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हिंदू राष्ट्र यानी बाबा साहेब के सपनों का खात्मा

मौजूदा परिदृश्य में बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर के सपनों के भारत को वास्तविकता में लाना या उनके सपनो को साकार करना एक बड़ी चुनौती है।... सामंतवादी मानसिकता वाली सत्ताधारी और वर्चस्ववादी ताकतें संविधान को दरकिनार कर हिंदू राष्ट्र का निर्माण करना चाह रही हैं।  
ambedkar

हर बार हमारे राजनेता बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर उनका भक्त होने (अनुयायी नहीं) का दावा करेंगे। उनके बताए मार्ग पर चलने की बात कहेंगे। उनके सपनो के भारत की बात करेंगे। पर असल में वे करेंगे इसका उल्टा। आज उनकी करनी-कथनी को समझने की आवश्यकता है। अपने वोट बैंक की खातिर उनकी मजबूरी है कि उन्हें बाबा साहेब को याद करना पड़ता है। दरअसल वे आम जन और खासतौर से वंचित वर्गों को भरमाने के लिए यह दिखावा करते हैं कि वे भी बाबा साहेब को मानते हैं। बाबा साहेब उनके लिए पूज्यनीय हैं। पर उनकी मंशा और पूरा जोर हिंदू राष्ट्र बनाने पर ही रहता है। दूसरी ओर बाबा साहेब हिंदू राज के बारे में क्या कहते थे। देखिए उनका एक उद्धरण-“यदि हिंदू राज एक सच्चाई बन  जाता है तो निस्संदेह यह इस देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य होगा। चाहे हिंदू कुछ भी कहें, हिंदू ध्रर्म समानता, स्वतन्त्रता और बंधुत्व के लिए खतरा है। यह लोकतंत्र के लिए असंगत है। किसी भी कीमत पर हिंदू राज को स्थापित होने से रोका जाना चाहिए। - डॉ. बी.आर.आंबेडकर (थॉट्स ओन पकिस्तान, लेख एवं भाषण, खंड-8, पृष्ठ 358)   

बाबा साहेब ने जो चिंता अपने समय में व्यक्त की थी वह आज भी प्रासंगिक है।

फॉरवर्ड प्रेस हिंदी के संपादक रहे डॉ. सिद्धार्थ अपने एक लेख में कहते हैं, “आंबेडकर के लिए हिंदू राष्ट्र का सीधा अर्थ द्विज वर्चस्व यानी ब्राह्मणवाद की स्थापना था यानी हिन्दुओं का वर्चस्व सिर्फ मुसलमानों तक सीमित नहीं था बल्कि उनके हिंदू राष्ट्र का मतलब दलित, ओबीसी और महिलाओं पर द्विजों के वर्चस्व की स्थापना था।

बाबा साहेब ने अपनी पुस्तक जाति का विनाश में कहा, “मैं हिंदू धर्म से इसलिए घृणा करता हूं की ये गलत आदर्शों को पोषित करता है। गलत सामाजिक जीवन जीता है। मेंरा विरोध हिंदू धर्म के सिद्धांतो को लेकर है।” वे साफ शब्दों में कहते हैं कि हिंदू धर्म के प्रति उनकी घृणा का सबसे बड़ा कारण जाति है, उनका मानना था कि हिंदू धर्म का प्राण जाति है और इन हिन्दुओं ने अपने इस जाति के जहर को सिखों, मुसलमानों और क्रिश्चियन में भी फैला दिया है. वे लिखते हैं कि ‘इसमें कोई संदेह नहीं कि जाति आधारभूत रूप से हिंदुओ का प्राण है। हिन्दुओं ने सारा वातावरण गंदा कर दिया है। सिख, मुस्लिम और क्रिश्चन सारे इस से पीड़ित हैं।‘

बाद में उन्होंने यह भी कहा कि हिंदू धर्म में जन्म लेना मेंरे वश में नहीं था लेकिन मैं हिंदू धर्म में मरूंगा नहीं।

मौजूदा दौर में सामंतवादी मानसिकता वाली सत्ताधारी और वर्चस्ववादी ताकतें संविधान को दरकिनार कर हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना चाह रही हैं। अपने अजेंडे के तहत वे मुग़ल साम्राज्य को, मुसलमानों को पाठ्यक्रम से हटा रही हैं। जागरूक दलितों और आदिवासियों तथा महिलाओं पर अत्याचार बढ़ रहे हैं। आरएसएस जैसे कई हिंदू संगठन इन्हें हिंदूवादी विचारधारा में रगने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। 2025 में आरएसएस के 100 साल पूरे होने वाले हैं। इससे पहले ही उनका हिंदू राष्ट्र बनाने का सपना है। हिंदूवाद्दी संत-महंत भी पीछे नहीं हैं। धीरेंद्र शास्त्री उर्फ़ बागेश्वर बाबा जोर-शोर से हिंदू राष्ट्र की मुहिम चला रहे हैं। यूनाइटेड हिंदू फ्रंट के प्रमुख जयभगवान गोयल उत्तरी-पूर्वी दिल्ली के करावल नगर को हिंदू राष्ट्र का पहला जिला घोषित करना चाहते हैं। मुसलमानो के खिलाफ लगातार नफरत फैलाई जा रही है। इसके लिए पंचायते की जा रही हैं। अखिल भारतीय हिंदू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय जाट द्वारा गोकाशी के नाम पर हत्या की साज़िश रची जाती है। भीड़ द्वारा मुसलामानों की हत्याएं इस तरह  की नफरत के जीवंत उदहारण हैं। हाल ही रामनवमी के अवसर पर हम सब ने देखा किस तरह देश के कई राज्यों में साम्प्रदायिक हिंसा भड़काई गयी।

