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चुनाव 2022: अब यूपी में केवल 'फ़ाउल प्ले' का सहारा!

ध्रुवीकरण और कृपा बाँटने का कार्ड फेल होने के बाद आसन्न पराजय को टालने के लिए, अब सहारा केवल फ़ाउल प्ले का बचा है। ऐन चुनाव के समय बिना किसी बहस के जिस तरह निर्वाचन कार्ड को आधार से जोड़ने का कानून बना है, वह प्रथमदृष्टया ही शक पैदा करता है।
modi yogi

UP में बाजी हाथ से फिसलती देख संघ-भाजपा ने सारे घोड़े खोल दिये हैं। एक ओर जनता को पहले दरिद्र बनाकर फिर कृपा बांटने का खेल हो रहा है, दूसरी ओर साम्प्रदायिक उन्माद को चरम पर पहुंचाने के लिए खुले आम जनसंहार और गृह-युद्ध छेड़ने का आह्वान हो रहा है। इन दोनों के फेल होने पर चुनाव को manipulate करने के उपाय हो रहे हैं।

बहरहाल, गरीबों को कृपा बांटने का दांव फेल होता नज़र आ रहा है। जनसत्ता अखबार ने सोशल मिडिया पर वायरल वीडियो के माध्यम से यह खबर छापी, " प्रधानमंत्री की रैली से निकल कर बोलीं महिलाएं कि नहीं देंगे मोदी को वोट। हमें पागल समझ रखा है क्या? " । मामला 21 दिसम्बर की इलाहाबाद की उनकी महिला सशक्तिकरण रैली का है।

दरअसल, 2017 और 2019 की मोदी लहर में उज्ज्वला जैसी योजनाओं के माध्यम से महिलाओं का भी योगदान था। लेकिन जानलेवा महंगाई ने महिलाओं के बीच जबरदस्त गुस्से को जन्म दिया है, बहुचर्चित उज्ज्वला सिलेण्डरों को भरवा पाना भी गरीब महिलाओं के लिए असम्भव हो गया है, नौकरी-रोजगार पाकर आत्मनिर्भर होने का सपना पाले छात्राएं, रोजगार तलाशती युवतियां मोदी-योगी राज में बेरोजगारी की मार से बेहद निराश हैं। स्कीम वर्कर, स्वयं सहायता समूह जैसी लाखों महिलाओं में मानदेय, स्थायीकरण, सेवा-शर्तों आदि को लेकर भारी असंतोष है। समग्रता में, जिस विराट महिला-आबादी के अंदर हाल के वर्षों में नई सामाजिक जागृति और गतिशीलता आयी है, वह अपनी आकांक्षाओं को पूरा कर पाने में भाजपा राज को बाधक पा रही है।

इसे ही आक्रामक ढंग से address करने और लुभाने की प्रियंका गांधी कोशिश कर रही है। जाहिर है महिलाओं के एक मुखर हिस्से का भाजपा से बढ़ता हुआ अलगाव अगर भाजपा को हराने के लिए गोलबंद हुआ तो यह उसके लिए भारी मुसीबत बन सकता है।

21 दिसम्बर को पूरे प्रदेश से जुटायी गयी ऐसी ही महिलाओं को साधने के लिए प्रयागराज में मेगा इवेंट का आयोजन किया गया था। वहां से आ रही ग्राउंड reports से लगता है कि उन महिलाओं को उम्मीद थी कि दीर्घकाल से लंबित उनकी मांगों पर प्रधानमंत्री कोई घोषणा करेंगे, लेकिन जब ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो वे निराश और नाराज हुईं। जाहिर है यह आयोजन उन्हें साधने में नाकाम रहा।

दरअसल, यह ' कृपा-बांटो' लोकतन्त्र का नया मॉडल है। घर-घर काशी विश्वनाथ का प्रसाद ही नहीं बांटा जा रहा है, जनता के सभी तबकों को जो जिस लायक है, सबको कुछ न कुछ दान-दक्षिणा-भिक्षा दी जा रही है। प्रत्येक किसान परिवार को महीने में 500/-, 15 करोड़ गरीबों को 5 किलो अनाज, 1 किलो चना, 1 लीटर फॉर्चून तेल, 1 किलो नमक, छात्रों को मोबाइल-टैबलेट....।

इसी दौरान अडानी को अब तक की सबसे बड़ी एक्सप्रेसवे परियोजना, इलाहाबाद से मेरठ तक प्रस्तावित 594 किमी लंबी गंगाएक्सप्रेस वे, जिसकी लागत 17,000 करोड़ रुपये से अधिक है, का ठेका दे दिया गया है। देखते-देखते मोदी जी के चहेते अडानी 7 साल में फर्श से अर्श पर पहुँच गए।

