भारत का स्वास्थ्य तंत्र Covid-19 के प्रकोप से कब तक लड़ सकता है?
दुनिया भर में 5.49 लाख से अधिक लोग नोवल कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुके हैं। वहीं इस महामारी के चलते 25,000 लोगों ने अपनी जान गंवा दी है। इसके चलते चीन और इटली का सबसे बुरा हाल है। इन दोनों देशों में पुरी दुनिया में होने वाले संक्रमण के कुल 36% मामला सामने आये हैं वहीं दुनिया भर में होने वाली मौतों की 53% मौत सामने आई हैं। भारत इस महामारी के शुरुआती चरण में है। शनिवार 28 मार्च तक Covid-19 के 933 मामले सामने आए और कम से कम 20 लोगों के मौत की सूचना है। नए संक्रमण, गंभीर मामले और मौत का ग्राफ़ लगातार बढ़ रहा है।
भारत में Covid-19 का घनत्व प्रति मिलियन जनसंख्या पर 0.6 मामलों के साथ फिलहाल कम है। लेकिन मामले अब तेजी के साथ बढ़ रहे हैं (चित्र 1 देखें) जो चौंकाने वाला है। भारत सरकार ने क्वारंटीन सहित कई कदम उठाए हैं। उठाए गए इन कदमों में अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को बंद करना, सोशल डिस्टेंसिंग को लागू करना और आखिर में, पूरी अर्थव्यवस्था को लॉकडाउन कर देना। फिर, पूरी मानव सभ्यता का ऐसे चौराहे पर खड़ा होना,यह सवाल उठता है कि इस महामारी से लड़ने के लिए दुनिया की 18% आबादी वाला भारत किस हद तक इस महामारी से लड़ने के लिए तैयार है। दूसरे शब्दों में कहें तो ये भारतीय इस महामारी के बीच कब तक जिंदा रह सकते हैं?
इटली और चीन की स्वास्थ्य प्रणाली से हम जो सीख सकते हैं वह इस संदर्भ में बहुत प्रासंगिक है।
टेबल 1: भारत में नोवेल कोरोना वायरस का प्रकोप
Covid-19 महामारी के चलते इटली और चीन की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई है। इन दोनों देशों की स्वास्थ्य प्रणाली भारत की तुलना में कहीं अधिक विकसित और बेहतर है। भारत की तुलना में इटली और चीन में प्रति लाख आबादी पर अस्पतालों में बेड की पांच गुना अधिक उपलब्धता है। उनके पास भारत की तुलना में प्रति लाख आबादी पर चिकित्सकों की क्रमशः दो गुना और पांच गुना अधिक उपलब्धता है।
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी एक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, भारत के सरकारी अस्पतालों में [जुलाई 2018] 15.7लाख बेड उपलब्ध हैं या प्रति मिलियन जनसंख्या पर 7बेड उपलब्ध हैं। इंडियन ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन [पेज 10] द्वारा किए गए एक अध्ययन का अनुमान है कि भारत के निजी क्षेत्र में74% अस्पताल और 40% बेड उपलब्ध हैं। इससे, कोई भी यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि भारत के निजी अस्पतालों में 10.5 लाख बेड उपलब्ध हैं।
अगर Covid-19 के पॉजिटिव मामलों की वृद्धि दर मौजूद दर से लंबे समय तक जारी रहती है तो भारत को इस वैश्विक महामारी के खिलाफ अपनी लड़ाई जारी रखने के लिए बुनियादी ढांचे की कमी का सामना करना पड़ सकता है।
हमारा अनुमान बताता है कि मई 2020 के मध्य तक सभी सरकारी अस्पतालों में संक्रमित रोगियों से भर जाएगा। निजी अस्पतालों सहित सभी अस्पताल के बेड संक्रमित रोगियों से मई के तीसरे सप्ताह तक भर जाने की संभावना है (टेबल 2 देखें)।
टेबल 2: Covid-19 इलाज के लिए भारतीय स्वास्थ्य संरचना (अस्पताल के बेड) का ब्रेक ईवन प्वाइंट।
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24 मार्च 2020 तक Covid-19 से विश्व भर में कुल मृत्यु दर 4.5% है। दो सबसे प्रभावित देशों यानी चीन और इटली का कुल मृत्यु दर क्रमशः 4% और 9.9% है।Covid-19 के पॉजिटिव जांच किए गए भारतीय रोगियों में मृत्यु दर 1.9% है जो कि विश्व भर में Covid-19 के मृत्यु दर से बहुत कम है। [कुल मृत्यु दर का अनुमानCovid-19 संक्रमण के पुष्ट मामलों की संख्या से संबंधित मौतों की संख्या पर आधारित हैं।]
