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विधानसभा चुनाव: महिला आरक्षण के शोर के बीच महिलाओं को टिकट देने में पीछे रहीं राजनीतिक पार्टियां

राजनीतिक दलों में अभी भी पितृसत्ता का बोलबाला है और वो महिला उम्मीदवारों को 'जीताऊ' नहीं मानते। शायद यही कारण है कि टिकटों के मामले में महिलाओं की स्थिति जस की तस बनी हुई है।
women reservation bill
फ़ोटो साभार : सोशल मीडिया

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने संसद से महिला आरक्षण बिल पास करवा लिया। इसके बड़े-बड़े होर्डिंग्स और पोस्टर आपको जहां-तहां देखने को आसानी से मिल जाएंगे। हालांकि इस आरक्षण के अमल में अभी एक लंबा समय बाकी है, फिर भी संसद में पारित हुए इस नारी शक्ति वंदन अधिनियम के बाद पहली बार पांच राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिज़ोरम में विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। ऐसे में एक नज़र पार्टियों द्वारा दिए जा रहे महिला उम्मीदवारों के टिकट पर, जो अपने आप में राजनीतिक दलों में महिलाओं की वास्तविक स्थिति बयां करते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी ने नारी शक्ति वंदन अधिनियम को इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की लेकिन वो वास्तव में मुद्दा बन नहीं पाया। और शायद यही कारण है कि सभी राजनीतिक दलों में भी महिलाओं की स्थिति थोड़ी बहुत ऊपर नीचे के साथ जस की तस बनी हुई है। पार्टियों ने महिला उम्मीदवारों को ज़्यादा टिकट नहीं दिया और इसका कारण था कि लोगों के बीच ये संदेश पहले ही जा चुका था कि ये अधिनियम संसद में पारित हो चुका है लेकिन इसे अमलीजामा पहनाने में समय लगेगा।

राजस्थान

शुरुआत करें, हिंदी पट्टी के बड़े राज्य राजस्थान से तो यहां कुल 200 सीटों में से कांग्रेस ने 28, बीजेपी ने 20 और आम आदमी पार्टी (आप) ने 19 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। जबकि पिछले चुनाव में बीजेपी ने 23, कांग्रेस ने 26 और आप ने करीब 9 महिलाओं को टिकट दिया था।

कुल मिलाकर देखें तो, यहां बीजेपी ने पहले से भी कम सीटें महिलाओं के खाते में डाली हैं, तो वहीं कांग्रेस और आप में थोड़ी बढ़ोतरी जरूर देखने को मिली है। राजस्थान की सियासत में वसुंधरा राजे एक बड़ी महिला नेता हैं, जो राज्य की मुख्यमंत्री भी रह चुकी हैं, लेकिन बीजेपी इस बार उन्हें कोई खास भाव देती हुई दिखाई नहीं दे रही। उनके क़रीबियों तक के टिकट कटने की खबरें सुर्खियों में हैं।

यहां महिला वोटरों को लुभाने के लिए तमाम वादे और योजनाएं जरूर हैं लेकिन वास्तव में उनके हालात बदलने के लिए क्या बदल रहा है, इसका अनुमान लगाना कोई बड़ी बात नहीं है। गहलोत सरकार ने यहां महिलाओं को फ्री में मोबाइल फोन और डेटा देने के साथ ही रियायती गैस सिलेंडर, बच्चियों को मुफ्त शिक्षा आदि कई उपहार दिए हैं, बावजूद इसके महिलाओं की सुरक्षा यहां महिलाओं के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है।

मध्य प्रदेश

मध्य प्रदेश भी इस चुनाव में एक महत्वपूर्ण राज्य है। यहां बीते चुनाव के बाद नाटकीय ढंग से सत्ता परिवर्तन हुई, तो वहीं अब ये कांग्रेस-बीजेपी दोनों के लिए नाक का सवाल बन गया है। यहां प्रदेश की 'बहनों के भाई बनने वाले मामा' शिवराज सिंह चौहान की सरकार है। हालांकि यहां भी महिला नेताओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है। मध्य प्रदेश की कुल 230 विधानसभा सीटों में से बीजेपी ने महिलाओं को 30, कांग्रेस ने 28 और आप ने 10 सीटों पर उम्मीदवार बनाया है। यहां 2018 में बीजेपी ने 24, कांग्रेस ने 27 और आप ने 24 सीटें महिलाओं को दी थीं।

महिलाओं को अपने पाले में लेने के लिए शिवराज सरकार ने कई योजनाएं, लाडली बहन योजना, लाडली लक्ष्मी योजना, मुख्यमंत्री कन्या विवाह योजना आदि की घोषणा की है। कांग्रेस भी यहां नारी सम्मान योजना की बात कर रही है, लेकिन धरातल पर सच्चाई इससे अलग ही कहानी बयां कर रही है।