यह एक नया मॉडल है। अर्थव्यवस्था का कोई उत्पादक विकास नहीं, रोजगार नहीं, कोई वास्तविक एम्पावरमेंट नहीं, सारी राष्ट्रीय सम्पदा का कारपोरेट के हाथों हस्तांतरण, मेहनतकशों के श्रम की अंधाधुंध लूट और फिर टैक्स और महंगाई बढ़ाकर आम जनता की जेब से डाकाज़नी, अंत में भूखे-नङ्गे लोगों पर कृपा की बारिश। लेकिन मोदी-योगी राज की विनाशकारी नीतियों से हुई तबाही इतनी विराट है कि, जनता अब इस दान-दक्षिणा से impress होने वाली नहीं है।

ध्रुवीकरण का ब्रह्मास्त्र भी जनता की नाराजगी और अलगाव को दूर कर पाने में नाकाम साबित हो रहा है। मोदी-शाह-योगी की विभाजनकारी जुमलेबाजी का mild dose फेल होने के बाद अब हरिद्वार की धर्म- संसद में जो जनसंहार व गृह-युद्ध छेड़ने का आह्वान हुआ है, यह साफ है कि वह महज कुछ दंगाई साधुओं का कारनामा नहीं है। UP और उत्तराखंड, दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ उनके जिस तरह के फोटो वायरल हुए हैं, उनसे साफ है कि सत्ता प्रतिष्ठान से उनके गहरे रिश्ते हैं। दरअसल यह उन्मादी खेल संघ-भाजपा नेतृत्व की चरम हताशा और desperation की अभिव्यक्ति हैं। मोदी समेत उनके सारे नेता तो सम्प्रदाय विशेष को target करते हुए ध्रुवीकरण में लगे ही हैं, पर वह बुरी तरह नाकाम हो रहे हैं। अब इन संत नामधारी दंगाइयों को आगे करके उस उन्माद को चरम पर पहुंचाने की कोशिश हो रही है, जो संवैधानिक पद पर रहते मोदी-शाह-योगी जैसे अन्य लोग नहीं कर पा रहे हैं। इन्हें सत्ता का खुला संरक्षण प्राप्त है इसका इससे बड़ा सबूत क्या हो सकता है कि इस आपराधिक कृत्य के लिए उनके खिलाफ भाजपा सरकार द्वारा कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। यह सचमुच shocking है कि कोई संवैधानिक संस्था इस खुली संविधान-विरोधी हरकत का संज्ञान नहीं ले रही है, जिसका हमारे सामाजिक तानेबाने और अमन तथा भाईचारे के लिए, राष्ट्रीय एकता और लोकतन्त्र के लिए गम्भीर निहितार्थ हो सकते हैं।

ध्रुवीकरण और कृपा बाँटने का कार्ड फेल होने के बाद आसन्न पराजय को टालने के लिए, अब सहारा केवल फ़ाउल प्ले का बचा है। ऐन चुनाव के समय बिना किसी बहस के जिस तरह निर्वाचन कार्ड को आधार से जोड़ने का कानून बना है, वह प्रथमदृष्टया ही शक पैदा करता है। आखिर

संसद में बिना किसी बहस के, select committee में भेजे बिना ध्वनिमत से इसे पास करवाने की इतनी हड़बड़ी क्या थी ?

सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में अपने 2015 में दिये आधार को वोटर आई-कार्ड से जोड़ने पर रोक लगाने वाले फैसले को पुन: सही मानते हुए National Election Roll Purification and Authentication Programme पर रोक लगाने का आदेश दिया था।

तेलंगाना और आंध्रप्रेदश की सरकारों ने सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश का उल्लंघन करते हुए 2018 में आधार को वोटर आईडी से लिंक कर दिया था, तब इसके परिणामस्वरूप करीब 55 लाख मतदाताओं के नाम मतदाता सूची से अचानक गायब हो गये थे और वे मताधिकार से वंचित हो गए थे।

जाहिर है यह चुनाव को manipulate करने और जनादेश को प्रभावित करने के खतरनाक खेल का हिस्सा है। हाल ही में PMO द्वारा मुख्य चुनाव आयुक्त समेत सभी आयुक्तों को तलब करने की अभूतपूर्व घटना के साथ इसे जोड़कर देखा जाय तो एक भयावह तस्वीर उभरती है जो हमारे लोकतंत्र के लिए अशुभ है।

आज सारे indicators यह दिखा रहे हैं कि जनता बदलाव का मन बना चुकी है। न कृपा बांटने का दांव चल रहा, न ध्रुवीकरण का ब्रह्मास्त्र, तब चुनाव मैनिपुलेट करने और दंगा भड़काने की साजिश रची जा रही है।

जनता के जनादेश की sanctity खतरे में है। क्या आम जनता, नागरिक समाज-लोकतान्त्रिक ताकतें, विपक्षी दल जनादेश के अपहरण और लोकतन्त्र के अंत की इजाजत देंगी ?

(लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

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