Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

ग्राउंड रिपोर्टः यूपी में बेक़ाबू हो रहा डेंगू, चिकनगुनिया और मिस्ट्री फीवर!

“सिर्फ़ पूर्वांचल ही नहीं, समूचे उत्तर प्रदेश में स्थिति नियंत्रण से बाहर है। स्वास्थ्य विभाग की तैयारी नाकाफ़ी साबित हो रही है।”
ground report

बनारस के पांडेयपुर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय में भर्ती 19 वर्षीय आकाश मौर्य डेंगू की चपेट में हैं और तेज़ बुखार से तप रहे हैं। गाजीपुर जिले के भीमापुर गांव का यह स्टूडेंट दुर्गाकुंड स्थित एक कोचिंग इंस्टीट्यूट में इंजीनियरिंग की कोचिंग कर रहा है। 13 सितंबर 2023 को उसे तेज़ बुखार हुआ और हालत बिगड़ती चली गई। आनन-फानन में उसे अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। आकाश की प्लेटलेट्स गिरकर 24 हज़ार पर पहुंच गई है। प्लाज़्मा चढ़ाए जाने के बावजूद हालत चिंताजनक बनी हुई है।

आकाश के पिता खेती-किसान करते हैं। वह कहते हैं, "मेरे बेटे का शरीर तपने लगा तो डॉक्टर को दिखाया। जब शरीर जोरों से तपने लगा और उल्टियां होने लगीं तो आकाश को लेकर राजकीय अस्पताल पहुंचे। दुर्गाकुंड के जिस कोचिंग इंस्टीट्यूट में मेरा बेटा पढ़ता है, वहां बड़ी तादाद में बच्चे डेंगू और वायरल बुखार की चपेट में हैं।"

पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय के डेंगू वार्ड में भर्ती चार साल की अंशिका की हालत चिंताजनक बनी हुई है। यह बच्ची जौनपुर के चंदवक प्रखंड के मझली गांव की रहने वाली है। बेटी की तीमारदारी में लगी मां सरिता कहती हैं, "चार दिन पहले बेटी बीमार हुई तो डाक्टरों ने जवाब दे दिया। तब हमें बनारस आना पड़ा। मेरे पति मुंबई में कमाने गए हैं। हमारे पास इतना पैसा नहीं है कि किसी प्राइवेट नर्सिंग होम में अपनी बेटी का इलाज करा सकें। बेटी की हालत ठीक नहीं है। समझ में यह नहीं आ रहा है कि हम क्या करें?"  

बनारस, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, आजमगढ़, मऊ, बलिया, देवरिया समेत पूर्वांचल के सभी जिलों के सरकारी अस्पतालों और डॉक्टरों के निजी क्लिनिकों में मरीज़ों की लाइन लगी हुई है। हर कोई बुखार, पेट में तेज़ दर्द, सिर और जोड़ों में दर्द के अलावा जी मिचलाने की शिकायत कर रहा है। ये सब डेंगू संक्रमण के आम लक्षण हैं। यह डेंगू मच्छर काटने से होने वाला एक बुखार है।

बनारस के पलहीपट्टी के 19 वर्षीय कामरान और कोटवां की सीमा भी डेंगू की चपेट में हैं। दोनों को तेज़ बुखार है और इनकी प्लेटलेट्स काफी नीचे आ गई है। जरी का काम करने वाले चिरईगांव के 33 वर्षीय युवक मृत्युंजय मौर्य की हालत चिंताजनक बनी हुई है। बनारस के पुलिस लाइन चौराहे पर स्थित गांधी आश्रम की कर्मचारी जरीना बानो (33) भी डेंगू की चपेट में हैं। बनारस के सिंधी कालोनी की भारती हसवानी (55), गाजीपुर के बडेसर की देवमती (45), चंदवक की कुसुम यादव, बनारस के राजाबाजार की बेबी, तियरी के रामलोचन, शिवपुर की प्रभावती समेत कई लोग डेंगू की चपेट में हैं। इन सभी को तेज़ बुखार है और इनकी प्लेटलेट्स गिरती जा रही है।

