Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बाबरी मस्जिद विध्वंस: "शर्म का भाव भी ख़त्म हो गया है"

प्रख्यात शिक्षाविद और कार्यकर्ता का कहना है कि बीआर अंबेडकर के नेतृत्व में तैयार किए गए संविधान के प्रावधानों को संस्थागत निर्णयों द्वारा अनावश्यक बनाया जा रहा है जो इसके उच्च आदर्शों के विपरीत हैं।
babri
अयोध्या में बाबरी मस्जिद की तस्वीर जिसे 6 दिसंबर 1992 को ध्वस्त कर दिया गया था।

जानी-मानी शिक्षाविद, लेखिका और कार्यकर्ता प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा कहती हैं कि 1992 के बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद से अपराधियों और नफ़रत की राजनीति के पक्ष में बोलने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है। वर्मा लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, प्रोफेसर और दर्शनशास्त्र विभाग की प्रमुख और कला संकाय की पूर्व डीन हैं। वह बिल्किस बानो मामले में 11 बलात्कारियों और हत्यारों को दी गई छूट के निर्णय को पलटने की मांग करने वाले याचिकाकर्ता हैं जो सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है। वर्मा ने जेल में बंद पत्रकार सिद्दीक कप्पन की ज़मानत शर्तों को पूरा करने में भी मदद की है। उन्होंने नब्बे के दशक और आज के भारत के बीच संबंध के बारे में न्यूज़क्लिक से बात की। वह कहती हैं कि इन 30 वर्षों में, सांप्रदायिकता बढ़ी है, क्योंकि धर्मनिरपेक्षता के समर्थकों ने इसे हल्के में लिया जबकि हिंदू राष्ट्र का समर्थन करने वालों ने सक्रिय रूप से अपना ज़हर फैलाया।

प्रज्ञा सिंह: तीस साल बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस का आपके लिए क्या अर्थ है?

रूप रेखा वर्मा: यह अराजकता, सांप्रदायिक शत्रुता, गुंडागर्दी और हमारे संविधान के अपमान का प्रतीक है। यह संविधान की मूलभूत भावना को तोड़ने का प्रतिनिधित्व करता है।

प्रज्ञा सिंह: कई अन्य मस्जिदें हिंदुत्व के समर्थकों के निशाने पर हैं। आप उन लोगों से क्या कहेंगी जिन्हें उम्मीद थी कि बाबरी आख़िरी दावा होगा कि एक मस्जिद कभी एक मंदिर थी और मुस्लिमों को इसे छोड़ देना चाहिए?

रूप रेखा वर्मा: हमें उन लोगों की मंशा को समझना चाहिए जिन्होंने इस प्रक्रिया को शुरू की जो बाबरी मस्जिद के विध्वंस के साथ समाप्त गई। उस संगठन के नेताओं के भाषण और लेख जिन्होंने इन विचारों का प्रचार किया जिसके कारण यह विनाश हुआ उसके दस्तावेज़ मौजूद हैं। इससे दो मुख्य विशेषताएं सामने आती हैं। पहला यह कि इस संगठन के सदस्य लोकतंत्र में विश्वास नहीं करते हैं। वे लोकतंत्र को अवांछनीय मानते हैं। दूसरा, वे जाति व्यवस्था और धर्म आधारित राष्ट्रवाद में विश्वास करते हैं। हिंदू राष्ट्र का उनका विचार उनके आदर्श सावरकर और हेडगेवार से मिला है जिन्होंने पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के सामने उस ख़तरनाक विचार का प्रस्ताव रखा था।

हिंदू राष्ट्र का उनका ख़तरनाक सपना उनके दिमाग में सबसे ऊपर है। उनसे पहले, हिंदू महासभा और श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने इस तरह के विचारों को गढ़ा था। यह संगठनों का एक समूह है जिनके सपने हमारे संविधान में निहित सपनों के विपरीत हैं। वे चाहते हैं कि देश पूर्व-औपनिवेशिक काल में लौट जाए। इतना ही नहीं। वे और भी पुराने अतीत की ख़्वाहिश रखते हैं जब भारत छोटे, मध्यम और बड़े राजतंत्रों का समूह था। फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि वे भारत पर कई राजाओं का शासन नहीं चाहते हैं, बल्कि एक शासक के नेतृत्व में सिर्फ़ एक राजशाही चाहते हैं।

