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उत्तराखंड : नदियों का दोहन और बढ़ता अवैध ख़नन, चुनावों में बना बड़ा मुद्दा

नदियों में होने वाला अवैज्ञानिक और अवैध खनन प्रकृति के साथ-साथ राज्य के खजाने को भी दो तरफ़ा नुकसान पहुंचा रहा है, पहला अवैध खनन के चलते खनन का सही मूल्य पूर्ण रूप से राज्य सरकार के ख़ज़ाने तक नहीं पहुंच पाता, वहीं दूसरी ओर अधिक मुनाफा कमाने के लालच में खनन माफिया मानक से अधिक खनन करते हैं।
Uttarakhand
साभार न्यूज़लॉन्ड्री में प्रकाशित मुक्ता जोशी के लेख से

हमारे देश की दो मुख्य नदियाँ- गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड राज्य में है, गंगा और यमुना की सहायक नदियां जो राज्य के लिए प्राकृतिक संसाधनों का भंडार हैं। उत्तराखंड राज्य में राजस्व आय का एक बड़ा हिस्सा इन्ही नदियों में होने वाले खनन से आता है। लेकिन आज राज्य की नदियों में होने वाला अवैध खनन प्रकृति और राजस्व दोनों के लिए खतरा बनता जा रहा है। नदियों में होने वाला अवैज्ञानिक और अवैध खनन प्रकृति के साथ-साथ राज्य के खजाने को भी दो तरफ़ा नुकसान पहुंचा रहा है, पहला अवैध खनन के चलते खनन का सही मूल्य पूर्ण रूप से राज्य सरकार के ख़जाने तक नहीं पहुंच पाता, वहीं दूसरी ओर अधिक मुनाफा कमाने के लालच में खनन माफिया मानक से अधिक खनन करते हैं। मानक से अधिक खनन हो जाने के कारण बरसात के समय नदियां विकराल रूप धारण कर तबाही मचाती हैं। नदी में आये तेज बहाव के कारण जो नुकसान इन नदियों पर बने पुल और नदियों के किनारों को होता है उसका हर्जाना भी राज्य सरकार को अपने खाते से ही भरना पड़ता है।

अवैध खनन और खनन नीतियां 

उत्तराखंड में नदियों का एक घना जाल है इसी कारण से यह वैध और अवैध रूप से किये जाने वाले खनन का केंद्र बिंदु है, उत्तराखंड राज्य में खनन माफियाओं के ख़िलाफ़ होने वाले आंदोलनों का भी एक इतिहास रहा है। उत्तराखंड में पहली रिवर ट्रेनिंग नीति 2016 में बनाई गयी ताकि नदियों में होने वाले इस अवैध खनन पर रोक लगायी जा सके, इस नीति के अनुसार आपदा प्रबंध 2005 के तहत नदियों में ऐसे स्थान जहां वर्षा ऋतु के उपरांत अत्यधिक मात्रा में रेत और बजरी इकठ्ठा हो जाने से नदी के तटों का कटाव और जानमाल का नुकसान होने का खतरा बढ़ जाता है, ऐसे स्थानों पर नदियों से इस नदी उप खनिज (आरबीएम) को निकाला जायेगा। नियम के अनुसार नदी के जल स्तर से 1 मीटर की गहराई तक खनन करने की अनुमति दी जायेगी और विशेष परिस्थतियों में 1 मीटर से अधिक के लिए शासन से पहले अनुमति लेनी होगी। इस के अतरिक्त पुल, श्मशान और सार्वजानिक स्थल आदि से 100 मीटर अपस्ट्रीम और 100 मीटर डाउन स्ट्रीम तक कोई खनन नहीं होगा। साथ ही रिवर ट्रेनिंग नीति 2016 के अनुसार प्रावधान था कि हटाए गये आरबीएम की रॉयल्टी का 10 प्रतिशत रिवर ट्रेनिंग, वन्य जीव संरक्षण के लिए और 10 प्रतिशत खनन प्रक्रिया में प्रभावित मार्गो के पुनर्निर्माण के लिए देय होगा। लेकिन समय समय पर रिवर ट्रेनिंग नीति में बदलाव किये गए जो राज्य में खनन को आसान बना देते हैं।

10 नवंबर 2021 को आयी नयी रिवर ड्रेजिंग नीति से रिवर ट्रेनिंग, वन्य जीव संरक्षण और प्रभावित मार्गों के पुनर्निर्माण के लिए दिए जाने वाले हिस्से को हटा दिया गया है। पुरानी नीति के अनुसार खनन के कार्यों के लिए मजदूरों को प्राथमिकता दी गयी थी लेकिन नयी नीति में खनन के लिए बड़ी मशीनों का इस्तेमाल भी आसानी से कर सकते हैं और नदी में आरबीएम के निस्तारण के मानक को 01 मीटर से बढ़ाकर 03 मीटर तक कर दिया गया।

