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डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की 50वीं वर्षगांठ पर इसके अच्छे-बुरे पन्नों को जानना ज़रूरी है

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स 1971 से दुनिया भर में लाखों लोगों की मदद कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय आपातकालीन सहायता संगठन को अपने इस काम के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला है। लेकिन यह समूह आलोचना से परे नहीं है।
Doctors Without Borders
डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स उत्तरी मोज़ाम्बिक में कुपोषण से लड़ने का काम कर रहे हैं। 

​पिछले पांच दशकों से, मेडिसिन्स सैन्स फ्रंटियर्स (MSF), या डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स, दुनिया भर में संकटग्रस्त क्षेत्रों और संघर्ष के क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं, महामारी और नरसंहार से बचे लोगों के साथ-साथ लाखों शरणार्थियों की चिकित्सा कर रहा है।

हजारों डॉक्टरों, नर्सों और रसद विशेषज्ञों एवं कई स्थानीय लोगों ने फील्ड अस्पताल स्थापित किए हैं, उनमें मरीजों के ऑपरेशन किए हैं, अनगिनत लोगों का टीकाकरण किया है और बेहद जरूरतमंद लोगों को चिकित्सा सुविधाएं प्रदान की है। इस समूह को दुनिया भर में किए जाने वाले अपने मानवीय कार्यों की मान्यता के लिए 1999 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

तटस्थता से टूटना

MSF की जर्मन शाखा के सह-संस्थापक, उलरिके वॉन पिलर (Ulrike von Pilar) ने बताया। "यह सब 1960 के दशक के अंत में शुरू हुआ," 

उस समय, तेल से समृद्ध प्रांत बियाफ्रा नाइजीरिया से अलग होना चाहता था।

इंटरनेशनल रेड क्रॉस के लिए काम करने वाले फ्रांसीसी डॉक्टरों ने युद्धग्रस्त क्षेत्र में गंभीर रूप से हजारों लोगों को कुपोषित पाया, और उन्हें संदेह था कि इस तरह वहां एक नरसंहार किया जा रहा था।

रेड क्रॉस कार्यकर्ताओं के रूप में उन्हें तटस्थता से काम करने की शपथ दिलाई गई थी, लेकिन उन्होंने उन लोगों की दुर्दशा को देखते हुए इसका पालन करने से इनकार कर दिया।

मेरिग्नैक, फ्रांस में डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स वॉर हाउस दुनिया भर में सबसे बड़े मानवीय सहायता केंद्रों में से एक है। 

वॉन पिलर ने कहा- कुछ स्वयंसेवी डॉक्टरों के प्रयास से मेडिसिन्स सैन्स फ्रंटियरेस का जन्म हुआ था। जिसके "सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत थे: दुनिया भर में मानव जीवन को बचाने के लिए, चाहे जो कुछ भी करना पड़े किया जाए और मानव जीवन के खिलाफ हो रहे अपराधों का मुकाबला किया जाए"

हालांकि बाद में यह निर्धारित कर दिया गया कि बियाफ्रा में कोई नरसंहार नहीं हुआ था और अन्याय की त्वरित निंदा करना नए समूह के एजेंडे का एक अनिवार्य तत्व बन गया। 

पकड़ा जाना क्रॉसफ़ायर में

1984 का इथियोपियाई अकाल इस समूह के लिए एक और बड़ी चुनौती थी। दुनिया भर में इसकी रिपोर्टिंग और लाइव एड कॉन्सर्ट के जरिए अत्यधिक प्रचार को धन्यवाद कि, जिसकी वजह से पूरी दुनिया से बड़ी मात्रा में सहायता राशि इस देश को मिल सकी।

लेकिन इथियोपिया के तानाशाह, मेंगिस्टु हैली मरियम ने इस अकाल राहत कोष का इस्तेमाल सैकड़ों हजारों ग्रामीणों को जबरन देश के दक्षिण की दुसह्य पारिस्थितिकी वाले दुर्गम भूभाग में बसावट के लिए किया, जहां बाद में, इनमें से हजारों लोगों की मृत्यु हो गई।

"चूंकि किसी और ने इन अपराधों पर गौर नहीं किया, MSF फ्रांस ने एक नाटकीय घटनाक्रम में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन लोगों के प्रति किए जा रहे अपराधों की निंदा की," वॉन पिलर ने कहा, "हालांकि यह स्पष्ट था कि इसकी प्रतिक्रियास्वरूप उसे देश छोड़ना होगा, और इसके रोगियों को भी।"

डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स को बार-बार एक मौलिक नैतिक दुविधा का सामना करना पड़ता रहा है: या तो उन देशों के शासकों की सहमति से लोगों की जान बचाने के लिए, या उन्हीं शासकों द्वारा किए गए अपराधों की निंदा करने पर और इस तरह अपने रोगियों को छोड़ने का जोखिम उठाने के लिए।

1994 में, जब दुनिया रवांडा के हुत्सु बहुसंख्यक द्वारा तुत्सी अल्पसंख्यक के संहार की अनदेखी कर रही थी, तब MSF ने वहां सैन्य हस्तक्षेप का आह्वान किया था, पर इससे कोई फायदा नहीं हुआ।

राजनीतिक बारूदी सुरंगों के बाहर भी संगठन के सदस्य सचमुच कई मौकों पर गोलीबारी में फंस गए हैं।

अफगानिस्तान के कुंदुज में एक MSF अस्पताल 3 अक्टूबर 2015 को हुए एक हवाई हमले में मलबे में दब गया था। बाद में संयुक्त राज्य अमेरिका ने इस हमले को एक गलती कहा था।

समूह के स्टाफ-सदस्य भी हमलों और अपहरणों के शिकार हुए हैं।

शरणार्थियों की सहायता करने के चलते भी समूह को सरकारी सत्ता का कोप झेलना पड़ता है। उदाहरण के लिए, ग्रीस में MSF कार्यकर्ता उन शरणार्थियों की देखभाल कर रहे हैं, जो समुद्री नावों में सवार होकर बड़ी मुश्किल से भूमध्य सागर को पार कर चुके हैं।

MSF के साथ काम कर रहीं एक जर्मन नर्स डेनिएला स्टुअरमैन ने कहा- "हम तटरक्षक बल के पहुंचने से पहले शरणार्थियों तक पहुंचने की कोशिश करते हैं," 

दक्षिण अफ्रीका में महत्त्वपूर्ण एचआइवी अभियान

इस समूह का उद्देश्य दुनिया के सबसे गरीब लोगों को बहुत जरूरी चिकित्सा आपूर्ति करना भी है।

दक्षिण अफ्रीका के खयेलित्शा में मपुमी मंतंगाना एक अनुभवी MSF नर्स के रूप में कार्यरत है, जो केप टाउन का एक बहुत ही गरीब जिला है। वे एड्स रोगियों के लिए एचआइवी दवाएं उपलब्ध कराने में भी माहिर हैं। मपुमी याद करती हैं कि 1990 के दशक के उत्तरार्ध में इसका अनुभव भयानक था, जब एड्स रोगियों को समाज द्वारा सबसे अधिक कलंकित किया गया था।

मपुमी ने कहा "दुर्भाग्य से, हमारी सरकार ने दक्षिण अफ्रीका में एचआइवी की समस्या मानने से इनकार कर दिया था। राष्ट्रपति थाबो मबेकी ने तो सार्वजनिक रूप से यहां तक कह दिया कि उन्होंने कभी एचआइवी पॉजिटिव व्यक्ति नहीं देखा।"

खयेलित्शा के MSF कार्यालय में पारंपरिक षोसा पोशाक में कुशल नर्स मपुमी मंतंगना। 

उस समय, 4 मिलियन से अधिक दक्षिण अफ्रीकी पहले से ही एचआइवी से संक्रमित थे, और हर दिन हजारों लोग मर रहे थे। जब पहली एंटीरेट्रोवाइरल दवाएं बाजार में आईं, तो वे कई लोगों के लिए असरकारी नहीं हो रही थीं जबकि इसकी लागत प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष € 10,000 ($11,300) तक आ रही थी। 

मंतंगना ने याद करते हुए बताया, "MSF ने मई 2001 में सावधानीपूर्वक चुने गए इन एचआइवी रोगियों को दवाएं उपलब्ध कराना शुरू किया। शुरुआत में, यह एक बहुत छोटा कार्यक्रम था, क्योंकि ये दवाएं अभी भी बेहद महंगी थीं।"

हालाँकि, इसमें तब बदलाव आया, जब समूह ने ब्राजील सरकार से दवा के सस्ते जेनेरिक संस्करण खरीदे और बाद में इन्हें दक्षिण अफ्रीका में तस्करी कर लाया। पुलिस की छापेमारी के दौरान इन दवाओं को अधिकारियों से छिपाकर रखना पड़ता था।

नेल्सन मंडेला ने दक्षिण अफ्रीका के एचआइवी पॉजिटिव मरीजों के इलाज की पैरोकारी की थी

मपुमी ने कहा,"जब [नेल्सन] मंडेला दिसंबर 2002 में खयेलित्शा आए, तो हमने उन्हें 'एचआइवी पॉजिटिव' लिखी अपनी एक टी-शर्ट दी। हमारे आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा जब मंडेला ने तुरंत इसे पहन भी लिया। और उन्होंने खुलासा किया कि एड्स के चलते ही उन्होंने अपने सबसे बड़े बेटे को खो दिया था।"

दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति और राष्ट्रपिता नेल्सन मंडेला के इस रुख ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया। इसके तुरंत बाद, सभी दक्षिण अफ्रीकियों को मुफ्त में एंटीरेट्रोवाइरल उपचारों का हक दे दिया गया।

MSF भी आलोचना के दायरे में

आज, डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स में लगभग 45,000 कर्मचारी काम करते हैं और यह 70 से अधिक देशों में सक्रिय है। इसका वार्षिक बजट-लगभग €1.6 बिलियन है, जो बड़े पैमाने पर दान से आता है। यह विशेष रूप से कमजोर देशों में, जैसे हैती और दक्षिण सूडान में, राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं के स्थान पर भी काम कर रहा है।

लेकिन यह संगठन भी आलोचना से मुक्त नहीं है।

कैमरून की एक सामाजिक कार्यकर्ता मार्गरेट न्गुनांग, जिन्होंने 2018 में दक्षिण सूडान के जुबा में MSF के लिए काम किया थाऔर अब वे न्यूयॉर्क में रहती हैं, उन्होंने बताया कि वे "गोरों में डेमीगॉड्स" के अहंकार और समूह के सूक्ष्म नस्लवादी रवैये को कैसे देखती हैं। 

न्गुनांग ने कहा, "जब हम जुबा में स्थित MSF ऑफिस में गए तो वहां अपनी मेज पर बैठे कार्यक्रम के उप निदेशक ने पहले तो कुछ मिनटों के लिए हमें अनदेखा कर दिया। जाहिर है, उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि उसे लगा कि हम दक्षिण सूडानी हैं।" 

न्गुनांग ने कहा कि उन्होंने यूरोपीय और अमेरिकी कर्मचारियों की ओर से बार-बार सूक्ष्म आक्रामकता का अनुभव किया है।

अमेरिका में, MSF के एक हजार पूर्व कर्मचारियों ने एक खुला पत्र प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने संगठन के भीतर पितृवाद और नस्लवाद का जो भी अनुभव किया था, उनको समाप्त करने की मांग की। अपने महत्त्वपूर्ण स्वास्थ्य देखभाल कार्य के बावजूद, MSF पर संगठन के भीतर पितृसत्तात्मकता और नस्लवाद का आरोप लगाया जाता है। 

स्वास्थ्य देखभाल के अपने महत्त्वपूर्ण कार्य के बावजूद, MSF पर संगठन के भीतर पितृसत्तात्मकता और नस्लवाद का आरोप लगाया जाता है।

​​और 2018 में, जांचकर्ताओं ने यह भी पाया कि अफ्रीका में MSF के कर्मचारी स्थानीय वेश्याओं के पास जाते थे। हालांकि घटनाओं की कड़ाई से जांच की गई और इसमें शामिल लोगों को निकाल दिया गया, लेकिन इससे संगठन की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा।

MSF के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, इन दिनों समूह इस बात पर गहन चर्चा में मशगूल है कि आपातकालीन सहायता सहयोग की स्थिति में संरचनात्मक नस्लवाद को कैसे समाप्त किया जाए।

स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय कर्मचारियों के बीच असमानता को कम करने, और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अधिक गैर-गोरे कर्मचारियों को भी नियुक्त करने के प्रयास किए जा रहे हैं। कार्यनीतिक निर्णयों को भी यूरोप से वैश्विक दक्षिण स्थानांतरित किया जाना है।

लेकिन समूह की स्थापना के आज 50 साल बाद भी, इसकी आंतरिक संरचना के स्तर पर और विश्व स्तर पर बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

यह लेख मूल रूप से जर्मन में लिखा गया था, फिर उसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था। 

सौजन्य: दाइचे वेले (DW)

अंग्रेजी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें:

Doctors Without Borders Marks 50th Anniversary

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