वे वर्णाश्रम व्यवस्था का पुरज़ोर समर्थन करते हैं। स्वतंत्रता के बाद के परिवर्तनों के प्रति उनके विरोध का वर्णन दस्तावेज़ में मौजूद है। जब हिंदू कोड बिल में हिंदू महिलाओं को अधिकार दिया गया जो हमारे धार्मिक ढांचे में निहित नहीं थे तो मुखर्जी ने इसका विरोध किया था। विवाह की उम्र बढ़ाने, विधवा पुनर्विवाह और दलितों और पिछड़े वर्गों के अधिकारों का हिंदू महासभा और संघ परिवार के लोगों ने पुरज़ोर विरोध किया था। उन्होंने नेहरू और उनके सांसदों पर हिंदू धर्म को नष्ट करने के लिए हिंदू कोड बिल बनाने का आरोप लगाया था। उन्होंने सिर्फ़ सुधार का विरोध नहीं किया। वे महिलाओं और गैर-अभिजात्य जातियों को मौलिक अधिकारों से वंचित करना चाहते थे, और इस विरोध को हिंदू पहचान के लिए आवश्यक मानते थे। उन्होंने राष्ट्रवाद का सीमित और संकीर्ण सोच और हिंदू धर्म की नकारात्मक और पिछड़ी रचना का समर्थन किया।

उनके लिए, बाबरी मस्जिद को गिराना अल्पसंख्यकों को सबक़ सिखाने की दिशा में केवल एक क़दम था कि भारत उनका देश नहीं है। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का पहला स्वरूप जनसंघ जानता था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि बाबरी मस्जिद का केंद्रीय गुंबद उस स्थान को व्यक्त करता है जहां भगवान राम का जन्म हुआ था। उसनेधर्म के नाम पर राम मंदिर आंदोलन चलाया, लेकिन यह स्पष्ट रूप से एक राजनीतिक कार्यक्रम था।

प्रज्ञा सिंह: और क्या यही कारण है कि वे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच लड़ाई को भड़काने के लिए नई जगहों की तलाश जारी रखते हैं?

रूप रेखा वर्मा: यही कारण है कि वे अल्पसंख्यकों को निरंतर भय में रखना चाहते हैं और उनकी नागरिकता को जोखिम में डालना चाहते हैं।

प्रज्ञा सिंह: लेकिन इससे आम हिंदुओं को क्या हासिल होता है?

रूप रेखा वर्मा: यह तार्किकता के बजाय मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक कल्पना है। हिंदू एक हैं, यह संदेश देने के लिए संघर्ष किया जा रहा है। आख़िरकार, जो विध्वंस जैसे कृत्यों का मुखर रूप से विरोध करते हैं और चाहते हैं कि इस घृणित अपराधों के लिए ज़िम्मेदार लोगों को दंडित किया जाए, वे हिंदू हैं। सवाल यह नहीं है कि इस तरह की राजनीति से हिंदुओं को क्या हासिल होता है। यह वही है जो इस राजनीति को आगे बढ़ाने वालों को इससे मिलता है। समस्या यह है कि संविधान में हमारा आदर्श राज्य निहित है, लेकिन उनका आदर्श राज्य धर्म और संविधान की संकीर्ण व्याख्या करने में है।

विडंबना यह है कि वे उन्हीं राजनीतिक लक्ष्यों को अपना रहे हैं, जिन देशों पर वे संकीर्ण सोच, दमनकारी और पिछड़े होने के नाते उंगली उठाते रहते हैं। उनका पहला लक्ष्य और दुश्मन पाकिस्तान है, जिसे वे यह कहकर सही ठहराते हैं कि वह महिलाओं को कोई अधिकार नहीं देता है, धार्मिक कट्टरवाद को बढ़ावा देता है, आदि-आदि। लेकिन, क़दम दर क़दम, यह सरकार वर्षों से पाकिस्तान में अपनाए गए तौर तरीक़ों को अपना रही है। मुझे लगता है कि ऐसा इसलिए है, क्योंकि वे अपने दिल में मानते हैं कि पाकिस्तान ने अल्पसंख्यकों, महिलाओं और कमज़ोर वर्गों के अधिकारों को कैसे प्रतिबंधित किया है। लेकिन राजनीतिक फ़ायदे के लिए वे पाकिस्तान की आलोचना करते हैं। यह इस संगठन और इसके घटकों के ज़ेहन में द्वंद्व और विरोधाभास है।