जियोलॉजी एंड माइनिंग गवर्न्मेंट ऑफ़ उत्तराखंड की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 2020-21 में कुल 506.24 करोड़ रुपये का राजस्व राज्य सरकार को प्राप्त हुआ। खनन से प्राप्त राजस्व के इस हिस्से और राज्य में लगातार बढ़ते अवैध खनन के बारे में, पूर्व कमिश्नर ऑफ़ गढ़वाल रह चुके, सेवानिवृत बोर्ड ऑफ़ रिवन्यू और आईएएस अधिकारी सुरेन्द्र पांति कहते हैं कि आज उत्तराखंड की नदियों से करोड़ो रुपये का खनन होता है लेकिन राज्य सरकार को राजस्व के रूप में एक छोटा हिस्सा ही मिल पता है, खनन से आने वाली आय के एक बड़े हिस्से पर खनन माफियाओं का कब्ज़ा है, अधिकांश खनन के पट्टे सत्ताधारियों और उनके रिश्तेदारों के ही होते हैं इसलिए ये लोग किसी की परवाह किये बिना नदियों से अवैध खनन कर ज़्यादा से ज़्यादा मुनाफ़ा कमाने की कोशिश करते हैं। आज खनन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि यदि कोई इनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठता है तो उसको किसी न किसी प्रकार से चुप करा दिया जाता है। 

सरकार की खनन नीति पर सवाल उठाते हुए सुरेन्द्र पांति कहते हैं कि रेत बजरी के लिए नदियों में होने वाला खनन माइनर मिनरल के तहत आता है, जिसको लघु वनोपज भी कहा जाता है, वर्ष 1993 में हुए 73 वें संशोधन के अनुसार लघु वनोपज का अधिकार भी पंचायतों को मिलना चाहिए, यदि ये अधिकार पंचायतों को मिलता तो खनन करने का अधिकार पंचायतों के पास होता जिससे गांव के बेरोजगार युवाओं को विभिन्न प्रकार के रोजग़ार गांव के आस पास ही मिल जाते और गांव का युवा अपने गाँव में जिम्मेदारी के साथ खनन करता और यदि कोई अवैध गतिविधि भी करता तो उसको रोका जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं है। आज अधिकांश खनन माफ़िया क्षेत्र के बाहर से आते हैं जो केवल अपने मुनाफे के बारे में सोचते हैं, क्षेत्र की जनता और क्षेत्र की ज़मीन को होने वाले नुकसान के बारे में नहीं। आज खनन माफ़िया पर्वतीय जिलों तक पहुंच चुका है, जो राज्य की शांति प्रिय संस्कृति को भी प्रभावित कर रहा है। आज सरकार से यह सवाल पूछना बहुत जरुरी हो जाता है कि क्यों सरकार अवैध खनन के इतने बड़े मुद्दे को लेकर कोई ठोस निति नहीं बना पा रही है? क्यों 73 वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू नहीं किया जा रहा है

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खनन नीति को लेकर भी लगातार सवाल उठते रहे हैं, उत्तराखंड रिवर ट्रेनिंग नीति 2021 के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में नैनीताल के एक युवक ने याचिका दायर की, समाचार पत्रों से मिली जानकारी के अनुसार 7 जनवरी 2022 को नैनीताल उच्च न्यायालय ने इस नीति पर रोक लगा दी और कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की पीठ ने इस मामले को लेकर दायर याचिका पर सरकार को नोटिस जारी किया। सरकार को इस याचिका पर चार सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया गया है। याचिकाकर्ता द्वारा याचिका में आरोप लगाया है कि नई खनन नीति केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय से मंजूरी लिए बिना लागू की गई थी, हालांकि कुछ समाचार पत्रों में कहा गया है कि रोक केवल याचिकाकर्ता के मामले पर है खनन नीति पर नहीं।

