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महिला दिवस के ज़रिए महिला कलाकारों की प्रदर्शनियों को मिलता मंच

गुमनाम पृष्ठभूमि में रहने वाली महिला कलाकारों को इस गुमनामी से निकाल कर अचानक चमचमाती रौशनी से भरपूर मंच पर लाया जा रहा है। भले ही वे किसी प्रतिष्ठित कलाकार घराने की नहीं हैं, उन्हें अचानक मानो एक सीढ़ी मिल जाती है।
Dr Manju Prasad

कुछ सालों से महिला दिवस को दृश्य कला जगत में भी एक उत्सव की तरह धूमधाम से मनाया जा रहा है। छोटी बड़ी कला विथिकाओं द्वारा गुमनाम पृष्ठभूमि में रहने वाली महिला कलाकारों को इस गुमनामी से निकाल कर अचानक चमचमाती रौशनी से भरपूर मंच पर खड़ा किया जा रहा है। बेहद ख़ुशी होती है ये देखकर कि साधारण महिलाओं को, चाहे उन्होंने जैसे-तैसे कला अध्ययन प्राप्त किया है या वे भले ही किसी प्रतिष्ठित कलाकार घराने की नहीं हैं, उन्हें अचानक मानो एक सीढ़ी मिल जाती है। ये उम्मीद भी की जा रही है कि वे इसका भरपूर लाभ उठाएंगी। आयोजकों की रूचि के अनुसार वे क्या रच रहीं हैं क्या नहीं लेकिन इतना ज़रूर है कि कम से कम वे बंद दायरे से बाहर आ रहीं हैं।

वहीं कुछ ख़ास महिला कलाकार हैं जो ख़ुद चुनौतियों से गुज़रते हुए और कला की दुनिया में जोख़िम उठाते हुए अलग तरह से कला सृजन कर रहीं हैं। आज दृश्य कला‌ में अभिव्यक्ति के अनेकों माध्यम हो गए हैं लेकिन दैनिक जीवन में काम आने वाली सामग्रियों से ही अनोखी कलाकृतियों का सृजन करने वाली महिला कलाकारों के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता है।

मुंबई की कुछ कलाकारों, नेल्ली सेठना और‌ उनकी साथी कलाकारों ने रोज़ाना की दिनचर्या में महिलाओं द्वारा बनाए जाने वाले क्रोशिए की बुनाई या गांठ लगाकर बनाए जाने वाले धागे के झालरों आदि द्वारा द्विआयामी या त्रिआयामी मूर्तिशिल्प का सृजन किया। इन कलाकृतियों के विषय नितांत आधुनिक और उद्वेलित करने वाले हैं।

नीता नेल्ली की कलाकृतियों में मूर्तिकला की त्रिआयामी गुणों की संवेदनशीलता है जिसे स्पर्श करके महसूस किया जा सकता है। उनकी मूर्तिशिल्प में अलंकारिता (डिज़ाइन) के नियमों का पालन करते हुए कुछ नया कहने की कोशिश है। उन्होंने परंपरागत रूप से उपयोग में आने वाले ऊनी सूत, जूट और चमड़े की रस्सियों की बुनावट के द्वारा भारत में नितांत नए और मौलिक कला का सृजन किया जिसमें आकर्षक रंगों का भी संयोजन है।

