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टिकरी बॉर्डर से ग्राउंड रिपोर्ट:  स्थानीय लोगों ने कहा- हमें किसान आंदोलन से कोई समस्या नहीं

न्यूज़क्लिक टीम ने जिनसे भी बात की मोटे तौर पर सभी ने इस आंदोलन का समर्थन किया और किसी भी तरह की परेशानी से इंकार किया। हालांकि कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें कुछ असुविधा हुई लेकिन वो किसान से अधिक पुलिस के रास्ते रोके जाने से हुई है।
टिकरी बॉर्डर से ग्राउंड रिपोर्ट

"हमें किसान आंदोलन से कोई समस्या नहीं है, जो लोग कल (शुक्रवार) यहां आए थे, उन लोगों को इस काम के लिए स्थानीय लोगों का समर्थन नहीं मिला जिसके बाद एक स्थनीय बीजेपी नेता कहीं दूसरी जगह से कुछ लोगों को लेकर यहां पहुंचे।"

यह कहना है टिकरी बॉर्डर पर प्रदर्शन स्थल के पास के सबसे व्यस्त मार्केट हरिदास नगर में पिछले कई साल से बिजली के दुकान चलाने वाले विक्की का। वह खुद रहते भी बहदुरगढ़ में हैं।

उन्होंने बताया, "जब यह कुछ लोग हंगामा करने आए थे, उससे घंटे भर पहले टिकरी गांव के लोग स्टेज पर आए और ऐलान किया कि उनका पूरा गांव उनके साथ है। साथ ही वो बता गए की कुछ बीजेपी के लोग अपने साथियों के साथ यहां आने वाले हैं। लेकिन किसानों को इससे घबराने के जरूरत नहीं है क्योंकि स्थानीय लोग इनके साथ हैं।"

दुकानदार विक्की ने बताया कि उनके घर जाने के रास्ते में प्रदर्शन आता है लेकिन फिर भी वो इनके साथ हैं। जब हमने उनसे पूछा आप इनके साथ क्यों हैं? इनकी मांगों के बारे में आप क्या सोचते हैं?, उन्होंने कहा कि किसी को भी असीमित भंडारण की छूट देना यह तो सबके ही खिलाफ है। इससे तो सभी परेशान होंगे।

29 जनवरी को कथित 'स्थानीय लोगों' के छोटे समूह सिंघु और टिकरी सीमा पर विरोध स्थलों पर पहुंच गए और मांग की कि सड़कों को खाली किया जाए। इन लोगों ने आरोप लगाया कि इस प्रदर्शन से उन्हें 'असुविधा' हो रही है। वे लाल किले में गणतंत्र दिवस पर ट्रैक्टर परेड के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के कथित 'अपमान' को लेकर भी नाराज थे। सिंघु सीमा पर, 'गुंडों' द्वारा पथराव किया गया, टिकरी सीमा पर 50-60 लोगों के एक समूह ने प्ले कार्ड दिखाए और हंगामा किया। उन्होंने किसानों पर अभद्रता के भी आरोप लगाए।

दरअस्ल 26 जनवरी को हुई घटनाओं के बाद सभी विरोध स्थलों पर स्थिति तनावपूर्ण बनाई जा रही है। संयुक्त किसान मोर्चा के मुताबिक़ यह सब उनके शांतिपूर्ण विरोध को ख़ारिज (डिस्क्रेडिट) करने के लिए सत्ताधारियों का योजनाबद्ध प्रयास है। दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन की शुरुआत के बाद से किसानों को देश भर के किसानों और अन्य समुदायों से समर्थन प्राप्त हुआ है। यही कारण है कि सरकार और सत्तारूढ़ दल के लोगों द्वारा कभी कहा गया कि 'किसानों को गुमराह' किया गया है। कुछ ने तो यहाँ तक दावा किया कि ये किसान ही नहीं है। कई ने विरोध प्रदर्शनों को खालिस्तानी और आतंकवादियों का प्रदर्शन कहा।

