Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

छात्रों के निलंबन से गरमा रहा बीएचयू, फीस वृद्धि और दमन के ख़िलाफ़ 21 को काला दिवस

"काशी हिन्दू विश्वविद्यालय अब आरएसएस की मॉडल यूनिवर्सिटी है और वह यहां स्टूडेंट्स के जीवन को अपने दर्शन के अनुरूप ढालने की कोशिश कर रहा है।"
student

भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठा रहे पांच छात्रों के निलंबन, मनमानी फीस वृद्धि और सुरक्षा गार्डों की बदसलूकी को लेकर काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के स्टूडेंट्स गुस्से में हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन के दमन और उत्पीड़न से क्षुब्ध स्टूडेंट्स ने बीएचयू बचाओ संघर्ष समिति का गठन कर 21 दिसंबर (बुधवार) को काला दिवस मनाने का अल्टीमेटम दिया है। इससे पहले 17 दिसंबर की रात छात्रों के समूह ने बीएचयू कैंपस में कुलपति प्रो. एसके जैन के खिलाफ पोस्टर लगाकर भ्रष्टाचार के मामलों में जवाब मांगा है।

बीएचयू में आंदोलन की सुगबुगाहट तभी शुरू हो गई थी जब विश्वविद्यालय प्रशासन ने बीते 12 दिसंबर 2022 को हिंदी विभाग के शोध छात्र मृत्युंजय तिवारी आज़ाद समेत पांच स्टूडेंट्स को 14 दिनों के लिए निलंबित करने का फरमान जारी किया। निलंबन की कार्रवाई 21 जुलाई 2022 को सर सुंदरलाल अस्पताल परिसर में चलने वाली उमंग फार्मेसी से जुड़ी शिकायत के लिए कुलपति दफ्तर पर प्रदर्शन करने के मामले में की गई है। बीएचयू के कुलपति को स्टूडेंट्स ज्ञापन सौंपना चाहते थे और सुरक्षाकर्मी उन्हें चैनल गेट पर रोक रहे थे।

क्यों उबल रहा बीएचयू ?

बीएचयू प्रशासन की ओर से मृत्युंजय तिवारी के साथ पाली और बौद्ध दर्शन में शोध छात्र वैभव कुमार तिवारी, अर्थशास्त्र विभाग के छात्र आशीर्वाद दूबे के अलावा दुष्यंत चंद्रवंशी और अवनींद्र राय के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की गई है। बीएचयू प्रशासन ने इन छात्रों पर कुलपति को अपशब्द कहने का आरोप लगाया है, जबकि निलंबित छात्रों ने इस आरोप को अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए सुनियोजित पेशबंदी करार दिया है। दंडित किए गए स्टूडेंट्स ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि बीएचयू प्रशासन भ्रष्टाचारियों को पनाह दे रहा है और छात्र हितों का गला घोंट रहा है। छात्रों के दमन और उत्पीड़न के खिलाफ बीएचयू बचाओ संघर्ष समिति का गठन किया गया है।

बीएचयू में स्टूडेंट्स के कई जत्थे 19 दिसंबर से अपने साथियों के बीच पर्चा और काली पट्टी बांट रहे हैं। बीएचयू प्रशासन के खिलाफ जगह-जगह पोस्टर भी चस्पा किए जा रहे हैं। आंदोलनकारी स्टूडेंट्स ने कहा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ रहे छात्रों का निलंबन तत्काल प्रभाव से वापस लेते हुए कैग के आदेश का अनुपालन करते हुए उमंग फार्मेसी के लाइसेंस को तत्काल प्रभाव से निरस्त नहीं किया गया तो आंदोलन तेज किया जाएगा।

बीएचयू प्रशासन के खिलाफ काला दिवस मनाने के लिए जिन छात्रों ने आंदोलन का बिगुल फूंका है उनमें निर्भय यादव, प्रांजल, डिक्रूज, सागर चौबे, विवेक सिंह, प्रशांत श्रीवस्ताव, निशांत, नलिन, विशाल यादव, राकेश गुप्ता, कृपाल, अंकित पाल, विवेक सिंह, प्रिंस, रजनीश अभिषेक आदि प्रमुख हैं। बीएचयू बचाओ संघर्ष समिति की ओर से बीएचयू प्रशासन के खिलाफ पीले रंग का पर्चा बांटा जा रहा है, जिसमें छात्र-संघ अध्यापक संघ और कर्मचारी संघ बहाली की मांग प्रमुखता से उठाई गई है। साथ ही मनमाने तरीके से बढ़ाई गई फीस को वापस लेने का मुद्दा भी उठाया गया है।