मृणालिनी मुखर्जी भी ऐसी मूर्तिकार थीं जिन्होंने बंटी हुई रस्सियों से (मेक्रामि तकनीक) से मूर्त शिल्प बनाए। इनके विषय नितांत नारीवादी सोच से उर्वरता को लेकर थे। यद्यपि विषय चयन, कला जगत में पुरुष वर्चस्व के विरोध में ही रहा होगा लेकिन विषय चाहे जो हो, मृणालिनी मुखर्जी के मूर्त शिल्प बेहद अनोखे हैं जो काफ़ी मेहनत से बनाए गए हैं। इनमें सामग्री के रूप में ऊन, जूट की रंगीन रस्सियों का इस्तेमाल किया गया है। मृणालिनी मुखर्जी (जन्म : 1949 मुम्बई, मृत्यु : 15 फरवरी 2015) बंगाल के प्रसिद्ध चित्रकार विनोद बिहारी मुखर्जी की बेटी थीं। उनकी मां लीला मुखर्जी थीं। मृणालिनी मुखर्जी की प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के बेल्हम गर्ल्स स्कूल में हुई थी। वे अपनी गर्मी की छुट्टियां हमेशा शांतिनिकेतन में बिताया करतीं थीं। कला में स्नातक की शिक्षा उन्होंने‌ बड़ौदा के छत्रपति ‌‌शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय से ली। बाद में मृणालिनी ने केजी सुब्रमण्यम के निर्देशन में भित्ति चित्र अलंकरण में पोस्ट डिप्लोमा का कोर्स किया था।

आधुनिक युग की भारतीय महिला कलाकार, अध्ययन और वैचारिक स्तर पर भी मजबूती दिखा रही हैं। वे कला के घिसे-पिटे विषयों से परे, इन महिला कलाकारों से प्रेरित होकर बहुत कुछ नया रच रही हैं और कला सौंदर्य के पैमाने बदल रही हैं।

अमेरिका में रह रहीं भारतीय मूल की भावना मेहता एक बेहद संवेदनशील, संघर्षशील‌ और कल्पनाशील कलाकार हैं। वे कागज़ को काटकर (स्टेंसिल) अपनी कलाकृतियां तैयार करती हैं। वे फिज़िकली चैलेंज्ड कलाकार हैं। सोचिए कितनी मुश्किल और कठिन ज़िंदगी होती होंगी जब आपको कम उम्र से दैनिक ज़रूरतों के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ती होगी। इसके अलावा सामान्य लड़कियों की तरह भारतीय परंपरागत पोशाक जैसे साड़ी, ब्लाउज़ आदि पहनने, उठने, बैठने और दौड़ने में ख़ासा दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। वास्तव में बहुत कठिन ज़िंदगी से गुज़री हैं भावना मेहता। इसीलिए काफ़ी संघर्ष के बाद अमेरिका में कला ने उनके जीवन को बदल दिया और वे आम से ख़ास बन गईं।

भारत के ब्रज क्षेत्र जैसे मथुरा की सांझी पेपर कटिंग कला एक सुंदर और अनोखी शिल्प कला है। भावना भारतीय पारंपरिक लोक कला से प्रेरित होकर कटे हुए कागज़ों (स्टेंसिल) और कसीदाकारी से अपनी कला का सृजन करती हैं। उनकी कलाकृतियां नवीन कल्पना परक व आकृति मूलक होती हैं। उनमें वनस्पतियों के आकार, गतिशील अक्षरांकण, छाया और‌ प्रकाश के साथ प्रकट होते हैं।

माना जाता है कि 2000 से 3000 ईसा पूर्व चीन और रोम में कागज़ को काटकर (स्टेंसिल) दीवारों पर सजाने के लिए अलंकरण बनाने का प्रचलन शुरू हुआ। बाद में व्यापार मार्ग से यह कला शैली यूरोप पहुंची। भारत में यह कला संभवतः चीनी यात्रियों द्वारा और बाद में मुस्लिम साम्राज्य के दौरान आए ईरान आदि के कलाकारों के माध्यम से आई। कला के इस माध्यम से कलाकार दीवारों, दरवाज़ों, महलों आदि को ज्यामितीय आकारों से सजाते थे।

बाद में वक़्त में रंगोली के रूप में भी इसका इस्तेमाल होने लगा। भारत के उत्तर प्रदेश, राजस्थान, तथा गुजरात में भी पेपर स्टेंसिल से रंगोली, धार्मिक झांकी आदि की परंपरा आज भी चली आ रही है। मथुरा की सांझी कला में राधाकृष्ण लीलाएं बहुत लोकप्रिय हैं।

भावना मेहता की जटिल पेपर-कट और कसीदाकारी वाली उनकी कलाकृतियां ही उनके जीवनसंघर्ष की कहानी कहती हैं।