मरीज़ों से भरे पड़े हैं डेंगू वार्ड

बनारस के पांडेयपुर स्थित पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय में डेंगू मरीज़ों के लिए दो वार्डों में कुल 16 बेड आरक्षित किए गए हैं। इस चिकित्सालय को जिला अस्पताल का दर्जा हासिल है। अस्पताल के दोनों वार्ड खचाखच भरे हैं। यहां कई मरीज़ लाइन में लगे थे, जिन्हें भर्ती किया जाना था, लेकिन अस्पताल के कर्मचारी तय नहीं कर पा रहे थे कि उन्हें कहां रखा जाए? पंडित दीनदयाल उपाध्याय राजकीय चिकित्सालय में सिर्फ दो फिजीशियन हैं, जिनमें एक डॉ. मनीष यादव खुद बीमार हैं। आरोप है कि "बनारस में आए दिन वीवीआईपी आते रहते हैं, तब दूसरे फिजीशियन डॉ. पीके सिंह की ड्यूटी लगा दी जाती है। तब डेंगू, चिकनगुनिया और वायरल बुखार से तप रहे मरीज़ों के इलाज के लिए कोई नहीं होता।" मरीज़ों की आम शिकायत है कि "पूर्वांचल के सरकारी अस्पतालों में सिर्फ पैरसिटामोल (बुखार की एक दवा) दिया जा रहा है। डॉक्टर सिर्फ एक मर्तबा देखकर जाते हैं।"

आधिकारिक जानकारी के मुताबिक, वाराणसी के पांडेयपुर स्थित जिला अस्पताल में औसतन हर रोज करीब 1200 से 1500 मरीज़ उपचार कराने आते हैं। इनमें से आधे मरीज़ ऐसे होते हैं, जिनका इलाज सिर्फ फिजीशियन ही कर सकते हैं। वीवीआईपी के आगमन पर इस अस्पताल में कोई फिजीशियन होता ही नहीं है। लाचारी में करीब सात-आठ सौ मरीज़ों को बैरंग लौटना पड़ता है। आरोप है कि पिछली मर्तबा सीएम योगी आदित्यनाथ के दौरे के समय भी ऐसी स्थिति पैदा हुई थी जब इकलौते फिजिशियन को डेंगू पीड़ित मरीज़ों को छोड़कर जाना पड़ा था। बनारस में डेंगू, चिकनगुनिया और वायरल बुखार का प्रकोप इतना ज़्यादा है कि बीएचयू और बनारस के कबीरचौरा स्थित मंडलीय अस्पताल में डेंगू मरीज़ों के लिए आरक्षित वार्ड में जगह मिलना मुश्किल हो गया है।

आरोप है कि योगी सरकार के पास डेंगू से बीमार होने वाले मरीज़ों और इस बीमारी से मरने वालों का कोई पुख्ता आंकड़ा नहीं है। मीडिया में जो रिपोर्ट्स छप रही हैं उससे पता चलता है कि स्वास्थ्य महकमा जितने मरीज़ों को गिना रहा है, असल संख्या उससे ज़्यादा है। बनारस के सभी सरकारी अस्पतालों में डेंगू के संभावित मरीज़ों की लंबी कतारें लग रही हैं। हर कोई उल्टी, शरीर में दर्द, जी मिचलाना, सिर दर्द और बुखार की शिकायत कर रहा है। पूर्वांचल में डेंगू के तेज़ी से पांव पसारने की एक बड़ी वजह है पिछाड़ की बारिश और बाढ़। तंग गलियों के नाले खुले हुए हैं और खाली प्लाटों में अब तक पानी जमा है जो डेंगू के मच्छरों के पनपने के लिए माकूल हैं। इसने डेंगू और मलेरिया के मामलों को बढ़ा दिया है।

