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भारत में इस बार कैसे घट गया खरीफ फसलों का रकबा?

पिछले कुछ सालों में खरीफ के सीजन में कम बारिश हो रही है या तो बारिश हो ही नहीं रही है। इस प्रवृत्ति ने खरीफ फसलों के एक बहुत बड़े क्षेत्र और किसानों की आमदनी को पिछले कुछ वर्षों में बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है।
Kharif crops
इस खरीफ के मौसम में धान की खेती में 3.8 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। साभार- गणेश न्याहलदे

पूरे देश में खरीफ फसलों का क्षेत्र प्रभावित हो रहा है। इसके पीछे मुख्य रूप से वजह बन रही है - मानसून में परिवर्तन की दर। मानसूनी बरसात का देर से सक्रिय होना। अपेक्षित समय-अवधि में बरसात न होना या कम बरसात होना और अतिवृष्टि या असमान वर्षा ने खरीफ फसल के साथ ही खरीफ फसलों के एक बहुत बड़े क्षेत्र और किसानों की आमदनी को पिछले कुछ वर्षों में बहुत बुरी तरह से प्रभावित किया है। इसका नतीजा हमें खाद्यान्न-संकट, किसानों को नुकसान और महंगाई के तौर पर हासिल हो सकता है। मानसून परिवर्तन से इस साल धान, दलहन, तिलहन, मूंग, ज्वार और कपास की फसलों पर प्रभाव देखा गया है।

इस वर्ष जुलाई के अंत तक बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा राज्यों में धान की खेती औसत से 10 से 12 प्रतिशत तक कम हो गई है। कुल मिलाकर, इन छह राज्यों में इस साल अब तक धान की खेती में 3.8 लाख हेक्टेयर की कमी आई है। बता दें कि पिछले वर्ष 2021 के दौरान देश में धान की खेती का रकबा 267.05 लाख हेक्टेयर था। इस साल धान की खेती का यह रकबा घटकर 231.59 लाख हेक्टेयर हो गया है। इस तरह, महज एक वर्ष में धान की खेती का यह रकबा करीब 36 लाख हेक्टेयर घट गया है। इसलिए, इस साल चावल का उत्पादन घटने की आशंका जताई जा रही है। बदली हुई परिस्थिति में अनुमान यह है कि चावल के उत्पादन में औसतन नौ से दस प्रतिशत की कमी आ सकती है। भारत में पश्चिम बंगाल प्रमुख चावल उत्पादक राज्य है। इस साल पश्चिम बंगाल में अपेक्षित बारिश और समय पर बारिश नहीं हुई है। इस साल पश्चिम बंगाल के 23 में से 15 जिलों में कम बारिश हुई है। इससे कुल उत्पादन प्रभावित होगा। पश्चिम बंगाल में पिछले साल 129 मिलियन टन चावल का उत्पादन हुआ था। अनुमान है कि इस साल अकेले पश्चिम बंगाल से चावल के उत्पादन में 10 लाख टन की कमी आ सकती है।

अन्य फसलों के क्षेत्र में भी आई गिरावट

दलहन, अरहर, उड़द, मक्का, मूंगफली, तिल के खेती क्षेत्र में भी कमी आई है। यह सभी खरीफ की प्रमुख फसल मानी जाती हैं। पिछले साल वर्ष 2021 में दलहन का रकबा 119.43 लाख हेक्टेयर था। इस साल यह घटकर 116.45 लाख हेक्टेयर रह गया है। इसी तरह, तिलहन के क्षेत्र में भी गिरावट दर्ज की गई है। पिछले साल वर्ष 2021 में तिलहन का रकबा 44.43 लाख हेक्टेयर था, इस साल यह रकबा 39.80 लाख हेक्टेयर हो गया है। वहीं, पिछले साल उड़द का रकबा 33.87 लाख हेक्टेयर था, इस साल उड़द का रकबा 31.83 लाख हेक्टेयर हो गया है। दूसरी तरफ, मक्का का रकबा भी घट गया है। यह रकबा 76.34 लाख हेक्टेयर से घटकर 75.75 हेक्टेयर हो गया है। इसी तरह, मूंगफली के रकबे में भी गिरावट आई है। पिछले साल मूंगफली का रकबा 44.39 लाख हेक्टेयर था, इस साल यह 41.09 लाख हेक्टेयर हो गया है। खासकर गुजरात राज्य में मूंगफली का रकबा अधिक है, लेकिन इस क्षेत्र में भारी गिरावट आई है। वहीं, पिछले साल तिल का रकबा 11.21 लाख हेक्टेयर था, जो इस साल 11.09 लाख हेक्टेयर पर आ गया है।