छत्तीसगढ़

मौजूदा समय में कांग्रेस शासित प्रदेश छत्तीसगढ़ बीजेपी के लिए एक खासी चुनौती बना हुआ है। इस 90 सीट वाले राज्य में दो चरणों में मतदान तय किया गया है। यहां सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी दल बीजेपी दोनों का दावा है कि उनकी कई योजनाएं महिलाओं के लिए हैं लेकिन टिकटों की बात की जाए, तो जहां कांग्रेस ने 18 तो बीजेपी ने 15 महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। जबकि पिछले चुनाव में बीजेपी ने 14 और कांग्रेस ने 12 महिलाओं को टिकट दिया था। यहां महिलाओं को बमुश्किल 11 से 15 फीसद ही टिकट दिया गया था।

यहां प्रदेश में बघेल सरकार ने गैस सिलेंडर पर सब्सिडी, महिला स्व-सहायता समूह की कर्ज़ माफ़ी और 10 लाख रुपए तक का इलाज़ जैसी योजनाओं की घोषणा की है। वहीं बीजेपी हर विवाहित महिलाओं को 12 हज़ार रुपए देने के अलावा रानी दुर्गावती योजना देने का वादा किया है जिसके तहत बीपीएल वर्ग की बालिकाओं के जन्म पर एक लाख रुपए का आश्वासन प्रमाण पत्र जारी किया जाएगा। जाहिर है जहां महिला वोटरों की संख्या भी अधिक है, इसलिए पार्टियों का खास ध्यान है उनकी ओर। लेकिन ये उनको असल में कितना फायदा देंगे, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा।

मिज़ोरम                 

पूर्वोत्तर राज्य मिज़ोरम में 40 विधानसभा सीटों के लिए सात नवंबर को लोगों ने मतदान कर दिया है। यहां भी महिला उम्मीदवारों की स्थिति कुछ खास नहीं है। यहां पार्टियों ने कुल मिलाकर 16 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया जिसमें बीजेपी की तीन, एमएनएफ़ की दो, जेडपीएम की दो और कांग्रेस की दो महिला नेता शामिल हैं। जबकि बीते चुनाव में यहां कुल 15 महिलाओं ने अपनी किस्मत आज़माई थी, जिसमें से एक को भी सफलता नहीं मिली थी। 2018 के चुनाव में बीजेपी ने यहां 6 और कांग्रेस ने एक सीट महिला उम्मीदवारों को दी थी, जबकि नेशनल फ्रंट, द पीपल्स रिप्रेजेंटेशन फॉर आइडेंटिटी ऐंड स्टेटस ऑफ मिजोरम (प्रिज्म) और नेशनल पीपल्स पार्टी ने एक भी महिला को टिकट नहीं दिया था। धर्म आधारित समूह जोरामथार ने पांच महिला उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था।

तेलंगाना

करीब एक दशक पहले बने राज्य तेलंगाना में 119 विधानसभा सीटें हैं। यहां सीधे स्थानीय सत्तारूढ़ पार्टी भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस), कांग्रेस और बीजेपी में चुनावी टक्कर है। यहां मतदान 30 नवंबर को होना है, ऐसे में अभी पूरी तरह टिकटों का बंटवारा नहीं हुआ है। लेकिन जानकारी के मुताबिक़ बीआरएस ने 117 में से आठ महिलाओं, कांग्रेस ने 114 में से 10 और बीजेपी ने 100 सीटों में से 14 महिलाओं को उम्मीदवार बनाया है। पिछले चुनाव में यहां कांग्रेस ने महिलाओं को 11 सीटें, राष्ट्र समिति ने 4 सीटें, बीजेपी ने 14 और एआईएमआईएम ने एक भी महिला उम्मीदवार को टिकट नहीं दिया था।

गौरतलब है कि बीते सात नवंबर से आगामी 30 नवंबर के बीच इन सभी राज्यों में मतदान होना है। मिज़ोरम में मतदान हो चुका है, तो वहीं छत्तीसगढ़ में भी पहले चरण की वोटिंग हो चुकी है। सभी राज्यों के नतीज़े एक साथ 3 दिसंबर को जारी होंगे। ऐसे में इस बार कितनी महिलाएं चुनाव जीतकर विधानसभा पहुचंती हैं, ये देखना होगा। हालांकि इतना तो तय है कि राजनीतिक दल महिला हितैषी होने का दावे भले ही कर लें, लेकिन जब बात महिलाओं को टिकट देने की आती है तो उनकी पितृसत्तामक सोच ही दिखाई देती है।

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