आंदोलन को बदनाम करने का यह अभियान तब और तेज़ हुआ जब केंद्र सरकार और किसान के बीच बातचीत की एक श्रृंखला टूटी और सरकार किसानों को कोई समाधान देने में असफल रही है। आखिरी बैठक में सरकार ने अपने हाथ पूरी तरह से हाथ खड़े कर दिए और कहा इससे अधिक और वो कुछ नहीं कर सकते है। यही उनका अंतिम प्रस्ताव है।

इस किसान आंदोलन का समर्थन लगातर बढ़ रहा है और शायद सरकार के लिए भी यह शर्मिंदगी का विषय बन रहा है। गणतंत्र दिवस पर ऐतिहासिक ट्रैक्टर परेड में शामिल होने के लिए राजधानी की सीमाओं पर आने वाले ट्रैक्टरों की संख्या साबित करती है कि आंदोलन को बदनाम करने के सभी प्रयास बुरी तरह विफल रहे हैं। यही नहीं उत्तर प्रदेश से बीजेपी के विधायकों के साथ गाज़ीपुर बॉर्डर पर प्रदर्शन कर रहे किसानों का विरोध करने और पुलिस कार्रवाई की आशंका के बाद वहां लगातर किसानों की संख्या में भारी बढ़ोतरी हो रही है। पूरा पश्चिमी उत्तर प्रदेश किसानों के समर्थन में सड़कों पर उतर रहा है।

अब नयी कहानी यह है कि स्थानीय लोग इन धरनों से परेशान हैं। उन्हें असुविधा हो रही है। इसलिए इन्हें यहां से हटा दिया जाना चाहिए। यहां यह याद रखना ज़रूरी है कि सीएए और एनआरसी के खिलाफ दिल्ली में हो रहे धरना-प्रदर्शनों के समय भी इस तरह का नैरेटिव बनाने का प्रयास किया गया था।

क्या किसान आंदोलन से लोकल (स्थानीय) लोग वाकई परेशान हैं और इसके खिलाफ हैं या फिर यह आंदोलन को बदनाम करने की एक बड़ी साज़िश है? इन्ही सब सवालों को लेकर न्यूज़क्लिक टीम ने टिकरी बॉर्डर जहाँ किसान 27 नवम्बर से प्रदर्शन कर रहे हैं। उसके पास सबसे नज़दीकी इलाके हरिदास नगर जो एक स्थानीय मार्केट है, वहां के दुकानदारों और निवासियों से बात की कि उनकी इसपर क्या राय है? हमने जिनसे भी बात की मोटे तौर पर सभी ने इस आंदोलन का समर्थन किया और किसी भी तरह की परेशानी से इंकार किया। हालांकि कुछ लोगों ने कहा कि उन्हें कुछ असुविधा हुई लेकिन वो किसान से अधिक पुलिस के रास्ते रोके जाने से हुई है। उन्होंने किसानों के व्यवहार को लेकर ख़ुशी जाहिर की।

सुनील, जो पिछले चार साल से हरिदास नगर इलाके में एक रेडीमेड कपड़ों की दुकान चलाते हैं, उन्होंने किसानों के विरोध को जायज ठहराते हुए कहा, “कोई भी घर से दूर इतने लंबे समय तक सड़क पर बैठकर विरोध शौक से नहीं करता, वे इस बात से दुखी हैं कि वे यहां क्यों बैठे हैं। सरकार को किसानों की बात सुननी चाहिए।”

विरोध स्थल से कुछ मीटर की दूरी पर एक जनरल स्टोर चलाने वाले संजय ने कहा कि उन्हें प्रदर्शनकारी किसानों से कोई परेशानी नहीं हुई है। “वे मेरी दुकान पर आते हैं और जरूरत की चीजें खरीदते हैं। क्योंकि उन्हें दैनिक उपयोग की वस्तुओं की भी आवश्यकता होती है। वे दो महीने से यहां बैठे हैं और मुझे कभी भी उनसे कोई समस्या नहीं हुई।”