छात्रों ने बीएचयू प्रशासन पर आरोप लगाया है कि स्टूडेंट्स पर जबरिया 150 फीसदी फीस का बोझ डाला जा रहा है, जिससे गरीब छात्र पढ़ाई से दूर होते जा रहा हैं। छात्र हितों के मुद्दों को लेकर सोमवार को बड़ी संख्या में स्टूडेंट्स ने कैंपस में पोस्टर लगाए, पर्चे व काली पट्टी बंटी और आंदोलन तेज करने का संकल्प दुहराया।

“गुंडा बने गार्ड”

बीएचयू में छात्र असंतोष की एक बड़ी वजह है सुरक्षा गार्डों की कथित मनमानी और गुंडागर्दी। आरोप है कि गरीब घर से आने वाले अनुबंध पर तैनात सुरक्षा गार्डों को बीएचयू के अधिकारी छात्रों के दमन और उत्पीड़न में इस्तेमाल कर रहे हैं। 17 दिसंबर को बीएचयू कैंपस स्थित सेंट्रल ऑफिस में घुस रहे दर्जन भर छात्रों को सुरक्षागार्डों ने जबरिया रोक लिया और उन्हें कैदियों की तरह जमीन पर बैठने के लिए विवश किया। इससे नाराज छात्रों ने विरोध प्रदर्शन करते हुए धरना दिया। स्टूडेंट्स ने सवाल उठाया कि फैक्ट फाइंडिंग कमेटी की रिपोर्ट और हिन्दी शोध परीक्षा की जांच रिपोर्ट अब तक क्यों नहीं जारी की गई? आखिर, कब तक वो इंतजार करेंगे?

छात्र उमेश यादव और उसके साथियों एलानिया तौर पर आरोप लगाया, "बीएचयू प्रशासन ने गार्डों को गुंडा बना दिया है। हिंदी विभाग में पीएचडी प्रवेश परीक्षा में बड़े पैमाने पर धांधली हुई है, जिसकी जांच के लिए कुलपति ने फैक्ट फाइंडिग कमेटी बनाई थी। सेंट्रल ऑफिस में बारी-बारी से छात्रों और इंटरव्यू पैनल में बैठे प्रोफेसरों का बयान लिया गया। पांच महीने बीत जाने के बावजूद जांच रिपोर्ट का खुलासा अब तक नहीं किया जा सका। हम सेंट्रल ऑफिस में कुलपति से मिलने की गुहार लगा रहे हैं और अधिकारी हमें उनसे मिलने तक नहीं दे रहे हैं। सुरक्षाकर्मी हमें धरने के दौरान मारते-पीटते हैं। कोई यह तक बताने के लिए तैयार नहीं है कि आखिर हम अपनी पीड़ा और छात्रों की कठिनाइयों की शिकायत किससे करें?"

कैंपस में बड़े पैमाने पर पोस्टर चस्पा किए जाने और छात्र आंदोलन के अल्टीमेटम से बीएचयू प्रशासन की नींद उड़ गई है। एडमीशन, नियुक्ति से लेकर दवाओं की खरीद बिक्री में बड़े पैमाने पर हुए घपले-घोटालों का स्टूडेंट्स जवाब चाहते हैं, लेकिन अफसर चुप्पी साधे हुए हैं। अलबत्ता स्टूडेंट्स के खिलाफ दंडात्डात्मक कार्रवाई करते हुए उन्हें डराने की कोशिशें की जा रही हैं। चीफ प्रॉक्टर प्रो. अभिमन्यु सिंह ने मीडिया से कहा है कि परिसर में पोस्टर लगाने वाले चिह्नित किए जा रहे हैं। दोषी छात्रों के खिलाफ नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

क्या है फार्मेसी घोटाला?

