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दिल्ली: सरकारी बैंकों के निजीकरण के खिलाफ बैंक कर्मियों का प्रदर्शन

बैंक कर्मचारी यूनियनों ने सरकार को चेतावनी दी है की अगर सरकार ने बैंकों के निजीकरण की तरफ बढ़ी तो देशव्यापी हड़ताल करेंगे...
Bank Union

नई दिल्ली: गुरुवार को बैंक कर्मचारियों ने दिल्ली के जंतर मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया। वे मोदी सरकार द्वारा सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों(सरकारी बैंक) का निजीकरण सुविधा के लिए एक विधेयक पेश करने की योजना का विरोध कर रहे है। इस प्रदर्शन मे उन्होंने सरकार को चेतावनी दी है की अगर सरकार बैंकों के निजीकरण की तरफ बढ़ी तो वो(बैंक कर्मचारी) देशव्यापी लंबी हड़ताल करेंगे।

यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस(यूएफबीयू) के आह्वान पर एकत्रित हुए सैकड़ों प्रदर्शनकारी बैंक स्टाफ सदस्य, केंद्रीय ट्रेड यूनियन(सीटीयू) के नेता भी प्रदर्शन में शामिल हुए। जिनमें आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) और पूर्व संसद सदस्य भी शामिल थे। जिन्होंने एक स्वर में केंद्र के निजीकरण के प्रस्ताव का विरोध किया।

ये प्रदर्शन सिर्फ दिल्ली ही नहीं देशभर मे किया गया है। देश में बैंक यूनियनों का आंदोलनकारी अभियान काफी लंबे समय से चल रहा है। हाल के वर्षों में कई हड़ताल की कार्रवाइयां देखी गई हैं। इसपर यूनियन नेताओं ने गुरुवार को न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा ये सब तब तक जारी रहेगा जब तक केंद्र यह आश्वासन नहीं देता कि देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का नहीं करेगा ।

वे कहते हैं कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मोदी सरकार पर "भरोसा नहीं किया जा सकता।"

ऑल इंडिया बैंक कर्मचारी संघ(एआईबीईए) के महासचिव सी एच वेंकटचलम ने कहा, "हमने तय किया है कि अगर सरकार संसद के वर्तमान (मानसून) सत्र के दौरान बैंकों के निजीकरण के लिए कोई कानून लाएगी, तो बैंकों में आंदोलन तेज होगा और लंबी हड़ताल होंगी।"

वित्त वर्ष 2021-22 के केंद्रीय बजट में, मोदी सरकार ने इस साल अप्रैल में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ दो सार्वजनिक बैंकों के निजीकरण के अपने इरादे की घोषणा की थी। इसके साथ यह भी कहा था कि सरकार इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता को पूरा करेगी।

आपको बता दें कि केंद्र सरकार दो सरकारी बैंकों का निजीकरण करने की बड़ी तैयारी कर रही है। इसी के चलते संसद में बैंकिंग कानून संशोधन विधेयक लाया जा सकता है। इससे सरकार को बैंकिंग नियमों में बदलाव करने का अधिकार मिल जाएगा। वहीं जिन दो बैंकों का निजीकरण करने के तैयारी चल रही है, उसका भी रास्ता साफ़ हो जाएगा।

बैंक कर्मियों ने बैंक के निजीकरण के खिलाफ लगातार आवाज उठाई। इनका कहना है कि सरकार संसद में जो बिल लाने जा रही है उससे बैंकों के निजीकरण का रास्ता साफ होगा और रोजगार के अवसर कम होंगे। साथ ही किसानों, छोटे व्यवसायियों, स्वयं सहायता समूह समेत कमजोर वर्गों के लिए ऋण सुविधा भी लगभग खत्म हो जाएगी।

हालांकि, एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, ट्रेड यूनियन के विरोध के बीच घोषणा करने के बाद से केंद्र सरकार इन कई महीनों में बैंक के निजीकरण पर कोई ठोस कदम उठा नहीं पाई है ।

