन चावल का वार्षिक उत्पादन संभालती हैं।

धान की 'बोरो' फसल की कटाई के मामले में रुकावट एक तो खेत मज़दूरों की कमी से है, साथ ही ओलावृष्टि, बारिश है और अन्य राज्यों से ड्राइवरों और सहायकों को लाने, कटाई के काम के लिए मशीनों की तैनाती के संबंध में निर्णय लेने में देरी है, और इस सब के लिए आसानी से  स्पेयर पार्ट्स की उपलब्धता भी जरूरी है। पूर्वी बर्दवान ज़िले में कटाई मशीनों की तैनाती एक प्रमुख मुद्दा बन गया है।

कृषि मज़दूर कैसे दूर-दराज के इलाकों में प्रवासी श्रमिक बन जाते हैं, इसका उदाहरण है कि वे ज़िंदा रहने के लिए उत्तर बंगाल में उपलब्ध दिसंबर-अंत तक 'अमन' धान की कटाई कराते हैं और उसके बाद वे 'खेत मज़दूर’ निर्माण मज़दूर बनकर दूसरे राज्यों जैसे केरल, हरियाणा और नोएडा में अपनी आजीविका कमाने के लिए चले जाते हैं। वे हमेशा 'बोरो' धान की फसल की कटाई के लिए अपनी वापसी को सुनिश्चित रखते हैं। लेकिन इस बार तालाबंदी के कारण वे वापस नहीं लौट सके। अखिल भारतीय अग्रगामी किसान संगठन के अखिल भारतीय संयुक्त संयोजक गोबिंदा रे और हरिपद विश्वास के अनुसार, इससे न केवल फसल की कटाई में देरी हुई है बल्कि धान की गुणवत्ता पर भी असर पड़ा है, यह संगठन आल इंण्डिया फारवर्ड ब्लॉक से संबंधित है। 

भारत-बांग्लादेश सीमा के साथ लगे कूचबिहार और दक्षिण 24 परगना के बीच 10 जिलों में 64 ब्लॉकों आते हैं, यहाँ के आम लोगों के लिए कृषि उन हजारों लोगों के जीवन का मुख्य आधार है जो रबी धान उगाते हैं और यहां तक कि बड़े खेतों में दालें भी उगाते हैं जो सीमा के शून्य  प्वाइंट और कांटेदार तार की बाड़ के आसपास हैं जहाँ आवागमन की सुविधा के लिए गेट लगाए गए हैं। चूंकि लॉकडाउन लागू होने के बाद से इन फाटकों को बंद कर दिया गया था, इसलिए बहुत से लोग खेती की प्रक्रिया को पूरा नहीं कर सके, और जो लोग कर सके वे पकी फसल को समय पर काटने में असमर्थ थे। इस प्रकार, लोगों को भारी नुकसान हुआ है, उक्त बातें रे ने जलपाईगुड़ी से फोन पर बात करते हुए न्यूजक्लिक को बताई।

इन मुख्य धान की फसलों के बीच, किसान अपनी ज़मीनों पर नकदी फसल उगाते हैं जिसमें वे सब्जियों और फल की खेती के माधायम से अपनी आय कमाते हैं। इनका सामान्य समय में एक तैयार बाजार होता है और असम के साथ अलग-अलग जगहों से ख़रीदार आते हैं और यहां तक कि बेंगलूरु से ख़रीददार आकर सिलिगुड़ी से माल ख़रीदते हैं और वहाँ से परिवहन की व्यवस्था करते हैं, बता दें कि सिलिगुड़ी उत्तर बंगाल का एक महत्वपूर्ण व्यवसाय केंद्र है। बिस्वास और रे के मुताबिक, किसान लॉकडाउन के कारण परिवहन के अभाव के चलते अपनी उपज को बेच नहीं पा रहे हैं। 