हालांकि मूंग और ज्वार के रकबे में मामूली बढ़ोतरी हुई है। पिछले साल मूंग की बुवाई का रकबा 30.23 लाख हेक्टेयर था, जो इस साल बढ़कर 30.99 लाख हेक्टेयर हो गया है। ज्वार के रकबे में भी मामूली वृद्धि हुई है। यह 12.62 से 12.65 लाख हेक्टेयर हो गया है। देखा जाए तो मूंग और ज्वार के रकबे में बड़ी बढ़ोतरी का दावा किया जा रहा था। इस लिहाज से मूंग और ज्वार के रकबे में मामूली बढ़ोतरी को उत्साहजनक नहीं माना जा रहा है।  दरअसल, देर से बारिश होने के कारण दलहनी फसलों की बुवाई सीमित हो गई थी। माना जाता है कि यदि जून के अंत तक दलहनी फसलों की बुवाई नहीं की जाती है तो अच्छी उपज प्राप्त नहीं होती है। इसलिए जून महीना बीत जाने के बाद से किसान दलहन की बुआई करने से बचते रहे हैं। इसका असर अन्य दलहनों की बुवाई में साफ दिखाई दे रहा है। अपवाद स्वरूप चने के क्षेत्र में मामूली वृद्धि हुई है।

कपास उत्पादक विदर्भ में घट गया फसल का रकबा

इस साल कपास की कीमत अच्छी थी। महाराष्ट्र के विदर्भ अंचल में कपास की कीमत 12,000 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई थी। इसे देखते हुए इस साल कपास की खेती में इजाफा होने की संभावना जताई गई थी। इससे विपरीत एक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विदर्भ और मराठवाड़ा सहित पूरे देश में कपास की खेती में गिरावट आई है। आंकड़े देखें तो पूरे देश में पिछले वर्ष 2021 में कपास की खेती का रकबा 113.51 लाख हेक्टेयर था, जो इस साल यह थोड़ा बढ़कर 121.13 लाख हेक्टेयर जरूर हो गया है, लेकिन यह अपेक्षित बढ़ोतरी नहीं कही जा रही है। वहीं, देश स्तर पर कपास की खेती के क्षेत्र में वृद्धि हुई है, लेकिन महाराष्ट्र में खेती के क्षेत्र में कमी आई है, जबकि महाराष्ट्र का विदर्भ कपास उत्पादक क्षेत्र माना जाता है। इस गिरावट से कॉटन और टेक्सटाइल इंडस्ट्री का संकट और बढ़ सकता है।

अकेले सोयाबीन की वृद्धि से राहत

पिछले साल सोयाबीन का रकबा 115.10 लाख हेक्टेयर था। यह बढ़कर 117.51 लाख हेक्टेयर हो गया है। हालांकि, यह मामूली बढ़ोतरी ही है, लेकिन सोयाबीन की फसल को लेकर जिस प्रकार से गए कुछ वर्षों में किसान हतोत्साहित हुए हैं, उसे देखते हुए इस बढ़ोतरी को सकारात्मक समझा जा सकता है।  पिछले वर्षों की तुलना में इस साल सोयाबीन फसल के रकबे में करीब ढाई लाख हेक्टेयर का इजाफा हुआ है। दरअसल, खाद्य तेल की कमी और पोल्ट्री उद्योग से सोयाबीन भोजन की अधिक मांग के कारण सोयाबीन की मांग पूरे वर्ष बनी रही। इसलिए देखा जा रहा है कि किसानों ने इस साल कपास और दलहनी फसलों से परहेज किया है और सोयाबीन पर ज्यादा जोर दिया है। पिछले वर्षों में सोयाबीन की गारंटी कीमत 3,950 रुपये थी, लेकिन बाजार में सोयाबीन की कीमत 12 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक बढ़ गई थी। वर्ष के दौरान घरेलू बाजार में सोयाबीन की औसत कीमत साढ़े सात हजार रूपए प्रति क्विंटल तक देखी जा रही है। यही वजह है कि किसानों ने इस साल भी सोयाबीन की बुवाई को प्राथमिकता दी है। इससे सोयाबीन में तेजी से खाद्य तेल और पोल्ट्री उद्योग को राहत मिल सकती है।

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