पिछले साल दिसंबर में, देश भर में आठ लाख से अधिक बैंक अधिकारियों और कर्मचारियों ने संसद के तत्कालीन शीतकालीन सत्र के विधायी व्यवसाय में देश में बैंकिंग कानूनों में संशोधन करने वाले विधेयक को सूचीबद्ध करने के विरोध में दो दिनों के लिए काम बंद कर दिया था। सरकार ने उग्र विरोध को देखते हुए योजना को आगे के लिए टाल दिया था।

इसी तरह, इस साल मार्च में भी बैंक कर्मियों ने दो दिन का काम कर सीटीयू के दो दिवसीय आम हड़ताल के आह्वान में शामिल हुए थे।

अखिल भारतीय बैंक अधिकारी परिसंघ (एआईबीओसी) की महासचिव सौम्या दत्ता ने गुरुवार को न्यूज़क्लिक को बताया कि आने वाले महीनों में बैंक को निजी लोगों को सौंपे जाने से बचाने की लड़ाई और तेज होगी।

दत्ता ने कहा, "यदि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण का विधेयक मौजूदा संसद सत्र में सूचीबद्ध नहीं है तो इसके निष्कर्ष के बाद कर्मचारी और अधिकारी देश भर में गतिविधियों की तैयारी करेंगे ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि विधेयक अगले सत्र में भी पेश नहीं किया जाए।  यह एक लंबी लड़ाई होगी, जिसके लिए बैंक कर्मचारी तैयार हैं।"

अगर मीडिया रिपोर्टों की माने तो भले ही केंद्र ने संसद के चल रहे मानसून सत्र में उक्त विवादास्पद विधेयक पेश करने की संभावना नहीं है, जो कि 13 अगस्त तक चलने वाला है । लेकिन इसके बाद भी बैंक कर्मचारी संघों द्वारासार्वजनकी क्षेत्र के बैंकों  के निजीकरण के कदम के खिलाफ आर पार की लड़ाई  लड़ने का संकल्प लिया गया है ।

हालांकि, ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एआईटीयूसी) की महासचिव अमरजीत कौर ने गुरुवार को न्यूज़क्लिक को बताया कि मोदी सरकार पर "भरोसा नहीं किया जा सकता"। उन्होंने कहा, "देखिए कि केंद्र ने अपनी कार्यकारी शक्तियों का इस्तेमाल कैसे किया था ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि निजी निगमों को राष्ट्रीय धन हस्तांतरित करने का उसका एजेंडा पूरा हो।"

इसलिए, कौर ने कहा कि बैंक यूनियनों का आंदोलन तब तक जारी रहेगा जब तक कि केंद्र द्वारा देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण के एजेंडे को वापस लेने का आश्वासन नहीं दिया जाता।

सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के महासचिव तपन सेन गुरुवार को न्यूज़क्लिक  को बताया की “सार्वजनिक उद्यमों के निजीकरण का भी देश के सभी सीटीयू द्वारा गंभीर विरोध किया जा रहा है। आने वाले दिनों में हमारी अगली बैठक में भी इस पर चर्चा की जाएगी जिसमें मुद्रास्फीति और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भी चर्चा होगी ।”

इससे पहले, विरोध कर रहे बैंक कर्मचारियों के सदस्यों को संबोधित करते हुए, सेन ने उन्हें अन्य सार्वजनिक क्षेत्रों के  यूनियनों के समर्थन का भी आश्वासन दिया। गुरुवार को सभा को संबोधित करने वालों में  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के महासचिव डी राजा भी थे, जिन्होंने बैंक यूनियनों को अपनी पार्टी को समर्थन दिया।

राज्यसभा के पूर्व सदस्य ने कहा, "आपको [बैंक स्टाफ] को अपना आंदोलन जारी रखना होगा।"

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