कहर बरपा रहीं जानलेवा बीमारियां

बनारस में गंगा, वरुणा और असी नदियों के किनारे बसे मुहल्लों में डेंगू का प्रकोप ज़्यादा है। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में इलाज उपलब्ध है, लेकिन मरीज़ों का आरोप है कि देखरेख का कोई पुख्ता इंतज़ाम नहीं है। ज़्यादातर लोग निजी अस्पतालों में इलाज करवाना चाहते हैं। बनारस में दूसरे कबीर के नाम से चर्चित अमन कहते हैं, "मैं पिछले एक महीने से डेंगू पीड़ितों की सेवा में लगा हूं। अब तक 25 लोगों का अस्पतालों में दाखिला करा चुका हूं। दर्जनों असहाय लोगों के लिए खून और प्लेटलेट्स की व्यवस्था कराई है। बनारस में इस वक्त जो हालात हैं वो कोरोना से मिलता-जुलता है। मरीज़ों को अस्पतालों में बेड तक नहीं मिल रहे हैं। डेंगू के बढ़ते हुए मामलों की वजह से सरकारी अस्पतालों में डॉक्टरों पर बहुत दबाव है। निजी अस्पतालों में रोगियों की लाइन लगी है।"

फुलवरिया के दंत चिकित्सक डॉ. वैभव सिंह कहते हैं, "बनारस के पॉश इलाकों को छोड़कर किसी भी मोहल्ले में आप चाहे जिस घर में चले जाइए, दो-चार लोग बुखार से पीड़ित मिलेंगे। अबकी बड़ी तादाद में बच्चे और बूढ़े बुखार की चपेट में आ रहे हैं। मिस्ट्री फीवर के रूप में चर्चित हो रही बुखार की बीमारी बनारस के साथ आसपास के लोगों को अपने खौफनाक शिकंजे में जकड़ रही है। फुलवरिया के पास के गांव भिटारी, महेशपुर, बेदौली, मड़ौली नई बस्ती, नाथूपुर में मिस्ट्री फीवर के खौफ का मंजर है, जिससे लोग खासे भयभीत हैं। लगता  है  कि डेंगू और वायरल बुखार अब कोरोना की शक्ल में एक नई लहर बनकर तबाही मचाने आया है।"

सारनाथ इलाके के इंजीनियर अमित पटेल कई दिनों तक इस वायरल से पीड़ित रहे। वह बताते हैं, "हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर यह कैसा बुखार है? शायद डॉक्टरों को भी समझ में नहीं आ रहा है। लक्षण डेंगू जैसे हैं। प्लेटलेट्स गिर रही है और ब्लड प्रेशर भी। बनारस का कोई मोहल्ला ऐसा नहीं है जहां सभी बच्चे सही-सलामत हों। जिनके पास पैसे हैं वो प्राइवेट अस्पतालों में जा रहे हैं और जिनके पास कुछ भी नहीं है वो सभी अपने घर में चारपाई पर पड़े हैं। मेडिकल स्टोर से दवा लाकर खुद ही इलाज कर रहे हैं।"

पत्रकार राजकुमार कुंवर पांडेयपुर जिला अस्पताल को कवर करते हैं। वह कहते हैं, "डेंगू की जांच काफी महंगी होने की वजह से सिर्फ लक्षण के आधार पर मरीज़ों का इलाज किया जा रहा है। सिंगल डोनर प्लेटलेट्स की डिमांड बढ़ गई है। इसका ब्लड बैंक से लेने का खर्च नौ हज़ार के आसपास है। मरीज़ों के तीमारदार खून और प्लेटलेट्स के लिए परेशान हैं। बकरी के दूध के लिए भी मारा-मारी मची है। नारियल पानी का दाम 50 से बढ़कर 80-90 हो गया है। 10-15 रुपये वाली कीवी 50 रुपये प्रति पीस बिक रही है। हालांकि सरकार ने निजी पैथोलॉजी में डेंगू-चिकनगुनिया और स्क्रब टाइफस की जांच की दर तय कर दी है। डेंगू की जांच का शुल्क 1200 से 1400 रुपये, चिकनगुनिया का 1200 से 1700 और स्क्रब टाइफस का 1200 से 1400 रुपये तय किया गया है। इसके बावजूद निजी जांच केंद्रों में इन बीमारियों की जांच के लिए मनमाना पैसा वसूला जा रहा है।"