उमंग फार्मेसी के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाने पर निलंबित किए गए हिन्दी के शोध छात्र मृत्युंजय तिवारी ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "कैग की जांच में उमंग फार्मेसी द्वारा किए गए करोड़ों का घोटाला सामने आने पर जब कोई कार्रवाई नहीं की गई तो छात्रों ने कुलपति प्रो. एसके जैन को ज्ञापन देने की कोशिश की। छात्र उनकी गाड़ी तक गए और न्याय की गुहार लगाई, लेकिन हमारी बातें अनसुनी करते हुए वो वहां से निकल गए। प्रशासनिक अधिकारियों को टेबल के नीचे पैसे देकर उमंग फार्मेसी धांधली कर रही है। यह फार्मेसी सर सुंदरलाल हॉस्पिटल में 24 घंटे दवाओं की बिक्री करती है। बीएचयू में इलाज के लिए आने वाले मरीजों को दवा बेचने का टेंडर जिस समय उमंग फार्मेसी को आवंटित किया गया था उस वक्त शर्त यह रखी गई थी कि हर दवा पर चार फीसदी वैरिएबल लाइसेंस फीस देनी होगी। फार्मेसी ने दवाएं बेची, मगर खरीदारों को बिल नहीं दिया। फार्मेसी ने बिना किसी आदेश के इस एग्रीमेंट के शर्तों के खिलाफ जाकर काम किया। वैरिएबल फीस लाइसेंस को दवा के दाम से हटाकर दवा बिक्री की रसीद पर कर दिया गया। कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (कैग) ने कुछ महीने पहले 2 करोड़ 44 लाख रुपये की दवा बिक्री का घोटाला पकड़ा। कैग के ऑडिट में पकड़ी गई इस गड़बड़ी पर शिक्षा मंत्रालय ने बीएचयू को जांच का आदेश दिए थे। सीएजी की रिपोर्ट पर फरवरी 2019 को बीएचयू ने शिक्षा मंत्रालय को अपनी सफाई करनी थी। बताया था कि अनुबंध की जांच लीगल सेल के कोआर्डिनेटर ने की और तत्कालीन कुलपति से इसे स्वीकृति मिली थी। मंत्रालय ने स्पष्टीकरण को खारिज करते हुए बीएचयू को मामले में जांच कमेटी बनाने और दोषी अफसरों व कर्मचारियों से तीन महीने के भीतर धन रिकवरी करते हुए सख्त कार्रवाई के आदेश दिए थे।"

मृत्युंजय के मुताबिक, "08 जून 2022 को संयुक्त रजिस्ट्रार एसपी माथुर ने कमेटी के अध्यक्ष प्रोफेसर आसाराम त्रिपाठी को पत्र लिखकर मंत्रालय के निर्देशों का हवाला देते हुए आठ जुलाई तक रिपोर्ट फाइल करने को कहा गया, लेकिन यह मियाद भी बीत चुकी है। जुलाई 2021 में गठित जांच कमेटी अब तक रिपोर्ट नहीं दे सकी है। हमें लगता है कि उमंग फार्मेसी के घपले की जांच भी घपले की शिकार हो गई है। हमारी मांग है कि फार्मेसी के लाइसेंस को रद्द कर उसके भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच की जाए और गोलमाल करने वाली फार्मेसी को बचाने वाले अधिकारियों के खिलाफ के खिलाफ सख्त एक्शन लिया जाए।"

भ्रष्टाचार का बोलबाला

उल्लेखनीय है कि बीएचयू में तत्कालीन विधि प्रकोष्ठ समन्वयक ने जनहित का हवाला देते हुए साल 2013 में उमंग केयर कंपनी को सर सुंदरलाल हास्पिटल में दुकान आवंटित की गई थी। अक्टूबर, 2013 से उमंग ने यहां दवा की दुकान का संचालन शुरू कर दिया। इसे एक आउटलेट से दवा बेचने का लाइसेंस जारी किया गया है, जबकि वह बीएचयू के सर सुंदरलाल चिकित्सालय के आपात चिकित्सा विभाग के अलावा चिकित्सालय के सभी छह तलों के अलावा ट्रामा सेंटर में अधिकृत तरीके से दवाओं की बिक्री कर रही है। अनुबंध की शुरुआती शर्तों के मुताबिक, उमंग फार्मा की तरफ से चार फीसदी वेरिएबल लाइसेंस फीस बीएचयू को देने का करार हुआ था। बाद में शर्तों को गुपचुप तरीके से बदल दिया गया और दवाओं की बिक्री रसीद पर आधारित कर दिया गया। सबसे खास बात यह है कि अनुबंध-पत्र में कहीं भी शर्तों के बदलाव का उल्लेख नहीं किया गया है।

सितंबर 2017 में उमंग फार्मेसी के आउटलेट पर उस दवा को अनाधिकृत तरीके से बेचते हुए पकड़ा गया था जो मरीजों में मुफ्त बांटने के लिए आई थी। बीएचयू प्रशासन ने उस समय उमंग फार्मेसी का लाइसेंस तीन माह के लिए निलंबित कर दिया था। वाराणसी मंडल के औषधि अनुज्ञापन प्राधिकारी (विक्रय) एनके स्वामी की ओर से जारी आदेश में निलंबन अवधि में औषधियों का क्रय-विक्रय अवैधानिक घोषित कर दिया गया। मनमाने ढंग से दवाओं की बिक्री कर रही उमंग फार्मेसी के निलंबन के कुछ ही दिनों बाद बीएचयू प्रशासन ने उसे क्लीन चिट दे दिया।

दरअसल, प्राचीन छात्र मंच के संयोजक भुवनेश्वर द्विवेदी 'बाबा' ने मंडलायुक्त को शिकायती-पत्र भेजकर मरीजों को मुफ्त दी जाने वाली कुछ दवाओं को उमंग फार्मेसी से बेचने का आरोप लगाया गया था। यही नहीं फाइजर कंपनी द्वारा मार्केटेड इंलेक्शन मेग्नामाइसिन नामक दवा, जिस पर स्पष्ट रूप से हॉस्पिटल सप्लाई लिखा है, को बेचा जा रहा था। जिला प्रशासन ने अपर जिलाधिकारी (नगर) से इस शिकायत जांच कराई तो आरोप सही पाए गए। प्रशासन ने इसे वाराणसी मंडल के क्षेत्रीय जन विश्लेषक, प्रयोगशाला ने औषधि एवं प्रसाधन नियमावली 1945 के नियम 65 (18) का उल्लंघन माना। इसके बाद औषधि अनुज्ञापन प्राधिकारी एनके स्वामी ने उमंग फार्मेसी (वीएनएस/ 116/20 तथा 21/2013) का लाइसेंस तीन माह के लिए निलंबित कर दिया। साथ ही यह भी कहा कि तीन महीने के लिए उमंग फार्मेसी द्वारा औषधि का विक्रय पूर्णत: प्रतिबंधित कर दिया गया है।

इसे भी पढ़ें: बीएचयू का सर सुंदरलाल अस्पताल सवालों के घेरे में, मुश्किल में दिल के मरीज़, खाली पड़े बेड का मुद्दा गरमाया

लुटे रहे मरीज-तीमारदार

फार्मेसी के भ्रष्टाचार के खिलाफ सिर्फ स्टूडेंट्स ही नहीं, बीएचयू के कुछ ईमानदार प्रोफेसर भी मुहिम चला रहे हैं। बीएचयू में हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष और जाने-माने चिकित्साविद प्रो. ओमशंकर कहते हैं, "संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (स्ववित्तपोषित संस्था) बीएचयू से कम दाम पर अव्वल दर्जे की सुविधाएं मुहैया कराती है। बीएचयू में उमंग फार्मेसी और अमृत फार्मेसी दवाओं की बिक्री करती हैं, जो डिब्बे पर मनमाने ढंग से एमआरपी दर्ज कर रोगियों के तीमारदारों को लूट रही हैं। साथ ही हैंडलिंग चार्ज भी वसूल रही हैं। कोई भी कंपनी अपनी दवा बेचने के लिए एमआरपी पर कुछ भी कीमत लिख देती है, जबकि उसकी कीमत प्रोडक्शन प्राइस के अनुरूप होनी चाहिए। प्रोडक्शन कास्ट से डेढ़ गुना से ज्यादा कोई भी कंपनी किसी दवा का दाम नहीं वसूल सकती है। कई बार कुछ दवा कंपनियां गुणवत्ता के साथ खेलते हुए अधोमान दवाएं बेचना शुरू कर देती हैं। बीएचयू में कैंसर की दवाओं के अलावा एंटीबायोटिक्स और स्लाइन बोतलों में एक हजार गुना का खेल चल रहा है। हमने अमृत फार्मेसी में टूटी हुई सील वाली दवा बेचते हुए पकड़ा था, जिसकी जांच रिपोर्ट आज तक सामने नहीं आई।"

धूमिल हो रही इमेज

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में साल 1982 में छात्रसंघ के महामंत्री और साल 1985 में अध्यक्ष रहे अनिल श्रीवास्तव कहते हैं, "देश के विभिन्न विश्वविद्यालय परिसरों के भीतर पिछले कुछ वर्षों से अशांति का दौर चल रहा है और बीएचयू भी उससे अछूता नहीं है। ये अशांति भिन्न विचारधाराओं की टकराहट की वजह से बढ़ रही है और उसी के चलते बीएचयू की प्रतिष्ठा भी काफी हद तक धूमिल हुई है। पिछले कुछ समय से यहां वो माहौल नहीं रहा जैसा कि पहले रहता था। बीएचयू में छात्रसंघ को भंग कर देना और फिर उसे बहाल न करना भी यहां के पतन के लिए कम ज़िम्मेदार नहीं है। आज छात्रों के पास कोई ऐसा फ़ोरम या संगठन नहीं है जहां वो अपनी बात रख सकें। उन्हें अपनी बात सीधे चीफ़ प्रॉक्टर या कुलपति के पास ही ले जानी पड़ेगी और इसका कमोबेश वही हश्र होगा जैसा हर मामलों में होता आ रहा है। हमारे समय में तो बीएचयू में सभी राष्ट्रवादी थे। उस समय राष्ट्रवाद जैसी समस्या नहीं थी। जब से राष्ट्रवाद को समस्या के रूप में देखा जाने लगा है तो देखने वालों को बीएचयू में ही नहीं, पूरे देश में राष्ट्रवाद पर संकट दिख रहा है।"

श्रीवास्तव यह भी कहते हैं, "पुराने छात्रों का कैंपस से रिश्ता खत्म हो गया है, जिससे स्टूडेंट्स को नई दिशा नहीं मिल पा रही है। देश के विश्वविद्यालयों में बिना लीडर के छात्र निकल रहे हैं। आंदोलन खड़ा होता है और बाद में उसे दबा दिया जाता है। जब तक छात्रसंघ की बहाली नहीं होगी, तब तक बीएचयू जैसी शिक्षण संस्थाओं में किसी क्रांति की उम्मीद करना व्यर्थ है। देश के नेताओं ने अपने लिए कुछ और, छात्र के लिए कुछ और कानून बना रका है। शिक्षण संस्थाओं में छात्र सिर्फ एक बार ही चुनाव लड़ सकता है। जो हार जाता है वो भी लड़ाई से बाहर चला जाता है। छात्रों को इतनी बेड़ियों में जकड़ दिया गया है कि विश्वविद्यालयों से छात्र आंदोलन खत्म हो गया है। जहां तक बीएचयू का सवाल है तो वह आरएसएस का एक बड़ा अड्डा बन गया है। इस संस्था को बर्बाद किया जा रहा है और यहां कोई सुनने वाला नहीं है। हमें लगता है कि किसी न किसी दिन बीएचयू, इलाहाबाद और लखनऊ से छात्र आंदोलन की बड़ी ज्वाला निकलेगी, जो छात्र आंदोलन की दिशा बदलेगी। मौजूदा समय में जो हुक्मरान देश में अंधेरगर्दी मचाए हुए हैं, उनका इलाज सिर्फ छात्र आंदोलन ही कर सकता है। हमें लगता है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय अब आरएसएस की मॉडल यूनिवर्सिटी है और वह यहां स्टूडेंट्स के जीवन को अपने दर्शन के अनुरूप ढालने की कोशिश कर रहा है। तनातनी की एक वजह यह भी है कि यहां प्रगतिशील सोच वाले स्टूडेंट्स संघ के खूंटे में बंधने के लिए तैयार नहीं हैं, लेकिन संघ उन्हें जबरिया अपने बाड़े में आने के लिए विवश किया जा रहा है।"

