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राजनीतिक दबाव में 6 दिसंबर के कार्यक्रम को लेकर एफ़आईआर दर्ज की गई : अलीगढ़ यूनिवर्सिटी छात्र

बाबरी मस्जिद विध्वंस की 30वीं बरसी के मौक़े पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था।
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फ़ोटो साभार: विकिमीडिया कॉमन्स

लखनऊ: अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के जिन छात्रों के ख़िलाफ़ शनिवार को परिसर में 6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद के विध्वंस की 30वीं बरसी के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित करने के लिए पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की है, उन्होंने आरोप लगाया है कि छात्रों पर हिंदुत्व समूहों के दबाव में पुलिस कार्रवाई की गई।

एफ़आईआर के अनुसार भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 505 (नफ़रत फ़ैलाने वाले बयान), 188 (लोक सेवक द्वारा विधिवत आदेश की अवज्ञा), 295-ए (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से किया गया कार्य) और 298 (जानबूझकर किसी व्यक्ति की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के इरादे से बोलना आदि) के तहत मामला दर्ज किया गया। इस एफ़आईआर की एक प्रति न्यूज़क्लिक के पास है।

अलीगढ़ के सहायक पुलिस अधीक्षक कुलदीप सिंह गुणावत ने न्यूज़क्लिक को बताया कि प्रभारी अधिकारी प्रवेश राणा की शिकायत के आधार पर सिविल लाइंस पुलिस स्टेशन में मामला दर्ज किया गया।

राणा ने कहा, "एएमयू छात्रों के एक समूह ने 6 दिसंबर को काला दिवस के रूप में मनाया। इस दौरान नारे लगाए और अपमानजनक टिप्पणियों वाले प्लेकार्ड लिए हुए आपत्तिजनक बयान दिया।" उन्होंने आगे कहा कि विरोध प्रदर्शन तब भी किया गया जब ज़िले में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 144 के तहत निषेधाज्ञा लागू थी।

भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो), बजरंग दल और हिंदू युवा वाहिनी आदि दक्षिणपंथी संगठनों ने इस घटना के एक दिन बाद महापंचायत की और छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग की और धमकी दी कि अगर उन छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई नहीं की गई तो 13 दिसंबर को एएमयू परिसर में शौर्य दिवस आयोजित किया जाएगा।

स्क्रॉल के अनुसार भाजयुमो नेता अमित गोस्वामी ने स्थानीय पत्रकारों से कहा, “हिंदू धर्म और राम मंदिर पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ परिसर में नारे लगाए गए। हम इसे किसी भी क़ीमत पर बर्दाश्त नहीं कर सकते।"

कुरान के अध्ययन में मास्टर डिग्री कर रहे सलमान गौरी के ख़िलाफ़ रैली में भाग लेने के लिए मामला दर्ज किया गया। छात्र ने कहा कि यह विरोध मार्च नहीं था, बल्कि "छात्रों का एक छोटा जमावड़ा" था जिसने विध्वंस को याद किया। छात्र ने कहा, “6 दिसंबर को बाबरी मस्जिद के साथ जो हुआ, उसे अन्य मस्जिदों के साथ नहीं दोहराया जाना चाहिए। मैं वहां एक दर्शक के रूप में था, वक्ता के रूप में नहीं। चर्चा के दौरान मैंने एक शब्द भी नहीं बोला। मेरे ख़िलाफ़ कार्रवाई राजनीतिक दबाव में की गई।"

एक अन्य छात्र फ़रीद मिर्ज़ा के ख़िलाफ़ धार्मिक भावनाओं को आहत पहुंचाने के लिए मामला दर्ज किया गया। छात्र ने न्यूज़क्लिक को बताया, "6 दिसंबर को कोई विरोध या रैली आयोजित नहीं की गई थी। छात्रों के खड़े होने या सभा में बैठने का मतलब धार्मिक भावनाओं को आहत पहुंचाना नहीं है। किसी ने भी राज्य सरकार या किसी धर्म के ख़िलाफ़ नारे नहीं लगाए।"

छात्रों ने केवल “यह याद किया कि कैसे 6 दिसंबर को हमारे संविधान का उल्लंघन किया गया था, उसी दिन प्रमुख संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर का निधन हुआ था। लोगों ने क़ानून अपने हाथ में लिया और उन्होंने बाबरी मस्जिद के साथ जो किया वह छिपा नहीं है।" मिर्ज़ा ने आगे कहा कि मेरे ख़िलाफ़ ये मामला हिंदुत्व संगठन के दबाव में दर्ज किया गया।

छात्र ने कहा, “प्रशासन ने कहा कि ये कार्रवाई की गई क्योंकि हमने सीआरपीसी की धारा 144 का उल्लंघन किया था लेकिन एएमयू शहर के क्षेत्र में नहीं आता है क्योंकि यह एक स्वायत्त निकाय है। यहां तक कि अगर हम यह भी मान लें कि यह शहर के क्षेत्र में है और धारा 144 लागू है तो क्या हम कैंपस के अंदर कुछ नहीं कर सकते?” छात्र ने आरोप लगाया कि उनके ख़िलाफ़ मामला "निराधार" है।

भाषा विज्ञान के छात्र ज़की-उर-रहमान ने न्यूज़क्लिक को बताया कि "छात्रों के एक समूह ने लोकतांत्रिक तरीक़े से लाइब्रेरी कैंटीन से चंकी मार्केट तक विरोध मार्च निकाला। वहां पहुंचने के बाद जनसभा का आयोजन किया गया। किसी भी छात्र ने किसी भी धर्म के ख़िलाफ़ एक भी शब्द नहीं कहा या सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के ख़िलाफ़ भी कोई टिप्पणी नहीं की।”

रहमान ने आरोप लगाया कि हिंदू संगठन इस मुद्दे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश कर रहे हैं और ज़िला प्रशासन पर एएमयू के छात्र को गिरफ़्तार करने का दबाव बना रहे हैं। गिरफ़्तार न करने पर उन्होंने एक रैली आयोजित करने की धमकी दी है”।

रहमान ने आगे कहा, “मुसलमान भी इस देश के नागरिक हैं और उन्हें लोकतांत्रिक तरीक़े से विरोध-प्रदर्शन करने का पूरा अधिकार है। इसके अलावा, जब शीर्ष अदालत ने अपने फ़ैसले में माना कि बाबरी मस्जिद को कारसेवकों ने गिराया था तो 6 दिसंबर को काला दिवस मनाने में क्या ग़लत है? छात्रों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज कर प्रशासन लोकतांत्रिक ढांचे और संविधान पर हमला कर रहा है।"

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

AMU Students Allege FIR for Dec 6 Event Lodged Under Political Pressure

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