बनारस के पत्रकार ऋषि झिंगरन डेंगू और बुखार के बेकाबू होने पर चिंता जताते हुए कहते हैं, "शहर में रंग-रोगन, साज-सजावट जैसे काम खूब हो रहे हैं, लेकिन बनारसियों को डंक मार रहे डेंगू के मच्छरों के खात्मे के लिए कोई पुख्ता उपाय नहीं है। दवाओं का छिड़काव तक नहीं हो रहा है। लगता है कि जी-20 की चकाचौध में बनारस की सरकार ने डेंगू और चिकनगुनिया के मरीज़ों को उनके भाग्य पर छोड़ दिया है। हालात कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीएचयू, मंडलीय अस्पताल, दीनदयाल अस्पताल के साथ ही आईएमए ब्लड बैंक पर प्लेटलेट्स के लिए रोजाना मरीज़ों के परिजनों की लंबी कतारें लग रही हैं।"

प्लेटलेट्स की बढ़ी डिमांड

इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के वाराणसी चेप्टर के अध्यक्ष डॉ. राहुल चंद्रा कहते हैं, "सामान्य दिनों में जहां पांच से दस यूनिट प्लेटलेट्स की खपत होती थी, वहीं पिछले 10-15 दिन से यह संख्या 40 से 45 तक पहुंच रही है। मरीज़ों के तीमारदारों को एसडीपी यानी सिंगल डोनर प्लेटलेट्स के लिए प्रेरित किया जा रहा है।" उधर, बीएचयू ब्लड बैंक में भी इन दिनों प्लेटलेट्स की मांग बढ़ी है। प्रभारी डॉ. संदीप के अनुसार, "ब्लड बैंक में इन दिनों 20 से 30 प्लेटलेट्स दिया जा रहा है जो कि सामान्य दिन में 10 से 15 रहता है।"

वाराणसी के शहरी और ग्रामीण इलाकों में डेंगू का कहर थमने का नाम नहीं ले रहा है। जिले में डेंगू पीड़ित मरीज़ों की तादाद 125 से अधिक हो गई है। बीएचयू कैंपस और लंका में कई मरीज़ पाए गए हैं। जिला मलेरिया अधिकारी एससी पांडेय दावा करते हैं, "स्वास्थ्य विभाग की टीम 2200 से अधिक घरों में पहुंचकर जांच कर चुकी है। सारनाथ, छित्तूपुर, बीएचयू, मंडुवाडीह, खोजवां, किरहिया, बड़ी गैवी, बैजनत्था, बजरडीहा, सरैया, पीलीकोठी समेत 22 इलाकों में दवाओं का छिड़काव कराया जा रहा है। कई जगहों पर लार्वा नष्ट कराया गया।"

बनारस के ज़्यादातर लोगों का आरोप है कि ये दावे सिर्फ़ कागज़ी हैं। डेंगू और चिकनगुनिया के लिए अब तक कोई एंटीवायरल दवा उपलब्ध नहीं है। इस बीमारी में दवाओं का इस्तेमाल भी सीमित है। योगी सरकार अखबारों में इश्तिहार छपवा रही है, "डेंगू और तेज़ बुखार होने पर घबराने की ज़रूरत नहीं है।" लेकिन यूपी सरकार जिस तरह से इस संकट से निपट रही है, उसे लेकर उसकी खूब आलोचना हो रही है।