हम सब जानते हैं कि हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना हिंदुओं का धर्मग्रन्थ कही जाने वाली मनुस्मृति पर आधारित है। अब मनुस्मृति की फिर से वापसी हो रही है। निश्चित ही यह संविधान और लोकत्रंत के लिए चिंता का विषय है। यानी हम अभी पितृसत्ता और जाति की गुलामी से पूरी तरह  मुक्त भी नहीं हो पाए थे कि अब वही गुलामी फिर से हम पर थोपने की साज़िश की जा रही है।  

आज अगर बाबा साहेब की कोई 22 प्रतिज्ञाएं दोहराता है तो यह उसका अपराध हो जाता है। आम आदमी पार्टी के राजेंद्र पाल गौतम का उदहारण हमारे सामने है। उनकी हत्या तक के फतवे कारी किए गए। हिंदूवादी 22 प्रतिज्ञाओं से क्यों डरते हैं इसका कारण बहुत साफ़ है। वे हिंदू धर्म के खिलाफ हैं जैसे आप पहली दो प्रतिज्ञाओं को ही ले लीजिये :

1. मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूंगा और न ही उनकी पूजा करूंगा।

2. मैं राम और कृष्ण, जो भगवन के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूंगा और न मैं उनकी पूजा करूंगा।

दूसरी तरफ संविधान की प्रस्तावना जो कि “हम भारत के लोग” से शुरू होती है और बताती है कि भारत एक सम्पूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथ-निरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य है। यहां सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिलेगा, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता होगी, प्रतिष्ठा और अवसर की समता होगी। और भी बहुत अच्छी-अच्छी बातें लिखीं हैं जैसे नागरिकों के साथ उनकी जाति, धर्म और लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जा सकता। विचारों की अभिव्यक्ति पर कोई अनुचित पाबंदी नहीं है। कानून के समक्ष सभी लोग समान हैं। सब को अपना-अपना धर्म मानने की पूरी स्वतंत्रता है। सामाजिक संपदा पर सभी नागरिकों का समान अधिकार है। सरकार जमीन  और उद्योग धंधो की हकदारी से जुड़े कायदे-क़ानून ऐसे बनाए कि सामजिक-आर्थिक असमानताएं कम हों। हम सब ऐसा आचरण करें कि जैसे हम एक परिवार के सदस्य हों। कोई भी नागरिक दूसरे नागरिक को अपने से कमतर न माने।

बाबा साहेब के सपनो के भारत के बारे में बात करने पर वरिष्ठ  दलित साहित्यकार और सामाजिक चिंतक डॉ. जयप्रकाश कर्दम कहते हैं, “बाबा साहेब का सपना था कि भारत में वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना हो। वे चाहते थे कि समतामूलक समाज बने। लोगों की सोच वैज्ञानिक और प्रगतिशील हो। लैंगिक समानता हो यानी स्त्री-पुरुष में किसी प्रकार का भेदभाव न हो। जाति और धर्म के नाम पर समाज में असमानता न हो।... नागरिकों में बंधुत्व की भावना हो। लोग एक दूसरे की मानवीय गरिमा का सम्मान करें। दलितों-पिछड़ों आदिवासियो और अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण हो। समाज में सद्भाव हो। पर बिना सम्मान के सद्भाव आ नहीं सकता। जब तक समानता नहीं होगी तब तक सम्मान नहीं होगा।”

संविधान में आर्थिक असमानता कम करने की बात कही गई है। पर आज की वास्तविकता या कहें कडवी सच्चाई यह है की आर्थिक असमानता की खाई निरंतर और बढ़ती जा रही है। आज देश के मुट्ठीभर पूंजीपतियों के पास देश के 70 करोड़ से अधिक नागरिकों के बराबर संपत्ति है।

संविधान में सामजिक समानता की बात कही गई है पर यहां जाति-धर्म-सम्प्रदाय के कारण सामाजिक असमानता और बढ़ रही है।
आज भी देश के नागरिकों का बड़ा वर्ग हाशिये पर है। बाबा साहेब ने राजनीति में बराबरी के लिए वंचित वर्ग को प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था। पर आज आरक्षण भी महत्वहीन होता जा रहा है। निजीकरण कर आरक्षण को समाप्त किया जा रहा है। दरअसल आरक्षण की मूल भावना प्रतिनिधित्व को समाप्त कर इसे गरीबी मिटाने का साधन मान लिया गया है। इसलिए सवर्ण  तबकों को भी आरक्षण दिया जा रहा है। यह संविधान की मूल भावना के विरुद्ध है।

संक्षेप में कहें  तो आज हिंदू राष्ट्र निर्माण वाली ताकतों के कारण हमारा लोकतंत्र और संविधान दोनों खतरे में हैं। बाबा साहेब के सपनों का भारत खतरे में है। सचमुच बाबा साहेब के सपनों का खात्मा हो रहा है। हमें आज बाबा साहेब के विचारों, उनके सपनों को बचाने के लिए बड़े स्तर पर एकजुट होने और क्रांतिकारी कदम उठाने की जरूरत है।

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