पूर्वी बर्दवान में चावल की फसल को बचाने के लिए उपज की कटाई के लिए मशीनों को लगाना जरूरी हो गया है क्योंकि पश्चिम बंगाल के बांकुरा, पुरुलिया जिलों और झारखंड के आस-पास के स्थानों से कटाई के लिए ‘खेत मज़दूरों’ को लाना मुश्किल है। जिला प्रशासन को कटाई मशीनों को तैनात करने के साथ-साथ प्रशिक्षित ड्राइवरों, सहायकों को अन्य राज्यों से लाने के लिए विशेष रूप से पंजाब से और साथ ही स्पेयर पार्ट्स लाने की अनुमति दे देनी चाहिए, इसकी गुहार प्रतिनिधि मण्डल ने जिला प्रशासन से लगाई है।

शेख अबसर अली और मदन मोहन घोष जिनकी ज़िले में काफ़ी खेती है, ने कहा, “चूंकि महामारी को नियंत्रण करना सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता बन गई है, इसलिए जिला प्रशासन को निर्णय लेने और अनुमति देने में लंबा समय लगा है। इसलिए फसल की कटाई करना बाकी है। वे उम्मीद कर रहे हैं कि मशीनों के कुछ अतिरिक्त घंटों काम करने से वे बैकलॉग को पूरा करने में सफल होंगे और उपज को चावल मिल में भेज पाएंगे।” अली पूर्वी बर्दवान हार्वेस्टिंग मशीन ओनर्स एसोसिएशन के महासचिव भी हैं।

जो उपज उगाते हैं उनके लिए हालांकि मुश्किल हालत हैं, इस पर भी पश्चिम बंगाल में "चावल की राजनीति" पर कोई विराम नहीं है। किसानों 'खेत मज़दूरों’ को सम्मान का जीवन जीने के लिए वाम मोर्चा सरकार द्वारा बनाए गए बुनियादी ढाँचे और कृषि में सफलता के बल पर औद्योगिकीकरण के लिए एक स्थिर आधार को विकसित करने और अब उसे तृणमूल द्वारा ढहाने पर प्रक्रिया व्यक्त कराते हुए, पश्चिम बंगाल राज्य कृषक सभा के सचिव अमल हलदर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि अब यह सब कुछ अब मुख्यमंत्री पर निर्भर करता है। निर्णय लेने की कोई विकेंद्रीकृत व्यवस्था नहीं है। हालदार के मुताबिक, टीएमसी सरकार ने 'बिचौलियों के राज' की शुरुआत की थी और पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विभिन्न स्तरों पर चावल को सफलतापूर्वक आय का स्रोत बना लिया है। 

उन्होंने कहा, “हमारे समय में, तत्कालीन वित्त मंत्री आशिम दासगुप्ता फसल कटाई के लिए ज़िलों का दौरा करते थे और किसानों को उनकी उपज के लिए मिलिंग, ख़रीद और भुगतान के लिए संस्थागत व्यवस्था की जाँच करते थे। लेकिन अब, किसानों से उनकी उपज में से पांच से सात प्रतिशत यह कहकर काट लिया जाता है कि उनकी उपज में, काला अनाज, खड़ियायुक्त अनाज मौजूद है।”

किसान सभा के संयुक्त सचिव, परेश पाल जो भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के सदस्य हैं, ने कहा, “काग़ज़ों पर तो यह भारत सरकार का विनिर्देशन (specifications) होता हैं लेकिन वास्तव में यह "टीएमसी नेताओं और अन्य निहित स्वार्थों का विनिर्देश (specifications)" हैं। वे लोग किसानों से "अनधिकृत कटौती" का फ़ायदा उठाते है, जो सत्ता के साथ सांठगांठ करते हैं।” उन्होंने यह भी समझाया कि इसके माध्यम से ये लोग लाखों रुपये किसानों से ऐंठते हैं।

अंग्रेज़ी में लिखा मूल आलेख आप नीचे लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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