बनारस में शामिल नए गांवों के अलावा मलिन बस्तियों में सन्नाटा है। ऐसा शायद ही कोई घर हो जहां कोई तेज़ बुख़ार से तप न रहा हो। बनारस के कई इलाके में कूड़े-कचरे के बड़े-बड़े ढेर दिख जाएंगे। कहीं खुला नाला-नालियां मिलेंगी तो कहीं सीवर के पानी से बजबजाती गलियां मिलेंगी। लेकिन वाराणसी के नगर स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. एनपी सिंह लगातार यह दावा कर रहे हैं, "शहर के सभी इलाक़ों में साफ-सफाई चाक-चौबंद है। जल निकासी का जिम्मा जल संस्थान का है। फिर भी नगर निगम काफी मुस्तैद है। ज़रूरी दवाओं का छिड़काव कराया जा रहा है। गंभीर मरीज़ों को अस्पतालों में भर्ती कराया जा रहा है। सरकारी अस्पतालों में डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, जापानी बुखार के अलावा लेप्टोस्पाइरोसिस और स्क्रब टाइफस की जांच कराई जा रही है। डेंगू एडीज इजिप्टी (मादा मच्छर) के काटने से फैलता है। इसका प्रकोप तब बढ़ता है जब घरों में या आसपास एक ही स्थान पर बहुत दिनों से पानी जमा होता है। नागरिकों को अपने घर और आसपास के इलाकों में साफ-सफाई पर ध्यान देना चाहिए।"

नगर स्वास्थ्य अधिकारी के बयान से उलट, बनारस के कैंट इलाके के एक्टिविस्ट शैलेंद्र सिंह कहते हैं, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शहर बनारस में सिर्फ मुख्य सड़कों पर ही सफाई दिखती है। घनी बस्तियों में जाएंगे तो लगता ही नहीं है कि हम स्मार्ट सिटी में हैं। पक्के महाल की गलियों में जाइए तो सफाई के बाद भी यहां ऐसा दिखता है जैसे सफाई हुई ही न हो।"

हालात हो रहे बेकाबू

करीब 20 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश में बनारस और लखनऊ मंडल के अलावा गोंडा, बस्ती, अयोध्या, बुंदेलखंड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद, आगरा, मथुरा, मैनपुरी, एटा, कासगंज और उन्नाव आदि जिलों में बड़ी संख्या में लोग डेंगू और जानलेवा बुखार से पीड़ित हैं।

देवरिया, बलिया, आज़मगढ़, सुल्तानपुर और गाज़ीपुर में भी तेज़ी से बुखार फैल रहा है। डॉक्टरों का मानना है कि यूपी में जो मौतें हो रही हैं उनका कारण मच्छर जनित डेंगू हो सकता है। बुखार की चपेट में आने वाले रोगियों की प्लेटलेट्स अचानक नीचे चली जाती है और शरीर में खून का थक्का बनने लगता है। बाद में रोगी की जान चली जाती है। यह कम प्लेटलेट्स काउंट गंभीर डेंगू का संकेत है।

लखनऊ के इंदिरानगर, अलीगंज, आलमबाग, चिनहट, चौक, जारखाला, ऐशबाग, माल, मोहनलालगंज, हजरतगंज में डेंगू के कई मरीज़ों की पहचान हुई है, जिनमें कुछ की हालत चिंताजनक बनी हुई है। मेरठ में डेंगू पीड़ित मरीज़ों की तादाद 200 के करीब पहुंच गई है। इनमें ज़्यादातर मरीज़ ब्रहमपुरी, कैंट, जलीकोठी, जानी, भावनपुर, लल्लापुरा, हस्तिनापुर, जाहिदपुर, खरखोदा, कुंडा, पल्हेड़ा, सरधना, शकूरनगर, साबु गोदाम, जयभीम नगर, कसेरु बक्सर के हैं।