बनारस के एक्स स्टूडेंट्स लीडर शिवकुमार सिंह भी छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। वह कहते हैं, " जिस समय हमने इस विश्वविद्यालय में दाखिला लिया, उस समय इस शिक्षण संस्थान को अद्वितीय समझा जाता था। विश्वविद्यालय का सिस्टम बड़ा लोकतांत्रिक था। छात्रसंघ था। छात्र अपने बीच से ही अपने प्रतिनिधि चुनते थे और संसद के अनुकरण पर छात्रसंघ की प्रक्रिया चलती थी। एक स्पीकर होता था और साल में एक या दो बार बजट पेश किया जाता था। कर्मचारी संघ था, अध्यापक संघ था। इन संगठनों के ज़रिए स्वस्थ राजनीति भी होती थी और सभी को अपनी बात को रखने का एक मंच मिलता था, जिससे कुलपति, प्रशासनिक अधिकारी या फिर प्रॉक्टोरियल बोर्ड के लोग मनमानी नहीं कर पाते थे। इन संगठनों पर अराजकता का आरोप लगाकर बाद में इन्हें भंग तो कर दिया गया, लेकिन उसके बाद जो कुछ हुआ है और विश्वविद्यालय ने जितनी प्रगति की है, वो सबके सामने है।"

"बीएचयू में पहले कुलपति पद के लिए आवेदन नहीं मंगाए जाते थे, बल्कि प्रतिष्ठित लोगों से यहां की एग्ज़िक्यूटिव काउंसिल कुलपति बनने का आग्रह करती थी। ज़ाहिर है ऐसे लोग जब कुलपति बनते थे तो न सिर्फ़ इसकी प्रतिष्ठा को बढ़ाते थे, बल्कि उनके अधीन काम करने वाले प्राध्यापक भी निष्ठापूर्वक अपना दायित्व निभाते थे। अब छात्रों को इस बात का मलाल है कि विश्वविद्यालय का लंबा-चौड़ा बजट होने के बावजूद विभागों में न तो शोध की उच्चस्तरीय व्यवस्था है और न ही उस स्तर का शोध यहां हो रहा है।"

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में साल 1971 में छात्र नेता रहे प्रदीप श्रीवास्तव कहते हैं, "छात्रों को अपने हक की लड़ाई हमेशा लड़ते रहना चाहिए। जब-जब छात्र आंदोलन का दबाव प्रशासन पर कम हुआ है तब-तब विश्वविद्यालय अपने मूल उद्देश्यों से भटका है। छात्र आंदोलनों ने हमेशा प्रशासन पर अंकुश लगाया है। पिछले काफी समय से बीएचयू में छात्र आंदोलन दमन का शिकार हुआ है। पूर्वांचल में यही एक ऐसा विश्वविद्यालय है जहां छात्रसंघ ही नहीं है। हैरानी की बात तो यह है कि छात्र-शिक्षक संघ को भी पलीता लगा दिया गया है। हमारा स्पष्ट कहना है कि छात्रों को छिटपुट आंदोलन करने के बाजाय सीधे छात्रसंघ की बहाली के लिए संगठित आंदोलन करना चाहिए। साथ ही विश्वविद्यालय में लोकतंत्र बहाली की मांग भी उठानी चाहिए। जब तक बीएचयू छात्रसंघ बहाल नहीं होगा, तब तक प्रशासन की मनमानी जारी रहेगी और छात्र उत्पीड़न का शिकार होते रहेंगे। उन सभी प्रशासनिक संस्थाओं की बहाली होनी चाहिए जिसका प्रावधान बीएचयू एक्ट में मौजूद है।"

प्रदीप कहते हैं, "आज काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बिना एक्जक्यूटिव कौंसिल और विद्वत परिषद के चल रहा है। समूची शक्ति कुलपति के हाथ में केंद्रित हो गई है। इसके चलते बीएचयू मनमानी, उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के शिकंजे में आ गया है। छिटपुट आंदोलनों से बीएचयू की बीमारी दूर होने वाली नहीं है। अफसोस इस बात का है कि इस ओर वो लोग भी ध्यान नहीं दे रहे हैं जिनकी राजनीतिक सफर की शुरुआत बीएचयू के छात्र नेता के तौर पर हुई। अब अपने निजी स्वार्थों को पूरा करने के लिए सरकार में बैठ कर मलाई काट रहे हैं। बीएचयू को भ्रष्टाचार के शिकंजे से मुक्त करने का उपाय यह है कि सभी छात्र एक मंच पर आकर छात्रसंघ की बहाली और विश्वविद्यालय प्रशासन की दमनकारी नीतियों के खिलाफ आवाज उठाएं ताकि लोकतांत्रिक स्वरूप बहाल हो सके।"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest