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ग्राउंड रिपोर्टः यूपी में ठंड से ठिठुरते लाखों बच्चे बिना जूते-स्वेटर जा रहे स्कूल

विष्णु ने कहा, "हमारे पास स्वेटर और जूते नहीं हैं। पापा मजदूरी करते हैं। जो पैसे कमाकर लाते हैं, वह खाने-पीने में ही खर्च हो जाते हैं। पापा के एकाउंट में अभी यूनिफार्म का पैसा नहीं आया है।"
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21 दिसंबर, कड़कड़ाती ठंड, तापमान छह डिग्री। सुबह 8.55 का वक्त। बनारस के हुकुलगंज मुहल्ले का 11 वर्षीय विष्णु हाथ में झोला, पैर में चप्पल और ड्रेस के नाम पर सिर्फ शर्ट व पैजामा पहने बनारस के पांडेयपुर के कंपोजिट स्कूल पिसनहरिया स्कूल को तरफ जा रहा था। पंचकोसी मार्ग पर टैंपो स्टैंड के पास उसकी नजर चाय पी रहे लोगों पर पड़ी तो वह कुछ देर के लिए ठिठका। चाय की भट्ठी के पास खड़े लोगों को देखा दो उसके आखों की चमक बढ़ गई। कुछ देर वह टुकुर-टुकर देखता रहा। लेकिन समय से स्कूल पहुंचने की मजबूरियों के चलते उसके कदम आगे बढ़ गए। स्वेटर और पैर में जूते न होने की वजह पूछने पर उसने अपना सिर झुका लिया। कुछ देर बाद विष्णु ने कहा, "हमारे पास स्वेटर और जूते नहीं हैं। पापा मजदूरी करते हैं। जो पैसे कमाकर लाते हैं वह खाने-पीने में ही खर्च हो जाते हैं। पापा के एकाउंट में अभी यूनिफार्म का पैसा नहीं आया है।"

यह कहानी चौथी कक्षा में पढ़ने वाले सिर्फ विष्णु की नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले उन तमाम बच्चों की है जो अपनी सूनी आखों में आसमानी सपनों के साथ स्कूल जाते हैं। गरीबी और कई तरह की बेचारगी, उनकी उम्मीदों को तार-तार कर देती है। "न्यूजक्लिक" ने कई बच्चों के अभिभावकों से बात की तो उन्होंने अपनी लाचारी का इजहार किया। दीनदयालपुर के राधे चौहान ईंट-गारे का काम करते हैं। इनकी 11 साल की बेटी सोनी पिसहनरिया कंपोजिट स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ती है। इन्हें दो बेटियां और एक बेटा है। वह कहते हैं, "हम अपनी बेटियों के सपनों को बचपन में ही नहीं मरने देना चाहते। हमारी बद्किस्मती हैं यह है कि कड़ाके की ठंड के बावजूद हम अपनी बेटी के लिए स्वेटर और जूते का इंतजाम नहीं कर पाए हैं। ईंट-गारे के काम से किसी तरह से जिंदगी तो चल सकती है, लेकिन बच्चों की पढ़ाई नहीं हो सकती। हम दिहाड़ी मजदूर हैं। जितना कमाते हैं, उससे बच्चों का सिर्फ पेट भर पाते हैं। उम्मीद थी कि यूनिफार्म का पैसा खाते में आ जाएगा तो ड्रेस और जरूरी समान खरीद देंगे।"

राधे चौहान कहते हैं, "हमारी पत्नी प्रायः रोज बैंक जा रही हैं। हर दिन एक ही जवाब मिलता है कि अभी खाते में पैसा नहीं आया है। हम अपने बच्चों के भविष्य को लेकर काफी चिंतित हैं। पांडेयपुर के कंपोजिट स्कूल में अच्छी पढ़ाई होती है, इसलिए यहां अपनी बेटियों का दाखिला कराया है। हम अपने बच्चों को खुद छोड़ने जाते हैं। बच्चे घर में किसी तरह से गुदड़ी में सिर छिपाकर वक्त काट लेते हैं, लेकिन स्कूल जाते वक्त उन्हें बहुत ठंड लगती है। पहली बार शीतलहर आई है। बेटियों के भविष्य के चलते उन्हें घरों में रोक नहीं पा रहे हैं। कोई उपाय नहीं सूझ रहा है। शीतलहर का प्रकोप और बढ़ेगा तो किसी से कर्ज लेंगे और उन्हें नया यूनिफार्म और स्वेटर-जूते दिलावाएंगे।"

मीडिया रिपोर्ट के उत्तर प्रदेश में 10 लाख से अधिक ऐसे बच्चे हैं जिनका पैसा अभी खातों में नहीं गया, हालांकि इसमें बड़ी संख्या उन बच्चों की है जिन्होंने दाखिला तो लिया लेकिन स्कूल नहीं आए। जिन बच्चों के अटेंडेंस नहीं के बराबर है अथवा फिर जहां डॉक्यूमेंट का वेरिफिकेशन नहीं हुआ है, उनके पैसे खाते में नहीं पहुंच पाएंगे।

सामने आईं दर्द और मजबूरियां

बनारस में 1143 प्राइमरी स्कूल है, जिनमें 6600 स्थायी शिक्षक, 1517 शिक्षामित्र, 371 अनुदेशक दो लाख 10  हजार 421 स्टूडेंट्स को पढ़ाते हैं। सर्दी के सितम में बनारस में हजारों बच्चे बिना स्वेटर और जूते-मोजे के ही स्कूल जाने के लिए मजबूर हैं। कुछ बच्चे ऐसे भी हैं जिनके पैरों में सिले हुए जूते हैं तो कुछ चप्पल पहनकर ही स्कूल जा रहे हैं। बेसिक शिक्षा विभाग से संचालित स्कूलों में बच्चों को गुणवत्तापूर्ण ड्रेस, बैग, जूता-मोजा व स्वेटर उपलब्ध कराने के लिए सरकार ने सभी अभिभावकों के खाते में सीधे धनराशि भेजने की व्यवस्था की है। बच्चों के यूनिफार्म के लिए मुहैया कराए जा रहे धन का सच जानने के लिए "न्यूजक्लिक" ने पूर्वांचल स्कूलों में पड़ताल की नौनिहालों का दर्द और मजबूरियां दोनों ही सामने आईं।

हुकुलगंज मुहल्ले के राजेंद्र यादव हार्डवेयर की दुकान पर मजूरी करते हैं। इनके तीन बच्चे हैं, जिनमें परी (11 साल) कक्षा तीन की छात्रा है तो दूसरी बेटी शिया (6 साल) पहली कक्ष में पढ़ती है। राजेंद्र खुद अपनी दोनों बेटियों को स्कूल छोड़ने जाते हैं। पिसनहरिया स्कूल के बाहर मुलाकात हुई तो बताया, "परी के यूनिफार्म का पैसा कई महीने पहले आ चुका है, जबकि सिया का पैसा अभी तक खाते में नहीं पहुंचा है। परी के पैसे से ही दोनों बेटियों के लिए ड्रेस बनवा दिया है, लेकिन अभी जूते आदि नहीं खरीद पाए हैं। शिया का पैसा आते ही दोनों बेटियों के लिए नया स्वेटर और जूते खरीदेंगे।"

पहली कक्षा में पढ़ने वाला सात वर्षीय करन कड़ाके की ठंड में बगैर स्वेटर के ही स्कूल पहुंचा था। पूछने पर सिर्फ इतना ही कहा, "पापा ने स्वेटर नहीं खरीदा है।" चौथी कक्षा में पढ़ने वाली नौ वर्षीया शिवानी के पिता के एकाउंट में अभी तक यूनिफार्म का पैसा नहीं आया है। नीरज ने भी पैसा न पहुंचने की वजह से पूरा ड्रेस न खरीदने के बारे में जानकारी दी। बनारस में बिना यूनिफार्म के स्कूल जाने वाले बच्चों की तादाद हजारों में हैं।

