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बनारसः गंगा की रेत पर टेंट सिटी बसाने वाली गुजरात की कंपनियों पर 17 लाख जुर्माना

एनजीटी के समक्ष दाख़िल हलफ़नामे में सरकार की ओर से बताया गया कि गुजरात की कंपनी निरान और प्रवेग कम्युनिकेशल लिमिटेड पर जुर्माना लगाया गया है। दोनों कंपनियों ने गंगा और पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचाई है।
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नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण-एनजीटी) के कड़े रुख के चलते बनारस में गंगा पार रेत पर टेंट सिटी बसाने वाली गुजरात की कंपनियों ने अब हाथ खड़े कर दिए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल टेंट सिटी का उद्घाटन करते हुए कहा था कि इससे बनारस के पर्यटन कारोबार को नई रफ्तार मिलेगी। उत्तर प्रदेश के पर्यावरण विभाग ने गंगा पार रेती पर टेंट सिटी बसाने वाली कंपनियों को इस बात के लिए जिम्मेदार माना है कि उन्होंने गंगा की साफ-सफाई में कोताही बरती। इसके लिए दोनों कंपनियों पर 17 लाख 12 हजार 500 रुपये जुर्माना लगाया गया है।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल गुरुवार को इस मामले की सुनवाई करने वाला था, लेकिन टेंट सिटी के संचालकों के आग्रह पर सुनवाई आगामी 15 दिसंबर तक के लिए टाल दी गई।

भारत की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली काशी में गंगा की रेत पर बसाई गई टेंट सिटी सवालों उस समय सवालों के घेरे में आ गई जब नदी विशेषज्ञों, पर्यावरणविदों और शहर के प्रबुद्धजनों ने इसका विरोध शुरू किया। बनारस के एक गंगा प्रेमी तुषार गोस्वामी ने मार्च 2023 में राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) में एक याचिका दायर करते हुए कहा था कि "गंगा नदी की तलहटी में किसी भी दशा में टेंट सिटी नहीं बसाई जा सकती है। टेंट सिटी को उस जगह बसा दिया गया जहां पहले कछुआ सेंक्चुअरी हुआ करती थी। तंबुओं के शहर को बसाते समय गंगा और पर्यावरण संरक्षण कानून के मानकों का तनिक भी ध्यान नहीं रखा गया। टेंट सिटी को भोग-विलास के लिए गंगा नदी के किनारे बसाया गया है। इसकी गंदगी सीधे तौर पर गंगा में जाती है जिससे जलीय जीव मर रहे हैं। जल जीव खत्म हो जाएंगे तो बनारस की गंगा का पानी आचमन लायक भी नहीं रह पाएगा।"

बनारस के टेंट सिटी मामले की सुनवाई एनजीटी एनजीटी चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल की तीन सदस्यीय पीठ कर रही है। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की पीठ ने गुरुवार को इस मामले की सुनवाई 15 दिन के लिए टाल दी। पीठ के समक्ष उपस्थित पर्यावरण विभाग के अपर मुख्य सचिव मनोज सिंह की ओर से कहा गया है कि दोनों कंपनियों ने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया है। एनजीटी के समक्ष दाखिल हलफनामे में सरकार की ओर से बताया गया कि गुजरात की कंपनी निरान और प्रवेग कम्युनिकेशल लिमिटेड पर 15 जनवरी से 31 मई तक टेंट सिटी बसाने के लिए रोजाना साढ़े बारह हजार रुपये के हिसाब से 17 लाख 12 हजार 500 रुपये जुर्माना लगाया गया है। दोनों कंपनियों ने गंगा और पर्यावरण को काफी क्षति पहुंचाई है।

टेंट सिटी के खिलाफ एनजीटी (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल) में मुकदमा दर्ज कराने वाले तुषार गोस्वामी के अधिवक्ता सौरभ तिवारी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि इस मामले में अब जिला प्रशासन भी दिलचस्पी नहीं ले रहा है। एनजीटी के सख्त रवैये के चलते भविष्य में गंगा पार रेत पर अब टेंट सिटी नहीं सज पाएगी। टेंट सिटी बसाने की अनुमति देकर वाराणसी विकास प्राधिकरण (वीडीए) विवादों के घेरे में आ गया है। इस महकमे के अफसरों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं है कि अधिकार क्षेत्र में नहीं होने के बावजूद आखिर वीडीए ने नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट कैसे जारी कर दिया? एनजीटी चेयरपर्सन न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव, न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल और विशेषज्ञ सदस्य ए. सेंथिल वेल यह स्पष्ट कर चुके हैं कि टेंट सिटी गैर-कानूनी ढंग से बसाई गई थी।"

"न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने टेंट सिटी मामले में टिप्पणी करते हुए पूछा था कि उत्तर प्रदेश शहरी योजना एवं विकास अधिनियम, 1973 की किस धारा के तहत वाराणसी विकास प्राधिकरण को यह अधिकार मिल गया कि वह गंगा के तल एवं आसपास टेंट सिटी बना दे? यह वीडीए के क्षेत्राधिकार में है ही नहीं। गंगा की तलहटी में टेंट सिटी अथवा फिर कोई स्थायी या अस्थायी निर्माण कराने का अधिकार किसी को नहीं है। इसके लिए किसी को अनुमति नहीं दी जा सकती है। टेंट सिटी के संचालकों ने इसके लिए गंगा संरक्षण मिशन-नमामि गंगे से अनुमति लेने की ज़रूरत तक नहीं समझी।"

बनारस में टेंट सिटी बसाने के लिए वाराणसी विकास प्राधिकरण के तत्कालीन उपाध्यक्ष अभिषेक गोयल ने नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट जारी किया था। अक्टूबर 2023 में इस मामले की एनजीटी में सुनवाई से कुछ रोज पहले ही शासन ने उनका बनारस से तबादला कर दिया था। सरकार ने भले ही कछुआ अभयारण्य डिनोटिफाइड कर दिया है, लेकिन उसके वजूद को लेकर एनजीटी संतुष्ट नहीं है। एनजीटी का साफ-साफ कहना है कि कछुआ अभयारण्य को डिनोटिफाइड करने से जलीय जीव वहां से दूसरी जगह नहीं चले जाएंगे।

बनारस में पर्यावरण संरक्षण के लिए मुहिम चला रहे पर्यावरण प्रेमी तुषार गोस्वामी के मुताबिक, "वाराणसी में गंगा किनारे दो निजी कंपनियों निरान और प्रवेग ने टेंट सिटी को स्थापित किया और हर कॉटेज से 10 हज़ार से लेकर 30 हज़ार रुपये तक वसूले गए। कायदे-कानून को ताक पर रखकर टेंट सिटी के आयोजकों ने रोज़ाना शादियां कराई। टेंट सिटी की समूची गंदगी सीधे गंगा में जा रही है। इससे पवित्र नदी गंगा की अस्मिता ख़तरे में है। टेंट सिटी से गंगा में प्रदूषण बढ़ा है। घाटों की स्थिति ख़राब हो रही है।"

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