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बिहार: घट रही वर्षा आ रही बाढ़, कहीं ज़मीन धंस रही तो कहीं लोग बेघर हो रहे

सुपौल ज़िले के सदर प्रखंड अंतर्गत बलवा पंचायत के नरहिया गांव मे 150 से ज़्यादा घर बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। सरकार द्वारा बाढ़ पीड़ितों के रहने के लिए राहत शिविरों के संचालन की व्यवस्था नहीं की जा रही है।
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पिछले 43 साल के उपलब्ध आंकड़ो के मुताबिक लगभग प्रत्येक साल बिहार को बाढ़ का सामना करना पड़ रहा है। जिस वजह से बिहार सरकार को बाढ़ सुरक्षा पर प्रतिवर्ष करीब 600 करोड़ रुपये खर्च करना पड़ता है और राहत अभियान में भी हज़ारों करोड़ खर्च करती हैं। अभी बिहार में बारिश साल दर साल कम होती जा रही है जबकि बाढ़ का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। समस्तीपुर के पूसा स्थित डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के रिपोर्ट के मुताबिक लगभग पांच साल पहले जहां 55 से 60 दिनों तक बारिश होती थी, अब केवल 45 दिनों तक बारिश होती है।

विशेषज्ञों के मुताबिक बिहार में बारिश के अलावा बाढ़ आने के कई अन्य कारण भी हैं। खासकर कोसी बेसिन की बाढ़ का स्वरुप और भी भयावह होता जा रहा है। कोसी शायद दुनिया की सबसे अप्रत्याशित नदी है। यह नदी अभी तक कई बार अपना मार्ग बदल चुकी है। 

मौसम विभाग के अनुसार 14 जुलाई तक राज्य में केवल 10 जिलों में सामान्य बारिश हुई है। बाकी 28 जिले में सामान्य से भी कम बारिश हुआ है। जबकि सुपौल में सामान्य से भी 13% कम बारिश हुई है। इसके बावजूद बिहार की प्रमुख नदियां आज खतरे के निशान से ऊपर हैं और कई गांवों में बाढ़ का पानी पहुंच चुका है। कोसी नदी का जलस्तर बढ़ने से सुपौल जिले के बसंतपुर, सरायगढ़, निर्मली, मरौना सहित सदर प्रखंड के इलाकों में बाढ़ के पानी में सैकड़ों एकड़ की फसलें बर्बाद हो चुकी हैं।

वहीं सुपौल जिले के सदर प्रखंड अंतर्गत बलवा पंचायत के नरहिया गांव मे 150 से ज्यादा घर बाढ़ की चपेट में आ चुके हैं। सरकार द्वारा बाढ़ पीडि़तों के रहने के लिए राहत शिविरों के संचालन की व्यवस्था नहीं की जा रही है।

बलवा पंचायत के नरहिया गांव के बालखंडी चाचा बताते हैं कि, "20 से 25 दिन से गांव में बाढ़ से घर कट रहा है। अभी एक 11 नंबर वार्ड में लगभग डेढ़ सौ से ज्यादा घर कट चुका है। स्थिति यह है कि पीने वाला पानी भी नदी में समा चुका है। सरकार के द्वारा एक पन्नी और खाने के लिए पॉलिथीन दिया जा रहा है। इससे क्या ही होगा। आप ही बताइए?  सरकार ने मदद नहीं की तो खाना और पीना भी मुहाल हो जाएगा। इससे पहले 2011 में हमारे ही गांव में 500 घर नदी में विलीन हो गया था। सरकार ने वादा किया था कि सबको घर दिलाएंगे। पर एक को भी नहीं मिला।"

उसी गांव की आशा देवी दुखी आवाज में कहती है कि "सब सरकारी बाबू लोग आते हैं लेकिन कोई कुछ नहीं देता। हम जनानी (महिला) लोग को कितना दिक्कत होता है। कोई इ दुख नहीं समझ सकता।" पटना विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे सुपौल के विपुल कहते हैं कि कोसी की ताजा स्थिति पर सरकार की नजर क्यों नहीं जाती। ये लोग भी भारत और बिहार का हिस्सा हैं। वोट देते हैं और इनके टैक्स से भी सरकार की कोठी चमकती है। ये भी भारत के लोकतंत्र को प्राणवायु देते हैं। 

पीड़ितों को सरकार पर भरोसा नहीं रहा

भागलपुर जिला स्थित कदवा दियारा पंचायत के ठाकुर जी कचहरी टोला में किसानों का 50 बीघा से ज्यादा उपजाऊ जमीन कोसी नदी में समा चुका है। कुछ दूरी पर 20 से 25 घर भी है। कटाव देखते हुए घर के लोग सामान छोड़कर पलायन कर चुके हैं। कदवा दियारा क्षेत्र के स्थानीय जदयू नेता प्रशांत कुमार फोन पर बताते हैं कि, "सरकार के विभागों के द्वारा कटाव रोकने का प्रयास जरूर किया गया, लेकिन काम की गति बहुत ही धीमी और लेट थी। जहां बोल्डर पीचिंग की जरूरत है वहां पर गिट्टी रखा जा रहा है। अगर सरकार ने ध्यान नहीं दिया तो पूरा गांव ही कट जाएगा।"