वाराणसी के एक शिक्षक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर न्यूजक्लिक को बताया,  "बच्चों के अभिभावकों के खाते आधार से लिंक न हो पाने पर शिक्षकों पर शिकंजा कसा जा रहा है। शासन का मानना है कि शिक्षक इस मामले में लापरवाही बरत रहे हैं, जबकि सच्चाई यह है कि कई अभिभावकों ने छात्रों के दो-दो आधार कार्ड बनवा लिए हैं। इस कारण वह मिसमैच हो रहे हैं।" बताया जा रहा है कि कई तरह की त्रुटियों के चलते कड़ाके की ठंड में कांपते हुए स्कूल जाने पर विवश हैं। शिक्षा विभाग का कोई अफसर यह बता पाने की स्थिति में नहीं है कि अभी तक कितने अभिभावकों के खाते में यूनिफार्म का धन नहीं पहुंच पाया है। बनारस के बेसिक शिक्षा अधिकारी एके पाठक से लगातार दो दिनों तक आफिस टाइम में मुलाकात करने की कोशिश की गई। दफ्तर के कर्मचारियों ने बताया कि वो स्कूलों का मुआयना करने बाहर गए हैं। जबकि बेसिक शिक्षा अधिकारी के दफ्तर के बाहर सूचना अंकित की गई है कि प्रतिदिन 10 से 12 बजे तक इनके संपर्क किया जा सकता है।

लोन में कट जा रहा पैसा

परिषदीय विद्यालयों में यूनिफॉर्म के लिए बच्चों के अभिभावकों के खाते में भेजा जा रहा पैसा कहीं निजी इस्तेमाल कर लिया जा रहा है, तो कहीं खातों में जुड़े लोन में आप कट जा रहा है। इसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। ठंड में पुराने स्वेटर तो कहीं बिना स्वेटर ही बच्चे स्कूल पहुंच रहे हैं। सोनभद्र के लोझरा निवासी अशोक सिंह का बेटा अपने गांव के प्राइमरी स्कूल में पढ़ता है। ड्रेस-स्वेटर का पैसा उनके खाते में आया। उस पैसे को निकालकर अशोक अपने बेटे के लिए ड्रेस, जूते, बैग और स्टेशनरी खरीदते, इससे पहले ही वह धनराशि पहले ली गई लोन में कट गई। मजदूरी से अपनी आजीविका चलाने वाले अशोक अभी तक अपने बच्चे को नया ड्रेस, स्वेटर और जूते नहीं दिला पाए हैं। सिले जूते और फटे-पुराने कपड़ों में ही वो अपने बच्चे को स्कूल भेज रहे हैं।

ऐसे अभिभावकों की तादाद भी बहुत ज्यादा है जिनके खाते में सरकारी पैसा तो पहुंचा, लेकिन उन्होंने अपने बच्चों के लिए ड्रेस, बैग समेत जरूरी सामान नहीं खरीदा। बच्चे पुराने ड्रेस, स्वेटर में ही स्कूल जा रहे हैं तो कुछ के पास वह भी उपलब्ध नहीं है। सोनभद्र के खजुरा प्राइमरी स्कूल के एक छात्र के पिता के खाते में यूनिफार्म का पैसा आया। उस पैसे से बच्चे को ड्रेस व स्वेटर दिलवाने की बजाय घरेलू खर्च में उपयोग कर लिया। बच्चे को घर का स्वेटर पहन कर ही स्कूल आना पड़ रहा है। कुछ अभिभावकों ने पुराने ड्रेस उपलब्ध होने का हवाला देकर बच्चों को नया ड्रेस नहीं बनवाया है तो कुछ के खाते में आई धनराशि पूर्व के लोन सहित अन्य खर्चों में चली गई। सोनभद्र के बेसिक शिक्षा अधिकारी हरिवंश कुमार कहते हैं, "शिक्षकों को अभिभावकों से मिलकर ड्रेस-स्वेटर खरीदने के लिए प्रेरित करने को कहा गया है। पैसा मिलने के बाद भी जिन्होंने ऐसा नहीं किया, उनके विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।"