मुरादाबाद में डेंगू और बुखार से पीड़ित मरीज़ों को विभिन्न अस्पतालों में पहुंचना जारी है। ख़बरों की मानें तो अब तब 32 लोगों की जान जा चुकी है। अगवानपुर व ठाकुरद्वारा में बुखार व डेंगू से सबसे ज़्यादा मौतें हुई हैं। आम लोगों की शिकायत है कि स्वास्थ्य विभाग की मदद नहीं मिल पा रही है। कुछ रोज पहले ही गाजियाबाद के राजनगर इलाके के युवा उद्यमी आयुष गोयल (21) की डेंगू से मौत हो गई, जबकि इस मरीज़ का इलाज शहर के एक नामी अस्पताल में चल रहा था।

बदायूं और कासगंज में डेंगू के चलते स्थिति नाज़ुक बनी हुई है। बदायूं में एक हफ्ते के अंदर छह मरीज़ों की मौत मलेरिया-डेंगू से हुई है। पेपल ग्राम निवासी लाल सिंह की दिल्ली में इलाज के दौरान मौत हो गई, उनको निजी लैब में डेंगू की पुष्टि हुई थी। कटगांव निवासी कुलदीप की डेंगू से जान जा चुकी है। इससे पहले उसावां ब्लॉक के भंद्रा गांव में अनवरी, जैतून, मुन्ने और रिहानी की बुखार से मौत हो गई थी।

गोरखपुर में डेंगू के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं। डेंगू जैसे लक्षण मिलने पर अब तक 814 लोगों की सरकारी अस्पतालों में आईजीएम एलाइजा किट से जांच हो चुकी है, जिसमें पचास से अधिक लोग डेंगू से पीड़ित पाए गए हैं। गोरखपुर के जिला मलेरिया अधिकारी अंगद सिंह कहते हैं, "लार्वा मिलने पर 60 से अधिक लोगों को नोटिस दिया जा चुका है।"

जान ले रहा वायरल बुखार

यूपी में डेंगू के सर्वाधिक 482 मरीज़ गौतमबुद्धनगर जिले में मिले हैं। गाजियाबाद में 404, लखनऊ में 334, कानपुर नगर में 289, मेरठ में 231, मुरादाबाद में 158, अलीगढ़ में 129 व वाराणसी में 125 मरीज़ मिले हैं। अन्य जिलों में मरीज़ों की संख्या 100 से कम है। डेंगू से गौतमबुद्ध नगर में तीन और गाजियाबाद व फिरोजाबाद में एक-एक मरीज़ की मौत हुई है। वहीं, हरदोई में 4,998, बरेली में 1,481, बदायूं में 805, शाहजहांपुर में 309, सीतापुर में 259, पीलीभीत में 189, संभल में 139 और कानपुर देहात में 102 मलेरिया के मरीज़ मिले हैं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, मलेरिया के पिछले साल 2,149 मरीज़ों के सापेक्ष इस साल 4,990 मरीज़ मिले हैं। चिकनगुनिया के 192, कालाजार के आठ, जापानी इन्सेफेलाइटिस के 22 और एक्यूट इन्सेफेलाइटिस सिंड्रोम (एईएस) के 495 मरीज़ मिले हैं। जबकि पिछले साल 11 सितंबर तक एईएस के 511 मरीज़ मिले थे और 12 की मौत हुई थी। इस वर्ष अभी तक सिर्फ दो मरीज़ों की मौत हुई है।