हालांकि, Covid-19 से रिकवरी की वैश्विक औसत दर 26% है (चीन और इटली में, यह 90% और 12% है),जबकि कोविद -19 रोगियों की भारतीय औसत रिकवरी दर केवल 7% है (टेबल 1 देखें)। इसका मतबल बढ़ते रोगियों का बड़ा दबाव है। इसलिए, भारत के लिए एकमात्र उम्मीद इसका घनत्व कम होना है।
टेबल 3: COVID-19 के कुल मामले, कुल मरीजों की संख्या, रिकवरी दर और मामले की सघनता
Source: https://www.worldometers.info/coronavirus/#countries (as on 25/03/2020)
भारत में प्रति मिलियन जनसंख्या पर Covid-19 के 0.6 मामले हैं, लेकिन देश के अस्पतालों में बेड (प्रति मिलियन जनसंख्या पर केवल 7) की उपलब्धता भी कम है। यह स्पष्ट है कि भारत ने हालांकि नोवल कोरोनावायरस के नए मामलों की गति को धीमा कर दिया है लेकिन इटली और चीन जैसे संकट वाले देशों को देखते हुए इसे आराम करने का वक्त नहीं है।
किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि इटली और चीन की तुलना में भारत में मृत्यु दर कम है इसके बावजूद भारत में रिकवरी दर काफी कम है।
यह मुख्य रूप से बुनियादी ढांचे और मानव शक्ति की कमी के कारण होता है, जो इस अध्ययन में अस्पताल के बेड और स्वास्थ्य पेशेवरों की संख्या को प्रस्तुत करता है। तुलनात्मक विश्लेषण से पता चलता है कि प्रति लाख आबादी पर चिकित्सकों, नर्सों और प्रसव सहायिका और अस्पतालों की संख्या भी इटली और चीन की तुलना में भारत में बहुत कम है और यहां तक कि दुनिया भर की तुलना में काफी कम है।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि भारत में जनसंख्या इटली की तुलना में 22 गुना अधिक है। भारत में अधिकांश श्रम शक्ति अनौपचारिक क्षेत्र में काम करती है। [वर्ष 2017-18में पुरुष श्रमिकों की अनौपचारिक क्षेत्र में हिस्सेदारी 71.1 प्रतिशत थी और गैर-कृषि और एजीईजीसी क्षेत्रों में (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, वार्षिक रिपोर्ट 2017-18) में महिला श्रमिकों में लगभग 54.8%था।]
इनमें से कई श्रमिक काम धाम के बंद होने के कारण शहरी क्षेत्रों से ग्रामीण क्षेत्रों में अपने घरों को लौट चुकेहैं। संक्रमित होने पर वे अपने परिवार के सदस्यों और पड़ोसियों को इस बीमारी से संक्रमित कर सकते हैं।टेस्टिंग-किट की पर्याप्त संख्या के अभाव में लोगों का पता लगाने, आइसोलेशन और इलाज के लिए एक गंभीर खतरा पैदा करेगा और यह नए संक्रमणों की संभावना को और बढ़ा देगा।
ऐसी स्थिति में देश में लॉकडाउन करने से संक्रमित व्यक्तियों की संख्या में मामूली कमी होगी, लेकिन यह इसमहामारी का दीर्घकालिक समाधान नहीं करेगा। संक्रमण फैलते ही चिकित्सीय पेशेवरों के लिए सुरक्षा उपायों को उपलब्ध कराने के साथ अस्पतालों, आइसोलेशन वार्डों की संख्या बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता है।
अगर भारत की सरकारी स्वास्थ्य सेवा को पर्याप्त रूप से और जल्दी से बेहतर नहीं किया जाता है तो संक्रमण की गति में कमी के बावजूद संक्रमित व्यक्तियों की संख्या सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं को बुरी तह प्रभावित कर सकता है।
प्रीतम दत्ता नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में अध्ययन कर रही हैं और चेतना चौधरी गुरुग्राम स्थित पब्लिक हेल्थ फ़ाउंडेशन ऑफ़ इंडिया (पीएचएफ़आई) में एक वरिष्ठ शोधार्थी हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।
अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं
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