कंपोजिट, प्राइमरी और उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों की यूनिफार्म खरीदने के लिए सरकार जुलाई महीने में ही अभिभावकों के खातों में धन भेजना शुरू कर देती है। 1200 रुपये एक ही किस्त में अभिभावकों के खातों में भेजा जाता है, जिससे दो जोड़ी पैंट-शर्ट, (लड़कियों के लिए दो जोड़ी स्कर्ट-शर्ट) एक स्वेटर, एक जोड़ी जूता-मोजा, एक बैग और सौ रुपये स्टेशनरी खरीदनी पड़ती है। प्राइमरी स्कूलों हेडमास्टर अप्रैल महीने से ही यूनिफार्म खरीदने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। दाखिले के समय ही अभिभावकों का खाता संख्या, आधार कार्ड, बच्चे का आधार कार्ड और मोबाइल नंबर लिया जाता है और प्रेरणा एप के जरिये स्टूडेंट्स का पंजीकरण किया जाता है। वैरिफिकेशन होने के बाद डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के जरिये खाते में पैसा भेज दिया जाता है। शासनादेश के मुताबिक, यह प्रक्रिया 30 सितंबर तक पूरा करने के निर्देश हैं।

यूपी में डेढ़ करोड़ से ज्यादा बच्चे

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बजट भाषण पर यकीन किया जाए तो यूपी के कंपोजिट, प्राथमिक, उच्च प्राथमिक और परिषदीय विद्यालयों की तादाद 1,32,912 है, जिनमें  1 करोड़ 66 लाख स्टूडेंट्स का दाखिला हुआ है। बच्चों के यूनिफार्म के लिए उनके अभिभावकों के खाते में 1 करोड़ 57 लाख भेजा जा चुका है। साल 2022-2023 के बजट में इस योजना के लिए करीब 370 करोड़ रुपये की व्यवस्था प्रस्तावित है। वर्तमान शैक्षिक सत्र शुरू हुए साढ़े आठ  महीने बीत चुके हैं। साढ़े तीन महीने बाद सत्र समाप्त हो जाएगा। यूपी के सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में अभी लाखों ऐसे स्टूडेंट्स हैं, जिनके अभिभावकों के खाते में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से यूनिफार्म, स्वेटर और स्टेशनरी का पैसा नहीं पहुंचा है। अभी तक सूबे के नौ लाख बच्चों को यूनिफार्म के लिए धन का भुगतान नहीं हो सका है।

ताजा स्थिति यह है कि कड़ाके की ठंड के बावजूद ड्रेस, जूते, बैग और स्टेशनरी के लिए मिलने वाला धन पूर्वांचल ही नहीं, यूपी के तमाम स्कूलों के बच्चों के अभिभावकों के खाते में अभी तक नहीं पहुंचा है। चंदौली जिले के बबुरी कस्बे में स्थित सरकारी प्राइमरी स्कूल में पड़ताल की गई तो कई बच्चे चप्पल पहने मिले तो कुछ नंगे पांव स्कूल जाते दिखे। कक्षा तीन की खुशी और कक्षा चार की छात्रा वंदना ने बताया कि पापा के एकाउंट में पैसा नहीं आया है, इसलिए  ड्रेस नहीं खरीदा जा सका है।

मिर्जापुर, जौनपुर, गाजीपुर समेत कई जिलों में ‘न्यूजक्लिक’ ने पड़ताल की तो पता चला कि साल 2022-23 में स्कूली बच्चों के यूनिफार्म के लिए बहुत से बच्चों के अभिभावकों को अभी तक सरकारी धन का इंतजार है। कुछ अभिभावकों के खाते लिंक नहीं हो पाए हैं तो कुछ ने उस पैसे से दूसरा सामान खरीद लिया। हालांकि ऐसे बच्चों की तादात काफी है जिनके अभिभावकों के खाते में कई महीने 1200 रुपये पहुंच चुके हैं।

