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बात बोलेगी: मोदी जी का बुलडोज़र युग!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय लोकतंत्र व भारतीय संविधान पर बुलडोज़र चल रहा है। मदर ऑफ डेमोक्रेसी का जो भव्य दिव्य आयोजन चल रहा है, उसके निशाने पर डेमोक्रेसी ही है।
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कार्टूनिस्ट सतीश आचार्य के ट्विटर हैंडल से साभार

यह बुलडोज़र युग है। भारतीय राजनीति का बुलडोज़र युग। जिस तरह से बुलडोज़र जब इमारत को गिराना शुरू करता है तो उसे पूरी तरह से ढहाकर ही मिशन पूरा करता है। ठीक उसी तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय लोकतंत्र व भारतीय संविधान पर बुलडोज़र चल रहा है। मदर ऑफ डेमोक्रेसी का जो भव्य दिव्य आयोजन चल रहा है, उसके निशाने पर डेमोक्रेसी ही है, यानी लोकतंत्र।

इस बुलडोज़र राज की स्पीड बहुत तेज है। बहुत कम समय में सब कुछ रौंदने को उतारू है। यह विपक्ष को समय ही नहीं देना चाहता कि वह तैयार हो या पहले हमले का ठीक से जवाब दे पाए। सामान्य तौर पर युद्ध में इस तरह की रणनीति का प्रयोग किया जाता है कि आप दुश्मन पर लगातार उतने गोले बरसा दो, कि वह कुछ भी कर न पाए, उसका काउंटर ऑफेंसिव ही टूट जाए, यानी बचाव व मारने की रणनीति ही विफल हो जाए।

वर्ष 2023 में मोदी सरकार, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित उग्र हिंदुत्व संगठनों ने मिलकर अपने एजेंडे थोपने इसी तरह से शुरू कर दिये हैं। न तो Uniform Civil Code यानी समान नागरिक संहिता का मुद्दा नया है, न ही One Nation One Election यानी एक राष्ट्र एक चुनाव का मुद्दा। और न ही भारत बनाम इंडिया की बहस। Crpc को बदलकर `हिंदुत्ववादी संहिता’ बनाना, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता में तब्दील करने की कवायद को भी इसी संदर्भ में देखी जानी चाहिए। ये सब अचानक बाहर निकले मुद्दे नहीं हैं। लंबे समय से इनके इर्द-गिर्द राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ औऱ भारतीय जनता पार्टी राजनीतिक बिसात बिछाती रही हैं। धीरे-धीरे इन सवालों को जनमानस के बीच परोसती रही है। एक राष्ट्र-एक चुनाव का मुद्दा तो वर्ष 2014 में भारतीय जनता पार्टी के घोषणापत्र में था। समान नागरिक संहिता का मुद्दा भी देश के अल्पसंख्यकों के खिलाफ नफरत फैलाने का पुराना औजार है। इन मुद्दों को जिस तरह से 2023 के मध्य में निकाला गया है, उससे साफ है कि 2024 के चुनावों से पहले लोकतंत्र के बुनियादी ढांचे को गिराकर सेंगोल युग-राजदंड-राजशाही में प्रवेश करने के लिए मोदी सरकार ने कमर कस ली है। इसी दौर में हिंदी व संस्कृत के वर्चस्व को पूरी बेहियाई के साथ, देश की भाषाई विविधता का गला घोंट कर स्थापित किया जाता है। हिंदी को ही राष्ट्रभाषा के तौर पर स्थापित करना और अधिकांश योजनाओं को संस्कृतनिष्ठ शब्दों से जोड़ना ( वंदेभारत ट्रेनों से लेकर उज्ज्वला योजना, प्रधानमंत्री वय वन्दना योजना, जल जीवन मिशन, प्रधानमंत्री सम्मान निधि, अग्निपथ, अग्निवीर, प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण अभियान, प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन, अन्नदाता आय संरक्षण अभियान, आयुष्मान भारत, सुकन्या समृद्धि योजना आदि) ध्यान से देखा जाए तो लंबी तैयारी का सिलसिला सामने आता है। फर्क यह आया कि चुनाव आने से पहले विपक्षी एकता से बौखलाहट ने संविधान व संवैधानिक मान्यताओं पर चलाए जा रहे इस बुलडोज़र की रफ्तार तेज कर दी। 2023 के मानसून सत्र के बाद से इन तमाम मुद्दों पर ध्रुवीकरण करना तेज हो गया।