आपदा प्रबंधन के नाम पर नदियों से मुनाफ़ा 

उत्तराखंड राज्य की खनन नीति के बारे में कॉन्फ़्लिक्ट वॉच के साथ लीगल ऐसोसिएट मुक्ता जोशी बताती हैं कि राज्य की नदियां और जंगल यहां के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, यदि किसी प्रकार से नदी और जंगल प्रभावित होते है तो इसका सीधा प्रभाव यहां के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है। लेकिन राज्य सरकार द्वारा आपदा प्रबंध 2005 के नाम पर नई खनन नीतियों में लगातार पर्यावरण सुरक्षा मानकों में ढील दी गयी है, जिस कारण नदियों में खनन और भी आसान हो गया है। नई खनन नीति के अनुसार नदी में खनन करने से नदी में आने वाली आपदाओं को रोका जा सकता है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों में इसके विपरीत नतीज़े देखने को मिले हैं, जिसका मुख्य कारण खनन को लेकर पर्यावरण नियमों को अनदेखा करना है। कुछ जगहों से नदियों में जमा आरबीएम को निकालना सही हो सकता है लेकिन मुनाफ़े के लिए लगातार अधिक मात्रा में खनन नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है। यदि इसी प्रकार नदियों में लगातार खनन होता रहा तो भविष्य में और भी ख़तरनाक नतीज़े देखने को मिलेंगे।

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वरिष्ठ पत्रकार लक्ष्मी सहगल अपने लेख में लिखती हैं कि हाल ही में पीडब्ल्यूडी द्वारा प्रत्येक जिले की विस्तृत मैपिंग द्वारा किये गये सर्वेक्षण में अनुमान लगाया गया है कि पिछले पांच वर्षों में उत्तराखंड में 37 प्रमुख पुल ढह गए हैं जबकि अन्य 27 पुल ढहने के कगार पर हैं, जिसमें वर्ष 2021 में बरसात के समय देहरादून में जाखन नदी पर बना रानीपोखरी पुल और हल्द्वानी में गौला नदी का पुल दोनों काफी चर्चा में रहे, जानकारों का मानना है कि इन दोनों पुलों के गिरने का एक मुख्य कारण नदी में क्षमता से अधिक मात्रा में होने वाला खनन भी है। लेकिन हमारे राजनेता इन पुलों के गिरने को एक राजस्व को हो रहे नुकसान के रूप में नहीं देखते हैं बल्कि वे उन्हें अधिक पैसा कमाने के अवसर के रूप में देखते हैं।

ह्यूमन राइट्स लॉयर, कंज़र्वेशन ऐक्टिविस्ट और पर्यावरण मुद्दों से जुड़ी रीनू पॉल कहती हैं कि राजस्व को होने वाले घाटे के साथ-साथ आम जनता को भी अवैध और अत्यधिक खनन का खामियाजा उठाना पड़ता है, लेकिन हमारी सरकार इसके ख़िलाफ़ कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है, राज्य सरकार द्वारा बनायीं गयी खनन नीतियों के ऊपर कोर्ट द्वारा कई बार रोक भी लगायी। जिसके बाद इन नीतियों में सरकार के द्वारा थोड़े बहुत बदलाव जरूर किये गये, लेकिन अंत में सभी का मतलब यही था की नदियों में ज़्यादा से ज़्यादा खनन हो सके। रीनू पॉल उदाहरण देते हुए आगे कहती हैं कि यदि कोई ट्रक अवैध खनन में पकड़ा जाता है तो उसको जुर्माना देकर छुड़ाया जा सकता है जो कोई स्थाई समाधान नहीं है। इसके अतरिक्त नई खनन निति को लेकर सरकार कहती है कि हमारे द्वारा इस विषय में खनन कर्ताओ से प्रतिक्रिया मांगी गयी है, जबकि सरकार को उन लोगों से सुझाव लेने चाहिए जो इस अवैध खनन से होने वाले नुकसान से प्रभावित हैं तभी एक सही प्रकार की नीति इस विषय में बन पायेगी।

सॉउथ एशिया नेटवर्क ऑफ डैम, रिवर एंड पीपल के एसोसिएट कोर्डिनेटर भीम सिंह कहते हैं कि राज्य सरकार खनन को एक राजस्व आय के स्रोत के रूप में देख रही है, इसी कारण प्रत्येक साल खनन और इससे आने वाली आय के लक्ष्य को लगातार बढ़ाया गया है।

लगातार बढ़ने वाले इस खनन से राज्य की नदियों और इन नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र पर इसका क्या असर होगा इस ओर सरकार का कोई ध्यान नहीं जाता है, खनन के बाद नदियों पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए सम्बंधित विभाग के पास कोई नदी विशेषज्ञ तक नहीं है। भीम सिंह आगे बताते हैं कि नदियों के अंदर पाये जाने वाले प्रत्येक मिनरल का अपना महत्त्व होता है जैसे- रेत बरसात के समय पानी को सोखता है और ग्राउंड वॉटर को रिचार्ज करने का कार्य करता है, बड़े बोल्डर से नदी का पानी टकराने से पानी के अंदर ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है जो नदी में रहने वाले जीवों के लिए बहुत महत्वपूर्ण होती है और नदी का बहाव भी नियंत्रित होता है। लेकिन यदि नदियों से अधिक मात्रा में इन मिनरल को निकला जाता है तो इससे नदी तंत्र प्रभावित होता है जो कहीं न कहीं पर्यावरण के लिए हानिकारक है। खनन प्रकृति के अतिरिक्त स्थानीय लोगों के लिए भी खतरा बनता जा रहा है, कई बार तो खनन के लिए किये गए गड्ढो में डूब कर लोगो की जाने भी गयी हैं। भीम सिंह आगे कहते हैं कि हमारी सरकारों को केवल आय के स्रोत के रूप में नदियों को न देखते हुए नदियों के प्राकृतिक महत्त्व की ओर भी ध्यान देना चाहिए।

भीम सिंह नदियों की सुरक्षा और अवैध खनन की रोक थाम के लिए सरकार को सुझाव देते हैं कि उत्तराखंड सरकार नदियों में खनन बहुत ही अपारदर्शी और गैर जिम्मेदाराना तरीके से कर रही है सरकार को खनन करने से पहले विश्वसनीय तरीके से रिप्लेनिशमेंट स्टडी, पर्यावरण प्रभाव आँकलन, डिस्ट्रिक सर्वे रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में रखकर विशेषज्ञ से राय लेनी चाहिए, अवैध और अनसस्टेनेबल खनन की निगरानी के लिए स्थानीय लोगों और स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति का गठन करना चाहिए, उत्तराखंड सरकार को खनन विभाग की वेबसाइट अपडेट किए सालों हो गए हैं जिसका समय से अपडेट होना आवश्यक है साथ ही खनन माफिया को रोकने के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी करना चाहिए ताकि समय से जानकारी मिलने पर प्रशासन उचित कदम उठा सके।

खनन एक चुनावी मुद्दा 

खनन राज्य की आय का एक बड़ा स्रोत होने के साथ-साथ फ़रबरी माह में होने वाले विद्यानसभा चुनाव के लिए भी बड़ा मुद्दा बन चुका है, खनन के मुद्दे को लेकर कांग्रेस द्वारा लगातार राज्य सरकार के ऊपर सवाल उठाये जाते रहे हैं। खनन को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने एक ट्वीट किया जिसमें मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को खनन प्रेमी बताते हुए लिखा माननीय मुख्यमंत्री जी खनन प्रेम की भी इन्तिहा होनी चाहिए। आपने उत्तरकाशी में खनन के लिए भागीरथी का प्रवाह ही रोक लिया, वाह राज्य का मोटो बना दिया बजरी बालू की लूट है लूट सके तो लूट। राज्य में कांग्रेस पार्टी लगातार खनन के मुद्दे को लेकर धामी सरकार को घेरते नजर आयी है, आने वाले चुनावों में कांग्रेस पार्टी खनन के मुद्दे को एक बड़ा मुद्दा बनाना चाहती है। 

उत्तराखंड राज्य में होने वाले खनन को लेकर कांग्रेस की प्रवक्ता गरिमा दसौनी का कहना कि राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री, मुख्यमंत्री बनने के पहले भी खनन प्रेमी थे और आज भी खनन प्रेमी हैं, अंधाधुंध होने वाले खनन के कारण राज्य के तमाम पुल क्षतिग्रस्त हुए हैं, वर्तमान सरकार ने राज्य के अंदर कोई भी नदी नाला, गदेरा ऐसा नहीं छोड़ा है जहां खनन नहीं हो रहा है। आचार संहिता के समय सत्तादल की दोहरी जिम्मेदारी होती है लेकिन वर्तमान सरकार में आचार संहिता लागू होने के बाद भी जिस प्रकार सरकारी विभागों में तबादले किये हैं, वह सरकार की मंशा को साफ जाहिर करते हैं, बीजेपी पार्टी के नेता केवल अपने बारे में सोच रहे हैं, अवैध खनन से राज्य की जनता को जो नुकसान हो रहा है उसके बारे में नहीं। अगर हमारी सरकार राज्य में आती है तो हम इस मुद्दे के लिए ठोस कदम उठाएंगे।

खनन के मुद्दे से जुड़े सवालों का जवाब जानने के लिए हमारे द्वारा जियोलॉजी एंड माइनिंग गॉवर्मेँट ऑफ़ उत्तराखंड के अधिकारियों से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन संपर्क नहीं हो पाया। हमारे द्वारा विभाग को एक मेल कर दिया गया है, जानकारी मिलने पर आप सभी को अवगत करा दिया जायेगा।

(लेखक देहरादून स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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