गोंडा जिले के परिषदीय स्कूलों के साढ़े तीन लाख अभिभावकों को डीबीटी से 42 करोड़ का अनुदान मिल चुका है। इसके बावजूद करीब दो लाख अभिभावकों ने अभी तक अनुदान का उपयोग नहीं किया है। इसके चलते बड़ी संख्या में बच्चे बिना स्वेटर के ही स्कूल पहुंच रहे हैं। प्रभारी बेसिक शिक्षा अधिकारी राम खेलावन सिंह कहते हैं, "गोडा जिले में अभिभावकों को जागरूक करने के लिए ग्राम पंचायत अधिकारियों, एएनएम, रोजगार सेवकों, आशा कार्यकर्त्ताओं, पंचायत सहायकों, राजस्व लेखपालों के अलावा कोटेदारों और ग्राम प्रधानों को जिम्मेदारी सौंपी गई है। स्टूडेंट्स को निर्देश दिया गया है कि वो अपने अभिभावकों से अपने यूनिफार्म के रसीद की फोटो कापी लेकर आएं।"

गोंडा जैसी स्थिति हरदोई जिले में भी है। इस जिले के तमाम स्कूलों में बच्चे बिना स्वेटर और ड्रेस के स्कूल जा रहे हैं, जिनमें कई बच्चे ऐसे हैं जिनके अभिभावक सरकारी धन का इंतजार कर रहे हैं। इसी वजह से उनके बच्चे बिना ड्रेस और स्वेटर, जूते-मोजे के स्कूल पहुंच रहे हैं। उन्हें सर्दियों में ठिठुरना पड़ रहा है। हरदोई के बावन कस्बे के प्राथमिक विद्यालय इंग्लिश मीडियम में 70 फीसदी बच्चों के अभिभावकों अकाउंट में पैसा पहुंच गया है। कुछ बच्चों ने शिक्षकों की सख्ती के चलते ड्रेस तो खरीदी ली, लेकिन कुछ ने ड्रेस खरीदना मुनासिब नहीं समझा। बहुत से बच्चों के अभिभावक यूनिफार्म का पैसा अपनी जरूरतों में इस्तेमाल कर रहे हैं। कुछ लोग अपने बच्चों को पुराना ड्रेस पहना रहे हैं अथवा उन्हें बिना ड्रेस के ही स्कूल भेज रहे हैं।

बच्चों को रुला रही गरीबी

 मुजफ्फरनगर जिले के परिषदीय विद्यालयों में सिर्फ दस फीसदी बच्चे ही स्वेटर पहनकर पहुंच रहे हैं। पैसा मिलने के बाद भी बड़ी संख्या में अभिभावकों ने स्वेटर की खरीदारी नहीं की है। सरकारी स्कूलों में यहां एक लाख 68 हजार स्टूडेंट् पढ़ते हैं। मुआयने में काफी बच्चे न तो ड्रेस में दिख रहे हैं और न ही स्वेटर पहनकर आ रहे है। मुजफ्फरनगर के जिला समन्वयक रमेंद्र मलिक कहते हैं, "दस प्रतिशत बच्चे भी पहनकर नहीं आ रहे हैं। शिक्षकों के माध्यम से बच्चों के अभिभावकों को यूनिफार्म और स्वेटर खरीदने के लिए प्रेरित किया जा रहा है।"

यही हाल बस्ती जिले में भी है। कुदरहा क्षेत्र के परिषदीय विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के अभिभावकों के खाते में पैसे भेजे जाने थे, लेकिन बहुतों के खाते में अभी तक यह रकम पहुंची ही नहीं है। बहुत से बच्चे बिना स्वेटर व जूता-मोजा के बच्चे स्कूल जा रहे हैं। कंपोजिट विद्यालय पांऊ, प्राथमिक विद्यालय बनहरा, कन्या प्राथमिक विद्यालय गायघाट, प्राथमिक विद्यालय गायघाट, प्राथमिक विद्यालय बैड़ारी एहतमाली, प्राथमिक विद्यालय गंगापुर सहित अधिकांश विद्यालयों में ऐसे बच्चों की संख्या बहुत ज्यादा है जो बगैर स्वेटर, जूता-मोजा और यूनिफार्म के पढ़ने आ रहे हैं। कंपोजिट विद्यालय पांऊ के शिक्षक अजीत गुप्ता कहते हैं, "काफी अभिभावकों के खाते में पैसा नहीं पहुंचा है। जिनके खातों में रकम पहुंच गई है उन्हें हिदायत दी गई है कि वे बच्चों को यूनिफार्म में ही स्कूल भेजें।"

पीलीभीत में कड़ाके की ठंड में 18 से 20 हजार बच्चे बिना स्वेटर और जूते पहने ही स्कूल जा रहे हैं। अफसरों का कहना है कि डीबीटी (डायरेक्ट बेनिफिसरी ट्रांसफर) में आधार लिंक करने की प्रक्रिया जारी है। यहां 1503 परिषदीय विद्यालय हैं, जिनमें 2,27,485 स्टूडेंट्स पढ़ते हैं। फीडिंग को लेकर शिक्षकों की जिम्मेदारी तय की गई थी। कहा गया था कि शत प्रतिशत धनराशि पहुंचने के साथ उसके उपयोग के लिए अभिभावकों को जागरूक भी किया जाए, लेकिन तमाम कोशिशों के बाद भी अब तक बीस हजार बच्चों के खातों में धनराशि नहीं पहुंच गई है।

सिले जूते, फटे स्वेटर

 यूपी की राजधानी लखनऊ में एवीपी गंगा द्वारा हाल ही में उदयगंज स्थित प्राइमरी स्कूल की पड़ताल कराई गई तो बड़ी तादाद में ऐसे बच्चे मिले, जिन्होंने स्वेटर पहना नहीं था या फिर यूनिफार्म से अलग पहना था। ऐसा ही जूते-मोजे और बाकी यूनिफार्म में दिखा। बगैर स्वेटर पहने स्कूल पहुंचे छठी कक्षा का लालचंद ने बताया कि अब तक उसके पिता के खाते में पैसा नहीं आया है। अपने बच्चों को स्कूल लेने पहुंची सोनी और किरण ने बताया कि उनके साथ भी यही समस्या है। दोनों के दो-दो बच्चे यहां पढ़ते हैं। कैबिनेट गंज प्राइमरी स्कूल में बड़ी संख्या में बच्चों ने घर के कपड़े पहने थे। कई बच्चों के पैर में जूते मोजे नहीं थे। शिक्षकों से बातचीत से पता चला कि कई बच्चे ऐसे हैं जिनके अभिभावकों के खाते में पैसा तो पहुंच गया है, लेकिन उन्होंने यूनिफार्म नहीं खरीदी। कुछ का पैसा आना बाकी है।

भास्कर डाट काम की ओर से यूपी के कई जिलों में कराए गए हालिया सर्वे में कई चौंकाने वाले तथ्य समाने आए हैं। भास्कर ने लिखा है कि फतेहपुर के आबूनगर में प्राइमरी स्कूल में प्रार्थना के दौरान बच्चों की ठिठुरन साफ-साफ दिखती है। एक छात्रा फलक के मुताबिक, "अभी पापा के पास स्वेटर का पैसा नहीं आया है। घर में कोई दूसरा स्वेटर नहीं है जो पहन कर आएं। जब पैसा मिलेगा तो स्वेटर लेंगे। अभी तो अंदर गर्म टॉप पहनकर आए हैं। मम्मी कान में शॉल लपेट देती हैं। जिससे हवा न लगे। स्कूल आने पर हटा देते हैं। मेरे पास स्वेटर है ही नहीं। मोजे फटे हुए हैं।"

