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बजट 2023: किसान अब भी ख़ाली हाथ, न आय बढ़ी न सम्मान निधि

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2023-24 का बजट संसद में पेश किया, लेकिन इस बजट में महज़ नई योजनाओं का पिटारा ही खुला, जबकि किसान अब भी ख़ाली हाथ ही हैं।
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प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

मोदी सरकार 2.0 का आख़िरी पूर्ण बजट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में आज पेश किया। सीतारमण के लंबे-चौड़े भाषण में आने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले साल लोकसभा चुनाव को बहुत ज़्यादा ध्यान में रखा गया।

लेकिन इस सरकार के पास एक बार फिर उस क्षेत्र के लिए तिजोरी खाली ही रही, जिसने हर संकट में देश का साथ सबसे ज़्यादा दिया है। दरअसल हम बात कर रहे हैं कृषि क्षेत्र की, जिसके लिए इस साल का बजट भी ऊंट के मुंह में ज़ीरा ही साबित हुआ।

हालांकि जब आप निर्मला सीतारमण के सप्तऋषि योजनाओं में कृषि पर एलानों को वित्त मंत्री से ही सुनेंगे तो बड़ी खुशी मिलेगी, लेकिन हक़ीकत कुछ और ही बयां करती है।

20 लाख क्रेडिट कार्ड यानी KCC

सरकार के मुताबिक किसानों को सहूलियत के लिए कर्ज़ का दायरा बढ़ा दिया गया है, यानी इस साल 20 लाख करोड़ तक का कर्ज किसानों को क्रेडिट कार्ड के ज़रिए बांटने का लक्ष्य रखा गया है। इससे लाखों किसानों को फायदा होगा।

आपको बता दें कि पिछले साल कर्ज बांटने का दायरा 18.5 लाख करोड़ था यानी इस बार थोड़ा बढ़ा दिया गया है, आप यूं कह सकते हैं कि सरकार की ये खुशियां बांटने वाली बढ़ोत्तरी किसानों पर कर्ज बढ़ाने जैसा ही है।

इसे ऐसे समझिए साल 2015-16 में किसानों को 8.5 लाख करोड़ रुपये का कर्ज दिया गया था, जो 2022-23 आते-आते 18.5 लाख करोड़ रुपये हो गया, यानी किसान क्रेडिट कार्ड के जरिए सरकार नवंबर 2022 तक करीब 4.33 लाख करोड़ का कर्ज दे चुकी है।

लेकिन नाबार्ड की रिपोर्ट कहती है कि किसान क्रेडिट कार्ड बांटने के बावजूद 6 सालों में किसानों पर 58% कर्ज बढ़ गया है। इसके अलावा नेशनल सैंपल सर्वे यानी एनएसएस की 2021 में जारी हुई रिपोर्ट बताती है कि गांवों में 35% लोगों पर अब भी कर्ज हैं। इनमें से 10.2% कर्ज तो गैर संस्थागत यानी लोकल लेंडर्स से लिए गए हैं।

यहां कहने का मतलब ये है कि सरकार कर्ज बढ़ाने के लिए तो बहुत उत्सुक है, लेकिन जब किसान दबाव में होता है तो कर्ज़ माफी के नाम पर ज़ीरो हो जाती है, जिसका कारण किसानों की आत्महत्या के तौर पर उभरकर सामने आता है। इस बात पर मुहर लगाती है नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो 2021 की रिपोर्ट। ये रिपोर्ट कहती है कि देश में हर साल 10 हजार से ज्यादा किसान आत्महत्या करते हैं। पिछले 7 सालों में यह आंकड़ा 75 हजार के पार हो चुका है। इससे पहले 2008 से 2014 के बीच करीब 95 हजार किसानों ने आत्महत्या की थी।

इसके अलावा बजट में कृषि से जुड़ी जो अहम बातें कही गई हैं:

  • खाद-बीज की जानकारी देने के लिए डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर।
  • कृषि स्टार्टअप को बढ़ावा देने के लिए डिजिटल एक्सीलेटर फंड बनेगा।
  • मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए श्री अन्न योजना की शुरुआत।
  • बागवानी की उपज के लिए 2,200 करोड़।
  • मछली पालन बढ़ावा देने के लिए 6000 करोड़।
  • सहकारी समितियों, प्राथमिक मत्स्य समितियों और डेयरी सहकारी समितियों की स्थापना के लिए 2,516 करोड़।
  • प्राकृतिक खेती के लिए सरकार 10 हज़ार जैव इनपुट संसाधन केंद्र स्थापित होंगे।

 

सरकार की ओर से बजट में रखी गई इन लोकलुभावन वादों से थोड़ा पीछे हटकर देखेंगे, तो पता चलेगा कि हर बार ये सरकार कृषि बजट जितना अलॉट करती है उतना खर्च ही नहीं कर पाती। जैसे 2015-16 के मुकाबले सरकार ने कृषि योजनाओं के लिए 2022-23 में आवंटित रकम 4.36 गुना बढ़ाकर 1.06 लाख करोड़ कर दिया, लेकिन पूरा खर्च नहीं हो सका।

यही कारण है कि कुछ योजनाएं जो किसानों के हित में दिखती भी हैं, पेश की जाती हैं, वो धरातल तक पहुंचती ही नहीं। इसके अलावा इस बार बजट में कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिसपर सरकार पूरी तरह से चुप्पी साधे रही।

कृषि मामलों के जानकार कहते हैं कि कृषि क्षेत्र के लिए बजट 2023 में किसान सम्मान निधि में बढ़ोतरी, फसल खरीद में पैसा न बढ़ाए जाने को लेकर निराशा है। मोटे अनाज को प्रोत्साहन तब तक नहीं मिल सकता, जब तक खरीद सुनिश्चित न की जाए। बायो फर्टिलाइजर, बागवानी पर फोकस किसानों के लिए अच्छा कदम है। एग्रीकल्चर एक्सीलेटर फंड की शुरुआत एक पहल है। इससे कृषि चुनौतियों का सामना करने में आसानी होगी। सरकार एक तरफ जैविक खेती को प्रोत्साहन दे रही है दूसरी तरफ जैव प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना गलत है। इससे पर्यावरणीय नुकसान की आशंका है। कुल मिलाकर इस बार का बजट भी एक रुटीन प्रक्रिया है।

तमाम कृषि मामलों के जानकार ये सवाल खड़े कर रहे हैं कि किसान सम्मान निधि को क्यों नहीं बढ़ाया गया, या इस पर कोई बात क्यों नहीं हुई।

तो आपको बता दें कि साल 2019 में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की शुरुआत हुई थी और कहा गया था कि इस योजना के तहत किसानों को हर साल 6 हजार रुपये 3 किश्तों में दिए जाएंगे। जिसमें सरकारी दावा ये कहता है कि अब तक करीब 11.3 करोड़ किसानों को 2 लाख करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं।

इस बजट पर किसानों की आस थी की पीएम सम्मान निधि की रकम थोड़ी बढ़ाई जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एक्सपर्ट इस बात पर लगातार ज़ोर दे रहे थे कि साल में 6000 रुपये की रकम बहुत कम है इसे बढ़ाकर कम से कम 12000 किया जाना चाहिए।

नवंबर 2021 में सरकार ने ख़ुद बताया था कि एक किसान हर महीने 10,218 रुपये कमाता है। इसमें से वह हर महीने 2 हजार 959 रुपये बुआई-उत्पादन पर और 1 हजार 267 रुपये पशुपालन पर खर्च करता है। यानी उसे बाकी खर्चे के लिए 6 हजार रुपये भी नहीं मिलते। लिहाजा वे कर्ज लेने के लिए मजबूर होते हैं।

यानी सरकार को एक आंख से दिखाई पड़ रहा है कि 6 हज़ार रुपये जैसी मामूली रकम से किसान का गुजारा नहीं हो सकता, इसके बावजूद इसे नज़रंदाज़ किया गया है।

किसानों की आय दोगुनी करने पर सरकार मौन क्यों?

साल 2016 में बोला गया ये भी एक जुमला ही था कि किसानों की आय 2022 तक दोगुनी हो जाएगी, यानी किसानों को हर महीने 21000 हज़ार रुपये मिलेंगे। एनएसएसओ ने 2021 में एक रिपोर्ट जारी की थी, जिसके मुताबिक 2015-16 में किसानों की आय 8 हजार रुपये प्रति माह थी, जो 2018-19 में बढ़कर 10 हजार ही पहुंच सकी। अब सरकार के वादे मुताबिक 2022 के आगे 2023 आ गया है, लेकिन आय वहीं पर रुकी हुई है। इस बात पर भी पूरे बजट भाषण में निर्मला सीतारमण मौन ही रहीं।

इस बात को लेकर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमल नाथ ने ट्वीट किया और कहा कि सिर्फ पुराने वादों पर पर्दा डाला गया है।

जब एमएसपी नहीं तो मोटे अनाज पर प्रोत्साहन कैसे?

इस सरकार ने एक बार फिर कई योजनाओं के नाम गिना दिए। जैसे इस बार मोटे अनाज को प्रोत्साहन देने के लिए श्री अन्न योजना की शुरुआत कर दी। लेकिन सवाल ये है कि जब मूल्य ही निर्धारित नहीं होगा तो मोटे अनाजों को प्रोत्साहन कैसे?

यहां पर सरकार का दावा है कि उसने फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में डेढ़ गुना बढ़ोतरी की है। यानी जो धान की कीमत 2013-14 में 1310 रुपये प्रति क्विंटल थी, वो 2022-23 में 2040 रुपये प्रति क्विंटल हो गई।

वहीं केंद्र सरकार की ही शांता कुमार कमेटी की रिपोर्ट बताती है कि सरकार केवल 6% उत्पादन ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती है। जबकि करीब 94% किसानों का उत्पादन एमएसपी से भी कम रेट पर बिकता है, जिसके कारण किसानों को हर साल लगभग 7 लाख करोड़ का नुकसान होता है।

दूर से देखने पर सुहाना लग रहा ये बजट पेश होते ही विपक्ष भी सरकार पर हमलावर हो गया।

सपा नेता डिंपल यादव ने भी ट्वीट कर इस बजट की आलोचना की और कहा कि ये चुनावी बजट है, किसानों के लिए कुछ नहीं है।

उधर पूरी भाजपा इस बजट को अमृतकाल में पेश हुआ बहुत बड़ा तोहफा बता रही है। अब इस बजट से किसे फायदा हुआ है ये तो चर्चा का विषय है।

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