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विमर्श: 'आज साम्राज्यवाद बदले हुए ख़तरनाक स्वरूप में हमारे सामने है'

''आज ज्यादा आवश्यक है कि लेनिन के सिद्धांतों को हम समझें। तभी हम चुनौतियों का सामना कर पाने में सक्षम होंगे।'’
imperialism

पटना: लेनिन की मृत्यु (1924) के सौवें वर्ष के अवसर पर केदारदास श्रम एवं समाज अध्ययन संस्थान के द्वारा ’आज का साम्राज्यवाद और लेनिन’ विषय पर विमर्श का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में वामपंथी पार्टियों के नेता सहित सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता, संस्कृतिकर्मी,लेखक आदि शामिल हुए। कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉ. विजय नारायण मिश्र ने की। आगत अतिथियों का स्वागत अजय कुमार ने किया।

प्रसिद्ध मार्क्सवादी चिंतक और बांग्ला कवि, ट्रेड यूनियन नेता और बिहार के सबसे पुराने अंग्रेजी अखबार बिहार हेराल्ड' के संपादक विद्युत पाल ने कहा कि “ दुनिया अंतर्विरोध से भरी है। पूंजी और श्रम के संघर्ष में आप किसके साथ खड़े हैं यह बुनियादी बात है। आज की कोई भी समस्या पूँजी और श्रम के अंतर्विरोध से अलग नहीं है। आज का साम्रज्यवाद ज़्यादा ख़तरनाक है। यह सोवियत के खत्म होने के बाद का है। इसे समझने की जरूरत है। पूंजीवाद की चरम अवस्था साम्राज्यवाद है। साम्राज्यवाद एक तरह की टेंडेंसी है। बड़ी कंपनियां पैसे की ताक़त से ही बाज़ार पर कब्ज़ा करती हैं। अपनी कमजोरियों से पार पाना होगा। लेनिन को याद करते हुए आज यह महत्वपूर्ण है लेनिनिस्ट पार्टी के रूप में काम करें। साम्राज्यवाद यह करता है कि किसी वस्तु के उपयोग मूल्य को उसके विनिमय मूल्य से अलग कर देता है। मूल्य और कीमत में एक दूसरे के करीब रहने की जो प्रवृत्ति है उसे अलग कर खत्म कर देता है।"

विषय प्रवेश करते हुए संस्कृतिकर्मी अनीश अंकुर ने कहा ” आज का साम्राज्यवाद दो ढंग से काम कर रहा है। पहला युद्ध और दूसरा संस्कृति। आज गूगल, फेसबुक, ट्विटर, वीडियो स्ट्रीमिंग, अमेजन प्राइम आदि के जरिए सच को पहुंचने के रास्ते पर नियंत्रण कर रहा है। तीसरी दुनिया के युवा तक जाने वाली हर विचार की ये निगरानी करते हैं।साम्राज्यवाद से मुक़ाबले के लिए लेनिन कहा करते थे कि साम्राज्यवाद युद्ध के बगैर जिंदा नहीं रह सकता। अमेरिकी साम्राज्यवाद के दुनिया भर में 902 सैन्य अड्डे हैं जबकि इंग्लैंड के 145 अड्डे। लेनिन कहा करते थे कि ठोस परिस्थितियों का ठोस विश्लेषण ही मार्क्सवाद की आत्मा है। इस बात को हमें सीखना चहिए कि परिस्थिति पर पकड़ कैसे बनाई जाए। यह बहुत मुश्किल चुनौती है। आज लेनिन के बताए रास्ते ज़्यादा महत्व रखते हैं। अमरीकी साम्राज्यवाद दुनिया के लोकतंत्र को समाप्त करना चाहता है।”

एसयूसीआई के नेता अरुण कुमार ने कहा कि “ समाजवादी व्यवस्था ही बेहतर है। पूंजीवाद दुनिया को कुछ नहीं दे सकता है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद माल्टा में जब स्टालिन गए तो बुर्जुआ नेताओं को खड़ा होना पड़ा। सभी वामपंथी शक्तियों को एकजुट होकर लड़ने की ज़रूरत है।”

सीपीआई एमएल के वरिष्ठ नेता कॉ. “अरविंद सिन्हा ने बताया पूंजीवाद पूरी दुनिया में अपनी कॉलोनी बनाकर शोषण करता रहा है। लेनिन बहुत बारीकी से इसका अध्ययन करते हैं। समाजवाद के लिए विश्वव्यापी एका बनाने की जरूरत है। वर्गसंघर्ष ही केंद्र है। आज ज्यादा आवश्यक है कि लेनिन के सिद्धांतों को हम समझे। तभी हम चुनौतियों का सामना कर पाने में सक्षम होंगे। सोवियत को एक मॉडल के रूप में दुनिया देखती थी। अमेरिका चाहता है एक नई तरह की कॉलोनी बनान। अमेरिका के सामने किसी भी देश की सार्वभौमिकता सुरक्षित नहीं है।”

स्टालिन और माओ की जीवनी लिखने वाले सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता नरेंद्र कुमार ने कहा कि " साम्राज्यवाद बदले हुए खतरनाक स्वरूप में हमारे सामने है। बीसवीं सदी में भारतीय पूंजीवाद धीरे-धीरे विकसित हुआ। साम्राज्यवाद ने पूरी दुनिया को अपने कब्ज़े में ले लिया है। संपत्ति से लेकर तकनीक, संस्कृति, आदतों तक को गिरफ्त में कर चुका है। पूंजी के हमले के ख़िलाफ़ लड़ना होगा। किसान-मज़दूर को एक होकर सामने आने की ज़रूरत है। मज़दूर वर्ग को संगठित करना होगा। व्यापक संयुक्त मोर्चा बनाने की आवश्यकता है। "

सीपीएम के वरिष्ठ नेता अरुण मिश्रा ने बताया कि " मार्क्स कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो में ही पूंजी को चरित्र को उजागर करते है। पूंजी अपने मुनाफे के लिए अपने मालिक को भी मार सकती है। वर्गसंघर्ष मूल चीज़ है उसे भूलना नहीं चाहिए। साम्राज्यवाद लूट का नियम है।"

सीपीआई के वरिष्ठ नेता जब्बार आलम ने अपने संबोधन में बताया कि "देश को पीछे ले जाने की कोशिश हो रही है। पूंजीवाद ही साम्राज्यवाद का उच्चतम स्तर है। आज ज़रूरत है लेनिन को समझने की। इस तरह के सैद्धांतिक विषय पर बहस होनी चाहिए।"

कार्यक्रम का संचालन अमरनाथ ने किया। कार्यक्रम में कुलभूषण गोपाल, डी पी यादव, अशोक कुमार सिन्हा, विश्वजीत, इंद्रजीत, गोपाल गोपी, उमाकांत, कारू प्रसाद, सूर्यकर जितेंद्र आदि मौजूद थे।

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