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बाढ़ से तहस-नहस हुआ ग्रामीण पंजाब का अर्थतंत्र

ग्रामीण पंजाब कई स्तर पर तबाह हुआ है। सरकारी सूचना के अनुसार अब तक छह मौतें बाढ़ की वजह से गांवों में हुई हैं और पचास से ज़्यादा लोग लापता हैं। हजारों पशु मारे गए हैं या बाढ़ में बह गए।
Flood
फोटो साभार : संवाद न्‍यूज एजेंसी

मानसून गर्मियों के बाद अक्सर राहत लेकर आता है और शिद्दत से किसी पर्व की तरह इसका इंतजार किया जाता है लेकिन इस बार यह चौतरफा आफत लेकर आया। उत्तर भारतीय राज्यों के लिए तो खास तौर पर। मानसून की बारिश ने बाढ़ के गहरे जख्म पंजाब को दिए हैं। खासतौर से ग्रामीण पंजाब को। ग्रामीण पंजाब कई मायनों में सूबे की रीढ़ है। कहिए कि हर लिहाज से। बारिश की तबाही का सबसे ज्यादा बुरा असर ग्रामीण पंजाब पर पड़ा है और इससे उसे उभरने में सालों-साल लग जाएंगे।

गौरतलब है कि माEनसून की पहली बारिश ने इतना कहर ढाया कि ग्रामीण पंजाब के अर्थतंत्र की नींव बेतहाशा हिला दी है। जबकि, बाढ़ के चलते हुए नुकसान के पुख्ता आंकड़ें आना शेष हैं। ग्रामीण पंजाब कई स्तर पर तबाह हुआ है। सरकारी सूचना के अनुसार अब तक छह मौतें बाढ़ की वजह से गांवों में हुई हैं और पचास से ज्यादा लोग लापता हैं। हजारों पशु मारे गए हैं या बाढ़ में बह गए। बरसात तो रुक गई लेकिन यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। 200 गांवों को पूरी तरह खाली करा लिया गया है और 300 गांवों को खाली कराने की कवायद फिलवक्त चल रही है। जब इसकी रफ्तार थोड़ी कम होगी, मौसम विभाग का कहना है कि, तब फिर मानसून की मूसलाधार बारिश शुरू हो जाएगी।

आधिकारिक जानकारी स्पष्ट रूप से सामने नहीं आ रही लेकिन कहा जा रहा है कि पंजाब में अब तक तकरीबन साढ़े पांच लाख एकड़ जमीन पानी में डूब गई है। कृषि विभाग की ओर से मानसून जाने के बाद ही सही अनुमान तक पहुंचा जा सकेगा। स्रोतों से हासिल जानकारी के मुताबिक पटियाला, फतेहगढ़ साहिब, लुधियाना, गुरदासपुर, तरनतारन, मोहाली, लुधियाना, होशियारपुर, नवां शहर और रोपड़ में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। बरसाती बाढ़ में इन इलाकों में फसलों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। होशियारपुर और रोपड़ में मक्की की फसल का एक दाना भी सुरक्षित नहीं बचा।

पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार सूबे में अब तक 23.9 लाख हेक्टेयर रकबे में धान की रोपाई का काम मुकम्मल हो चुका है। करीब सात लाख हेक्टेयर रकबे में रोपाई का काम शेष है। मोहाली और रोपड़ में किसानों ने इस बार बहुधा सब्जियों की बिजाई की थी लेकिन सौ फीसदी फसल पानी में डूब गई। नामोनिशान तक नहीं बचा। कृषि विभाग के निदेशक गुरिंदर सिंह कहते हैं, "तकरीबन पांच जिलों से बरसात से हुए नुकसान की फौरी रिपोर्ट हासिल हुई है। यह लगभग 22 हजार हेक्टेयर के करीब है। रोपड़ जिले से प्राथमिक रिपोर्ट आनी बाकी है। वहां काफी ज्यादा नुकसान हुआ है। बरसात के पूरी तरह रुकने के बाद सही अंदाजा लग पाएगा। निर्णायक रिपोर्ट मानसून की बारिशों के बाद हासिल होगी।" अलबत्ता नरमा पट्टी पर बाढ़ का कहर कमोबेश कम टूटा। वहां बारिश ज्यादा तेज वेग में नहीं हुई।

खैर, किसान यूनियन (उग्रहा) के वरिष्ठ नेता शिंगारा सिंह मान के अनुसार, "किसान और ज्यादा कर्ज में धंसेंगे। मजदूर वर्ग भी पहले से कहीं ज्यादा बदहाल होगा। मान सरकार को चाहिए कि वह फौरन गिरदावरी करवा कर फौरी मुआवजा जारी करें।" कुछ अन्य किसान नेताओं की मांग है कि बाढ़ प्रभावित इलाकों में बैंक इत्यादि की किस्तों को फिलहाल स्थगित किया जाए। आढ़ती मौजूदा हालात के मद्देनजर नरमी का रुख अख्तियार करें। आखिर किसानों से उनका नाखून-मास का नाता है।

किसान नेता मेहताब सिंह कहते हैं कि यह न हो कि किसान और खेत-मजदूर कुदरत की मार झेलने के बाद अब सरकार की बेरुखी का शिकार हो जाएं। इस मौके पर सरकार को अतिरिक्त गंभीरता और गहरी संवेदनशीलता दिखानी चाहिए। पंजाब के कई गांव पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं। पावरकॉम को भी बाढ़ और बरसात की वजह से बहुत बड़ी दिक्कत आ रही है। उसके कई बिजली ग्रिड लगातार हुई मूसलाधार बारिश की वजह से बेकार हो गए। नतीजतन सैकड़ों गांवों में बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई है।

पंजाब सरकार ने राहत कार्यों के लिए 33.50 करोड़ रुपए की कुल राशि जिला उपायुक्तों के जरिए जारी की है। बुद्धिजीवियों और जानकारों का कहना है कि हुए नुकसान के आगे यह राशि बहुत मामूली है। यह भी सबकी समझ से परे है कि पेशकश के बावजूद मुख्यमंत्री भगवंत मान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से केंद्रीय सहायता क्यों नहीं लेते। नरेंद्र मोदी ने खुद इसकी पेशकश मान को की है। प्रखर कांग्रेसी नेता सुखपाल सिंह खैहरा का कहना है, "वक्त अकड़ दिखाने का नहीं बल्कि लोगों को ज्यादा से ज्यादा राहत पहुंचाने का है। केंद्रीय राशि किसी दल विशेष की बपौती नहीं है। तमाम प्रदेशों का उस पर समान अधिकार है। मुख्यमंत्री भगवंत मान पंजाब को इस अधिकार से मरहूम क्यों रख रहे हैं?"

ग्रामीण पंजाब में त्राहि-त्राहि मची हुई है लेकिन वहां जाने वाले मंत्रियों और आम आदमी पार्टी विधायकों की ओर से हालात की असलियत नहीं बताई जा रही।

यह सूचना भी किसी हद तक चकित करती है कि अंबानी और अडाणी की एजेंसियां अपने-अपने तईं पंजाब में आई बाढ़ के नुकसान का जायजा ले रही हैं। क्या इसलिए कि उनका यहां बहुत कुछ इन्वेस्ट है और कई अन्य परियोजनाओं पर काम शुरू होने वाला है। ग्रामीण पंजाब के बेशुमार हिस्से उनके सीधे निशाने पर हैं। कुछ बड़ी शराब फैक्ट्रियां भी हुए नुकसान का अपने तौर पर जायजा ले रही हैं। क्यों? इसका जवाब फिलहाल आम लोगों और पत्रकारों के पास तो नहीं है। हो सकता है सरकार के पास हो! वही बता दे।

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