जालौन के सुभाष कोच स्थित प्राइमरी स्कूल की दीवारें पक्की बनी हैं, लेकिन छत पर टीन शेड है। बरामदें की दीवारों पर सीलन है। इसी सीलन के सहारे बिना स्वेटर के स्कूल के बच्चे बैठे हैं। स्कूल के अंदर बच्चों के जमीन पर बैठने के भी कोई इंतजाम नहीं किए गए हैं। ठंड में इस व्यवस्था में पढ़ने के लिए बच्चे मजबूर हैं। कक्षा तीन की स्टूडेंट पूनम कहती है, "स्कूल में टीचर से स्वेटर के लिए बोला था। उन्होंने कहा जब पापा के खाते में पैसे आ जाएं तो खरीद लेना। अभी तक पैसे तो आए नहीं हैं। इसलिए ऐसे ही स्कूल आ गए। थोड़ी धूप जब आ जाती है तब घर से निकलते हैं और धूप रहते ही वापस चले जाते हैं। मम्मी तो मना करती हैं आने से लेकिन मुझे यहां अच्छा लगता है।" पूनम से उसके जूतों के बारे में पूछा गया तो उसने कहा, "वो पहले खरीदे थे लेकिन अब वो मेरे पैर में नहीं आते हैं। नीचे से मेरे जूते टूट भी गए हैं। मोजे के लिए पापा से बोला था। वो कह रहे थे जब पैसा होगा, तब मोजा दिला देंगे। अभी केवल चप्पल पहन कर ही स्कूल चली जाऊं।"

ललितपुर नगर में स्थित आदर्श प्राइमरी स्कूल के कई बच्चों की शिकायत यह थी कि इस बार का पैसा तो अभी आया नहीं है। छात्र भानु के मुताबिक,  "मेरे पापा जो स्वेटर खरीदा था वो दो बार धुलने के बाद छोटा हो गया। जूते तो कुछ महीनों के बाद ही टूट गए थे। ड्रेस ही अभी तक चल रही है लेकिन वो भी अब फट रही है। शर्ट के नीचे एक और शर्ट पहन लेता हूं जिससे ठंड न लगे। जूते भी पूरे खराब हो चुके हैं। इस साल का पैसा तो आया नहीं है अभी तक। जब पैसा आएगा तभी पापा स्वेटर और जूते दिलाएंगे।"

आधा दर्जन अफसरों पर एक्शन

उत्तर प्रदेश में स्कूल शिक्षा के महानिदेशक विजय किरण आनंद मीडिया से कहते हैं, "शासन ने पिछले साल एक नई व्यवस्था शुरू की थी, जिसके तहत पारदर्शी तरीके से सरकारी सुविधाओं का पैसा अभिभावकों के खाते में पहुंचाना था। अगस्त महीने में ही अभिभावकों के खाते में पैसा भेज दिया गया था। ज्यादातर बच्चों के अभिभावकों के खाते में धन पहुंच गया है। कुछ अभिभावकों का जो लेटेस्ट खाता है उनमें कुछ की आधार ऑथेंटिकेशन की सीडिंग नहीं हुई है। इसके लिए अभिभावकों से संपर्क किए जा रहे हैं।"

बेसिक शिक्षा मंत्री संदीप सिंह कहते हैं, "हम इस बात पर बहुत ज्यादा जोर दे रहे हैं कि हर बच्चे के अभिभावक के खाते में डीबीटी की राशि पहुंचा दी जाए। कुछ अभिभावक और बच्चे ऐसे हैं जो विद्यालय में लगातार नहीं आते, उनके अटेंडेंस नहीं के बराबर है या फिर जहां डॉक्यूमेंट का वेरिफिकेशन नहीं हुआ है। ऐसे कुछ ही केस हैं जिसमें डीबीटी की राशि नहीं पहुंची। पूरी टीम ने मिलकर वेरिफिकेशन का काम किया है। जिन जिलों में बेसिक शिक्षा अधिकारियों की लापरवाही उजागर हो रही है, वहां से उन्हें हटाया जा रहा है। हाल ही में ऐसे आधा दर्जन बेसिक शिक्षा अधिकारियों पर एक्शन लेते हुए हुए उन्हें विभिन्न जिलों से हटाया गया है।"

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