प्रज्ञा सिंह: आप बिलकिस बानो मामले में एक याचिकाकर्ता बन गईं, जिसमें उनके साथ बलात्कार करने और उसके परिवार के सदस्यों की हत्या करने वालों की क्षमा को वापस लेने की मांग की गई है। क्या आपको लगता है कि बाबरी के बाद से कोई स्पष्ट राजनीतिक प्रगति हुई है जो बिलकिस बानो तक पहुंच गई?

रूप रेखा वर्मा: बलात्कार और सामान्य रूप से अपराध धर्म आधारित नहीं हैं। हर समुदाय में अच्छे और बुरे लोग होते हैं। मोरबी में पुल गिरने पर दो मुस्लिम लड़कों ने जान बचाई। और कुछ मुस्लिम भी अपराधी हैं। लेकिन हिंदुओं के लिए भी ऐसा ही है। संयुक्त राज्य अमेरिका में नस्ल और रंग भेदभाव के मामले हैं, इसलिए यदि कोई अपराध एक गोरे द्वारा किया जाता है, तो आप पाएंगे कि इससे नरमी से निपटा जाता है। लोगों का एक समूह अश्वेतों के ख़िलाफ़ विचार रखता है, जैसे भारत में ऐसे लोग हैं जो मुसलमानों के ख़िलाफ़ भावनाओं को पालते हैं। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थिति भारत की तरह गंभीर या व्यापक नहीं है क्योंकि न्याय प्रणाली बेहतर ढंग से काम करती है और सबसे बढ़कर, जनता अधिक जागरूक और एकजुट है। यह दुर्भाग्य है कि भारत में ऐसा नहीं है।

भारत में अपनी आवाज़ उठाने वाले हमेशा गिने चुने अल्पसंख्यक थे। अतीत की तुलना में केवल फ़र्क यह है कि जो लोग मुखर तरीक़े से न्याय की मांग नहीं करते थे वे दूसरों के आवाज़ उठाने पर चुप रहते थे। वे सक्रिय रूप से अपराधियों का समर्थन करने के लिए सामने नहीं आए। लेकिन अब जब मैं बिलकिस केस में याचिकाकर्ता बनी तो कई लोगों ने मुझे ट्रोल किया। मुझे [जेल में बंद पत्रकार] सिद्दीक कप्पन की ज़मानत देने और कठुआ में बलात्कार और मारे गए छोटे बच्चे का समर्थन करने के लिए भी ट्रोल किया गया था। यह एक ऐसा तकलीफदेह मामला था जब कठुआ मामले में अपराधी के लिए जाने-माने लोगों के साथ साथ भारी भीड़ ने मार्च निकाला था। जब अपराधियों का समर्थन करने के लिए तिरंगे का इस्तेमाल किया गया, तो अति-राष्ट्रवादी समूह में किसी ने भी यह नहीं कहा कि इससे उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है। यदि पीड़ित मुसलमान है तो आवाज़ उठाने के लिए वे आपको ट्रोल करते हैं, लेकिन यदि अपराधी मुस्लिम है, तो वे आपसे इतनी ज़ोर से बोलने की उम्मीद करते हैं कि आप अपने आपको नुक़सान पहुंचाते हैं।

हम कभी नहीं जान पाएंगे कि भारी संख्या में चुप लोग क्या सोच रहे है, लेकिन अपराधियों और नफ़रत के लिए बोलने वालों की संख्या में ज़बरदस्त वृद्धि हुई है। संदेश साफ़ है। आपको हिंदू पीड़ितों के लिए अपनी आवाज़ उठानी चाहिए, मुस्लिम पीड़ितों के लिए नहीं चाहे वे मुस्लिम महिलएं हों, क्योंकि उन्हें लगता है कि मुस्लिम इसी के लायक़ हैं। इसे खुले तौर पर मुस्लिम महिलाओं के बलात्कार की बात कहने वाले हिंदू नेताओं से बेहतर क्या समझा सकता है? उनमें से किसी को भी गिरफ़्तार नहीं किया जाता है, या उन्हें जल्दी से ज़मानत दे दी जाती है, जबकि अपने विचार व्यक्त करने के लिए हिरासत में लिए गए शिक्षाविदों को वर्षों तक जेल में रखा जाता है। बिलकिस मामले में दोषी ठहराए गए बारह लोगों ने सबसे जघन्य अपराध, बलात्कार और हत्या को अंजाम दिया। सामूहिक बलात्कार और सामूहिक हत्या की। दुनिया में कहीं भी, किसी भी तरह की सरकार में इनसे बुरा कोई अपराध नहीं है। यदि आप इन अपराधों को पूर्व नियोजित और संगठित तरीक़े से अंजाम देते हैं, तो क्या यह आपको स्वतंत्रता का हक़दार बनाता है?