2024 में लोकसभा एवं 2025 में विधानसभा चुनाव के कारण पिछले एक महीने से बाढ से बचाव के लिए बिहार सरकार के द्वारा तटबंध पर बहुत काम किया जा रहा है। जल संसाधन विभाग के द्वारा टोल फ्री नंबर भी जारी कर दिया गया है। साथ ही 'बाढ़ प्रबंधन सुधार सहायक केंद्र' FMISC द्वारा पटना में संचालित मैथेमेटिकल मॉडलिंग सेंटर अत्याधुनिक तकनीक द्वारा काम किया जा रहा है। बिहार सरकार के अनुसार राज्य की प्रमुख नदियां आज खतरे के निशान से नीचे है। इसके बावजूद बिहार के कई इलाकों से बाढ़ आने, घर और खेत डूबने और पुल टूटने की खबर आ रही है।

कोसी तटबंध के अंदर पिपरा खुर्द गांव के ग्रामीण नाव की व्यवस्था खुद ही कर रहे है। ग्रामीण और पेशे से शिक्षक बांके मंडल बताते हैं कि तटबंध के भीतर के गांवों में पलायन शुरू हो चुका है। इस वक्त पानी से ज्यादा खतरा महामारी वाली बीमारी और जहरीले जीवों का रहता है। हमलोग नाव को दुरस्त कर रहे हैं, क्योंकि बाढ़ के वक्त सरकार की नाव अधिकारियों को ढोने के काम आती है।

पूर्व आईआईटी प्रोफेसर और जल विशेषज्ञ दिनेश मिश्रा लिखते हैं कि बिहार के पहले मुख्यमंत्री डॉ. श्रीकृष्ण सिंह कहते थे कि उनका अगर बस चलता तो वह कोसी नदी को हर साल देश के दूसरे प्रान्त को भेज देते ताकि देश को पता लगता कि बाढ़ का क्या मतलब होता है। 

नेपाल की रणनीति का असर बिहार की जल पूंजी पर

कोसी में लगभग हर साल आने वाली बाढ़ के लिए नेपाल को जिम्मेदार ठहराया जाता है। कई जल विशेषज्ञ के मुताबिक नेपाल में हो रही भारी बारिश इसका मुख्य वजह है। बारिश के मौसम के अलावा अन्य मौसम में नेपाल बांध बनाकर भारत आने से पानी को रोक रहा है जबकि बारिश के वक्त पानी छोड़ने के अलावा उनके पास कोई विकल्प नहीं बचता। कुछ दिनों पहले तक गर्मी की वजह से बिहार की कई छोटी नदियां सूख चुकी थीं। इसमें एक मुख्य नदी थी - बागमती।

गर्मी के अलावा मुख्य वजह यह थी कि नेपाल ने करमहिया में बराज बना बागमती नदी की धारा को अवरूद्ध कर दिया है। साथ ही लखनदेई से भी नवलपुर में नहर निकालकर पानी मैदानी क्षेत्र में डायवर्ट कर लिया है। इससे बिहार की बागमती नदी के अलावा औराई व कटरा तक लखनदेई नदी सूख सी गई है। जबकि अभी की स्थिति यह है कि नेपाल में जोरदार बारिश के बाद जो नदी पिछले कुछ महीनों से सूखी हुई थी उसमें पानी के जलस्तर में बढ़ोतरी होने लगी है। जल संसाधन विभाग के द्वारा 14 जुलाई को भी पोस्ट किया गया था कि नेपाल भूभाग के कैचमेंट में भारी बारिश हो रही है, जिससे महानंदा, बागमती समेत कई नदियों के जलस्तर में वृद्धि हुई है।

जल प्रबंधन के जानकार और पर्यावरणविद राम शरण अग्रवाल लिखते हैं कि, "अभी की स्थिति को देखकर ऐसा लग रहा है कि हमारे यहां पीने और सिंचाई करने के लिए पानी नहीं होगा, लेकिन डूबने के लिए पानी ही पानी होगा। नेपाल छोटी नदियों से भी नहर बनाकर पानी डायवर्ट कर रहा है। नेपाल में दशकों से चल रहे नेपाल के जल प्रबंधन पर भारत सरकार और बिहार सरकार के तंत्र की अनभिज्ञता जनहित को अंधे कुएं में धक्का देने से कम नहीं है।"

विभागों के बीच समन्वता की कमी

अभी तक बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग के सोशल मीडिया आईडी से नदी कटाव या तटबंध सुरक्षा से संबंधित कोई भी पोस्ट नहीं किया गया है। साल 2020 तक विभाग के द्वारा वेबसाइट हर साल बाढ़ के मौसम में दैनिक बाढ़ रिपोर्ट अपलोड होता था। लेकिन 2021 से यह रिपोर्ट भी बंद कर दी गई। जल संसाधन विभाग की आईडी से तटबंध सुरक्षा से संबंधित पोस्ट किया जाता है। मौजूदा हालात के बारे में कोई भी पोस्ट नहीं किया गया है। जबकि दोनों विभाग बाढ़ से निपटने के लिए जवाबदेह हैं।

(लेखक स्‍वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्‍यक्तिगत हैं।)

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