जिस तरह से ठीक जी-20 से पहले भारत बनाम इंडिया की लड़ाई को तेज करके, भारत को स्थापित किया जा रहा है, वह मोदी सरकार के बुलडोज़र युग की रफ्तार के बारे में बता रहा है। देश के राष्ट्रपति की तरफ से जी-20 के भोज का आमंत्रण में भारत के राष्ट्रपति (President of Bharat) लिखा होना औऱ उसके बाद इंडोनेशिया में आसियान बैठक में शामिल मोदी के परिचय में भी, भारत के प्रधानमंत्री ( Prime Minister of Bharat) लिखा जाना इस बात की घोषणा है कि इस बारे में उच्चतम स्तर पर फैसला ले लिया गया है। इसे ही कहा जाता है देश के लोकतंत्र का संविधान युग से निकलकर संघ युग में प्रवेश करना। यहां जो शासक का मन है, जो शासक की इच्छा है—सारा तंत्र उसे ही सर्वोपरि मानकर काम करता है। लोगों की टीम तैयार है लपक कर इस एजेंडे को चाश्नी मिलाकर आगे परोसने के मिशन में लग जाते हैं। चाहे वह क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग का टीम इंडिया में शामिल होते हुए—भाजपा के द्वारा इंडिया को भारत से लड़वाने की टुच्ची रणनीति का हिस्सा बनना हो या फिर अंबेडकर-पेरियार की फोटो लगाकर सोशल मीडिया इंफूएंसर्स की टोली हो, जो सीधे-सीधे लिख रही हो कि जो मोदी संविधान से चुनकर सत्ता में पहुंचे हैं, वह भला संविधान क्यों ध्वस्त करेंगे—यह सब कोहराम बस कुछ ही दिनों में देश भर में फैल जाता है।

एक तरफ एक प्रदेश का मुख्यमंत्री एडिटर्स गिल्ड के ख़िलाफ मोर्चा खोलता है, तो दूसरी तरफ देश का गृहमंत्री एक प्रदेश के एक मंत्री के खिलाफ मोर्चे पर तैनात होता है। जमीन पर चलने वाला बुलडोज़र तो एक ही दिशा में बढ़ता है, बस्तियों को ढहाता है। लेकिन यह राजनीतिक बुलडोज़र एक साथ अनगिनत दिशाओं में संविधानिक-कानून सम्मत विवेकसम्मत विचारों को जमींदोज़ कर रहा है। जी-20 के बारे में देश के विदेश मंत्री एस. जयशंकर सीधे-सीधे कहते हैं कि यह वैश्विक दौर है और इसका इस्तेमाल चहूं तरफा होना चाहिए। जी-20 की तैयारियों के बहाने वह पहले की सरकारों पर कटाक्ष करते हुए इस दंभ को रखते हैं कि इस सम्मेलन का कितना बेहतरीन इस्तेमाल मोदी सरकार ने किया।

अब उनके इस बयान को अगर देश के उप-राष्ट्रपति वैंकेया नायडू के न्यूज एजेंसी पीटीआई को दिये इंटरव्यू के साथ पढ़ा जाए, जिसमें वह एक राष्ट्र-एक चुनाव के पक्ष में तर्क गिनाते हैं तो लगता है कि कितने मोर्चों पर अवधारणा बनाने का खेल चल रहा है। वैंकेया एक चुनाव के पीछे के एजेंडे को साफ करते हुए कहते हैं कि बार-बार चुनाव देश के विकास को बाधित करता है बार-बार चुनाव देश की अर्थव्यवस्था पर बोझ डालता है। यह सरकारी अधिकारियों के लिए डायवर्जन पैदा करता है। सरकार बड़े फैसले नहीं ले पाती बार-बार चुनावों की वजह से। मकसद साफ है, सरकार को बार-बार जनता के बीच जाने की जरूरत न पड़े, बड़े फैसले लेने की छूट हो...यानी लोकतंत्र में तंत्र पर लोक का दबाव गायब हो जाए।

यह राजनीतिक बुलडोज़र राजनीतिक एजेंडा सेट कर रहा है। इसमें जनता के मुद्दे गायब है। एक झूठी शान को भारत से जोड़कर उसे इंडिया के खिलाफ खड़ा किया जा रहा है। जबकि संविधान साफ शब्दों में भारत और इंडिया को पर्यायवाची शब्दों के तौर पर पेश करता है। इसमें विपक्षी गठबंधन इंडिया से बौखलाहट तो साफ दिखाई दे रही है, लेकिन निशाने पर संघीय ढांचे पर खड़ा भारतीय लोकतंत्र है—जिसे हम संविधान में हम भारत के लोग...से पहंचानते हैं।  

 (लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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