प्रज्ञा सिंह: पैनल के एक सदस्य जिसने छूट दी थी, उन्होंने कहा कि अपराधी ब्राह्मण थे...

रूप रेखा वर्मा: उन्होंने कहा कि वे संस्कारी या गुणी ब्राह्मण हैं और वह गोधरा ज़िले से भाजपा विधायक हैं। लेकिन उनके बयान के बड़े पैमाने पर प्रसारित होने के बाद भी प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और क़ानून मंत्री चुप रहे। 2002 के गुजरात दंगे और जेल से बाहर आने वाले अन्य आरोपियों में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी शामिल हैं... और एक दंगा आरोपी की बेटी को हाल ही में हुए गुजरात विधानसभा चुनाव में भाजपा का टिकट दिया गया था। इसलिए वे अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा करने वालों को न केवल रिहा कर रहे हैं बल्कि उन्हें पुरस्कृत भी कर रहे हैं। छह-सात साल बाद जब ये चीजें होती रहेंगी तो हिंदुस्तान का क्या स्वरूप होगा? दलित महिलाओं के ख़िलाफ़ बलात्कार और हत्या की घटना बढ़ रही है और जबकि शासक वर्ग हमें हिंदू-मुस्लिम बहसों में व्यस्त रखता है, यह दलितों के एक वर्ग को लुभा रहा है जो यह मानने लगे हैं कि मुसलमानों पर अत्याचार करना हिंदुओं के रूप में अपनी पहचान का दावा करना है।

कहा जाता है कि दलित और पिछड़ा वर्ग भारत की 80% हैं, लेकिन आप उन्हें अपने जीवन को बेहतर बनाने या अपने अधिकारों तक पहुंचने का कोई साधन नहीं देते हैं। हाथरस में रेप के बाद मरने वाली महिला के शव को पुलिस ने अंतिम संस्कार कर दिया। इसने उसके परिवार को सम्मान के साथ उसका अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया। लेकिन दो सप्ताह के भीतर, भाजपा के एक नेता ने इस मामले के अभियुक्तों के उच्च जाति समुदाय ठाकुरों के समर्थन में एक रैली निकाली। तो वे किस तरह का हिंदू राष्ट्र चाहते हैं, जबकि व्यवहार में वे संविधान को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं? और यह हिंदू राष्ट्र किन हिंदुओं के लिए होगा? वो 80% जिससे हमारा देश है, या वो 80% जो संतुष्ट महसूस करते हैं अगर कोई नेता उनके पास संक्रांति पर आता है और उनके साथ खिचड़ी खाता है? आप शिक्षा या नौकरियों को बढ़ावा नहीं देते हैं। आप किसी के लिए स्वास्थ्य सेवा या अधिकारों का विस्तार नहीं करते हैं। आप बेरोज़गारों, अशिक्षितों और ग़रीबों को घटिया क़िस्म का चावल और गेहूं बांटते हैं- क्या यही आपका हिंदू राष्ट्र है?

प्रज्ञा सिंह: तो आप कह रहे हैं कि आज की स्थिति एक तरह से अपरिहार्य है। एक पूजा स्थल को गिराने के बाद, क्या ऐसा बहुत कम होता है जो अतिवादी विचारों को मुख्यधारा में आने से रोक सके?