'असुविधा' के दावे के अलावा, टिकरी में विरोध प्रदर्शन को समाप्त करने की मांग करने वाले समूह ने यह भी आरोप लगाया कि कुछ प्रदर्शनकारी क्षेत्र की महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करते हैं। बेबी देवी, जो अपने परिवार के साथ धार्मिक अनुष्ठानों में उपयोग की जाने वाली सामग्री को बेचती हैं, उन्होंने दावा करते हुए कहा कि “ये किसान अच्छे लोग हैं। जब भी वे मेरी दुकान पर आते हैं, तो वे मुझे 'बहन' या 'बेटी' कहते हैं। उन्होंने मेरे साथ कभी दुर्व्यवहार नहीं किया।”

बेबी देवी ने तो यहां तक कहा 'वो छोटी दुकान चलाती हैं इसलिए कई किसान उन्हें एक्स्ट्रा पैसा दे जाते हैं। उन्होंने बताया कि कुछ दिन पहले किसानों ने उन्हें दस किलो आलू और सर्दी से बचने के लिए कंबल भी दिया था। '

बेबी देवी के पति राजकुमार ने कहा कि उनकी परेशानी प्रदर्शनकारी किसानों के कारण नहीं बल्कि पुलिस से है। उन्होंने शिकायत की कि पुलिस ने सड़कों को अवरुद्ध कर दिया है और उन्हें अपनी दुकान के लिए सामान लाने में समस्या आती है क्योंकि कोई भी वाहन क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकता है।

आपको बता दे कि पुलिस ने कॉलोनी के अंदर के रास्तो को भी ऐसा बंद किया है कि पैदल के आलावा कोई गाड़ी वहां तक नहीं पहुँच सके।

हरिदास नगर के निवासी और दिल्ली विश्वविद्यालय से एमए डिग्री धारक रवि ने नए कृषि कानून की खामियों को समझाया। कॉरपोरेट खेती पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि यह किसानों को असहाय और असुरक्षित कर देगा क्योंकि उनके पास सभी संसाधन नहीं हैं। उन्होंने कहा मानिए “कॉरपोरेट 150 पन्नों के लंबे समझौते के साथ आएगा और किसान को इस पर हस्ताक्षर करने के लिए कहेगा, किसान को कैसे पता चलेगा कि उसमें क्या लिखा है? फिर कॉरपोरेट जैसा चाहे वैसा कर सकते हैं। ”

रवि ने यह भी संदेह जताया कि जो लोग खुद को लोकल बता कर विरोध करने आए थे। वे लोकल थे। रवि सवाल उठाते हैं कि उन्होंने ऐसे प्लेकार्ड छपवाए हैं, जिनकी 'शॉर्ट नोटिस' पर व्यवस्था नहीं की जा सकती है।

एक मिठाई की दुकान के मालिक, जिन्होंने नाम न छापने का अनुरोध किया, उन्होंने कहा, "विरोध ने मेरे व्यवसाय को प्रभावित किया है, लेकिन इस तरह के बड़े विरोध में यह सब आम बात है।" हालाँकि वो भी इस दावे को खारिज करते हैं कि किसान उन्हें किसी तरह से परेशान करते हैं। उन्होंने कहा कि जब से किसान आए है केवल दो दिन दुकान बंद हुई है और दोनों ही दिन पुलिस के कहने पर ऐसा किया।

जब आंदोलन को लेकर अफवाहें फैलाई जा रही हैं, इस तरह विरोध हो रहा है, तब भी टिकरी पर आंदोलन कर रहे किसानों में निराशा नहीं है। एक प्रदर्शनकारी ने कहा, “असली आंदोलन अब शुरू हुआ है, अब तक यह एक मेले जैसा था। यह असली परीक्षा है इसे पार कर हम जीतेंगे।" एक और प्रदर्शनकारी ने जोर देते हुए कहा , "प्रतिरोध एक स्प्रिंग की तरह है, जितना अधिक आप इसे दबाएंगे, उतना ही यह ऊपर की तरफ जाएगा!"

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