भावना मेहता का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर में (1968) में हुआ था। महज़ सात वर्ष की उम्र में वे पोलियो ग्रस्त हो गईं थीं। इसे एक दुर्घटना ही मानेंगे। मुश्किल जीवन जीते हुए भावना हिम्मत नहीं हारी और बड़ी होने पर उन्होंने साल 1987 में अहमदनगर काॅलेज से भौतिकी में स्नातक किया और 1989
में पूना विश्वविद्यालय से इलेक्ट्रॉनिक साइंस में स्नातकोत्तर किया। 22 वर्ष की आयु में वे अमेरिका चली गईं। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद भावना ने हिम्मत नहीं खोई। उन्होंने कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी, नाॅर्थ्रिज से 1993 में कम्प्यूटर साइंस में दूसरी बार डिग्री हासिल की। इसी दौरान भावना ने जार्ज कनिंघम से विवाह कर एक नई ज़िंदगी की शुरूआत की।

बतौर सॉफ्टवेयर इंजीनियर काम करते हुए, भावना नार्थ कैलिफोर्निया के पेन लैंड स्कूल में पेपर कटिंग वर्कशॉप में जाने लगीं। वहां प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद भावना ने कठिन श्रम से पेपर कटिंग कला में दक्षता हासिल की। अमेरिका में भावना की कलाकृतियां कई महत्वपूर्ण समूह प्रदर्शनियों में शामिल हुईं हैं।

'शो मी योर हैंड' (मुझे अपने हाथ दिखाओ) शीर्षक से उनकी कलाकृति बेहद प्रभावशाली और लोकप्रिय है। इस कलाकृति में लाल रंग की महिला कहीं दूर देखती हुई सी चिंतनशील है। उसके सामने और इर्द गिर्द  सुंदर फूलों के झुंड हैं जो पेपर को काटकर बनाए गए और चिपकाए गए हैं। पृष्ठभूमि काले रंग में है लेकिन चित्र के अनुरूप ही है। इस चित्र में भावना के हाथों का गहन श्रम भी दिखता है।

दरअसल भावना भारतीय महिलाओं के सामने एक चुनौती और उसकी एक प्रेरणा के रूप में हैं। भावना मेहता की यह कलाकृति 2018 में चाइना टाउन, लॉस एंजेलिस, कैलिफोर्निया, अमेरिका में एक समूह प्रदर्शनी में प्रदर्शित हुई थी और दर्शकों को बेहद पसंद आई थी।

'फाल्ट लाइन्स' भावना मेहता का चौदह फीट चौड़ाई वाला एक महत्वपूर्ण संस्थापन (इंस्टालेशन) है। इस कलाकृति में कटे हुए कागज़ों, कसीदाकारी और पिन का प्रयोग किया गया। इस कलाकृति को बनाने के पीछे कलाकार का यही उद्देश्य है कि शरीर के किसी अंग में विकार‌ के पीछे शरीर की अपनी कुछ कमी है न कि मनुष्य की। एक व्यक्तित्व के रूप में यह कलाकृति सैंटियागो, लॉस एंजेलिस में साल 2020 में प्रदर्शित हुई थी।

जब विश्व कोरोना वायरस से जूझ रहा था तब भावना लगातार कला सृजन कर रहीं थीं। उन्होंने गतिशील रेखाओं में अपनी और अपने जैसी फिज़िकली चैलेंज्ड साथियों के कठिन दैनिक दिनचर्या को चित्रित किया है जो काफ़ी लोकप्रिय हुआ।

भावना मेहता समकालीन महिला कलाकार के नाम पर एक मिसाल हैं। उन्हें कई पुरस्कार भी मिले हैंं। भावना ने कैलिफोर्निया आर्ट्स काउंसिल की ओर से वर्ष 2016-2017 के लिए आर्टिस्ट एक्टिविटी कम्युनिटी ग्रांट प्राप्त किया।

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिंदी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं।)

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