रूप रेखा वर्मा: सच है, यह स्थिति पैदा होनी थी। या तो विध्वंस के बाद सत्ता में आई सरकारों ने इसके भविष्य के प्रभावों को नहीं समझा या इसे पर्याप्त महत्वपूर्ण नहीं माना। धर्मनिरपेक्षता को मानने वालों ने उस घटना के बाद के समय का सदुपयोग नहीं किया। हमने संविधान और धर्मनिरपेक्षता को हल्के में लिया। हम लोगों के पास एकता और अपनापन फ़ैलाने नहीं गए, जितने उनके बीच ज़हर बोने निकले। आज की स्थिति हमारी क़ानूनी व्यवस्था पर भी एक टिप्पणी है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ नफ़रत फ़ैलाने वाले भाषणों आदि के लिए कई मामले दर्ज किए गए थे। ऐसा कैसे हो सकता है कि सरकारों ने उनके बारे में कुछ नहीं किया और वह मुख्यमंत्री बन गए और उन मामलों को रद्द करवा दिया?

फिर भी, जैसा कि मैं पिछली सरकारों की आलोचना करती हूं तो मैं कहूंगी कि जिस तरह की धर्म आधारित राजनीति राष्ट्रीय स्तर पर फैलाई जा रही है, ऐसा पहले किसी सरकार ने नहीं किया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र शाखा एबीवीपी ने हाल ही में इंदौर में एक लॉ कॉलेज के प्रिंसिपल को इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर किया। उसने कहा कि वह हिंदू विरोधी हैं क्योंकि कॉलेज में संघ परिवार के इतिहास पर एक किताब है। इसलिए वे सांप्रदायिक हैं, लेकिन यदि आप उनका सांप्रदायिक इतिहास पढ़ाते हैं, तो आप स्वयं सांप्रदायिक हो जाते हैं। इसका मतलब क्या होता है? यह होता नहीं है, लेकिन ऐसा हुआ है। एबीवीपी के सदस्यों ने कहा कि प्रिंसिपल की वजह से कॉलेज में बहुत सारे मुस्लिम पढ़ा रहे हैं। क्या होगा जब हम यह संकेत देते हैं कि उच्च जातियों के सदस्य उच्च शिक्षा संस्थानों में अधिकांश पदों पर हैं और लाखों लोगों को रोज़गार देने के लिए पर्याप्त नौकरियां पैदा नहीं की जा रही हैं?

प्रज्ञा सिंह: इसके बजाय, सरकार ने आरक्षण के लिए आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्गों की एक नई श्रेणी बनाई है।

रूप रेखा वर्मा: हां, अब हमारे पास उपलब्ध नौकरियों के लिए दलित बनाम आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के बीच लड़ाई होगी। और यह ग़रीबों की मदद के नाम पर किया जा रहा है। मुझे लगता है कि यह सरकार तब तक चैन से नहीं बैठेगी जब तक कि हममें से प्रत्येक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से लड़ाई नहीं कर लेता। कल सवर्ण भी आपस में लड़ रहे होंगे और गोत्र और उपजातियां भी।

प्रज्ञा सिंह: क्या आपका आशय समान नागरिक संहिता के बारे में नए सिरे से चर्चा को लेकर है?

रूप रेखा वर्मा: समान नागरिक संहिता निश्चित रूप से विभाजन को बढ़ावा देगी। हमारे पास मिताक्षरा स्कूल ऑफ लॉ, दयाभाग स्कूल, दक्षिण में नायर और पूर्वोत्तर में खासी हैं, जिनमें से प्रत्येक अपने संस्कार, नियम और सांस्कृतिक व्यवस्थाओं से जुड़े हैं। लेकिन सरकार एक पहचान को दूसरी पहचान पर प्राथमिकता देने के लिए बाध्य है और हमें अगले 100 वर्षों तक पहचान के संघर्ष में व्यस्त रखेगी।

प्रज्ञा सिंह: 6 दिसंबर को देश के पहले क़ानून मंत्री बीआर अंबेडकर की 66वीं पुण्यतिथि भी है। आपको कहां तक लगता है कि उनके विचारों का पालन हो रहा है?

रूप रेखा वर्मा: हां, यह एक महत्वपूर्ण दिन है, लेकिन अंबेडकर के नेतृत्व में बनाया गया संविधान नष्ट कर दिया गया है। यह काग़ज़ पर मौजूद है, लेकिन व्यवहार में इसे ख़त्म कर दिया गया है। संविधान के ख़िलाफ़ सब कुछ उन लोगों के समर्थन से लागू किया जाता है जिनके दिमाग़ पर इस तरह की राजनीति ने क़ब्ज़ा कर लिया है।

प्रज्ञा सिंह: क्या आपको कोई उम्मीद नहीं दिख रही है?

रूप रेखा वर्मा: बस इसी की उम्मीद है कि मैं आपके कान में केवल फुसफुसा सकता हूं। मैं निराश हूं। शायद इसलिए कि कोई ज़िंदा है, उसे काम करते रहना है। ईरान में महिलाएं एक दमनकारी शासन के ड्रेस कोड से लड़ रही हैं। कल्पना कीजिए कि हमेशा हिजाब में रहने वाली महिलाओं के लिए सार्वजनिक रूप से कपड़ा उतारना कितना कठिन रहा होगा। उन्होंने परेशानी और दमन का सामना किया। क्या भारतीयों में ऐसा साहस होगा? कई अन्य देशों के विपरीत, मुझे लगा कि हम भारत में भाग्यशाली हैं, लेकिन अब मैं अनिश्चित हूं।

प्रज्ञा सिंह: क्या आपको लगता है कि बाबरी का विध्वंस, सामूहिक हत्यारों और बलात्कारियों की रिहाई और आज हम जो आलोचनात्मक सोच की कमी देखते हैं, वे सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं?

रूप रेखा वर्मा: वे सभी एक धागे से जुड़े हुए हैं। पहले, राजनीति के साथ-साथ शर्म की भावना मौजूद थी। राजनीतिक सत्ता में विविधता थी। हां, पार्टियां अक्सर भ्रष्टाचार में उलझी रहती थीं और अपने ही लोगों की मदद करती थीं, यहां तक कि अपराध करने वालों की भी। लेकिन अतीत में, पार्टियां एक ऐसी विचारधारा से संचालित नहीं होती थीं जो लगातार नफ़रत को बढ़ावा देती थी। अब तो शर्म का भाव भी ख़त्म हो गया है।

प्रज्ञा सिंह: क्या आपका आशय है कि सभ्य व्यवहार का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत अब पालन नहीं किया जाता है?

रूप रेखा वर्मा: मेरा यही मतलब है। पूर्व नियोजित हिंसा से लेकर नफ़रत की राजनीति से लेकर न्याय से वंचित अदालतों तक, हम संस्था दर संस्था विफल रहे हैं। 2002 के बाद गुजरात में ऐसा हुआ और अब हर जगह हो रहा है। बेचारा हिंदू या असहाय हिंदू की भावना समाज में फैल गई है। इकॉनमी से लेकर अवसरों की कमी तक पर ध्यान देने की कितनी ज़रूरत है, लेकिन एक बड़ा तबक़ा हिंदू-मुस्लिम वैमनस्य फैलाकर ख़ुश है। हम कौन सा हिंदुस्तान बनते जा रहे हैं, जहां बहुसंख्यकों में कोई गर्व या स्वाभिमान नहीं है और एक दमनकारी सरकार का समर्थन करने के लिए स्वेच्छा से इन दोनों को छोड़ देते हैं?

हम विभिन्न मामलों में बरी होने के बावजूद छात्र-कार्यकर्ता शरजील इमाम और उमर ख़ालिद की ज़मानत पर रिहाई सुनिश्चित नहीं कर सकते क्योंकि सरकार मनमाने ढंग से हमारे युवाओं पर यूएपीए [ग़ैरक़ानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम, 2008] लगाता है। जांच एजेंसियों ने सिद्दीक कप्पन को उनके पक्ष में ज़मानत आदेश के बावजूद जेल से बाहर निकलने से रोक दिया। हम सभी जानते हैं कि उन्हें पीपल्स फ्रंट ऑफ़ इंडिया या कैंपस फ्रंट ऑफ़ इंडिया में शामिल होने के लिए गिरफ़्तार नहीं किया गया था, बल्कि हाथरस में मृत दलित महिला के परिवार से मिलने की कोशिश करने के लिए गिरफ़्तार किया गया था। इसलिए मुझे बहुत कम उम्मीद है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि मैं अपने जीवनकाल में बेहतर बदलाव देखना चाहती हूं, जो कि नहीं होगा। मैं आपके जीवन के बारे में बात नहीं कर सकती।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित साक्षात्कार को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Babri Masjid Demolition: Even Sense of Shame has Gone, Says Roop Rekha Verma

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest