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BHU: आंदोलनकारी छात्रों पर ABVP ने दर्ज कराई एफआईआर, NSUI ने कहा ‘रिपोर्ट झूठी’

आईआईटी-बीएचयू की छात्रा के साथ बदसलूकी करने वाले अभियुक्तों की गिरफ़्तारी और कैंपस में सुरक्षा को लेकर आंदोलन कर रहे कुछ छात्रों के ख़िलाफ़ बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने FIR दर्ज की है। इससे एक नया विवाद पैदा हो गया है।
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आईआईटी-बीएचयू की बीटेक सेकेंड ईयर की छात्रा के साथ बदसलूकी करने वाले अभियुक्तों की गिरफ्तारी और कैंपस में लड़कियों की सुरक्षा की मांग को लेकर लंका के सिंघद्वार पर आंदोलन कर रहे कुछ छात्रों के ख़िलाफ़ बनारस कमिश्नरेट पुलिस ने ठोस धाराओं में रिपोर्ट दर्ज की है। पुलिस के इस क़दम को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं। छेड़खानी की घटना को अंजाम देने वाले अभियुक्त छह दिन बाद भी पुलिस की पकड़ से दूर हैं। घटना का पर्दाफाश नहीं होने से आईआई-बीएचयू स्टूडेंट पार्लियामेंट को लगता है कि अपराधियों का कोई पॉलिटिकल कनेक्शन हैं। दूसरी ओर, पुलिस अफसर कई दिनों से एक ही आश्वासन दोहरा रहे हैं कि अपराधी जल्द ही उनके शिकंजे में होंगे।

बीएचयू कैंपस में छात्रा से छेड़छाड़ और बदसलूकी की वारदात के विरोध में स्टूडेंट्स का एक समूह लंका के सिंघद्वार पर धरना-प्रदर्शन कर रहा था। आंदोलित छात्रों ने 05 नवंबर, 2023 को प्रतिरोध मार्च निकलाने, बीएचयू कैंपस में केंद्र और राज्य सरकार के साथ ही कुलपति, आईआईटी के निदेशक का पुतला जलाने का ऐलान किया था। बनारस की कमिश्नरेट पुलिस के अफसर और बड़ी तादाद में सुरक्षाकर्मी मौके पर मौजूद थे। इसी बीच अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कार्यकर्ता वहां नारेबाज़ी करते हुए पहुंच गए। टकराव की नौबत पैदा न हो इसलिए सुरक्षाकर्मियों ने पहले से आंदोलन कर रहे छात्रों को गेट के पास बने प्रॉक्टोरियल बोर्ड के एक कमरे में बंद कर दिया। आरोप है कि उनके पुतले भी छीन लिए गए।

अफसरों के सामने हुआ विवाद

सुरक्षा के मद्देनज़र पुलिस ने कमरे में बंद छात्रों को बाहर निकालकर गाड़ी में बैठाने की कोशिश की। तभी छात्रों में आपस में भिड़ंत हो गई। सारी घटना पुलिस अफसरों के सामने हुई। लंका थाने में रिपोर्ट दर्ज करने के लिए दोनों पक्ष प्रॉक्टोरियल बोर्ड के पास पहुंचे, लेकिन एक पक्ष का आरोप है कि एफआईआर दर्ज कराने की अनुमति सिर्फ़ एबीवीपी के कार्यकर्ताओं को मिल पाई।

एबीवीपी की तहरीर पर लंका थाना पुलिस ने विभिन्न छात्र संगठनों से जुड़े 17 लोगों के ख़िलाफ़ अपराध संख्या-0453 के तहत आईपीसी की धारा 147, 505 (2), 323, 354 (ख), 504, 506 के अलावा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (नृशंसता निवारण) अधिनियम 1989 (संशोधन 2015) की  धारा 3 (1) (द), धारा 3 (1) (घ) और धारा 3 (1) (v) के तहत मामला दर्ज किया है।

यह रिपोर्ट एबीवीपी से जुड़ी बीए तृतीय वर्ष की छात्रा मेघा मुखोपाध्याय की तहरीर पर दर्ज की गई है। तहरीर में मेधा ने कहा है, "आरोपित छात्र आपत्तिजनक नारे लगा रहे थे और भाषण दे रहे थे। हमने नारेबाज़ी का विरोध किया तो अभियुक्तों ने हमारे साथ मारपीट शुरू कर दी। अनुसूचित जाति से जुड़े सीनियर छात्र राजकुमार को धमकी और जातिसूचक गालियां दी गईं। मेरा बाएं हाथ में और अदिति मौर्य के पैर में फैक्चर है। शिवांश की दाई आंख के नीचे गंभीर चोट आई है।"

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ एबीवीपी के पदाधिकारियों ने अपना पक्ष बताते हुए कहा कि उनके सदस्य, पिछले हफ़्ते छेड़खानी और बदसलूकी का शिकार हुई आईआईटी छात्रा को न्याय दिलाने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे थे। एबीवीपी ने आरोप लगाया कि 'आइसा' और 'बीसीएम' सदस्य वहां पहुंचे और उन्होंने हाथापाई शुरू कर दी।

एनएसयूआई ने कहा-रिपोर्ट झूठी

उधर, भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन (एनएसयूआई) ने एबीवीपी की ओर से दर्ज कराई गई रिपोर्ट को झूठ करार दिया। एनएसयूआई के प्रदेश महासचिव रोहित राणा ने न्यूज़क्लिक के लिए कहा कि "घटना के समय मैं और मेरे साथी मौके पर मौजूद नहीं थे। इसके बावजूद फर्जी मामले में मुझे और मेरे दो साथी- सुमन आनंद और राजीव नयन को नामजद किया गया है।"

राणा कहते हैं, "राजनीतिक विद्वेष के चलते बीएचयू प्रशासन और पुलिस से साठ-गांठ करके एबीवीपी ने फर्जी रिपोर्ट दर्ज कराई है। पुलिस के पास मारपीट और किसी भी तरह की हिंसा करने का कोई साक्ष्य नहीं है। वैचारिक विरोध के चलते हमारे ख़िलाफ़ एफआईआर कराई गई है। मैं चुनौती देता हूं कि वो हमें मारपीट करते हुए घटना स्थल का कोई भी फुटेज दिखा दें। सच यह है कि परिषद का काम कैंपस में हिंसा, झूठ और नफरत फैलाना हो गया है।"

बेहद गंभीर आरोप लगाते हुए राणा कहते हैं, "एबीवीपी की सतही राजनीति की हम कड़ी भर्त्सना करते हैं। साथ ही पुलिस की उनके साथ संलिप्तता की निंदा भी करते हैं। एबीवीपी के जिन छात्र-छात्राओं के हाथ-पैर पैर में फ्रैक्चर के दावे किए जा रहे हैं उनका पुनः मेडिकल परीक्षण कराया जाए, जिसमें प्रशासन और बीएचयू के निष्पक्ष चिकित्सकों की टीम को भी शामिल किया जाए। सच सामने आ जाएगा। साथ ही यह भी पता चल जाएगा कि दबाव बनाकर फर्जी मेडिकल रिपोर्ट कैसे तैयार कराई जाती है?"

"शर्मनाक बात यह है कि छात्रा पर हुई यौन हिंसा के आरोपितों को पकड़ने के लिए पुलिस पर दबाव बनाने के बजाय एबीवीपी के कार्यकर्ता पुलिस और प्रशासन के पक्ष में बोल रहे हैं। अब वो घटिया राजनीति पर उतारू हो गए हैं। लंका थाना पुलिस सिर्फ हवा में तलवार भांज रही है। आरोपितों को गिरफ्तार करने के बजाय बनारस कमिश्नरेट पुलिस छात्र हितों के लिए मुखर आवाज़ उठाने वालों की जुबान बंद करने में जुटी हुई है।"

दिशा छात्र संगठन से जुड़े अमित ने न्यूज़क्लिक को अपने अनुसार घटना का सिलसिलेवार ब्योरा भेजा है और दावा किया है कि एबीवीपी कार्यकर्ताओं की रिपोर्ट 'झूठ' है। न्यूज़क्लिक, अमित के दावों की सत्यता की पुष्टि बिल्कुल नहीं करता है। अमित कहते हैं, "बीएचयू के तमाम छात्र तीन नवंबर से लंका स्थित सिंघद्वार पर आईआईटी की घटना के ख़िलाफ़, पीड़िता को न्याय दिलाने, छात्राओं की सुरक्षा के लिए GSCASH का गठन करने जैसे तमाम मुद्दों को लेकर धरना दे रहे थे। आंदोलन में जनवादी संगठनों से जुड़े छात्र तमाम छात्र शामिल थे। पांच नवंबर 2023 को धरना स्थल पर प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सदस्यों ने आंदोलनकारी स्टूडेंट्स के साथ धक्का-मुक्की की। आंदोलन में शामिल आयुर्वेद संकाय के शोध छात्र और रोशन को पुलिस उठा ले गई। हम रोशन को वापस लाने के लिए पुलिस से जवाब मांग रहे थे। इसी बीच बड़ी संख्या में एबीवीपी के लोग मौके पर पहुंचे और झूठे आरोप लगाते हुए हमला बोल दिया। कई छात्राओं के साथ छेड़खानी की गई। गाली-गलौज करते हुए धमकियां दी गई। घटना स्थल पर मौजूद पुलिस अफसर और सुरक्षा कर्मचारी मूकदर्शक बने रहे और एबीवीपी के लोग हम पर हमला करते रहे।"

अमित का आरोप है, "एबीवीपी ने आंदोलनरत छात्र संगठनों पर ही हिंसा का आरोप मढ़ दिया। साथ ही टीवी चैनलों और सोशल मीडिया के ज़रिए दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। हमें लगता है कि सत्ता के दबाव में पुलिस और प्रॉक्टोरियल बोर्ड के लोगों ने हमें झूठे मामले में फंसाने के लिए बुलाया था। आंदोलन में शामिल कई छात्र-छात्राओं को गंभीर चोटें आई हैं, लेकिन न तो हमारी रिपोर्ट दर्ज की जा रही है और न ही मेडिकल कराया जा रहा है। मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि पूरे घटनाक्रम के दौरान अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े किसी छात्र अथवा छात्रा को कोई चोट नहीं आई है। वो जख्मी होने का अगर कोई मेडिकल रिपोर्ट पेश कर रहे हैं तो पूरी तरह फर्जी है।"

पुलिस पर सवाल

लंका गेट पर 5 नवंबर को हुई घटना के बाबत आंदोलनकारी छात्रों ने लंका थाना पुलिस और प्रशासनिक अफसरों पर गंभीर सवाल खड़ा किया है। इनका आरोप है कि "घटना के समय भारी फोर्स मौके पर मौजूद थी। छात्र आपस में भिड़ते रहे लेकिन सुरक्षाकर्मी उन्हें नियंत्रित क्यों नहीं कर पाए? पुलिस ने करीब दो घंटे तक आंदोलनकारियों को प्रॉक्टोरियल बोर्ड के कमरे में रखा। जब वहां एबीवीपी के कार्यकर्ता पहुंचे तो उन्हें हटाने की ज़रूरत क्यों नहीं समझी? प्रॉक्टोरियल बोर्ड ने सिर्फ एक ही पक्ष की रिपोर्ट दर्ज करने की संस्तुति क्यों दी? प्रॉक्टर ऑफिस ने हमारे आवेदन को फॉरवर्ड क्यों नहीं किया, जबकि सभी छात्र बीएचयू के ही थे?”

आंदोलनकारी छात्रों ने आरोप लगाते हुए सवाल किया कि "मौके पर मौजूद पुलिस अधिकारियों को आंदोलनकारी छात्रों ने अपनी चोट दिखाई फिर भी एकतरफा एक्शन क्यों लिया गया?”

तमाम आरोप-प्रत्यारोप और राजनीतिक बयानबाज़ी के बीच अहम सवाल यही है कि आईआईटी छात्रा के साथ बदसलूकी की घटना को अंजाम देने वाले आरोपियों की गिरफ़्तारी आख़िर कब होगी और कब प्रशासन तमाम छात्राओं को सुरक्षा का भरोसा दिलाने में कामयाब होगा?

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

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