यूपी के संयुक्त निदेशक (डेंगू) डॉ. विकास सिंघल कहते हैं, "पिछले साल अक्टूबर के बाद ज़्यादा बारिश हुई थी। जबकि इस बार शुरुआती दौर में ही बारिश हो गई, फिर तेज़ गर्मी हो रही है। डेंगू व मलेरिया के लिए मौसम अनुकूल रहा। दूसरी तरफ सरकारी व निजी सभी पैथोलॉजी द्वारा मरीज़ों का पंजीयन किया जा रहा है। इससे मरीज़ों की संख्या ज़्यादा दिख रही है। इन बीमारियों की रोकथाम के लिए कोविड मॉडल को अपनाया गया है। मुख्यालय से मरीज़ों के परिजनों से बातचीत करके स्थिति की जानकारी ली जा रही है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव, चिकित्सा पार्थ सारथी सेन शर्मा का कहना है कि डेंगू, मलेरिया सहित अन्य बीमारियों की रोकथाम के लिए उठाए गए कदमों का असर दिख रहा है। मरीज़ों को चिह्नित करने के साथ ही उनके उपचार की पुख्ता व्यवस्था की गई है। इसकी रोजाना निगरानी की जा रही है।"

बनारस के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप कुमार कहते हैं, "सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, समूचे यूपी में स्थिति नियंत्रण से बाहर है, मगर सरकार का कहना है कि सरकारी अस्पताल डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया और मिस्ट्री फीवर से निपटने में पूरी तरह से सक्षम हैं। डेंगू से निपटने के लिए स्वास्थ्य विभाग की तैयारी नाकाफ़ी साबित हो रही है। चाहे वह डेंगू मच्छरों को मारने के लिए दवाओं का छिड़काव का मामला हो या फिर अस्पतालों में पीड़ित व्यक्तियों के इलाज का। समूचे प्रदेश में सरकारी अस्पतालों में घोर अव्यवस्था और डेंगू, चिकनगुनिया और वायरल बुखार से इलाज के इंतज़ाम हवा-हवाई हैं। साफ-सफाई का हल्ला तो बहुत है, लेकिन ज़मीन पर उसका कहीं अता-पता नहीं है। एक दौर था जब मलेरिया उन्मूलन के लिए तत्कालीन विभाग ने अलग से विभाग बना दिया था और वो लगातार काम करता था।"

"दशकों तक प्रयास के बाद कुछ हद तक मलेरिया पर काबू पाया जा सका। इसी बीच डेंगू के मच्छरों का मुकाबला करने के लिए सरकार के पास न कोई नीति है, न नीयत। बुखार से मरने वालों के बारे में प्रशासन जो आंकड़ा गिना रहा है वह काफी कम है। अनाधिकारिक तौर पर मृतकों की संख्या इस बार पांच गुना से ज़्यादा है। तमाम लोगों की मौत अस्पताल पहुंचने से पहले ही हो रही है। ये मौतें सरकारी आंकड़ों में दर्ज नहीं हो पा रही हैं। लगता है कि सरकार और प्रशासन अब जानलेवा बीमारियों से लड़ पाने की स्थिति में नहीं है। यह भी कहा जा सकता है कि समूचा सरकारी अमला डेंगू, चिकनगुनिया और खतरनाक वायरल बुखार के आगे नतमस्तक हो चुका है। ऐसे में एक बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ है कि बेकाबू होते डेंगू, चिकनगुनिया और मिस्ट्री फीवर से क्या उत्तर प्रदेश जंग हार रहा है?"

वाराणसी स्नातक खंड के विधानपरिषद सदस्य आशुतोष सिन्हा ने पूर्वांचल में तेज़ी से फैल रहे डेंगू और वायरल फीवर के मामले में जिलाधिकारी एस. राजलिंग को कड़ी चिट्ठी लिखी है। सिन्हा ने खत में कहा है, "बनारस महानगर में डेंगू, टाइफाइड, मलेरिया और वायरल फीवर का संक्रमण तेज़ी से फैलता जा रहा है। अस्पतालों में मरीज़ों की तादाद बढ़ती जा रही है। सरकारी अस्पतालों में मरीज़ों को बेड तक नहीं मिल पा रहे हैं। अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है, जिसके चलते मरीज़ों की मृत्य दर ज़्यादा हो गई है। शहर के सभी वार्डों में साफ-सफाई और अस्पतालों में बेड व अन्य सुविधाओं की उपलब्धता ज़रूरी है।"

(लेखक बनारस स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं।)

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest