Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

बिहार : जाति जनगणना पर रोक को लेकर बिहार सरकार ने भी याचिका दायर की : तेज़ हुआ सियासी घमासान

राज्य सरकार ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट से ये अनुरोध किया है कि- इस मामले कि सुनवाई 3 जुलाई से पहले की कोई तिथि निर्धारित कर पूरी कर ले।
caste cencus
प्रतीकात्मक तस्वीर। साभार : Velivada

सोशल मीडिया से लेकर आम चर्चाओं में एक बात काफी वायरल हो रही है कि- बिहार में जारी ‘जाति जनगणना’ पर रोक लगाने का फैसला भले ही बिहार हाई कोर्ट ने दिया है लेकिन एक राजनितिक दल विशेष से जुड़े “सवर्ण-वर्चस्ववादी मानसिकता” वाली जमात शुरू से ही इसके खिलाफ थी। क्योंकि उनके हिसाब से अभी का हमारा सामाजिक गठन काफी समतामूलक रहा है और इसमें “जाति-जनगणना” होने मात्र से ही व्यापक समाजिक विद्वेष फैल जाएगा। इसकी अभिव्यक्ति “मुख्यधारा की मीडिया” के बड़े हिस्से में भी लगातार हो रही थी, जिसमें जाति-जनगणना की मांग करने वालों और उसके औचित्य को सही बताने वालों को “जंगल राज” का पैरोकार साबित किये जाने जैसी ख़बरों को काफी प्रमुखता के साथ प्रकशित किया जा रहा था, दिखाया जा रहा था।

सोशल मीडिया में तो “जाति-सूचक” मानसिकता भरी गलियों की बौछार सी लगी हुई थी। जिनमें “जाति विशेष” के राष्ट्रभक्तों द्वारा नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को “कुत्सित जातिवादी” करार देकर मानव समाज का सबसे कुटिल खलनायक बताया जा रहा था।

दूसरी ओर, जाति जनगणना पर रोक लगाए जाने को लेकर एक बड़ा नागरिक समाज राज्य की न्यायपालिका को संदेह भरी नज़रों से देखने लगा है। राजनीतिक बौद्धिक समाज के कुछ लोग तो इसकी तुलना पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के बड़े जज द्वारा अयोध्या में मंदिर निर्माण के पक्ष में फैसला दिए जाने के विवादित प्रकरण से भी कर रहें हैं। एक हिस्सा तो यह भी कह रहा है कि यदि हाई कोर्ट के जजों में पिछड़े-वंचित समूहों से आये हुए लोग होते तो इस तरह का “एकतरफा और दुर्भाग्यपूर्ण फैसला” नहीं होता।

सोशल मीडिया में यह सवाल काफी ज़ोर शोर से उठाया जा रहा है कि- जाति जनगणना से डर क्यों? ये डर किसे है? इस डर का आधार क्या है? असल में इसका विरोध चाहे सदन में हो अथवा न्यायालय में, मुख्य रूप से वही कर रहे हैं जो संख्या में तो कम हैं लेकिन सत्ता से लेकर शीर्ष पर हर जगह वही काबिज़ हैं। हर हाल में अपना वर्चस्व बनाये रखना चाहते हैं। लेकिन आज हो या कल हो देश-समाज में जाति जनगणना होकर रहेगी।

राजद संस्थापक लालू प्रसाद यादव का ट्वीटर पोस्ट भी चर्चित हो रहा है। शुक्रवार की सुबह इस पोस्ट के आने के दो दिन में ही 2 लाख से भी अधिक लोगों ने पसंद किया। अपने ट्वीट-पोस्ट में लालू प्रसाद ने लिखा है कि- जाति जनगणना बहुसंख्यक जनता की मांग है इसलिए ये होकर रहेगी। जो जाति जनगणना का विरोधी है वह समता, मानवता का विरोधी है और ऊंच-नीच, गरीबी-बेरोज़गारी, पिछड़ेपन-सामाजिक व आर्थिक भेदभाव का समर्थक है। अपने ट्वीट में भाजपा पर निशाना साधते हुए यह भी लिखा है कि- भाजपा बहुसंख्यक पिछड़ों की गणना से डरती क्यों है? देश की जनता जाति जनगणना पर भाजपा की कुटिल चाल को समझ चुकी है।

इस संदर्भ में लालू प्रसाद कि उक्ति काफी तर्कसंगत लगती है। क्योंकि सन 2010 में तत्कालीन केंद्र की कॉंग्रेस सरकार शासन काल में भाजपा द्वारा स्थापित राष्ट्रीय स्तर पर के ओबीसी नेता गोपीनाथ मुंडे ने संसद में जाति जनगणना कराने की मांग काफी ज़ोर देकर उठाया था। बताया जाता है कि उसके दबाव से ही कॉंग्रेस सरकार को 2011 में जाति जनगणना करनी पड़ी थी। लेकिन आज वही भाजपा और उसके नेताओं के हाव भाव से यही प्रतीत हो रहा है कि ‘जाति जनगणना’ का मुद्दा उनके लिए कोई दिली-ख्वाहिश नहीं है बल्कि सिर्फ एक सियासी क़वायद मात्र है।

बहरहाल, नीतीश कुमार सरकार द्वारा बिहार में जाति जनगणना कराये जाने पर राज्य हाई कोर्ट के तात्कालिक रोक के फैसले से जनगणना कार्य रोक दिया गया है। इसके खिलाफ बिहार की सरकार ने भी हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की है। जिसमें यह कहा गया है कि- हाई कोर्ट द्वारा दिए गए अंतरिम फैसले को देखने से यही लगता है कि यह आदेश “अंतरिम नहीं बल्कि अंतिम आदेश” है।

इसलिए राज्य सरकार ने अपनी याचिका में हाई कोर्ट से ये अनुरोध किया है कि- इस मामले कि सुनवाई 3 जुलाई से पहले की कोई तिथि निर्धारित कर पूरी कर ले।

खबर है कि राज्य सरकार की इस याचिका पर अगले सप्ताह सुनवाई होने की उम्मीद है।

एक तर्क यह भी सामने आ रह है कि- अजीब हाल है, एक ओर आरक्षण के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट राज्य कि सरकारों से प्रभावित जातियों के सही सही आंकड़े की मांग करती है। लेकिन जब राज्य की कोई सरकार सुप्रीम कोर्ट के सुझावों पर अमल करते हुए अपने प्रदेश की जातियों के आंकड़े इकठ्ठा करने का प्रयास करती है तो हाई कोर्ट सीधे रोक लगा देता है। तो इसका साफ़ मतलब तो यही न निकाला जा सकता है कि- न जातियों का कोई वास्तविक आंकड़ा सामने आयेगा और ना ही बहुसंख्यक वंचित समुदाय के लोगों को कोई संवैधानिक विशेषाधिकार हासिल हो सकेगा।

जाति जनगणना पर हाई कोर्ट के “अंतरिम आदेश’ को राज्य सरकार के लिए एक “बड़ा झटका” करार दिया जा रहा है। हालाँकि जाने किस पूर्वानुमान से कुछ मीडिया ने हाई कोर्ट में जारी सुनवाई को ही आधार बनाकर ‘जाति जनगणना’ पर रोक लगाने की इस क़दर भविष्यवाणी कर डाली गोया कोई “समाज और राष्ट्र विरोधी कृत्य” हो रहा हो।

बिहार में जाति जनगणना पर हाई कोर्ट द्वारा रोक लगाये जाने के बाद से प्रदेश की राजनीति में काफी सियासी घमासान सा छिड़ गया है। जिसमें हर दिन मीडिया में सत्ता और विपक्ष व उनके नेताओं के तीखे बयानों का तांता सा लगा हुआ है। विपक्ष एक स्वर से यही आरोप लगा रहा है कि राज्य सरकार की लापरवाही से ही यह सब हुआ है। उसने हाई कोर्ट के समक्ष अपन पक्ष मजबूती से प्रस्तुत ही नहीं किया, जिससे कोर्ट में उसकी हार हो गयी।

तेजस्वी यादव ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि- भाजपा के लोग खुशियाँ मना रहें हैं लेकिन इस राज्य की बहुसंख्यक जनता चाहती है कि यहाँ जाति जनगणना हो। आनेवाले दिनों में हर हाल में जनता की इस आकांक्षा को पूरा किया जाएगा।

वहीं, प्रदेश के सभी गैर भाजपा राजनीतिक दलों ने इसे भजपा की सोची समझी चाल का ही परिणाम बताया है।

सीपीएम की बिहार इकाई ने हाई कोर्ट के फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा है कि जाति जनगणना का फैसला सभी राजनितिक दलों का था। ये अलग बात है कि भाजपा शुरू से ही परोक्ष रूप से इसके ख़िलाफ़ माहौल तैयार कर रही थी।

भाकपा माले की ओर से राज्य सचिव ने मीडिया और सोशल मीडिया में बयान जारी करते हुए कहा है कि- हाई कोर्ट का फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। जाति जनगणना की मांग हम सभी लोगों ने देश के प्रधानमंत्री से की थी। लेकिन केंद्र ने ठुकरा दिया। 1931 के बाद से देश में कोई जाति जनगणना हुई ही नहीं है। जबकि दलित-पिछड़ी जातियों के लिए चल रही योजनाओं तथा आरक्षण को तर्कसंगत बनाने व उनके सामाजिक स्तर में सुधार लाने के लिए जाति जनगणना बेहद ज़रूरी थी। हम उम्मीद करते हैं कि अगली सुनवाई में बिहार सरकार मजबूती से अपना पक्ष रखेगी।

फिलहाल, सबकी निगाहें 3 जुलाई को हाईकोर्ट द्वारा की जानेवाली सुनवाई पर लगी हुई है। हालांकि हाल के निर्णयों को देखते हुए बिहार का लोकतान्त्रिक नागरिक समाज काफी आशंकित है।

वहीं नीतीश कुमार द्वारा यह सवाल उठाया जाना कि- बताइए, हमने ऐसा कौन सा गुनाह कर दिया है ? काफी कुछ सोचने पर मजबूर करता है। 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest